पीएलआइ का लाभ लेने वाली कंपनियों की निगरानी जरूरी !
उद्योग-व्यापार: योजना के तहत योग्य कंपनियों को 5 वर्ष के लिए 4 प्रतिशत से 6 प्रतिशत तक प्रोत्साहन देने का प्रावधान है ..
देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में किए गए विभिन्न प्रयासों में भारत सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव योजना (पीएलआइ) का घरेलू एवं स्थानीय उत्पादन और अन्तरराष्ट्रीय उद्योगों को निवेश और रोजगार सृजन के लिए प्रेरित करना अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य भारत में बने उत्पादों को बिक्री के लिए प्रोत्साहित करने के अतिरिक्त स्थानीय और विदेशी व्यापारिक समूहों को आकर्षित कर देश में श्रम आधारित उद्यमों में रोजगार का सृजन करना है।
इस योजना के तहत योग्य कंपनियों को 5 वर्ष की अवधि के लिए 4 प्रतिशत से 6 प्रतिशत तक प्रोत्साहन देने का प्रावधान है। इस योजना में मोबाइल फोन, अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, मेडिकल उपकरण, ऑटोमोबाइल, दवा, दूरसंचार एवं नेटवर्किंग उत्पाद, कपड़ा उत्पाद, उच्च दक्षता वाले सौर उपकरण, उन्नत रसायन विज्ञान सेल बैटरी तथा ड्रोन इत्यादि सम्मिलित हैं। स्मार्टफोन के स्थानीय उत्पादन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। भारत में इस बात की संभावनाएं जताई जा रही हैं कि यह रोजगार सृजन करने का महत्त्वपूर्ण कारक बनने के साथ-साथ स्मार्टफोन का प्रमुख निर्यातक राष्ट्र बनने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। साथ ही कुछ अर्थशास्त्री चिंता भी जता रहे हैं। भारत में स्मार्टफोन असेम्बल आधारित उत्पादन है। विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े पुर्जों को मिलाकर उत्पाद तैयार किया जाता है, जिसे एक सम्पूर्ण उत्पादन की श्रेणी में रखना तर्क संगत नहीं होगा। यहां यह रेखांकित करना रोचक होगा कि स्मार्टफोन के लिए आवश्यक कलपुर्जे प्रमुखत: आयातित होते हैं तथा भारत में स्थानीय रूप से उनको असेम्बल कर तैयार उत्पाद बनाकर निर्यात किया जाता है। निस्संदेह भारत से स्मार्टफोन का निर्यात वित्तीय वर्ष 2018 में 300 मिलियन डॉलर था, जो वित्तीय वर्ष 2023 में 11 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। वहीं स्मार्टफोन का आयात वित्तीय वर्ष 2018 में 3.6 बिलियन डॉलर था, जो घट कर वित्तीय वर्ष 2023 में 1.6 बिलियन डॉलर रह गया है। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन एवं कुछ अर्थशास्त्रियों के विश्लेषण के अनुसार मोबाइल स्मार्टफोन के आयात में कमी आई है। आयात शुल्क में वृद्धि भी इसका एक प्रमुख कारण बताया जा रहा है। साथ ही आवश्यक आवश्यक पुर्जों यथा डिस्प्ले स्क्रीन, प्रिन्टेड सर्किट बोर्ड, सेल, इत्यादि के आयात में अप्रत्यक्षित वृद्धि हुई है। अत: मोबाइल स्मार्टफोन के असेम्बली आधारित उत्पादन को प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव योजना के द्वारा प्रोत्साहित कर इसके आयात को कम करके निर्यात को बढ़ाना पूर्णतया तर्कसंगत नहीं है। अत: नीति निर्धारकों को यह परीक्षण करना होगा कि किस सीमा तक मोबाइल स्मार्टफोन के असेम्बल आधारित उत्पादन को वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए। यहां यह रेखांकित करना उचित होगा कि कमोबेश असेम्बल आधारित उत्पादन कम कौशल वाले रोजगार ही उपलब्ध करवाते हैं। चूंकि असेम्बल आधारित उत्पादन के लिए विशेष आधारभूत ढांचा खड़ा करने की आवश्यकता नहीं होती है। अत: इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि जब प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव योजना को सरकार 5 वर्ष पश्चात वापस ले, तो इससे लाभान्वित कंपनियां स्मार्टफोन के उत्पादन को यहां से कहीं दूसरे देश में न ले जाएं और कम कौशल वाले कामगारों पर फिर से रोजी-रोटी का संकट फिर से न खड़ा हो जाए। साथ ही यह भी विचार करना होगा कि प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव योजना में खर्च होने वाली राशि का क्या देश में औद्योगिक उत्थान के लिए स्थायी आधारभूत ढांचा खड़ा करने में निवेश किया जा सकता है, जिससे उत्पादन के लिए स्थानीय एवं बाहरी कंपनियां आकर्षित होकर यहां उद्योग धंधे लगा कर स्थायी रूप से रोजगार के अवसर सृजित कर सकें। स्थायी आधारभूत ढांचा खड़ा करने में अपेक्षाकृत अधिक समय और ऊर्जा का निवेश करना होगा। अत: प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव योजना तात्कालिक रूप से स्थानीय उत्पादन के लिए अस्थायी लाभदायक योजना सिद्ध हो सकती है।
हाल ही में भारत द्वारा सेमीकंडक्टर चिप्स आधारित उत्पादन पर भी बल दिया जा रहा है। निस्संदेह यह एक अति महत्त्वपूर्ण श्रेणी का उत्पाद है, जिसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में होता है। वर्तमान वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मक भू-रणनीतिक वातावरण में भारत का इस उत्पाद में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना उचित एवं तर्कसंगत प्रतीत होता है। किंतु इसके लिए आवश्यक उच्च निवेश एवं तेजी से परिवर्तित होने वाली तकनीक इसके भारत में उत्पादन के लिए प्रमुख चुनौती बनी हुई है। यह भी रोचक है कि सेमीकंडक्टर चिप्स के डिजाइन, टेस्टिंग और बौद्धिक सम्पदा अधिकार क्षेत्र में भारतीय पेशेवर इंजीनियरों का देश विदेश में काफी योगदान है। नीति निर्धारकों को इस विषय पर गंभीर चिंतन करना होगा कि अधिक निवेश वाले सेमीकंडक्टर चिप्स के उत्पादन की अपेक्षा देश में इसकी डिजाइन, टेस्टिंग, पैकेजिंग, बौद्धिक सम्पदा अधिकार, फाइनेंस और मार्केटिंग वाले उच्च गुणवत्तापरक रोजगार प्रदान करने वाले क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया जाए। प्रमुख अर्थशास्त्रियों द्वारा भी इसकी पैरवी की जा रही है।