बेतरतीब विकास है हमारे शहरों में बार-बार जलभराव की वजह !

स्मार्ट सिटी नहीं, जरूरत है वर्षा जल संचयन और बेहतर जल निकासी में निवेश की …

बीते हफ्तों में देश के प्रमुख शहरों दिल्ली, अहमदाबाद, मुंबई ने बाढ़ का बड़ा संकट देखा है। शहरी बाढ़ अब भारत में एक नियमित घटना है। हैदराबाद (2000 में), मुंबई (2005 में), श्रीनगर (2014 में), चेन्नई (2021 में) और बेंगलूरु (2022 में) जैसे शहरों के कई इलाके हमने भारी बारिश से पानी में डूबते हुए देखे। जलभराव आज शहरों के लिए आम सूरत है। हाल ही में एक सर्वे में शामिल 94% शहरी जलभराव, जबकि 76% शहरी सड़क जाम की कठिनाई झेल रहे हैं।

शहरी भारत में बाढ़ आजादी से पहले भी एक नियमित घटना थी, पर अब इससे क्षति और व्यवधान बढ़ गया है। इस सबके पीछे कई कारण हैं। अनियोजित शहरीकरण और जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि, खासकर निचले इलाकों में बेतरतीब निर्माण से जल निकाय खत्म हुए हैं। जैसे-जैसे शहर कंक्रीट के जंगलों में बदल रहे हैं, वर्षा जल का जमीनी रिसाव कम हुआ है। ये सारी लापरवाहियां अब बाढ़ की शक्ल ले रही हैं।

ज्यादातर भारतीय शहर बाढ़ के मैदानों और आर्र्दभूमियों के साथ किसी न किसी नदी के किनारे स्थित हैं। आदर्श दुनिया में, ऐसे क्षेत्रों को अछूता छोड़ दिया जाता पर भारत ने तो पिछले 30 वर्षों में अपनी 40% आर्र्दभूमि खो दी है। 1997 में दिल्ली में 1,000 जल निकाय थे, पर अब 700 हैं। नजफगढ़ झील जो आज एक नाले के रूप में है, कभी 80 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली थी। आज इसका फैलाव बमुश्किल पांच वर्ग किमी होगा। यहां तक कि बड़ी झीलें भी विलुप्त हो रही हैं। आलम यह है कि दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि मायापुरी जैसी कोई झील कभी अस्तित्व में थी ही नहीं। जबकि प्रामाणिक उल्लेख मिलते हैं कि दिल्ली में कभी यह झील बड़े क्षेत्र में फैली थी। दिल्ली सरकार ने इसे महज दलदली भूमि कहा। इस तरह के ब्लू इंफ्रास्ट्रक्चर के नुकसान से बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। दिल्ली 2005 से 2023 के बीच चार बार बाढ़ की चपेट में आ चुकी है। इसी तरह के पैटर्न अन्य शहरों में भी दिख रहे हैं। समाधान के लिए कई मोर्चों पर कार्रवाई की जरूरत है।

सबसे पहले हमें समस्या को बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है। नदियों सहित तमाम जल निकायों, भूमि उपयोग से जुड़े जलग्रहण क्षेत्र और बाढ़ के जोखिम को समझने के लिए सभी शहरों में अलग से अध्ययन हों, लघु, मध्यम और दीर्घकालिक उपाय किए जाएं। भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआइएस) का उपयोग स्थानीय जल निकायों को टैग करने, अतिक्रमणों पर नजर रखने और उनकी मौसमी स्थिति को समझने में मदद के लिए किया जा सकता है। स्थानीय वर्षा डेटा को केंद्रीय जल आयोग और क्षेत्रीय बाढ़ नियंत्रण प्रयासों के साथ एकीकृत किया जा सकता है।

दूसरा, हमें अपने शहरों में जल निकासी व्यवस्था का पुनर्निर्माण और विस्तार करना चाहिए। गौरतलब है कि भारत के 5000 से अधिक शहरों और कस्बों में से अधिकांश में एक अच्छी तरह से काम करने वाला सीवरेज नेटवर्क नहीं है। दिल्ली के कई क्षेत्रों में ड्रेनेज का ढलान गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध गलत ढंग से बनाया गया है। दिल्ली में ट्रांस-यमुना बेसिन में नालियां यमुना से दूर पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं, जबकि प्राकृतिक ढलान पूर्व से पश्चिम यानी यमुना की ओर है। इसके अलावा, अधिकतर शहरों के पास ड्रेनेज मास्टर प्लान नहीं है। यहां तक कि दिल्ली में भी अभी तक ड्रेनेज मास्टर प्लान लागू नहीं हुआ है।

तीसरा, मध्यम से दीर्घावधि तक के लिए शहरी नियोजन में सुधार की दरकार है। दिल्ली में कई सिविक एजेंसियां शहर की नालियों का प्रबंधन करती हैं, इससे आपसी समन्वय की कठिनाई पैदा होती है। दिल्ली अपने जल बोर्ड के साथ 155 जल निकायों को पुनर्जीवित करना चाहता है। यह मुश्किल काम है क्योंकि ज्यादातर जल निकाय दिल्ली जल बोर्ड के अलावा डीडीए, लोक निर्माण विभाग और नगर निगम के अधीन हैं।

दरअसल, हमें शहरी स्थानों में जल प्रबंधन का मार्गदर्शन करने के लिए एक सुपरिभाषित शहरी जल नीति की दरकार है। सेंट्रल वेटलैंड रेगुलेटरी अथॉरिटी जैसे नियामक निकायों को वैधानिक शक्तियां दी जा सकती हैं, जबकि शहरी जल प्रशासन में स्थानीय समुदायों की भागीदारी का स्वागत होना चाहिए। हमें सराहनीय उदाहरणों की पहचान करनी चाहिए और उन्हें आजमाना चाहिए। जैसे कि मेंगलूरु सिटी कॉरपोरेशन (एमसीसी) ने मेंगलूरु स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड (एमएसईजेडएल) के भीतर स्थापित उन उद्योगों के साथ अंतिम-उपयोगकर्ता लिंकेज के साथ अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र स्थापित किए, जिन्हें पानी की सीमित और अनियमित आपूर्ति का सामना करना पड़ा। हमें नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने की राह पर बढ़ना होगा। इस लिहाज से बेंगलूरु की कैकोंद्रहल्ली झील एक बड़ी मिसाल है। बीबीएमपी ने धन आने पर चरणबद्ध तरीके से झील को पुनर्जीवित करने के लिए समुदाय-संचालित दृष्टिकोण अपनाया। अतिक्रमणकारियों को बेदखली के नोटिस दिए गए। सीवेज प्रवाह को एक टैपिंग पाइपलाइन के जरिए दूर किया गया। झील में उगने वाली वनस्पति को हटाने और झील की गहराई एक मीटर तक बढ़ाने के लिए गाद निकालने का काम भी हुआ।

दरअसल, जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, हमारे शहरों को केवल अप्रिय घटनाओं पर प्रतिक्रिया करने के बजाय जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए आगे बढ़ना होगा। स्मार्ट शहरों के आकर्षण के बजाय हमें वर्षा जल संचयन और बेहतर जल निकासी में निवेश करना चाहिए। समय आ गया है कि हम अपनी बुनियादी समझ को दुरुस्त करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *