ग्वालियर और चंबल चुनौती …. आशीर्वाद-आक्रोश के भरोसे क्षत्रप ?

#Election2023 सात रीजन में बंटा प्रदेश, भाजपा और कांग्रेस हर क्षेत्र में इलाके को ध्यान में रखकर बना रही अलग रणनीति

भाजपा की ‘जन आशीर्वाद’ के जवाब में कांग्रेस की ‘जन आक्रोश यात्रा’ …..

इस बार दलबदल बड़ा फैक्टर, मालवा-निमाड़, ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड में नए समीकरणों का आगाज

ग्वालियर और चंबल चुनौती

रणभेरी बज चुकी है। मुकाबलेबाज बाहें फडफड़ा रहे हैं। ताल ठोंक के तैनात हैं। जुलूस निकलने लगे हैं। जोरदार जोर आजमाइश प्रारंभ हो गई है। बयानों के बाण हवा में हैं। किसी को आशीर्वाद मिलने की उम्मीद है तो कोई आक्रोश को भुनाने की जुगत में है। हो भी क्यों न, प्रदेश में चुनाव जो आ गए हैं।

इसी वर्ष के अंतिम माह में नई सरकार बन जाएगी। अब जबकि महज तीन महीने ही चुनाव के लिए बचे हैं तो प्रदेश की सियासत का गर्म होना तो लाजमी ही है। शुरुआती दौर में भाजपा और कांग्रेस की रणनीति आदिवासी और दलित वोटरों को लुभाने की है। यही वजह है कि फोकस में इन्हीं के इलाके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदिवासी बाहुल्य शहडोल और संत रविदास मंदिर निर्माण के लिए सागर का दौरा इसी की पृष्ठभूमि है तो कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी की जबलपुर रैली और कभी कांग्रेस के वफादार रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया से दो-दो हाथ करने के इरादे से उनके गढ़ ग्वालियर में जनसभा उसी रणनीति का हिस्सा है। इधर, भाजपा के मुख्य रणनीतिकार अमित शाह ने केंद्रीय टोली के साथ सारे सूत्र अपने हाथों में ले लिए हैं तो कांग्रेस ने भी प्रियंका गांधी का चेहरा सामने कर ताकत दिखाने की कोशिश में है। इसे वह कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश का दांव बता रही है, जहां भाजपा को शिकस्त मिली थी।

शिवराज का मध्य में दबदबा

मध्यक्षेत्र में सीएम शिवराज सिंह चौहान का दबदबा है तो महाकोशल में भाजपा के सामने विंध्य जैसे ही नेतृत्व का संकट है। क्षेत्र को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बांध रखा है। रणनीति में कांग्रेस को राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा से बढ़त मिलती है। विधायकों व पार्टी की आक्रामकता ने कार्यकर्ताओं में जोश बनाए रखा है। 2018 के चुनाव में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष रहे सांसद राकेश सिंह नेपथ्य से बाहर चुनाव प्रबंधन समिति में लाए। लेकिन विंध्य जैसे पार्टी के हालात यहां भी हैं। एक मंच पर सभी को लाने वाले नेतृत्व का संकट है। मंत्रिमंडल विस्तार में गौरीशंकर बिसेन के जरिए ओबीसी को साधने की कोशिश की। खफा अजय विश्नोई को भरोसा नहीं दे सकी।

2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को अधिक झटका ग्वालियर चंबल रीजन में लगा। यहां 34 में 7 सीटें ही मिलीं। एससी-एसटी एक्ट आंदोलन, सवर्णों से टकराव ने ऐसी चूलें हिलाईं कि सत्ता से बाहर हो गई, इसलिए यहां फोकस है। भाजपा संगठन व कोर कमेटी में ग्वालियर-चंबल का दबदबा है। प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा, महामंत्री हितानंद शर्मा इसी क्षेत्र के रहने वाले हैं। चुनाव प्रबंधन मुखिया नरेंद्र तोमर हैं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया जोश से जुटे हैं। वहीं, 26 सीटें पाने वाली कांग्रेस सिंधिया के पार्टी छोड़ने के बाद जिलेवार रणनीति बना रही है। नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह, विधायक केपी सिंह, दिग्विजय, अजय सिंह जोर लगा रहे हैं।

भाजपा: द्वंद्व अब भी नहीं थमा

कांग्रेस: मुश्किलें भी कम नहीं

उधर, बागी विधायक नारायण त्रिपाठी की चुनौती से निपटने का नुस्खा पार्टी के पास नहीं है, जिन्होंने मैहर को जिला बनाने के ऐलान के बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान और पूर्व सीएम कमलनाथ के फोटो वाले पोस्टर लगाकर सकते में ला दिया है। दूसरी ओर सीधी पेशाब कांड, सिंगरौली विधायक के बेटे के गोलीकांड ने सियासी आटा और गीला कर दिया है। कोयलाचंल के दो मंत्री बिसाहूलाल सिंह और मीना सिंह अपने क्षेत्र तक ही सीमित हैं। मुश्किलें कांग्रेस खेमे में भी कम नहीं हैं। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हार के बाद भी ले देकर यहां कांग्रेस के पास चेहरा अजय सिंह ही हैं। चुनावी बयार के बीच कमलेश्वर पटेल को राष्ट्रीय कार्यसमिति में शामिल कर ओबीसी को संदेश देने की कोशिश की गई है।

भाजपा के लिए सबसे अधिक अनुकूल मध्य क्षेत्र और विंध्य के इलाके रहे हैं। कुल सीटों का 45 फीसदी के करीब उसे इन्हीं दो इलाकों से मिला था। मध्य क्षेत्र में शिवराज सिंह चौहान सहित पूरी सरकार ही बैठती है और उसका दबदबा है। 2020 में सत्ता परिवर्तन के बाद से शुरू हुआ द्वंद्व अब भी नहीं थमा है। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम, विधायक राजेंद्र शुक्ला, सांसद गणेश सिंह, मंत्री रामखेलावन पटेल आगे किए गए हैं, लेकिन इनमें कोई नहीं, जो सबको साथ बैठाकर पार्टी को आगे ले जा सके। यही वजह है चुनाव के ऐन वक्त हैरानी भरे मंत्रिमंडल विस्तार में राजेंद्र शुक्ला को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। हालांकि इससे यही संदेश गया कि विंध्य में भाजपा के लिए पहले जैसी स्थिति नहीं है, तभी तो बदलाव करना पड़ा।

बड़े नेता एजेंडा सेट करने प्रदेश में कर रहे सभा

चुनाव से पहले भाजपा-कांग्रेस एजेंडा सेट कर रही है। भाजपा ने जनदर्शन के बाद जन आशीर्वाद यात्रा धार्मिक नगरी चित्रकूट से शुरू कर इरादे साफ कर दिए हैं। आदिवासी बहुल मंडला भी फोकस में है। पीएम मोदी की यात्राओं को सामाजिक-धार्मिक कार्यक्रमों से जोड़ने की कोशिश व धार्मिक स्थलों को लोक में बदलना भी कोर मुद्दे में शामिल करने के प्रयास हो रहे हैं।

कां ग्रेस जवाबी जनाक्रोश यात्रा से कर्नाटक जैसा नैरेटिव सेट करने के लिए कमीशन की सरकार, दलबदल, भ्रष्टाचार, महंगाई-बेरोजगारी जैसी दुखती रग पर हाथ धर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की सागर और प्रियंका गांधी की जबलपुर में सभा हो चुकी है। राहुल गांधी के कार्यक्रम तकरीबन तय हैं। क्षत्रप जमीनी तैयारी कर रहे हैं।

लगातार भाजपा का साथ छोड़ रहे नेता

भाजपा में ग्वालियर-चंबल के बाद मालवा में ज्यादा खलबली है। ग्वालियर-चंबल में ऐसा कोई दिन नहीं है, जब भाजपा से कोई न कोई नेता कांग्रेस में जा रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या सिंधिया समर्थकों की है। मालवा में दीपक जोशी के बाद भंवर सिंह शेखावत ने बड़ा झटका दिया है। यह फेहरिश्त बढ़ेगी, पर इससे कांग्रेस को फजीहत झेलनी होगी, क्योंकि टिकट के दावेदार ही आ रहे हैं।

रणभेरी बज चुकी है। मुकाबलेबाज बाहें फडफड़ा रहे हैं। ताल ठोंक के तैनात हैं। जुलूस निकलने लगे हैं। जोरदार जोर आजमाइश प्रारंभ हो गई है। बयानों के बाण हवा में हैं। किसी को आशीर्वाद मिलने की उम्मीद है तो कोई आक्रोश को भुनाने की जुगत में है। हो भी क्यों न, प्रदेश में चुनाव जो आ गए हैं।

इसी वर्ष के अंतिम माह में नई सरकार बन जाएगी। अब जबकि महज तीन महीने ही चुनाव के लिए बचे हैं तो प्रदेश की सियासत का गर्म होना तो लाजमी ही है। शुरुआती दौर में भाजपा और कांग्रेस की रणनीति आदिवासी और दलित वोटरों को लुभाने की है। यही वजह है कि फोकस में इन्हीं के इलाके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदिवासी बाहुल्य शहडोल और संत रविदास मंदिर निर्माण के लिए सागर का दौरा इसी की पृष्ठभूमि है तो कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी की जबलपुर रैली और कभी कांग्रेस के वफादार रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया से दो-दो हाथ करने के इरादे से उनके गढ़ ग्वालियर में जनसभा उसी रणनीति का हिस्सा है। इधर, भाजपा के मुख्य रणनीतिकार अमित शाह ने केंद्रीय टोली के साथ सारे सूत्र अपने हाथों में ले लिए हैं तो कांग्रेस ने भी प्रियंका गांधी का चेहरा सामने कर ताकत दिखाने की कोशिश में है। इसे वह कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश का दांव बता रही है, जहां भाजपा को शिकस्त मिली थी।

बड़े नेता एजेंडा सेट करने प्रदेश में कर रहे सभा

चुनाव से पहले भाजपा-कांग्रेस एजेंडा सेट कर रही है। भाजपा ने जनदर्शन के बाद जन आशीर्वाद यात्रा धार्मिक नगरी चित्रकूट से शुरू कर इरादे साफ कर दिए हैं। आदिवासी बहुल मंडला भी फोकस में है। पीएम मोदी की यात्राओं को सामाजिक-धार्मिक कार्यक्रमों से जोड़ने की कोशिश व धार्मिक स्थलों को लोक में बदलना भी कोर मुद्दे में शामिल करने के प्रयास हो रहे हैं।

कां ग्रेस जवाबी जनाक्रोश यात्रा से कर्नाटक जैसा नैरेटिव सेट करने के लिए कमीशन की सरकार, दलबदल, भ्रष्टाचार, महंगाई-बेरोजगारी जैसी दुखती रग पर हाथ धर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की सागर और प्रियंका गांधी की जबलपुर में सभा हो चुकी है। राहुल गांधी के कार्यक्रम तकरीबन तय हैं। क्षत्रप जमीनी तैयारी कर रहे हैं।

लगातार भाजपा का साथ छोड़ रहे नेता

भाजपा में ग्वालियर-चंबल के बाद मालवा में ज्यादा खलबली है। ग्वालियर-चंबल में ऐसा कोई दिन नहीं है, जब भाजपा से कोई न कोई नेता कांग्रेस में जा रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या सिंधिया समर्थकों की है। मालवा में दीपक जोशी के बाद भंवर सिंह शेखावत ने बड़ा झटका दिया है। यह फेहरिश्त बढ़ेगी, पर इससे कांग्रेस को फजीहत झेलनी होगी, क्योंकि टिकट के दावेदार ही आ रहे हैं।

यहां बदलता रहा है वोट का पैटर्न

सियासी भूगोल में मध्यप्रदेश में 7 ऐसे रीजन हैं, जहां वोट पैटर्न बदलता रहा है। इनके परिणाम का आकलन भी दलीय आधार पर किया जाता रहा है। इसलिए सत्ता संग्राम में भाजपा व कांग्रेस रीजन को ध्यान में रखकर ही अलग-अलग रणनीति बनाती है। इन दलों की हर रीजन की अलग-अलग सियासी स्थिति है और कमजोरी व मजबूती के अपने आधार भी हैं। इस बार दलबदल भी बड़ा फैक्टर है, जिससे सीधे तौर पर चार रीजन मालवा, निमाड़, ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड में एक नए समीकरण का आगाज हुआ है।

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 भाजपा की ‘जन आशीर्वाद’ के जवाब में कांग्रेस की ‘जन आक्रोश यात्रा’, सीएम शिवराज ने किया कटाक्ष

MP Elections 2023: मध्यप्रदेश में एक तरफ जहां भाजपा जन आशीर्वाद यात्रा निकाल रही है तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने प्रदेश में जन आक्रोश यात्रा निकालने का ऐलान किया है। 15 सितंबर को कांग्रेस की जन आक्रोश यात्रा की शुरुआत होगी और 2 अक्टूबर को इसका समापन होगा।

MP Election 2023 : मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां यात्राओं के जरिए जनता का भरोसा जीतने की कोशिश में लग गई हैं। एक तरफ जहां भाजपा प्रदेश में अलग अलग जन आशीर्वाद यात्रा निकाल रही है तो वहीं दूसरी तरफ अब कांग्रेस भी प्रदेश में यात्रा निकालने जा रही है। जन आशीर्वाद यात्रा के जवाब में कांग्रेस ने जन आक्रोश यात्रा निकालने का ऐलान किया है। कांग्रेस की जन आक्रोश यात्रा की शुरुआत 15 सितंबर से होगी और 2 अक्टूबर को इसका समापन होगा।

जन आशीर्वाद यात्रा के जवाब में कांग्रेस की ओर से जन आक्रोश यात्रा निकाले जाने को लेकर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कटाक्ष किया है। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि हमें आशीर्वाद मिल रहा है इसलिए हम आशीर्वाद यात्रा निकाल रहे हैं और कांग्रेस को आक्रोश मिल रहा है तो वो जन आक्रोश यात्रा निकाल रहे हैं। सीएम शिवराज सिंह ने आगे कहा कि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश को भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया था। जनधन योजना खा गए थे, जल जीवन जैसी योजना शुरू नहीं की थी, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के लिए नाम नहीं भेजे थे, 2 लाख पीएम आवास वापस लौटा दिए थे। तमाम योजनाएं बंद कर दी थीं इसलिए कांग्रेस जन आक्रोश यात्रा निकाल रही है।

ये नेता करेंगे ‘जन आक्रोश यात्रा’ की अगुवाई
बता दें कि कमलनाथ के निवास पर बुधवार को हुई मीटिंग के बाद कांग्रेस ने प्रदेश में जन आक्रोश यात्रा निकाले जाने का ऐलान किया था। मीटिंग में तय किया गया था कि 15 सितंबर से 2 अक्टूबर तक प्रदेश में ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ निकाली जाएगी। जन आक्रोश यात्रा की अगुवाई की जिम्मेदारी कांग्रेस के 7 बड़े नेता कांतिलाल भूरिया, नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह, पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव, पूर्व मंत्री जीतू पटवारी, अजय सिंह और कमलेश्वर पटेल, सुरेश पचौरी कौ सौंपी गई है। कांग्रेस की तरफ से ये भी बताया गया है कि जन आक्रोश यात्रा के दौरान शिवराज सरकार की नीतियों की नीतियों, भ्रष्टाचार और घोटालों को आम लोगों के बीच रखा जायेगा।

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