रामकृपाल सिंह: समाज में विघ्न संतोषी हमेशा रहते हैं। कुछ लोगों का हर बयान के पीछे मकसद होता है। इन बातों के पीछे समाधान नहीं है। फारुख अब्दुल्ला कभी बातचीत की पैरवी करते हैं, कभी कुछ और बयान देते हैं। यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। हम बंद दरवाजे के भीतर रहते हैं। पड़ोसी तो वही है। हमें कोशिश यह करनी चाहिए कि ऐसी चीजें न हों। हम बड़े देश हैं। ताकतवर देश हैं। हम उसे सबक सिखा सकते हैं। बालाकोट जैसा स्ट्राइक कर सकते हैं, लेकिन हमें सोच-समझकर कदम उठाना चाहिए।
विनोद अग्निहोत्री: मैं भी इस बात से सहमत हूं। यह दुर्भाग्यपूर्ण, शर्मनाक और दु:खद घटना हुई है। कितना भी आप पड़ोसी हों या झगड़े हों, आखिर में बातचीत की मेज पर आकर ही रास्ता निकलता है। अहमदाबाद में अब भारत-पाकिस्तान के बीच मैच होना है। 2003-04 में भी अटलजी के वक्त क्रिकेट से ही रिश्ते सुधरना शुरू हुए थे। कश्मीर का जनमानस तो आतंकियों के खिलाफ है। पाकिस्तान से सख्ती से बात होनी चाहिए कि ये आखिर क्या हो रहा है। दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध खराब स्थिति में हैं। लोग पूछ सकते हैं कि अटलजी बस लेकर गए, मोदी जी भी लाहौर गए, लेकिन नतीजा क्या निकला? आखिरकार आपको बात तो करनी ही पड़ेगी। हमने पहले सर्जिकल स्ट्राइक की, फिर एयर स्ट्राइक की। हमने तब कमर तोड़ी, लेकिन घटनाएं अब भी हो रही हैं। भारत को दोनों चैनलों यानी सुरक्षा बलों की कार्रवाई और कूटनीतिक रास्तों के जरिए बात करनी चाहिए।
प्रेम कुमार: हमने तीन घटनाएं देखी हैं- पठानकोट, पुलवामा और अनंतनाग। पठानकोट की घटना के बाद भारत ने पाकिस्तान की आईएसआई को यहां बुलाकर जांच करने को कहा। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। पाकिस्तान ने खुद को ही क्लीन चिट दे दी। पुलवामा हमारी सबसे बड़ी नाकामी थी। उस पर चर्चा नहीं होती। जवानों को हवाई जहाज से ले जाना चाहिए था, जो नहीं हुआ। पाकिस्तान ने पुलवामा का हमला किया तो हम एयर स्ट्राइक करके चुप हो गए। तब हमने पाकिस्तान पर बड़ा प्रहार क्यों नहीं किया? अनंतनाग की बात करें तो आतंकवाद की घटनाएं क्यों नहीं रुक रही हैं? आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार कहा था कि जब युद्ध नहीं हो रहा है तो सैनिकों की क्यों मौत हो रही है?
हर्षवर्धन त्रिपाठी: भारत की सेना और भारत की सरकार कभी इतनी संवेदनहीन नहीं रही कि राजनीतिक लाभ के लिए अपना ही नुकसान करा ले। पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर अब तक ऐसा हो पाना संभव ही नहीं है। 2019 में जब से अनुच्छेद 370 हटा, तब से आतंकी घटनाएं कम हुईं। भारत बातचीत तो कर लेगा, लेकिन किससे करे? पाकिस्तान में सरकार तो है नहीं। हम किससे बात करें? वह मुल्क कार्यवाहक प्रधानमंत्री के जरिए चल रहा है। आईएसआई और पाकिस्तानी सेना में कौन ताकतवर है, ये कैसे पता चलेगा? विपक्ष को स्तरहीन बयानों से बचना चाहिए।
समीर चौगांवकर: जब कारगिल की जंग हुई थी, तब भी ऐसे बयान आए थे और सेना का मनोबल तोड़ने की कोशिश हुई थी। आतंकियों को जो राजनीतिक ताकत मिलती थी, वह अब खत्म हो गई है। पाकिस्तान से तो बातचीत कई बार हो चुकी है। जब तक सीमा पार से घुसपैठ जारी है, तब तक ऐसी घटनाओं को रोकना मुश्किल होगा। हालांकि, 2014 के बाद से केंद्र सरकार ने जो रणनीति अपनाई है, उससे कामयाबी मिली है। राजनीतिक इच्छाशक्ति और सेना की ताकत में काफी फर्क आ चुका है। फिलहाल पाकिस्तान से बातचीत शुरू करने का कोई मतलब नहीं है।