कूनो नेशनल पार्क में क्यों हुई थी चीतों की मौत?

कूनो नेशनल पार्क में क्यों हुई थी चीतों की मौत? प्रोजेक्ट के चीफ ने खोला राज, जानें क्या कहा?
Cheetah Project: पिछले साल सितंबर महीने में 20 चीतों को नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था, जिसमें से कुछ की मौत हो गई थी. इस बार चीतों की देखभाल के लिए अलग तैयारी की गई है.
Kuno National Park: भारत में फिर दक्षिण अफ्रीका से चीते मंगाए जाएंगे और उन्हें मध्य प्रदेश के गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में छोड़ा जाएगा. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के प्रमुख एसपी यादव के अनुसार इस अभयारण्य में चीतों को छोड़ने की तैयारी साल के अंत तक पूरी कर ली जाएगी.

प्रोजेक्ट चीता के प्रमुख एसपी यादव ने कहा, ”इस बार भारत वहां से ऐसे चीते मंगवाएगा, जिनमें जाड़े के मौसम में मोटी फर (रोंएदार चमड़े की एक खास परत) नहीं विकसित होती हो. दरअसल, अफ्रीका से भारत लाए गए चीतों में से कुछ मोटी फर विकसित होने के कारण गंभीर संक्रमण की चपेट में आए थे. इसी वजह से तीन चीतों की मौत भी हुई थी.”

पिछले साल कूनो में छोड़े गए थे चीते

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामीबिया से लाए गए चीतों को पिछले वर्ष 17 सितंबर को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा था और इसी के साथ देश में प्रोजेक्ट चीता की शुरुआत हुई थी. प्रोजेक्ट चीता का रविवार (17 सितंबर) को एक वर्ष पूरा हो जाएगा.

प्रोजेक्ट चीता के प्रमुख के अनुसार इस बार पूरा ध्यान इन पशुओं के प्रजनन पर दिया जाएगा. उन्होंने जोर देकर कहा, ”चीतों को पहनाए गए रेडियो कॉलर के कारण उन्हें कोई संक्रमण नहीं हुआ था. हालांकि, अधिकारियों ने इन कॉलर की जगह दक्षिण अफ्रीका के उसी निर्माता के बनाए नए कॉलर लगाने का फैसला किया है.”

चीतों के लिए दो नए स्थान

इस प्रोजेक्ट के प्रमुख एसपी यादव ने कहा, ”चीता कार्रवाई योजना में इस बात का जिक्र है कि कूनो में 20 चीतों को रखे जाने की क्षमता है. इस वक्त वहां एक शावक सहित कुल 15 चीते हैं. जब हम देश में चीतों की अगली खेप लाएंगे, तो इन्हें किसी और क्षेत्र में रखेंगे. हम मध्य प्रदेश में दो ऐसे स्थान तैयार कर रहे हैं, जिसमें से एक गांधी सागर अभयारण्य और दूसरा नौरादेही है.”

उन्होंने कहा. ”गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में चीतों को लाए जाने की तैयारी जोर-शोर से चल रही है. मुझे लगता है कि यह काम नवंबर के अंत में या दिसंबर में पूरा हो जाएगा. हम तैयारी की हर पहलू से जांच करेंगे और दिसंबर के बाद चीतों को लाने के संबंध में निर्णय लेंगे.”

क्यों हुई चीतों की मौत?

एसपी यादव के अनुसार पहले वर्ष में भारत में चीतों की देखभाल में आई मुख्य चुनौती यह थी कि कुछ चीतों ने अफ्रीका की सर्दी की अवधि (जून से सितंबर) के पूर्वानुमान के अनुसार भारत में गर्मी और मानसून के मौसम में अपने शरीर पर मोटी फर विकसित कर ली थी. इसकी उम्मीद अफ्रीकी विशेषज्ञों को भी नहीं थी.

उन्होंने चीतों में संक्रमण और मौत की पूरी घटना को विस्तार से बताया. उन्होंने कहा, ”मोटी फर, अधिक उमस और तेज तापमान, इन सबके कारण चीतों को खारिश होती है और वे पेड़ों के तनों या जमीन पर अपनी गर्दन रगड़ते हैं. इससे पशुओं की गर्दनों की खाल फट जाती है जिस पर मक्खियां बैठती है और अंडे देती हैं. इससे पशुओं में विषाणु का संक्रमण होने के साथ सेप्टिसीमिया (सड़न) की समस्या होती है और पशुओं की मौत हो जाती है.

एसपी यादव ने कहा, ”भारत की मिट्टी में जन्मे शावक यहां के वातावरण में आसानी से ढल सकते हैं. एक बार प्रजनन प्रक्रिया पूरी हो जाए, फिर हम समझ पाएंगे कि ये चीते हमारे देश में किस प्रकार से रचते बसते हैं.” ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत 20 चीतों को नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था. इन्हें दो खेप- सितंबर 2022 और फरवरी 2023 में कूनो नेशनल पार्क भेजा गया था.

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