क्यों खालिस्तानी आतंकियों का साथ देता है कनाडा

क्यों खालिस्तानी आतंकियों का साथ देता है कनाडा, क्या है उसकी मजबूरी?
क्षेत्रफल के हिसाब से कनाडा रूस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. कनाडा की संसद में 5.3 प्रतिशत सिख सांसद हैं. ब्रिटिश कोलंबिया में भारतीय मूल के सबसे ज्यादा लोग रहते हैं. वहीं, 2019 में हुए चुनाव में ओंटारियो से 10 सिख सांसद चुनकर आए थे.
क्यों खालिस्तानी आतंकियों का साथ देता है कनाडा, क्या है उसकी मजबूरी?

जब कनाडा में खालिस्तान के समर्थन में निकली रैली

अभी तक पाकिस्तान और चीन भारत के खिलाफ साजिश रचने वाले देश थे, लेकिन आज इसमें एक नया नाम कनाडा का जुड़ गया है. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को G-20 सम्मेलन के दौरान खालिस्तानी आतंकियों को पनाह देने और वहां पर भारत विरोधी गतिविधियों को चलने को लेकर फटकार का सामना करना पड़ा था. इसी की खोज को निकालते हुए वह अब खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ होने की बात कह रहे हैं.

यही नहीं कनाडा के पीएम ने यह भी कहा कि उसने भारत के राजनयिक पवन कुमार राय को निष्कासित कर दिया, जिसके जवाब में भारत ने एक वरिष्ठ कनाडाई राजनयिक को निष्कासित कर दिया. दोनों देशों के बीच पहली बार रिश्तों में इतनी ज्यादा तल्खी देखी जा रही है. हालांकि इसके पीछे भारत की चिंता जायज है क्योंकि पहले आतंकी अपराध करने के बाद पाकिस्तान में जाकर शरण लेते थे, लेकिन अब कनाडा ऐसी जगह बन रहा है जहां पर भारत विरोधी लोगों को सबसे ज्यादा शरण दी जा रही है. इसमें भी खालिस्तानी आतंकियों को शरण देने के मामले में कनाडा सबसे ऊपर है.

क्या है कनाडा की मजबूरी?

क्षेत्रफल के हिसाब से कनाडा रूस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है, लेकिन वहां की जनसंख्या मात्र 3.5 करोड़ है. ऐसे में अगर इस तरह के देश को मजबूत बनना है तो उसको लोगों की जरूरत होगी. अपने यहां पर लोग नहीं होने के कारण ऐसे देशों को अपनी इमिग्रेशन पॉलिसी को आसान करना पड़ता है और दूसरे देश से लोग यहां पर आते हैं, जिससे उस देश की तरक्की में योगदान देते हैं. यहां पर सिखों की तादाद कुल जनसंख्या का 1.5 फीसदी है, जबकि भारत में सिख 1.7 प्रतिशत हैं.

जगमीत सिंह का भारत वीजा कर चुका है कैंसिल

कनाडा की संसद में 5.3 प्रतिशत सिख सांसद हैं. 2019 में ट्रूडो सरकार को मात्र 157 सीटें मिल पाईं, जोकि बहुमत से 24 कम थीं. इसके लिए इनको न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन लेना पड़ा, जिसके अध्यक्ष जगमीत सिंह हैं और 2013 में भारत सरकार ने इसका वीजा कैंसिल किया था, क्योंकि इनके संबंध खालिस्तानी आतंकवादियों से थे.

कनाडा में 2022 के दौरान खालिस्तान को लेकर रेफरेंडम होता है, जिसमें 1 लाख के आसपास सिख हिस्सा लेते हैं. भारत सरकार ने इसके खिलाफ आपत्ति जताई और साफ करते हुए कहा कि अब हमने पॉलिसी बदल दी है, अगर आपके कनाडा के पीएम खालिस्तान या ऐसे किसी भी कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं तो हम इसे सीधे-सीधे वहां की सरकार को भारत के खिलाफ समझेंगे. हालांकि ट्रूडो की सरकार का कहना है कि यह शांति से होने वाले प्रदर्शन हैं और लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी है. इसके साथ ही जहां पर सिखों की आजादी ज्यादा, वहां के सांसदों ने खालिस्तान की बात उठाई.

हरजीत सिंह को ट्रूडो ने बनाया था रक्षा मंत्री

ट्रूडो ने हरजीत सिंह को कनाडा का डिफेंस मिनिस्टर नियुक्त किया, जोकि खालिस्तानी समर्थक थे, लेकिन बाद उनको हटा दिया. इसके साथ ही जब 2019 में ट्रूडो ने भारत का दौरा किया तो वह अपने साथ जसपाल अटवाल को लेकर आए, जिसने 1986 में पंजाब सरकार के मंत्री मलकेत सिंह सिद्धू पर गोली चलाई और खालिस्तान नारे लगाए. इसके साथ ही मनवीर सिंह सैनी को भी वह अपने साथ लेकर आए, जिसने पीएम मोदी के 2015 के कनाडा दौरे पर उनका विरोध किया था.

 

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