किराए पर भोपाल?

किराए पर भोपाल? पांच लाख किराएदार पुलिस रिकॉर्ड में, वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने 40 दिन में ही बने 15707 किराएनामे

 अगस्त से 11 सितंबर के बीच जुड़े नामों की हकीकत

एड्रेस प्रूफ के लिए बिजली बिल, बैंक पास बुक के बाद इसी का ज्यादा प्रयोग

2 अगस्त से 11 सितंबर के बीच जुड़े नामों की हकीकत
राजधानी में किराएदारों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। इसका खुलासा मतदाता सूची से हुआ है। 1 अगस्त से 11 सितंबर तक 40 दिनों में ही करीब 15707 किराएनामे बने। इनके जरिए मतदाता सूची में नाम जुड़वाए गए। 2034 बूथों के २१० बीएलओ की डेटा की पड़ताल से पता चला कि जिले की सातों विधानसभा सीटों में नाम जुड़वाने के लिए एड्रेस प्रूफ के लिए बिजली बिल, बैंक पासबुक के अलावा बड़ी संख्या में किराएनामे का उपयोग हुआ है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के लिए तैयार मतदाता सूची में किराएनामे की संख्या सात हजार के आसपास थी। आपको बतादें कि पुलिस रिकॉर्ड में किराएदारों की संख्या लगभग पांच लाख के करीब है। इसमें नौकरी पेशा, स्टूडेंट, गरीब वर्ग व अन्य शामिल हैं। इससे साफ होता है कि राजधानी में लोग अपना घर खरीदने के बाद किराए पर उठाने में ज्यादा भरोसा कर रहे हैं।
विधानसभा-मतदान केंद्र-नए जुड़े मतदाता-किराएनामे
बैरसिया-270-12932-2422
भोपाल उत्तर-246-8813-1790
नरेला-330-16814-3380
भोपाल द.प.-233-7412-800
भोपाल मध्य-243-11135-1365
गोविंदपुरा-369-16468-3000
हुजूर-343-15718-2950
अन्य-0000-106-0000
-2034-89398-15707
यहां बनता है किरायानामा
राजधानी में अधिकृत नोटरी अधिवक्ता की संया करीब 85 के आस-पास है। ये नियम कानून के तहत किराएनामा और अन्य दस्तावेज बनाते हैं। नोटरी दुकानों की संख्या दो हजार से ज्यादा है। कम से कम 50 रुपए के नोटरी स्टैंप पर किरायानामा बन जाता है। जिला नोटरी अधिवक्ता प्रकोष्ठ के अध्यक्ष मनोहर पाठक के अनुसार अधिकृत नोटरी द्वारा कम से कम 500 रुपए का किराएनामा ही वैध माना जाता है। फर्जी किरायेनाम के खिलाफ जिला एवं सत्र न्यायाधीश के यहां शिकायत भी की गयी है। इन दिनों किरायानामा डेढ़ सौ से लेकर ढाई सौ और आठ सौ रुपए तक में बन रहे हैं।
एड्रस प्रूफ के रूप में मान्य है किरायानामा
मतदाता सूची में नाम जुड़वाने, गैस कनेक्शन लेने, घर किराए पर लेने आदि कार्यो में किरायानामा मान्य है।
इसलिए नहीं होती कार्रवाई
नोटरी अधिनियम 1952 के तहत नोटरियों की जांच का अधिकार जिला एवं सत्र न्यायाधीश एवं विधि एवं विधाई कार्य विभाग के पास है। इसलिए कई बार शिकायत के बाद भी इनकी जांच नहीं होती। जबकि, जिला नोटरी अधिवक्ता प्रकोष्ठ इसकी जांच की मांग करता रहता है।

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