क्या घरेलू बचत घट गई है? लोगों ने खर्च बढ़ाया या वो गरीब हो गए !

आज के समय में घरों में वित्तीय दायित्व या सीधे शब्दों में कहें तो घरेलू खर्च बढ़ गए हैं और बचत कम हो गई हैं, जिससे परिवारों पर कर्ज़ बढ़ रहा है। हालांकि सरकार ने इस बात का खंडन किया है और सरकार का तर्क है कि बचत सिर्फ इसलिए कम हो रहीं हैं, क्योंकि आज लोग भौतिक सुख-सुविधाओं को बढ़ाने के लिए सस्ती दरों पर कर्ज़ ले रहे हैं।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की सितंबर माह की मासिक रिपोर्ट से पता चलता है कि 2020-21 में परिवारों की शुद्ध बचत 11.5% से घटकर 5.1%हो गई थी। वहीं, परिवारों पर कर्ज़ उनकी संपत्ति की तुलना में तेजी से बढ़ा था।

कई लेखकों ने इस बढ़ते कर्ज की ओर संकेत भी किया लेकिन सरकार ने इस बात को मानने से इनकार किया है। वित्त मंत्रालय ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि भले ही घरों में बचत कम हो रही है लेकिन परिवारों ने महामारी के बाद कम ब्याज दरों का लाभ लेते हुए घर, वाहन और शिक्षा जैसी सुविधाओं पर निवेश किया है तो इसका अर्थ ये बिल्कुल भी नहीं है कि कुल बचत दर घट रही है।

इस तरह हमारे पास दो तरह के वक्तव्य हैं लेकिन ये दोनों ही एक दूसरे से एकदम उलट हैं। एक निराशावाद और संकट का और दूसरा उम्मीद और आशा का? वहीं, अर्थव्यवस्था को लेकर आंकड़े क्या कहते हैं?

अर्थव्यवस्था का आशावादी दृष्टिकोण

यहांहमारे पास सरकार के तर्क को को सच मानने के लिए आंकड़े हैं कि कैसे बचत संपत्तियां, पैसे से भौतिक सुख-सुविधाओं की तरफ बढ़ी हैं?

2020-21 और 2021-22 के बीच निर्माण क्षेत्र सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र था। आंकड़े बताते हैं कि कोरोना महामारी के बाद, घरों के निर्माण में वृद्धि हुई है, जो कि 15% (2021-22 की तुलना में) और 2022-2023 में 10% की दर से बढ़ रहा था।

इन आंकड़ों के अनुसार कोरोना काल के बाद व्यापार, होटल, परिवहन और संचार के क्षेत्र में सबसे अधिक बढ़त हुई है। 2018-19 से 2022-23 के बीच सभी शेड्यूल कमर्शियल बैंक ( SCBs) में ‘होम लोन’ दोहरे अंक से बढ़ा है। वहीं, 2018-19 से 2022-23 के बीच वित्तीय कंपनियों से लिया जाने वाला कर्ज 17% बढ़ गया है और अन्य गैर-वित्तीय संपत्तियों पर भी कर्ज़ बढ़ गया है। शेड्यूल कमर्शियल बैंक (SCBs) से 2021-22 से 2022-23 के बीच शिक्षा पर लिया जाने वाला कर्ज 17% और वाहनों पर लिया जाने वाला कर्ज 25% बढ़ा है। इससे भी घरेलू बचत पर प्रभाव पड़ा है। वित्तीय बचत का हिस्सा 2017-18 में 39.6% से घटकर 2021-22 में 38.77% हो गया है। वहीं, परिवारों में यदि सोने-चांदी को छोड़ दिया जाए तो भौतिक संपत्तियों की बचत में परिवारों का 60% हिसा है।

इसका अर्थ ये हुआ कि परिवारों ने अपनी बचत को घरेलू खाने-पीने जैसे ईधन की खपत के लिए भले ही नहीं बढ़ाया हो लेकिन घरों, गाड़ी जैसी गैर-वित्तीय संपत्तियों को खरीदने में बढ़ाया है।

अर्थव्यवस्था का निराशावादी दृष्टिकोण

यहां कुछ ऐसे तथ्य हैं, जो आशावादी दावे से अलग हकीकत बताते हैं, यानी परिवारों की बचत की दर इसलिए गिर गई है, क्योंकि उनकी देनदारियां मतलब उधार बढ़ गया है। 2021-22 और 2022-23 में वित्तीय संपत्ति, सकल घरेलू उत्पाद की हिस्सेदारी में 11.1% से घटकर 10.9% हो गई, वहीं कुल देनदारियां यानि उधार 2019-20 और 2021-22 के बीच 3.8% पर ही रहीं, वहीं 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद 5.8% हो गया।

इन आंकड़ों का मतलब साफ है कि यदि कर्ज लेकर घरों का निर्माण और अन्य सुविधाओं पर खर्च किया जा रहा है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि बचत कम हो गई है, हालांकि बचत कम हुई है इसके आंकड़े हैं।

जबकि इसमें भी कोई शक नहीं है की घर, शिक्षा और वाहनों पर लिए जाने वाले ऋण में वृद्धि हुई है। वहीं व्यक्तिगत ऋण (पर्सनल लोन) और भी तेजी से बढ़े हैं। शेड्यूल कमर्शियल बैंक ( SCBs) से कुल गैर-खाद्य पर्सनल लोन (जैसे कृषि, उद्योग आदि) में हिस्सेदारी 2018-19 में 51.08% से घटकर 2022-23 में 47.4% हो गई है। शिक्षा ऋण का हिस्सा भी 3.32% से गिरकर 2.37% हो गया है, जबकि वाहन ऋण 12% पर ही बना हुआ है।

वहीं, इस सबके उलट इस समय अवधि में क्रेडिट कार्ड ऋण 3.8% से बढ़कर 4.7% हो गया, गोल्ड लोन 1.07% से बढ़कर 2.16% हो गया। इसके साथ ही अन्य तरह के व्यक्तिगत ऋण 24% से 27.42% तक बढ़े हैं। हालांकि इन ऋणों का उपयोग घरों में किस लिए किया जा रहा है ये साफ नहीं कहा जा सकता।

कहने का अर्थ ये है कि ये लोन क्यों लिए जा रहे हैं ये साफ नहीं है, तो हो सकता है इन ऋणों का उपयोग घरों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जा रहा हो और इसीलिए परिवारों ने क्रेडिट कार्ड और गोल्ड पर लोन लिया हो।

इसके साथ ही 2021-22 और 2022-23 के बीच कर्ज की सबसे बड़ी देनदारियों (उधार) में सबसे बड़ा योगदान गैर-बैंकिंग संस्थानों से लिया गया ऋण है, जो कि पिछले वर्ष से दस गुना बढ़ गया है और इस वर्ष की कुल देनदारियों में 32.1% योगदान दे रहा है।

आगे कई और भी चुनौती

आंकड़ों से ये पता चलता है कि भले ही आवास ऋण में वृद्धि हुई है और अन्य प्रकार के ऋण जो कि उपयोग के लिए हैं, वो भी बढ़े हैं लेकिन क्या इसका मतलब ये निकाला जाए कि अर्थव्यवस्था पर संकट है?

क्योंकि सिर्फ एक साल के आंकड़ों के आधार पर ये कहना मुश्किल होगा, हम नहीं जानते ये अर्थव्यवस्था के लिए एक शुरुआत है या सिर्फ एक बार की घटना। यहां कुछ लोग मान सकते हैं कि ये परिवार कोविड और बढ़ती महंगाई के बाद आय में कमी आ जाने की वजह से अपनी जरूरतों की पूरा करने के लिए उधार ले रहे हैं।

वहीं दूसरी ओर ये तर्क भी दिया जा सकता है कि कोविड महामारी के समय परिवारों ने जो भौतिक सुविधाओं के सपने देखे, उन मांगों को पूरा करने के लिए इस ऋण की जरूरत को महसूस किया जा रहा है। परिवार भविष्य में इसे चुका देंगे इस सोच को लेकर वे आशावादी हैं।

हालांकि, यदि आशावादी तर्क सही है तो भी ये एक चिंता का विषय है, क्योंकि बढ़ती महंगाई से निपटने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व के उद्देश्य के पूरा करने से ब्याज दरों पर असर पड़ेगा। वहीं यदि परिवारों ने रियल स्टेट में निवेश किया है तो बढ़ती ब्याज दरों से उनके खर्चों में कमी आ जाएगी और अर्थव्यवस्था में कुल मांग घट जाएगी।

वहीं, यदि मुश्किल में आकर कर्ज लेने वाली बात सच है तो ब्याज दरें बढ़ने पर कर्ज लेने वाले परिवारों में तनाव बढ़ जाएगा और बढ़ती ब्याज दरों से ही उनके खर्च करने में कमी आएगी और अर्थव्यवस्था की कुल मांग में भी कमी आ जाएगी। भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने खड़े इन असंख्य खतरों पर नजर रखना जरूरी है।

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