बीजेपी को केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधायक बनाकर क्या फायदा?
बीजेपी के सासंदो को विधानसभा चुनाव में उतारने के प्लान से चुनाव आयोग के सामने खड़ी हो गई ‘अद्भुत’ चुनौती
केंद्रीय मंत्री और सांसदों को विधानसभा सीटों पर सासंदों को प्रत्याशी बनाकर उतारना भले ही बीजेपी की स्ट्रैटेजी का हिस्सा हो. लेकिन इस प्रयोग से चुनाव आयोग के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है.
दरअसल भारतीय जनता पार्टी ने सासंदों को भले ही प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतार दिया हो. लेकिन, अगर इन सीटों पर उनकी जीत होती है तो उन उम्मीदवारों को फैसला लेना होगा कि वह विधायकी का पद चुनेंगे की लोकसभा की सदस्यता.
ऐसे में अगर वे लोकसभा सदस्य का पद चुनते हैं तो चुनाव आयोग को आने वाले 6 महीने में उन खाली सीटों पर उपचुनाव करवाना होगा. हालांकि कुछ महीनों बाद ही देश में लोकसभा चुनाव होने वाले है. जिसके मद्देनजर हो सकता है चुनाव आयोग उपचुनाव न करवाए.
पहले भी सासंद लड़ चुके हैं विधायकी
ऐसा पहली बार नहीं है जब चुनाव आयोग के सामने ऐसे मामले आए हों. साल 2017 में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राज्य के सदन में जाने के लिए सांसदी छोड़ दिया था.
इससे पहले भी कई सांसद विधानसभा सदस्यता बनाए रखने के लिए सांसद का पद छोड़ चुके हैं. लेकिन अगर साल 2023 के अंत तक पांच विधानसभा चुनाव होते है तो संभवतः यह पहली बार है होगा जब लगभग 20 सांसद विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में होंगे.
बीजेपी ने अब तक उतारे कितने सांसद
राजस्थान में विधानसभा सीटों के लिए सात भाजपा सांसद चुनाव मैदान में हैं. इन सासंदों में राज्यवर्धन राठौड़, दीया कुमारी, बाबा बालकनाथ, नरेंद्र कुमार, किरोड़ी लाल मीना, भागीरथ चौधरी और देवीजी पटेल शामिल हैं. जबकि तीन केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर, प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और छत्तीसगढ़ में केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह, सांसद विजय बघेल, गोमती साई और अरुण साव चुनावी मैदान में उतरने वाले हैं.
क्या है संवैधानिक प्रावधान?
- संविधान के अनुच्छेद 101(2) के अनुसार, अगर कोई लोकसभा सदस्य विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार बनता है और जीत जाता है तो उसे नोटिफिकेशन जारी होने के 14 दिन के अंदर अंदर लोकसभा या विधानसभा, किसी एक सदन से इस्तीफा देना होता है.
- ठीक इसके उलट अगर विधानसभा का सदस्य अगर लोकसभा का सदस्य बन जाता है तो ऐसी स्थिति में उसे भी 14 दिन के अंदर अंदर इस्तीफा देना होता है. ऐसा नहीं करने पर उसकी लोकसभा की सदस्यता अपने आप खत्म हो जाती है.
- लोकसभा का सदस्य राज्यसभा सदस्य बनता तो उसपर भी यही नियम लागू होते है. अगर कोई लोकसभा का सदस्य राज्यसभा का सदस्य बनता है तो उसे नोटिफिकेशन जारी होने के 10 दिन के अंदर एक सदन से इस्तीफा देना होता है. संविधान के अनुच्छेद 101(1) और रिप्रेजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट की धारा 68(1) में इसका प्रावधान है.
- वहीं, कोई उम्मीदवार 2 लोकसभा सीट से चुनाव लड़ता है और उसे दोनों में ही जीत मिलती है ऐसे में उसे नोटिफिकेशन जारी होने के 14 दिन के अंदर किसी एक सीट से इस्तीफा देना होता है. यही नियम विधानसभा चुनाव में भी लागू होती है. दो सीट से जीतने पर कोई सीट 14 दिन के भीतर छोड़नी पड़ती है.
पिछले साल भी आया था ऐसा ही मामला
साल 2021 में, मौजूदा बीजेपी सांसद निशांत प्रमाणिक ने पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव लड़ा और उन्हें दिनहाटा विधानसभा सीट पर जीत भी मिली थी. बाद में उन्होंने विधानसभा सीट के बजाय अपनी संसदीय सीट बरकरार रखने का फैसला किया. अब दीनाहाटा में कोई विधायक नहीं होने के कारण छह महीने बाद वहां उपचुनाव कराना पड़ा.
इसी तरह, राणाघाट से सांसद जगन्नाथ सरकार ने पश्चिम बंगाल की शांतिपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, लेकिन उन्होंने सीट छोड़ दी, जिससे उस सीट पर भी उपचुनाव कराया गया. उसी विधानसभा चुनाव के दौरान, आसनसोल से सांसद बाबुल सुप्रियो ने बुलीगंज के विधायक बने रहने के लिए अपनी लोकसभा सीट छोड़ दी थी, जिसके कारण आसनसोल में उपचुनाव हुए.
कई सीटों से चुनाव लड़ने वालों पर चुनाव आयोग का रुख
इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी कई सांसदों को उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतार दिया है. ऐसे में कहा जा रहा कि जल्द ही इन राज्यों में भी साल 2021 में पश्चिम बंगाल के जैसी स्थिति बन सकती है. आश्चर्य की बात तो ये है कि चुनाव आयोग ने कई सीटों से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों पर कभी भी कोई कड़ा रुख नहीं अपनाया है. हालांकि आयोग ने इसने पहले सुझाव दिया था कि न सिर्फ ऐसे लोगों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए, बल्कि ऐसे प्रतियोगी को उपचुनाव आयोजित करने के लिए खर्च का भुगतान भी करना चाहिए. उस वक्त सरकार या कोर्ट ने इस सुझाव को स्वीकार नहीं किया था.
कब होने वाले हैं पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में 7 अक्टूबर से लेकर 30 नवंबर के बीच विधानसभा चुनाव होंगे और परिणाम 3 दिसंबर तक घोषित कर दिए जाएंगे. इन राज्यों में चुनाव की तारीख का ऐलान चुनाव आयोग ने ही 9 अक्टूबर, 2023 को कर दिया है.
भारत में चुनाव कौन लड़ सकता है
अगर सामान्य नियमों की बात करें तो भारत में चुनाव लड़ने के लिए व्यक्ति को इस देश का नागरिक होना बेहद जरूरी है, इसके साथ ही चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति का नाम मतदाता सूची (वोटर लिस्ट) में शामिल होना चाहिए. इसके अलावा आप भले ही किसी भी सीट पर अपना वोट देते हों, लेकिन कहीं से भी चुनाव लड़ सकते हैं. विधानसभा चुनाव में 25 साल से अधिक उम्र के लोग चुनाव लड़ सकते हैं. इसके अलावा व्यक्ति को मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ होना बेहद जरूरी है.
एक व्यक्ति कितनी सीटों पर चुनाव लड़ सकता है
साल 1996 के पहले धारा 33 के अनुसार,एक उम्मीदवार जितनी मर्जी चाहे उतनी सीटों से चुनाव लड़ सकता था. लेकिन इस नियम पर आपत्ति जताए जाने के बाद साल 1996 में इस नियम में संशोधन किया गया.
वर्तमान में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33 (7) के तहत एक व्यक्ति एक चुनाव में अधिकतम दो सीटों से ही मैदान में आ सकता है. यानी एक व्यक्ति दो सीट से चुनाव लड़ सकता है. अगर उसकी दोनों सीटों पर जीत होती है तो उसे एक सीट छोड़नी होती है. ऐसा उसे चुनाव परिणाम आने के 10 दिन के अंदर करना होता है. फिर जो सीट खाली हो जाती है, वहां फिर से चुनाव होते हैं
केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधायक बनाकर क्या फायदा?
देश में अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. इससे पहले पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे जिसे आम चुनाव का सेमी फाइनल कहा जा रहा है. यही कारण है कि कोई भी पार्टी यहां अपने उम्मीदवारों तो जीतते देखने के लिए कुछ भी करने को तैयार है. भाजपा ने भी उम्मीदवारों में केंद्रीय मंत्री और सासंदों को उतारकर एक तरह का एक्सपेरिमेंट करने की कोशिश की है.
उम्मीदवारों के तौर पर केंद्रीय मंत्री या सांसद को उतारने का पहला कारण तो यह माना जा रहा है कि किसी सांसद का आसपास के उन पांच-छह विधानसभाओं पर वर्चस्व होता है जिनसे मिलकर एक लोकसभा क्षेत्र बनता है. सांसद ही अपने लोकसभा क्षेत्र में आने वाले सभी विधानसभा क्षेत्रों में विकास का काम देखते हैं और उस अंजाम देते है.
एक कारण ये भी माना जा रहा है कि संगठन के बड़े नेताओं को मैदान में उतारे जाने पर छोटे कार्यकर्ताओं का उत्साह कई गुना बढ़ जाता है. उनका नेताओं के जरिए पार्टी के जुड़ाव और भी ज्यादा बढ़ जाता है और वह उन नेताओं के सामने खुद को साबित करने के लिए जी-जान लगा देते हैं. जिसका फायदा पार्टी को मिलता है.
राजस्थान में बीजेपी के कितने सांसद मैदान में
भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान में जिन सांसदों को विधानसभा चुनाव के मैदान में उतारने की घोषणा की है उनमें ये नाम शामिल हैं:
- भागीरथ चौधरी (किशनगढ़)
- देवजी पटेल (सांचौर)
- नरेंद्र कुमार (मंडावा)
- दिया कुमारी (विद्याधर नगर)
- राज्यवर्धन राठौर (झोटवाड़ा)
- बालक नाथ (तिजारा)
- राज्यसभा सदस्य किरोड़ी लाल मीणा (सवाई माधोपुर)
मध्य प्रदेश किन मंत्रियों-सांसदों को मैदान में उतार रही है बीजेपी
- फग्गन सिंह कुलस्ते, मंत्री (निवास)
- राकेश सिंह, सांसद (जबलपुर पश्चिम)
- नरेंद्र सिंह तोमर, मंत्री (दिमनी)
- प्रहलाद पटेल, मंत्री (नरसिंहपुर)
- रीति पाठक, सांसद (सीधी)
- गणेश सिंह, सांसद (सतना)
- उदय प्रताप सिंह, सांसद (गाडरवारा)
- कैलाश विजयवर्गीय, महासचिव (इंदौर-1)
छत्तीसगढ़ में किन सासंदों को मिला टिकट
- रेणुका सिंह- भरतपुर- सोनहत
- गोमती साय- पत्थलगांव
- अरुण साव- लोरमी
- विजय बघेल- पाटन