MP : 7 सीटें जिन पर उम्मीदवार घोषित करना बीजेपी-कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द!
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव: वो 7 सीटें जिन पर उम्मीदवार घोषित करना बीजेपी-कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द!
मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने 144 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. बीजेपी की भी चार लिस्ट जारी हो चुकी हैं. 7 सीटें ऐसी हैं जहां से दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों के नाम सामने नहीं आए हैं.
उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कार्यकर्ताओं की नाराजगी पर मीडिया से हुई बातचीत में कहा कि प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों पर 4000 हजार से अधिक कार्यकर्ता दावा कर रहे हैं, सभी को टिकट नहीं दे सके. अच्छे प्रत्याशियों को चुना गया है.
हालांकि फिलहाल मध्यप्रदेश की 130 विधानसभी सीटों में से 7 सीटें ऐसी भी हैं जहां अब तक न ही बीजेपी के किसी प्रत्याशी की घोषणा हुई है और न ही कांग्रेस ने किसी के नाम पर मुहर लगाई है.
इन 7 सीटों पर अब तक कोई चेहरा नहीं
जहां कांग्रेस ने 144 प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है वहीं 86 सीटें उसने अभी भी होल्ड पर रखी हैं. इनमें से 22 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं वहीं 64 सीटें ऐसी हैं जहां पर पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. ऐसे में कुछ सीटों पर मौजूदा विधायकों को इस बार टिकट कटने का डर भी सता रहा है.
हालांकि 7 सीटें ऐसी भी हैं जहां से बीजेपी और कांग्रेस ने कोई चेहरा नहीं बनाया है. इनमें दमोह, कोतमा, भोपाल दक्षिण पश्चिम, ब्यावरा, सेंधवा, मनासर, बड़नगर हैं.
क्यों इन सीटों पर फंसा पेंच?
दमोह- यहां 1990 से बीजेपी के जयंत मलैया लगातार 6 बार विधायक रह चुके हैं. इसके अलावा इसी सीट से राहुल लोधी के कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होने के बाद उपचुनाव हुए. जिसके बाद कांग्रेस से अजय टंडन चुने गए थे, लेकिन इस सीट पर कांग्रेस इस बार उहापोह की स्थिति में है इसी के चलते यहां से टिकट अभी होल्ड पर है.
भोपाल दक्षिण पश्चिम– इस सीट से मौजूदा समय में कांग्रेस के पीसी शर्मा विधायक हैं. ऐसे में यहां से कांग्रेस और बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके संजीव सक्सेना भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. दोनों कांग्रेस नेताओं के बीच टिकट को लेकर तकरार बढ़ रही है. यहां पर भी कांग्रेस ने टिकट को होल्ड पर रखा है.
ब्यावरा– साल 2018 में इस सीट से गोवर्धन दांगी विधायक थे जिनके निधन के बाद उपचुनाव हुए और रामचंद्र दांगी विधायक बने. अब रामचंद्र दांगी और पुरुषोत्तम दांगी के बीच टिकट को लेकर मतभेद चल रहे हैं.
कोतमा- इस सीट से मौजूद विधायक सुनील सर्राफ के खिलाफ माहौल नजर आ रहा है. एक केस में भी सर्राफ का नाम आया था. इसके अलावा स्थानीय कांग्रेसी भी उनके विरोध में हैं. इन सब को देखते हुए यहां से भी कांग्रेस ने किसी को चेहरा नहीं बनाया है. इसके अलावा बीजेपी भी अभी यहां से किसी को टिकट देने पर विचार नहीं कर पा रही है.
बड़नगर- इस क्षेत्र से वर्तमान में कांग्रेस से मुरली मोरवाल विधायक हैं. वहीं उनके बेटे का नाम रेप केस में आ चुका है. इस केस के चलते कई बार पार्टी बैकफुट पर आ चुकी है. वहीं बीजेपी को इस सीट से पिछले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. दोनों पार्टियों में टिकट पर फैसला नहीं हो पाया है.
सेंधवा- इस सीट से वर्तमान विधायक ग्यारसीलाल रावत की भी रिपोर्ट अच्छी नहीं है. वहीं बीजेपी इस सीट पर पिछली बार मिली हार के चलते विचार कर रही है.
अपने गढ़ छिंदवाड़ा में 6 सीटों पर कांग्रेस ने प्रत्याशी की नहीं की घोषणा
छिंदवाड़ा में सात विधानसभा सीटें हैं जो कांग्रेस जीतती आई है. हालांकि यहां से सिर्फ एक सीट पर प्रत्याशी के नाम की घोषणा की गई है वो और कोई नहीं बल्कि मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ही हैं. इसके अलावा यहां की 6 सीटों पर अब तक किसी के नाम की घोषणा नहीं की गई है. यहां की 3 सीटों पर मौजूदा विधायकों से कांग्रेस कार्यकर्ता नाराज हैं. वहीं इस सीटों पर एक भी महिला विधायक नहीं है. आने वाले समय में महिला आरक्षण को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस महिला प्रत्याशियों को बढ़ा सकती है और यहां से किसी महिला को टिकट दे सकती है.
65 युवा और 19 महिलाओं को मिला कांग्रेस का टिकट
इस विधानसभा चुनाव को लोकसभा का सेमीफाइनल भी कहा जा रहा है. नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव बेहद नजदीक हैं. यही कारण है कि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की अपनी पहली लिस्ट में सर्वे के आधार पर ही ज्यादातर उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है.
साथ ही कांग्रेस ने युवा प्रत्याशियों पर भी फोकस कर रही है.144 प्रत्याशियों की पहली लिस्ट में कांग्रेस ने 50 साल से कम आयु के 65 प्रत्याशियों को टिकट दिया है. वहीं, 19 महिलाओं को भी लिस्ट में शामिल किया गया है. इसके अलावा पहली लिस्ट में 47 उम्मीदवार जनरल कैटेगरी से हैं, 6 अल्पसंख्यक वर्ग, 39 ओबीसी वर्ग, 22 एससी और 30 एसटी वर्ग के नेताओं को टिकट दिया गया है.
यहां से लड़ेंगे दिग्गज नेता
मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और सीएम पद के उम्मीदवार कमलनाथ छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ने जा रहे हैं. वहीं उनके सामने बीजेपी ने इस सीट से विवेक बंटी साहू को मैदान में उतारा गया है. कमलनाथ ने 2019 के मई महीने में हुए उपचुनाव में छिंदवाड़ा से अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा था. जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई थी. मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए उन्होंने अपनी पार्टी के सहयोगी दीपक सक्सेना की खाली की गई छिंदवाड़ा सीट पर 25,800 से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी.
इससे पहले इस सीट पर यानी साल 2013 में छिंदवाड़ा विधानसभा सीट से बीजेपी की जीत हुई थी, जबकि साल 2008 में इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार सक्सेना ने जीत हासिल की थी. इसके अलावा छिंदवाड़ा विधानसभा क्षेत्र लोकसभा सीट का हिस्सा है, जिसे कमलनाथ ने अपने दशकों लंबे राजनीतिक करियर में रिकॉर्ड 9 बार जीता है.
दतिया में बीजेपी के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के सामने कांग्रेस ने अवधेश नायक को टिकट दिया है. अवधेश बीजेपी सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे हैं. वो ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही बीजेपी में शामिल हुए थे, बाद में घरवापसी करते हुए वो कांग्रेस में फिर शामिल हो गए. इस सीट से डॉ. नरोत्तम मिश्रा साल 2008 से ही जीत हासिल करते आ रहे हैं. हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने सिर्फ 2,600 वोटों के मामूली अंतर से जीत दर्ज की थी, इस चुनाव में पूर्व विधायक और वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेंद्र भारती ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी.
कांग्रेस ने इंदौर विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय को टक्कर देने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय शुक्ला को उतारा है. वर्तमान में इस निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के संजय शुक्ला ही विधायक हैं, जिन्होंने 2018 का चुनाव 8,000 से अधिक मतों के अंतर से जीता था.
बीजेपी ने मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री विश्वास सारंग को नरेला सीट से मैदान में उतारा है. वहीं कांग्रेस ने इस सीट से मनोज शुक्ला को अपना प्रत्याशी बनाया है. वर्तमान में ये सीट मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के पास है. वो साल 2008, 2013 और 2018 से भोपाल की नरेला सीट से जीत हासिल करते आ रहे हैं. सारंग ने इस सीट से 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में 23,100 से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की थी.
पिछली बार कम वोट्स से चुके नेताओं को फिर मिला मौका
कांग्रेस ने अटेर में पूर्व विधायक हेमंत कटारे, विजयपुर में पूर्व विधायक रामनिवास रावत और जौरा उपचुनाव में हार का सामना कर चुके पंकज उपाध्याय को भी टिकट दिया है. इसके अलावा पार्टी ने गुना जिले की बमोरी सीट पर पूर्व मंत्री कन्हैया लाल अग्रवाल के बेटे ऋषि अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया गया है.
साथ ही मेहगांव में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह के भांजे राहुल भदौरिया को भी टिकट दिया गया है. वहीं मुंगावली सीट पर बीजेपी के पूर्व विधायक रहे स्व. राव देशराज सिंह यादव के बेटे राव यादवेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया गया है.
एमपी में कब होगा मतदान?
कुछ दिन पहले ही चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश सहित पांच राज्यों में होने वाले मतदान और इसके परिणाम की तारीखों का ऐलान किया है. जिसके अनुसार मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को मतदान होगा. कांग्रेस से पहले पहले भारतीय जनता पार्टी ने भी अपने कैंडिडेट्स की चार लिस्ट जारी कर दी है. बीजेपी चार बार में 136 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर चुकी है. माहौल का भांपते हुए बीजेपी के सुप्रीम लीडर्स ने 3 केंद्रीय मंत्रियों सहित सात सांसदों इस चुनाव में ऐड़ी चौटी का जोर लगाने वाले हैं.
बीएसपी ने भी जारी की चौथी लिस्ट
बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने 31 उम्मीदवारों की अपनी चौथी सूची जारी कर दी है. मायावती की अगुवाई वाली बीएसपी अभी तक 74 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर चुकी है. पार्टी के एक पदाधिकारी ने बताया कि चौथी सूची में बीएसपी ने छतरपुर, शिवपुरी, सागर, रीवा, सिंगरौली, कटनी, जबलपुर, नर्मदापुरम, खंडवा, राजगढ़, रायसेन, खरगोन, धार, अलीराजपुर, देवास, इंदौर, झाबुआ, नीमच, रतलाम, उज्जैन और शाजापुर जिलों के तहत आने वाली विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवार घोषित किए हैं.
बीएसपी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में दो सीटें जीती थीं. हालांकि, बाद में उसका एक विधायक सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो गया था. बीएसपी की इकलौती विधायक रामबाई सिंह परिहार दमोह जिले की पथरिया सीट से एक बार फिर किस्मत आजमाएंगी. बीएसपी ने पहले जारी एक सूची में उनके नाम की घोषणा की थी.
बीएसपी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन की घोषणा की है, जिसके तहत बीएसपी की 178 सीटों, जबकि जीजीपी की 52 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की योजना है. जीजीपी का करीब तीन दशक पहले तत्कालीन अविभाजित मध्य प्रदेश में एक आदिवासी संगठन के रूप में गठन किया गया था. उसने 1998 में एक विधानसभा सीट जीती थी.