कांग्रेस ने दिए सिर्फ 2 टिकट, बीजेपी ने एक भी नहीं; मुसलमान हाशिए पर क्यों?

MP में 7% मुस्लिम 25 सीटों पर निर्णायक ! कांग्रेस ने दिए सिर्फ 2 टिकट, बीजेपी ने एक भी नहीं; मुसलमान हाशिए पर क्यों?

ये स्थिति तब है, जब मध्यप्रदेश में मुस्लिम वोटर करीब 25 सीटों पर निर्णायक प्रभाव रखते हैं। प्रदेश में मुस्लिम आबादी लगभग 7% है। राज्य के 54 जिलों में से 19 में मुस्लिम आबादी 1 लाख से ज्यादा है। भोपाल उत्तर सीट में सबसे ज्यादा 60% और बुरहानपुर सीट पर 50% मुस्लिम वोटर हैं। फिर क्यों चुनावी राजनीति में मुस्लिम समुदाय हाशिए पर है? 

मध्यप्रदेश में मुस्लिम राजनीतिक हाशिए पर क्यों जा रहे हैं? इस सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं कि मुस्लिम और बीजेपी के रिश्तों में लंबे समय से खटास चली आ रही है। इसके लिए दोनों जिम्मेदार हैं, लेकिन कांग्रेस में भी इस तबके की हिस्सेदारी आबादी के हिसाब से नहीं है। यही वजह है कि बंगाल में 80 फीसदी मुस्लिम वोटर तृणमूल कांग्रेस के साथ चला गया, लेकिन मध्यप्रदेश में उन्हें कांग्रेस के अलावा कोई विकल्प दिखाई नहीं दे रहा है।

दिग्विजय ने बनाया मंत्री, 6 महीने में इस्तीफा देना पड़ा

किदवई बताते हैं कि जब 1993 में दिग्विजय सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब अविभाजित मध्यप्रदेश (छत्तीसगढ़ नहीं बना था) विधानसभा में 320 सीटें थी। उस चुनाव को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि देश के सबसे बड़े राज्य मध्यप्रदेश में किसी भी दल से एक भी मुस्लिम विधायक जीतकर विधानसभा नहीं पहुंचा था जबकि इस चुनाव में कांग्रेस ने छह मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। बावजूद इसके दिग्विजय सिंह ने अपनी कैबिनेट में इब्राहिम कुरैशी (विधायक नहीं थे) को जगह दी। कुरैशी को छह महीने में चुनाव जीतकर विधायक बनना था, लेकिन वे नहीं बन पाए। ऐसे में उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर भोपाल उत्तर में

विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से देखें तो भोपाल की उत्तर और मध्य विधानसभा सीट के अलावा प्रदेश की 25 सीटों पर मुस्लिम वोट बैंक बड़ी भूमिका निभाता है। भोपाल उत्तर सीट पर सबसे ज्यादा 52 से 55 फीसदी और बुरहानपुर सीट पर 50 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं।

इंदौर-1, इंदौर-3, भोपाल मध्य, उज्जैन और जबलपुर सीट पर 30 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। खंडवा, रतलाम, जावरा और ग्वालियर सीट पर 20 से 25 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। शाजापुर, मंडला, नीमच, महिदपुर, मंदसौर, इंदौर-5, सीहोर, इछावर, आष्टा और उज्जैन दक्षिण सीट पर 16 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं।

25 सीटों पर मुस्लिम वोटर्स की बड़ी भूमिका

भोपाल की उत्तर और मध्य विधानसभा सीटों के अलावा प्रदेश की 25 सीटों पर मुस्लिम वोट बैंक बड़ी भूमिका निभाता है। इनमें भोपाल की नरेला, बुरहानपुर, शाजापुर, देवास, रतलाम सिटी, उज्जैन उत्तर, जबलपुर पूर्व, जबलपुर उत्तर, मंदसौर, रीवा, सतना, सागर, ग्वालियर दक्षिण, खंडवा, सिवनी, खरगोन, इंदौर-1, देपालपुर विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव है।

ऐसे हाशिए पर चले गए मुसलमान

वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं कि 1980 के विधानसभा चुनावों में मुसलमान उम्मीदवार सबसे ज्यादा थे और उनकी संख्या 35 थी। इसके बाद विधानसभा चुनावों में यह संख्या कम होती गई। 2018 के चुनाव में सिर्फ 14 मुसलमान उम्मीदवार ही मैदान में थे। अब तक सबसे ज्यादा 7 मुसलमान विधायक 1962 के विधानसभा चुनाव में जीतकर आए थे।

प्रदेश से आखिरी मुस्लिम सांसद थे असलम शेर खान

पिछले चार दशकों से मध्यप्रदेश से विधानसभा ही नहीं, संसद में भी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व घटता ही चला जा रहा है। प्रदेश से इस समाज से आखिरी सांसद 1991 में भारतीय हॉकी टीम के सदस्य असलम शेर खान बने थे। उनके बाद से अब तक कभी कोई मुस्लिम उम्मीदवार लोकसभा में मध्यप्रदेश से निर्वाचित नहीं हो पाया।

खान ने पहला चुनाव 1980 में विधानसभा का लड़ा था, लेकिन वे हार गए थे। इसके बाद 1984 में बैतूल से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। इसके बाद 1989 में यहीं से हार गए, लेकिन 1991 में वे फिर जीते। अगला चुनाव 1996 में हारे। उन्हें पार्टी ने 2009 में सागर से टिकिट दिया था, लेकिन वे यहां से भी हार गए थे। असलम शेर खान के अलावा अजीज कुरैशी 1984 में सतना से सांसद बने थे। वे राज्यपाल भी रहे हैं।

कांग्रेस ने सबसे ज्यादा मुस्लिमों को टिकट दिए

कांग्रेस ने वर्ष 2014 की तुलना में 2022 के नगरीय निकायों में ज्यादा मुस्लिमों को पार्षद का टिकट दिया था। 2014 में करीब 400 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में थे जबकि पिछले चुनाव में 450 उम्मीदवार मुस्लिम उतारे थे। इनमें से 344 ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों ने भोपाल, इंदौर और जबलपुर जैसे बड़े शहरों में अच्छा प्रदर्शन किया था। बुरहानपुर में कांग्रेस की एकमात्र मुस्लिम मेयर उम्मीदवार भी कम अंतर से चुनाव जीतने में चूक गई थीं।

बीजेपी ने पसमांदा मुस्लिम को भी नहीं दिया टिकट

इस सवाल पर दीक्षित कहते हैं- बीजेपी ने मध्यप्रदेश में पसमांदा यानी पिछड़े मुसलमानों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की शुरुआत पिछले साल नगरीय निकाय चुनाव में कर दी थी। 1994 के बाद ऐसा पहली बार हुआ, जब बीजेपी ने इस चुनाव में 6671 पार्षद सीटों में से 380 मुस्लिमों को टिकट दिया था। इसमें से 92 ने जीत दर्ज की। इतना ही नहीं, 12 निकायों में बीजेपी को सत्ता दिलाने में इन पार्षदों का अहम रोल भी रहा। लेकिन बीजेपी राज्य विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों की भागीदारी से बचती रही है। इसकी वजह ‘हिदुत्व का एजेंडा’ माना जा सकता है।

कांग्रेस भी नहीं चाहती मुसलमानों के वोट?

कांग्रेस के पूर्व सांसद और पूर्व हॉकी खिलाड़ी असलम शेर खान कहते हैं कि बीजेपी मुस्लिमों को तवज्जो नहीं देती, यह पार्टी का पॉलिसी मेटर है। वह कई दशकों से एक विचारधारा को लेकर आगे बढ़ी है। लेकिन कांग्रेस ने भी 80 के दशक के बाद से समाज के इस तबके को प्राथमिकता देना धीरे-धीरे कम कर दिया। सवाल यह नहीं है कि कितने मुसलमानों को टिकट दिया गया बल्कि यह है कि कांग्रेस पार्टी में उनकी हिस्सेदारी कितनी है? इन्हें न तो संगठन में पर्याप्त जगह दी जा रही है और न ही किसी कैंपेन में जगह दी गई।

मुसलमानों का प्रतिनिधित्व घटा

मध्यप्रदेश में पिछले 7 विधानसभा चुनावों में केवल 9 मुस्लिम विधायक चुनाव जीते हैं। 2003, 2008 व 2013 के चुनाव में मात्र एक मुस्लिम उम्मीदवार आरिफ अकील विधानसभा पहुंचे। 2018 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े दो मुस्लिम उम्मीदवार आरिफ अकील और आरिफ मसूद जीते।

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