मराठा आरक्षण की मांग पर 12 दिन में 13 सुसाइड !

विधायकों के घर क्यों जला रहे मराठा आंदोलनकारी …आरक्षण की मांग पर 12 दिन में 13 सुसाइड

मराठा आरक्षण आंदोलन की पूरी कहानी जानेंगे….

121 साल पहले पड़ी मराठा आरक्षण की नींव

26 जुलाई 1902। छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी ने एक फरमान जारी किया। इसमें कहा गया कि उनके राज्य में जो भी सरकारी पद खाली हैं, उनमें 50% आरक्षण मराठा, कुनबी और अन्य पिछड़े समूहों को दिया जाए।

छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के महाराज शाहूजी महाराज।
छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के महाराज शाहूजी महाराज।

यह एक ऐसा फैसला था जिसने आगे चलकर आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था करने की राह दिखाई। मराठा समुदाय भी इसे ही अपनी मांग का आधार बताता है। 1942 से 1952 तक बॉम्बे सरकार के दौरान भी मराठा समुदाय को 10 साल तक आरक्षण मिला था। इसके बाद मामला ठंडा पड़ गया।

41 साल पहले शुरू हुई मराठा आरक्षण की मांग

आजादी के बाद मराठा आरक्षण के लिए पहला संघर्ष मजदूर नेता अन्नासाहेब पाटिल ने शुरू किया। उन्होंने ही अखिल भारतीय मराठा महासंघ की स्थापना की थी। 22 मार्च 1982 को अन्नासाहेब पाटिल ने मुंबई में मराठा आरक्षण समेत अन्य 11 मांगों के साथ पहला मार्च निकाला। उन्होंने कहा था कि अगर मराठा समुदाय को आरक्षण नहीं मिला तो मैं सुसाइड कर लूंगा। इसमें हजारों लोग इकट्ठा हुए।

अखिल भारतीय मराठा महासंघ के संस्थापक और मराठा आरक्षण आंदोलन के शुरुआती नेता अन्नासाहेब पाटिल।
अखिल भारतीय मराठा महासंघ के संस्थापक और मराठा आरक्षण आंदोलन के शुरुआती नेता अन्नासाहेब पाटिल।

उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस (आई) सत्ता में थी और बाबासाहेब भोसले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। विपक्षी दल के नेता शरद पवार थे। शरद पवार तब कांग्रेस (एस) पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने आश्वासन तो दिया, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाए। इससे अन्नासाहेब नाराज हो गए।

अगले ही दिन 23 मार्च 1982 को उन्होंने अपने सिर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इसके बाद राजनीति शुरू हो गई। सरकारें गिरने-बनने लगीं और इस राजनीति में मराठा आरक्षण का मुद्दा ठंडा पड़ गया।

सुप्रीम कोर्ट ने किस आधार पर मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था?

  • 1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10% आरक्षण देने का आदेश जारी किया था। इस पर इंदिरा साहनी ने उसे चुनौती दी थी।
  • इस केस में नौ जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षित सीटों, स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50% से अधिक नहीं होना चाहिए। संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया गया है।
  • तब से यह कानून ही बन गया। राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आड़े आ जाता है।

…तो कैसे बढ़ सकता है आरक्षण 50% से ज्यादा?

  • मराठा आरक्षण के मसले पर जब सुनवाई चल रही थी तो मुकुल रोहतगी, कपिल सिब्बल और अन्य वकीलों ने दलील दी कि 1992 से अब तक के हालात में काफी कुछ बदलाव हो गया है। ऐसे में राज्यों को यह तय करने का अधिकार देना चाहिए।
  • दलील दी गई कि नरेंद्र मोदी सरकार ने जब 2019 में आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण दिया, तब संविधान में संशोधन किया गया। इसमें इंदिरा साहनी केस का फैसला आड़े नहीं आया। इससे 28 राज्यों में कुल आरक्षण की सीमा 50% से ऊपर निकल गई है। ऐसे में इंदिरा साहनी केस में सुनाए फैसले की समीक्षा होनी चाहिए।
  • चूंकि इंदिरा साहनी केस में 9 जजों की बैंच ने फैसला सुनाया था। यदि उस फैसले को पलटना है या उसका रिव्यू करना है तो नई बेंच में नौ से ज्यादा जज होने चाहिए। इसी वजह से 11 जजों की संवैधानिक बेंच बनाने की मांग हो रही है।

क्या किसी राज्य में 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं है?

  • ऐसा नहीं है। केंद्र ने संविधान में संशोधन कर आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया। उससे पहले से ही तमिलनाडु में सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में 69% आरक्षण दिया था। सुप्रीम कोर्ट में जब मामला गया तो तमिलनाडु ने कहा था कि राज्य की 87% आबादी पिछड़े तबकों से है।
  • हरियाणा विधानसभा में जाटों के साथ-साथ नौ अन्य समुदायों को 10% आरक्षण दिया गया था। इससे राज्य में कुल आरक्षण 67% हो गया था। सुप्रीम कोर्ट के मराठा आरक्षण रद्द करने से पहले तक महाराष्ट्र 65% के साथ सूची में तीसरे नंबर पर था।
  • तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में 62, 55 और 54 प्रतिशत आरक्षण है। इस तरह सात राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण देने के पहले से लागू था। वहीं, 10 राज्यों में 30 से 50% तक आरक्षण लागू था।

मराठा आरक्षण के मुद्दे पर पर अभी क्या हलचल है?

  • निजाम युग में मराठवाड़ा क्षेत्र में मराठों को कुनबी माना जाता था और वे OBC श्रेणी में थे। हालांकि, जब यह क्षेत्र महाराष्ट्र में शामिल हो गया तो उन्होंने यह दर्जा खो दिया। मराठा कोटा नेता मनोज जारांगे-पाटिल जैसे कार्यकर्ता मांग कर रहे हैं कि मराठों को फिर से कुनबी के रूप में वर्गीकृत किया जाए, जिससे वे OBC आरक्षण के लिए पात्र बन जाएं।
  • अगस्त में जारांगे-पाटिल ने अपने गांव अंतरवाली सारथी में विरोध प्रदर्शन और अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की। 1 सितंबर को विरोध हिंसक हो गया और सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सितंबर में जालना के अंतरवाली-सरती में मनोज जरांगे-पाटिल को जूस पिलाकर भूख हड़ताल तुड़वाई।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सितंबर में जालना के अंतरवाली-सरती में मनोज जरांगे-पाटिल को जूस पिलाकर भूख हड़ताल तुड़वाई।
  • मुख्यमंत्री शिंदे ने घोषणा की कि कैबिनेट ने मराठवाड़ा के मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र देने का संकल्प लिया है। इसके लिए पैनल ने दो महीने की मांग की।
  • जारांगे पाटिल ने 14 अक्टूबर को जालना जिले में एक विशाल रैली में कहा कि 24 अक्टूबर के बाद या तो मेरा अंतिम संस्कार जुलूस होगा या समुदाय की जीत का जश्न होगा।
  • एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को आरक्षण देने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए सभी प्रमुख मराठी समाचार पत्रों में प्रमुख विज्ञापन चलाए। विज्ञापनों में वह सब कुछ है जो सरकार ने मराठों के लिए अब तक किया है।
  • मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जारंगे जालना के अंतरौली में 6 दिन से भूख हड़ताल पर हैं। शिंदे ने कहा- मनोज जरांगे से मेरी अपील है कि वे हमें थोड़ा समय दें। सरकार को उनकी तबीयत की चिंता है। उनसे अपील है कि वो दवा-पानी लें। ​​​​​इस बीच, राज्य में 11 दिनों में 13 लोग सुसाइड कर चुके हैं।

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