इंदिरा गांधी की हत्या क्यों की गई?

इंदिरा गांधी को सिख गार्डों ने मारी थीं 30 गोलियां…
जिस बेअंत ने राहुल को सिखाया बैडमिंटन, उसी ने पहली गोली मारी

30 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी ने ओडिशा के भुवनेश्वर में एक रैली को संबोधित करते हुए अपने स्पीच से इतर ये बात कही थीं।

इसके 24 घंटे बाद 31 अक्टूबर 1984 के दिन शाम को खबर आती है कि देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी नहीं रहीं। इंदिरा के ही 2 सिख गार्डों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। देश के लोग अवाक रह गए। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी को अपनी मौत का अनुमान हो गया था। वो अपने डॉक्टर कृष्ण प्रसाद माथुर से अक्सर कहती थीं कि किसी दुर्घटना में अचानक उनकी मौत हो जाएगी। उनकी यह बात सच भी साबित हुई।

 आखिर इंदिरा गांधी की हत्या क्यों की गई?

सबसे पहले इंदिरा की हत्या की वजह को जानिए
बात 38 साल पुरानी है। पंजाब में सिख आतंकवाद अपने चरम पर था। इसका नेतृत्व जरनैल सिंह भिंडरांवाले कर रहा था। वो भी स्वर्ण मंदिर में बैठकर। 5 जून 1984 को उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सिख आतंकवाद को खत्म करने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू करने का आदेश दिया। ऑपरेशन में भिंडरावाला सहित कई की मौत हो गई। ऑपरेशन में स्वर्ण मंदिर के कुछ हिस्सों को क्षति पहुंची। इससे सिख समुदाय का एक तबका इंदिरा से नाराज हो गया था।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद से खुफिया ब्यूरो को लगातार इंदिरा गांधी की हत्या की साजिश रचे जाने के इनपुट मिल रहे थे। इसी के चलते रॉ के पूर्व प्रमुख आर एन काव को PM का सुरक्षा सलाहकार बनाया गया। इसके बाद इंदिरा गांधी के सुरक्षा दस्ते से बेअंत सिंह जैसे सिख गार्डों को हटाकर दिल्ली पुलिस में वापस भेज दिया गया था।

वरिष्ठ पत्रकार सागारिका घोष अपने एक आर्टिकल ‘शी हैंडपिक्ड हिम, ही शॉट हर डेड’ में लिखती हैं, ‘इंदिरा गांधी ने सोचा कि सिख गार्डों को हटाने से जनता के बीच उनकी सिख विरोधी छवि बनेगी। लिहाजा उन्होंने दिल्ली पुलिस को अपने सिख गार्डों को बहाल करने का आदेश दिया, जिसमें बेअंत सिंह भी शामिल था।’

इंदिरा गांधी के करीबी लोगों का दावा है कि वह स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने के लिए अनिच्छुक थीं, लेकिन ऑपरेशन ब्लू स्टार एक बहुत बड़ी भूल थी।
इंदिरा गांधी के करीबी लोगों का दावा है कि वह स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने के लिए अनिच्छुक थीं, लेकिन ऑपरेशन ब्लू स्टार एक बहुत बड़ी भूल थी।

इंटरव्यू के लिए जा रही थीं, इसलिए बुलेट प्रुफ जैकेट नहीं पहनी
31 अक्टूबर 1984 की सर्द सुबह अच्छी धूप खिली हुई थी। इंदिरा के लिए यह काफी बिजी शेड्यूल वाला दिन था। उन पर एक डॉक्युमेंट्री बनाने पीटर उस्तीनोव आए हुए थे। दोपहर में पूर्व ब्रिटिश PM जेम्स कैलाहन के साथ मीटिंग तय थी। इसके बाद राजकुमारी ऐनी के साथ डिनर का प्रोग्राम था।

1966 में इंदिरा के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके डॉक्टर रहे कृष्ण प्रसाद माथुर कहते हैं कि वे इंटरव्यू के लिए तैयार हो रही थीं। ब्यूटीशियन उनका मेकअप करने में मशगूल थी। सुबह के 9 बजे थे। इंदिरा गांधी तैयार होने के बाद अपने घर 1 सफदरजंग रोड से अपने ऑफिस, बगल के बंगले 1 अकबर रोड पर जाने को उठीं। यहां पर पीटर उस्तीनोव उनका इंतजार कर रहे थे।

धूप से बचाने के लिए कॉन्स्टेबल नारायण सिंह एक छाता लेकर उनके बगल में चल रहे थे। उनके जस्ट पीछे उनके PA आर के धवन और निजी सेवक थे। वह हमेशा की तरह काफी सुंदर दिख रही थी। उन्होंने इस दौरान ब्लैक बॉर्डर वाली केसरिया रंग की साड़ी पहनी थी। उन्होंने साड़ी के मैचिंग की ब्लैक सैंडल भी पहन रखी थी।

कैमरे पर फोटोजेनिक होने के लिए उन्होंने अपनी बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं पहनी थी। (उस दौरान धमकियां मिलने के चलते उन्हें बुलेटप्रूफ जैकेट पहनने के लिए कहा गया था।) जैसे ही इंदिरा गांधी 1 अकबर रोड को जोड़ने वाले विकेट गेट पर पहुंचीं उन्होंने धवन के कान में कुछ कहा।

सिख गार्ड बेअंत सिंह से जैसे नमस्ते बोलती हैं, वो गोली मार देता है
गेट पर इंदिरा गांधी के सुरक्षा गार्ड सब-इंस्पेक्टर बेअंत सिंह और संतरी बूथ पर कॉन्स्टेबल सतवंत सिंह स्टेनगन लेकर खड़े थे। इंदिरा ने हमेशा की तरह आगे बढ़कर बेअंत और सतवंत को नमस्ते कहा। इतने में बेअंत ने .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर इंदिरा गांधी पर तान दी। तभी इंदिरा बोलीं, ‘तुम क्या कर रहे हो‌?’ सेकेंडों की खामोशी के बीच बेअंत सिंह फायर करता है। गोली इंदिरा के पेट में लगती है। इसके बाद बेअंत 4 और गोलियां इंदिरा गांधी पर दागता है।

इंदिरा गांधी के पीछे खड़ा उनका सुरक्षा गार्ड बेअंत सिंह।
इंदिरा गांधी के पीछे खड़ा उनका सुरक्षा गार्ड बेअंत सिंह।

बेअंत चिल्लाता है- गोली मारो, सतवंत मशीन गन की 25 गोलियां इंदिरा के सीने में उतार देता है।

बेअंत सिंह की दूसरी तरफ एक और सिख गार्ड 22 साल का सतवंत सिंह अपनी स्टेनगन लेकर खड़ा था। सतवंत यह सब देखकर घबरा गया। तभी बेअंत चिल्लाता है- ‘गोली मारो।’ यह सुनते ही सतवंत अपनी 25 गोलियां इंदिरा गांधी के सीने में उतार देता है।

इस दौरान सकपाए धवन स्टैच्यू बनकर खड़े रहे। धवन उस घटना को याद करते हुए कहते हैं, ‘मैं उस दिन के बारे में सोचता हूं तो पागल हो जाता हूं। मैं इसके बारे में नहीं सोचने की कोशिश करता हूं।’ वह बताते हैं कि सतवंत ने इंदिरा गांधी के जमीन पर गिरने के बाद भी फायरिंग जारी रखी।

मुझे जो करना था, कर लिया, अब आप करिए ’
इसी बीच धवन और अन्य सुरक्षाकर्मी खून से लथपथ इंदिरा की ओर भागे। बेअंत और सतवंत ने बिना किसी पछतावे के अपनी बंदूकें नीचे गिरा दीं। बेअंत ने कहा, ‘मुझे जो करना था, मैंने कर लिया। अब आपको जो करना है वो करिए।’

अब तक ITBP के जवान आ चुके थे। उन्होंने बेअंत और सतवंत सिंह को अपने कब्जे में ले लिया। इसी दौरान रहस्यमय तरीके से बेअंत सिंह को गोली मार दी गई और उसकी तुरंत मौत हो गई।

इंदिरा गांधी अपने PA आर के धवन के साथ।
इंदिरा गांधी अपने PA आर के धवन के साथ।

एंबुलेंस का ड्राइवर ही नहीं था, एंबेसडर से इंदिरा को एम्स ले गए

कुलदीप नैयर अपनी किताब ‘एक जिंदगी काफी नहीं है’ में लिखते हैं, ‘धवन ने एंबुलेंस ड्राइवर को आवाज लगाई, लेकिन दूसरी तरफ से कोई आवाज नहीं आई। उन्होंने इधर-उधर देखा, लेकिन कोई दिखाई नहीं दिया।’ प्रधानमंत्री के घर पर तैनात एंबुलेंस का ड्राइवर उस वक्त चाय पीने के लिए बाहर गया था। अब धवन एंबेसडर लाने के लिए कहते हैं। धवन और सुरक्षाकर्मी दिनेश भट्ट इंदिरा गांधी को एंबेसडर की पिछली सीट पर लिटाते हैं।

तभी सोनिया गांधी दौड़ते हुए आती हैं और चिल्लाती हैं- ‘मम्मी! हे भगवान, मम्मी!’ सोनिया गांधी उस दिन को याद करते हुए कहती हैं, ‘जब मैंने गोलियों की आवाज सुनी, तो लगा कि ये दिवाली के बचे हुए पटाखों की हैं, लेकिन ये कुछ अलग था। मैं भागकर बाहर आई तो देखा उनका (इंदिरा गांधी) शरीर गोलियों से छलनी था। मेरी सास ऐसी अनहोनी के बारे में जानती थीं। उन्होंने इस बारे में हमसे बात की थी। उन्होंने राहुल से भी बात की थी और कुछ खास निर्देश भी दिए थे।’

एंबेसडर में सोनिया के साथ धवन और एक अन्य सुरक्षाकर्मी दिनेश भट्‌ट बैठते हैं। सोनिया पीछे की सीट पर बैठीं और इंदिरा गांधी के सिर को अपनी गोद में रखा था। इंदिरा गांधी को एम्स ले जाया जाता है। ऑफिस टाइम होने के चलते सड़क पर ट्रैफिक काफी ज्यादा था। इससे एम्स पहुंचने में समय लग रहा था। इस दौरान पूरे रास्ते कार में सन्नाटा छाया रहा। इंदिरा गांधी के शरीर से लगातार खून बह रहा था। इससे सोनिया का गाउन खून से भीग गया था।

कार साढ़े 9 बजे के आसपास एम्स पहुंचती है। ड्यूटी पर मौजूद जूनियर डॉक्टरों को एक झटके के साथ अहसास हुआ कि मरीज कौन है और गुलेरिया, एमएम कपूर और एस बालाराम जैसे टॉप सर्जन और डॉक्टर मिनटों में वहां पहुंच गए। इंदिरा गांधी का तुरंत ही एलेक्ट्रोकार्डियाग्राम किया गया। इंदिरा के दिल में मामूली हरकत हो रही थी। वहीं नाड़ी में कोई धड़कन नहीं मिल रही थी।

88 बोतल ओ-निगेटिव खून चढ़ाया, लेकिन कुछ काम नहीं आया
डॉक्टरों ने तुरंत खून बहने से रोकने की कोशिश की। बाहर से सपोर्ट दिया गया। सर्जनों ने उनके चेस्ट और पेट का ऑपरेशन किया। इस दौरान खून देने की अपील भी की गई। इसके बाद एम्स के बाहर खून देने वालों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। 88 बोतल ओ-निगेटिव खून चढ़ाया गया, लेकिन कुछ काम नहीं आया।

कुलदीप नैयर अपनी किताब ‘एक जिंदगी काफी नहीं है’ में लिखते हैं, ‘ एम्स का VIP विभाग बंद होने की वजह से वहां पर स्ट्रेचर नहीं था, उन्हें व्हील चेयर पर कैजुएलिटी विभाग में ले जाया गया। यहां पर डॉक्टरों की टीम तैयार थी। इस बीच इंदिरा की मौत हो चुकी थी, फिर भी उन्हें ऑपरेशन थिएटर में ले जाकर उनके दिल की धड़कन फिर से शुरू करने की कोशिश की गई।’

डॉक्टरों ने बताया कि गोलियों ने उनके लिवर के दाहिने हिस्से को छलनी कर दिया था। उनकी बड़ी आंत में 12 के करीब छेद हो गए थे और छोटी आंत को काफी नुकसान पहुंचा था। उनके एक फेफड़े में भी गोली लगी थी और रीढ़ की हड्डी भी गोलियों के असर से टूट गई थी। सिर्फ उनका हृदय सही सलामत था। उनके शरीर पर गोलियों के 30 निशान थे और 31 गोलियां इंदिरा के शरीर से निकाली गईं।

राजीव गांधी भी तब तक दिल्ली पहुंच गए थे। राजीव गांधी उस वक्त पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार के लिए गए हुए थे। राजीव गांधी को भी इसकी जानकारी BBC रेडियो से मिली थी। इसके बाद दोपहर 2 बजकर 23 मिनट पर औपचारिक रूप से इंदिरा गांधी की मौत की घोषणा हुई। वहीं BBC ने कई घंटे पहले ही इस खबर की घोषणा कर दी थी।

संवैधानिक मानदंडों के अनुसार, जब एक प्रधानमंत्री की कार्यालय में किसी वजह से मौत हो जाती है, तो दूसरे को तुरंत शपथ लेनी पड़ती है, नहीं तो सरकार का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। इसलिए ऑल इंडिया रेडियो को राजीव गांधी के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने से कुछ मिनट पहले ही घोषणा करने की अनुमति दी गई थी।

एम्स में उस वक्त तक सैकड़ों लोग जुट गए थे। धीरे-धीरे यह खबर भी फैल गई कि इंदिरा गांधी को दो सिखों ने गोली मारी है। इससे माहौल बदलने लगा। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार पर पथराव हुआ। शाम को अस्पताल से लौटते लोगों ने कुछ इलाकों में तोड़फोड़ शुरू कर दी। धीरे-धीरे दिल्ली सिख दंगों की आग में झुलस गई। रात होते-होते तो दिल्ली समेत देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क गए।

बेअंत ने सतंवत के साथ प्लान बनाकर एक साथ ड्यूटी की
ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद खुफिया एजेंसियों को जानकारी मिली थी कि बेअंत सिंह की संदिग्ध लोगों से मुलाकात हो रही है। इसके बाद इंदिरा गांधी के सुरक्षा सलाहकार आर एन काव की सलाह पर उसे दिल्ली पुलिस में वापस भेज दिया गया था।

लेकिन कुछ दिनों बाद जब इंदिरा गांधी को यह पता चला तो उन्होंने कहा कि यदि मैं सिख गार्ड को प्रधानमंत्री की सुरक्षा से हटा दूंगी, तो पूरे सिख समुदाय में इसका क्या संदेश जाएगा और इसका कितना गलत असर होगा? इसके बाद बेअंत को फिर से उनकी सुरक्षा में लगा दिया गया।

इसके बाद ये तय किया गया कि एक साथ दो सिख सुरक्षाकर्मियों को इंदिरा गांधी की सुरक्षा ड्यूटी पर नहीं लगाया जाएगा, लेकिन 31 अक्टूबर के दिन सतवंत सिंह ने बहाना किया कि उसका पेट खराब है। इसलिए उसे टॉयलेट के नजदीक तैनात किया जाए। इस तरह बेअंत और सतवंत प्लान बनाकर एक साथ तैनात हुए और उन्होंने इंदिरा गांधी की हत्या कर ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लिया।

9 साल से इंदिरा गांधी की सुरक्षा में तैनात था बेअंत सिंह
सब-इंस्पेक्टर बेअंत सिंह 9 साल से इंदिरा गांधी की सुरक्षा में तैनात था। यहां तक कि हत्या करने से कुछ दिन पहले वह इंदिरा गांधी के साथ लंदन भी गया था। इंदिरा गांधी भी बेअंत को काफी मानती थीं और सरदार जी कहती थीं।

अपनी दादी की मौत के 3 दशक बाद राहुल गांधी ने बेअंत सिंह और सतवंत सिंह को याद करते हुए उन्हें अपना दोस्त बताया था। उन्होंने कहा था कि बेअंत ने मुझे बैडमिंटन खेलना सिखाया। राहुल ने बताया कि एक बार बेअंत ने पूछा था कि मेरी दादी कहां सोई थीं और क्या उनकी सुरक्षा पर्याप्त थी। उसने मुझसे कहा था कि अगर कभी कोई ग्रेनेड फेंके, तो तुम तुरंत लेट जाना। राहुल ने कहा कि मुझे बाद में पता चला कि सतवंत और बेअंत दिवाली के दौरान ग्रेनेड फेंकने वाले थे।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद बेअंत सिंह खालिस्तानियों से जुड़ा
बताया जाता है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार से पहले बेअंत सिंह बहुत धार्मिक नहीं था, लेकिन इसके बाद उसमें परिवर्तन दिखाई देने लगा। वह अक्सर दिल्ली के मोती बाग गुरुद्वारे जाने लगा। यहां पर उसकी मुलाकात उसके अंकल केहर सिंह से होती थी। एक दिन बेअंत सिंह गुरुद्वारे में ऑपरेशन ब्लू स्टार की बात होने पर भावुक होकर रोने लगा। तब केहर सिंह ने उससे कहा, ‘रो मत, बदला ले।’ इसी दिन बेअंत के दिमाग में इंदिरा गांधी की हत्या का ख्याल आया।

इसके बाद बेअंत खालिस्तानी आतंकियों से मिलने लगा। इस दौरान उसने इंदिरा गांधी की हत्या का प्लान भी बनाया। पुलिस पूछताछ में सतवंत ने बताया था कि 17 अक्टूबर 1984 को बेअंत से इस बारे में उसकी बात हुई थी। सतवंत इंदिरा गांधी की हत्या करने से पहले गुरदासपुर भी गया था। गुरदासपुर उस वक्त सिख कट्‌टरपंथ का गढ़ हुआ करता था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *