बिखरते पड़ोसी देशों के बीच इकलौते खड़े रह गए हैं हम
बिखरते पड़ोसी देशों के बीच इकलौते खड़े रह गए हैं हम
आज जब भारत अपने चारों ओर देखता होगा तो अपने आपको इस समूचे क्षेत्र में स्थिरता और आर्थिक विकास का इकलौता द्वीप पाता होगा। हमारे पड़ोस में हुए घटनाक्रमों ने क्षेत्रीय नीति में बड़ा शून्य उत्पन्न कर दिया है।
अगर बांग्लादेश के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो आप निश्चिंत हो सकते हैं कि नई दिल्ली इस समूचे घटनाक्रम से हैरान थी और उसने इस नतीजे की कतई उम्मीद नहीं की थी। किसी को दूर-दूर तक भनक नहीं थी कि शेख हसीना को अपना राजपाट छोड़कर भागना पड़ेगा।
यह इतना अप्रत्याशित था कि भारत ने हसीना की सरकार गिरने के काफी समय बाद तक कोई बयान जारी नहीं किया। हसीना के नई दिल्ली पहुंचने के एक दिन बाद लोकसभा में बोलते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत ने उन्हें संयम बरतने की सलाह दी थी और आग्रह किया था कि बातचीत के जरिए स्थिति को शांत किया जाए, लेकिन प्रदर्शनकारियों के ढाका में एकत्र होने के बाद हसीना ने भारत आने की अनुमति मांगी।
इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को बधाई संदेश भी भेजा और उनसे हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आह्वान किया।
शेख हसीना 2009 में महिलाओं और युवाओं के उत्साही समर्थन के साथ सत्ता में आई थीं। लेकिन अपनी राजनीतिक पूंजी को बर्बाद करने में उन्हें 15 साल लगे। उनके नेतृत्व में बांग्लादेश ने 11 साल तक वास्तविक प्रति व्यक्ति आय में 5% से अधिक की आर्थिक वृद्धि की थी।
बांग्लादेश चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा कपड़ा निर्यातक बन गया था। लेकिन अब लग रहा है कि इसका एक बड़ा हिस्सा जॉबलेस-ग्रोथ का था। 2022 के आंकड़ों के अनुसार, बांग्लादेश के 15 से 24 वर्ष के 30 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं।
आर्थिक विकास पर सरकार के फोकस से सामाजिक विकास हुआ था, लेकिन इसके साथ ही देश में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता भी धीरे-धीरे कम होती चली गई। जनवरी 2024 के चुनाव सबसे ज्यादा विवादास्पद थे और विपक्ष ने उनका बहिष्कार किया था।
सिर्फ दो साल पहले ही, बांग्लादेश जैसी स्थिति के कारण शक्तिशाली राजपक्षे परिवार श्रीलंका से पलायन कर गया था। पड़ोसी म्यांमार में भी हालात स्थिर नहीं हैं और पाकिस्तान जैसे-तैसे अपना अस्तित्व कायम रखे हुए है।
बांग्लादेश का घटनाक्रम भारत के लिए बहुत नकारात्मक साबित होगा। इसका एक कारण यह है कि नई दिल्ली ने अवामी लीग सरकार के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने का निर्णय लिया था, जबकि हमारे पश्चिमी मित्रों ने इसके विरुद्ध विनम्र चेतावनियां दी थीं। अमेरिका और ब्रिटेन ने साफ कहा था कि जनवरी में वहां पर हुए चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं थे। बांग्लादेश को अमेरिका द्वारा प्रायोजित लोकतंत्र शिखर सम्मेलन से भी बाहर रखा गया था।
चिंता का सबब जमात-ए-इस्लामी भी है। इस संगठन पर लगा प्रतिबंध अब हटने के आसार हैं और यह पाकिस्तान की आईएसआई की मदद से भारत के खिलाफ अपने जहरीले अभियान को अंजाम देने के लिए स्वतंत्र हो जाएगा।
वहां के मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) का कहना है कि उसे भारत से कोई समस्या नहीं है। मीडिया से बात करते हुए संगठन के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि भारत बांग्लादेश के लिए महत्वपूर्ण है। वरिष्ठ बीएनपी नेता खांडेकर मुशर्रफ हुसैन ने पीटीआई को बताया कि बांग्लादेश को दोनों देशों के बीच संबंधों में एक नया अध्याय शुरू होने की उम्मीद है।
पार्टी के उपाध्यक्ष अब्दुल अवल मिंटू ने कहा कि बांग्लादेश भारत को एक दोस्त के रूप में देखता है। लेकिन अंतरिम सरकार द्वारा विदेश नीति की देखरेख के लिए पूर्व विदेश सचिव तौहीद हुसैन की नियुक्ति नई दिल्ली में खतरे की घंटी बजा सकती है।
समस्या यह है कि बांग्लादेश के हिंसक और राजनीतिक उथल-पुथल से भरे इतिहास को देखते हुए अब वहां पर स्थिति को स्थिर करने के लिए असाधारण प्रयास करने होंगे। भारत को ऐसी परिस्थितियों से उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों के लिए तैयार रहना होगा, जिन्हें ढाका की सरकारों के लिए नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है।
बांग्लादेश भारत के पांच राज्यों की सीमा से लगा हुआ है और पहले भी वहां अलगाववादियों और आतंकवादियों को समर्थन मिलता रहा है। अगर नई दिल्ली ने शेख हसीना को भरपूर समर्थन दिया था तो इसका कारण यह भी था कि उन्होंने इन तत्वों को रोकने के लिए भारत को भरपूर समर्थन दिया था।
भारत और उसके पड़ोसियों के बीच अच्छे संबंध आज भी नेतृत्व करने वाले व्यक्ति पर अधिक निर्भर करते हैं। क्या हम अपने पड़ोसी देशों में बारम्बार होने वाले सत्ता-परिवर्तनों के बावजूद अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं?
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)