चुनावी साल में चंदे पर सवाल ? इलेक्टोरल बॉन्ड का समर्थन क्यों कर रही है बीजेपी?

चुनावी साल में चंदे पर सवाल: विरोध में 3 तर्क; इलेक्टोरल बॉन्ड का समर्थन क्यों कर रही है बीजेपी?
2017 में चंदा के नगद व्यवस्था को खत्म करते हुए मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड पॉलिसी लागू किया था. इसके मुताबिक राजनीतिक दलों को 2000 से अधिक का चंदा सिर्फ इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए ही मिल सकता है.
चुनावी साल में राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा सवालों के घेरे में है. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुनवाई कर रही है. मामला पारदर्शिता से जुड़ा हुआ है. याचिका दाखिल करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स का कहना है कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को आरटीआई के दायरे में लाया जाए.

केंद्र सरकार ने इसका विरोध किया है और कहा है कि यह स्कीम किसी के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करती है, इसलिए इसके बारे में जानकारी नहीं दी जा सकती है.

2017 में चंदा के नगद प्रारूप को खत्म करते हुए मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड पॉलिसी लागू किया था. इसके मुताबिक राजनीतिक दलों को 2000 से अधिक का चंदा सिर्फ इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए ही मिल सकता है.

सुनवाई में अब तक क्या-क्या हुआ है?
एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ याचिका दाखिल की है. एडीआर का कहना है कि राजनीतिक पार्टियों को मिले चंदे के बारे में देश के सभी नागरिकों को जानने का अधिकार है. साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तुरंत रोक लगाने से इनकार कर दिया. 

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के सामने सोमवार (30 अक्टूबर) को केंद्र सरकार ने इस मामले में अपनी रिपोर्ट दाखिल की. केंद्र का कहना था कि राजनीतिक दलों के चंदे के बारे में जानने का अधिकार आम नागरिकों को नहीं है. 

केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकेटरमणी ने कोर्ट को बताया कि ये स्कीम किसी भी व्यक्ति के मौजूदा अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती है. अटॉर्नी जनरल के मुताबिक यह स्कीम दानदाताओं को पहचान उजागर न करने की सुविधा भी देती है.

एडीआर की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने इसे रिश्वत बताया है. सुनवाई के दौरान भूषण ने कोर्ट को बताया- इलेक्टोरल बॉन्ड से 60 फीसदी पैसा केंद्रीय सत्तारूढ़ दल को मिला है. बाकी पैसे राज्य में सत्तारूढ़ दल को दिए गए हैं.

भूषण के मुताबिक यह सिर्फ सरकारी फैसले को प्रभावित करता है. भूषण के मुताबिक इलेक्टोरल बॉन्ड के नियम में बताया गया है कि ईडी दानदाताओं के बारे में बैंक से जानकारी ले सकता है. ईडी सरकारी एजेंसी है. 

भूषण ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि ईडी अगर जान सकती है. एसबीआई अगर जान सकती है. सरकार अगर जान सकती है, तो आम नागरिक क्यों नहीं?

कोर्ट में प्रशांत भूषण ने आरबीआई के एक पत्र का भी हवाला दिया, जिसमें यह लिखा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के आने से शेल कंपनियों का पैसा आसानी से राजनीतिक दलों को चंदा के रूप में मिल सकेगा.

इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध क्यों, 3 प्वॉइंट्स में समझिए

1. सबसे ज्यादा चंदा सत्ताधारी दल को मिला- सुप्रीम कोर्ट में प्रशांत भूषण ने एडीआर के हवाले से एक रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल किया. इसमें पिछले 5 सालों में राजनीतिक दलों को मिले चंदे के बारे में विस्तार से बताया गया था. 

डेटा के मुताबिक 2017 से 2022 तक इलेक्टोरल बॉन्ड से बीजेपी को 5271.97 करोड़ रुपए मिले. कांग्रेस को इस दौरान इलेक्टोरल बॉन्ड से सिर्फ 952.29 करोड़ रुपए मिले. ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को 767.88 करोड़ तो एनसीपी को 63.75 करोड़ रुपए मिले. 

2017 से 2022 के दौरान केंद्र के साथ-साथ बीजेपी बिहार, यूपी, हरियाणा, गुजरात जैसे राज्यों की सत्ता में काबिज थी. कांग्रेस इस दौरान राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब की सत्ता में थी. ममता की पार्टी बंगाल की सरकार में थी तो वहीं एनसीपी कुछ सालों के लिए महाराष्ट्र की सत्ता में रही. 

एडीआर के मुताबिक जो दल पिछले 5 साल से विपक्ष में है, उसे 1 प्रतिशत से भी कम का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिला.

सबसे दिलचस्प बात है कि चुनावी साल 2019 में बीजेपी को रिकॉर्ड 2555 करोड़ रुपए का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड से मिला. इस साल कांग्रेस को 317 करोड़ रुपए ही मिल पाए. 

2. इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा में सरकार की मिलीभगत- प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड से जो चंदा मिल रहा है, उसमें सरकार की मिलीभगत है. भूषण के मुताबिक एसबीआई और ईडी के पास चंदा देने वालों की सारी जानकारियां हैं और दोनों ही सरकार के अधीन है. 

हाल ही में कांग्रेस के कद्दावर नेता अशोक गहलोत चंदे को लेकर ईडी पर बड़ा आरोप लगा चुके हैं. गहलोत ने कहा था कि दूसरी पार्टी को जो भी लोग चंदा दे रहे हैं, उसके घर पर ईडी पहुंच जा रही है. 

गहलोत का कहना था कि दानकर्ता डर के कारण अन्य दलों को चंदा नहीं दे रहे हैं. सरकार होने का फायदा सीधे तौर पर बीजेपी को हो रहा है. 

3. इससे आम लोगों की आवाज दबेगी- इसके विरोध में सबसे बड़ा तर्क दिया जा रहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड में पारदर्शिता नहीं होने की वजह से कॉरपोरेट सेक्टर ज्यादा हावी होंगे. नीति बनाने में आम नागरिकों की बजाय चंदा देने वालों को ज्यादा तरजीह मिलेगी. 

सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि जो पैसा देगा, सरकार भी उसी के लिए काम करेगी, फिर आम नागरिकों का क्या होगा? अगर यह प्रक्रिया पारदर्शी होता है, तो कॉरपोरेट सेक्टर का दबदबा कम होगा. 

प्रशांत भूषण ने कोर्ट में जयंतीलाल रणछोड़दास कोटिचा वर्सेस टाटा आयरन केस का उदाहरण दिया. इस केस में जस्टिस छांगला ने टिप्पणी की थी कि राजनीतिक योगदान देना किसी अलग कानूनी इकाई के हितों की पूर्ति नहीं करता, बल्कि उसके एजेंटों के हितों की पूर्ति करता है.

एडवोकेट निजाम पाशा ने अपने दलील में कहा कि चीनी कंपनियों से इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा लिया जाता है, लेकिन उसे विनिर्माण की इजाजत नहीं दी जाती है. यह कैसा नियम है? अगर विनिर्माण पर रोक है, तो चीनी कंपनियों से चंदा पर भी रोक लगनी चाहिए.

तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने क्या कहा था?
चुनाव सुधार की दिशा में इलेक्टोरल बॉन्ड एक महत्वपूर्ण कदम है. इससे कालाधन रोकने में सफलता मिलेगी. सरकारी बैंक के पास इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा देने वालों की सभी जानकारियां हैं. 

इसके समर्थन में दलील देते हुए पूर्व वित्त मंत्री ने कहा था- इलेक्टोरल बॉन्ड ही चुनावी खर्चे में कालाधन रोकने के लिए एकमात्र विकल्प है. इलेक्टोरल बॉन्ड सिर्फ बैंक से खरीद सकते हैं और नोटिफाइड पार्टियों के अकाउंट में ही डाल सकते हैं.

जेटली के मुताबिक यदि पैसा बैंकों के जरिए ही ट्रांसफर होगा तो यह सुनिश्चित होगा कि केवल टैक्स देने के बाद ही पैसा पॉलिटिकल सिस्टम में आए.

उन्होंने दावा करते हुए कहा था कि आजादी के बाद अब तक जितने भी चुनावी फंड के तरीके सामने आए हैं, वो नगद आधारित था और इससे कालेधन का दबदबा बढ़ता गया. जेटली के मुताबिक दानदाता चुनावी बॉन्ड का उपयोग अपने बैलेंस शीट में कर सकते हैं. 

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने क्या कहा था?
इलेक्टोरल बॉन्ड पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने चिंता जाहिर की थी. बैंक का कहना था कि इससे कालाधन पर रोक नहीं लगेगी. बैंक ने इसे डीमैट प्रारूप में जारी करने की सिफारिश की. बैंक का कहना था कि भौतिक रूप में इसे रखने से शेल कंपनियां गलत इस्तेमाल कर सकती हैं.

आरबीआई ने सरकार के उस फैसले पर भी सवाल उठाया, जिसमें कहा गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने का अधिकार एसबीआई के पास है. आरबीआई का कहना था कि मुद्रा का मुद्दा हमारे एकाधिकार क्षेत्र में था, जिसे संशोधित कर आरबीआई की शक्ति को कमजोर किया गया. 

चुनाव आयोग ने उठाए थे 3 सवाल
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सभी चुनाव आयुक्तों की एक बैठक हुई थी. बैठक में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एके जोति ने 3 सवाल उठाए थे. आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड को अपारदर्शी भी बताया था. 

1. चुनावी बांड व्यक्तिगत उम्मीदवारों और नए राजनीतिक दलों के लिए उपलब्ध नहीं होंगे. ऐसे में इन लोगों को बड़े स्तर पर चंदा कैसे मिलेगा? बॉन्ड नियम के मुताबिक 1 प्रतिशत वोट लाने वाली पार्टियों को ही पैसा मिल सकेगा.

2. आयकर अधिनियम के तहत नगद के रूप में 2000 रुपए तक का दान लिया जा सकता है, जबकि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के मुताबिक 20 हजार रुपए तक नगद रुपए दान में लिए जा सकते हैं. 

3. राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड से कितने चंदा मिले, इसका विवरण क्रमवार चुनाव आयोग को दिया जाना चाहिए.

इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है?
चुनावी ट्रस्ट को खत्म करते हुए केंद्र सरकार ने साल 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की. ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है, जिसे बैंक नोट भी कहते है. इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है.

यह बॉन्ड सिर्फ अधिकृत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की शाखा में मिलता है, जो 15 दिनों तक वैलिड रहता है. बॉन्ड खरीदने के लिए नागरिक या कंपनी को अपनी पूरी डिटेल बैंक को देनी होगी. यानी बॉन्ड के लिए बैंक में केवायसी डिटेल देना अनिवार्य है.

इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है, बस पार्टी आयोग के पैमाने पर खड़ा उतरता हो. चुनाव आयोग ने इसके लिए भी नियम बनाए हैं.

इलेक्टोरल बॉन्ड पर विपक्षी पार्टियों का रुख क्या है?
विपक्ष के अधिकांश पार्टियां इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध कर चुकी है. 2019 में कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने इलेक्टोरल बॉन्ड को रिश्वत और अवैध कमीशन बताया था. राहुल के मुताबिक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए बीजेपी सरकार उद्योगपतियों से अवैध कमीशन लेगी. 

कांग्रेस ने आधिकारिक बयान जारी कर इसमें आरबीआई की भूमिका को लेकर भी सवाल उठाया था. कांग्रेस का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से आरबीआई को दरकिनार करना किसी बड़ी साजिश का हिस्सा है.

पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम भी इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध कर चुके हैं. चिदंबरम के मुताबिक इलेक्टोरल बॉन्ड अपारदर्शी तरीके से धन जुटाने का एक माध्यम है. इसमें सरकार विशेष उद्योगपतियों को फायदा दिलाने के लिए काम करती है.

चुनावी बॉन्ड पर भाजपा आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने चिदंबरम के आरोपों का पलटवार किया. मालवीय ने इलेक्टोरल बॉन्ड का समर्थन करते हुए कहा- अफसोस की बात है कि कांग्रेस अधिक पारदर्शी और लोकतांत्रिक राजनीतिक फंडिंग प्रणाली सुनिश्चित करने के किसी भी प्रयास की आलोचना करती है.

मालवीय के मुताबिक इलेक्टोरल बॉन्ड यूपीए सरकार के चुनावी ट्रस्ट से ज्यादा पारदर्शी है और यह सुनिश्चित करता है कि स्वच्छ धन राजनीतिक फंडिंग स्ट्रीम में प्रवेश करे.

राष्ट्रीय पार्टी बीएसपी के प्रमुख मायावती भी इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध कर चुकी है. मायावती का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड की वजह से कारपोरेट जगत और धन्नासेठों का प्रभाव रहता है. 

इलेक्टोरल बॉन्ड को गुप्त चुनावी बॉन्ड स्कीम बताते हुए मायावती ने कहा था कि इससे धनबल के खेल को हवा मिलती है.

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