सर्दी में ही क्यों बढ़ता है एयर पॉल्यूशन !

सर्दी में ही क्यों बढ़ता है एयर पॉल्यूशन:मौसम का चक्कर कैसे दम घोंटता है; 8 सवालों के जवाब में पूरी कहानी

68 साल की सुशीला शर्मा दिल्ली में अपने बड़े बेटे के साथ रहती हैं। हर साल अक्टूबर आते ही वो 5 महीने के लिए अपने छोटे बेटे के घर जोधपुर चली जाती हैं। सुशीला अस्थमा की मरीज हैं। अक्टूबर से फरवरी के बीच दिल्ली में सर्दी का सीजन होता है। इस दौरान दिल्ली के प्रदूषण के चर्चे पूरी दुनिया में होते हैं।

सर्दियों में ही क्यों होता है ज्यादा वायु प्रदूषण, क्या ये फिनॉमिना सिर्फ दिल्ली के लिए है, गर्मी और बारिश में कम प्रदूषण क्यों होता है; .

सवाल 1: हर साल सर्दियों में ही क्यों बढ़ जाता है एयर पॉल्यूशन?

जवाब: सर्दियों में धरती की सरफेस पर जितनी भी सॉलिड चीजें हैं, जैसे सड़कें, इमारतें, पुल वगैरह, ये सभी चीजें सूरज से मिली गर्मी को रात में रिलीज करती हैं। रिलीज की गई गर्मी 50 से 100 मीटर ऊपर उठकर एक लॉकेबल लेयर बना लेती है। इस कारण वातावरण की हवा ऊपर नहीं उठ पाती। मतलब ये है कि ये हवा वायुमंडल के नीचे ही लॉक रहती है।

इस लेयर के नीचे जो हवा होती है वो ठंडी होती है और ठंडी हवा में मूवमेंट न के बराबर होता है। प्रदूषण के पार्टिकल भी इसी हवा में मिल जाते हैं और ऊपर नहीं उठ पाते हैं, जिससे प्रदूषण भी हवा के साथ लॉक हो जाता है। यही कारण है सर्दी में प्रदूषण बढ़ता है। यही स्मॉग और फॉग का कारण बनता है।

पुणे स्थित मौसम विज्ञान प्रशिक्षण संस्थान की वैज्ञानिक ममता यादव के मुताबिक तकनीकी भाषा में कहें तो जो लॉकेबल लेयर बनती है, उसे लोवर ग्राउंड इनवर्जन लेयर कहते हैं। इसे ब्रेक करने का काम हीट एनर्जी का होता है। पृथ्वी को हीट सूरज से मिलती है। जैसे-जैसे सूरज निकलता है उसकी गर्मी से लेयर ऊपर उठती जाती है।

जैसे सुबह में ये लेयर 100 मीटर ऊंचाई पर थी। गर्मी बढ़ने के साथ ही ये 400 मीटर ऊंची हो जाएगी। मतलब जो प्रदूषण 100 मीटर पर लॉक था वो 400 मीटर की ऊंचाई पर चला गया है। इस तरह ये प्रोसेस चलता रहता है। दोपहर को जब सूरज की गर्मी हाइएस्ट होती है, तब प्रदूषण बेहद कम या खत्म हो जाता है, क्योंकि प्रदूषण को ऊपर हवा में जाने की जगह मिल जाती है।

सवाल 2: क्या सर्दी में इतना एयर पॉल्यूशन दिल्ली के लिए अनोखा है, बाकी दुनिया का क्या होता है?

जवाब: जी नहीं, सर्दियों में एयर पॉल्यूशन का बढ़ना एक ग्लोबल फिनोमिना है। पूरी दुनिया में सर्दियां बढ़ने पर पॉल्यूशन बढ़ता है। IQair.com के अनुसार जिस समय नॉर्थ इंडिया खासतौर से दिल्ली, कानपुर में पॉल्यूशन हाइप पर होता है उस समय मेक्सिको के मेकपेट, यूएस के ऑकरिज, रूस का क्रास्नायार्स्क, पोलैंड का ऑरजेजे, इजिप्ट के कायरो शहरों में एयर पॉल्यूशन हाई लेवल पर होता है।

अगर इसके इतिहास में नजर डालें तो सबसे पहले ये नोटिस में आया लंदन से। 5 दिसंबर 1952 को लंदन में जबरदस्त एयर पॉल्यूशन के चलते भयनक स्मॉग छाया था। लोगों को लगा कि ये आम बात है। दोपहर तक छंट जाएगा, लेकिन शाम होते-होते स्मॉग और गहरा गया था। विजिबिलिटी एक फीट से भी कम हो गई थी। ये स्मॉग पांचवें दिन 9 दिसंबर को छंटा था। इस भयानक स्मॉग ने 12 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी। लाखों लोग बीमार हो गए थे।

13वीं सदी से ही लंदन में लोगों को कोयला जलाने की आदत पड़ गई थी। इंडस्ट्रीज भी ईंधन के रूप में ज्यादा से ज्यादा कोयले का उपयोग करती थीं। सर्दी और धुंध की वजह से धुआं ऊपर उठा ही नहीं और वहीं लॉक हो गया। इस घटना को “ग्रेट स्मॉग ऑफ लंदन” कहा जाता है। इस स्मॉग के बाद कानून बना और घरों और इंडस्ट्री में कोयला जलाना बैन कर दिया गया।

इसके अलावा हम देखते हैं कि पड़ोसी देश चीन के कई शहरों में सर्दियों के सीजन में ही अक्सर पॉल्यूशन का रेड अलर्ट आता है। भारत की तरह चीन के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती PM2.5 के लेवल को कंट्रोल करना है। 2016 में PM2.5 के कारण दुनिया भर में हुई 41 लाख मौतों में से आधे से अधिक में चीन और भारत का योगदान है।

सवाल 3: कई अन्य देशों में खूब सर्दी पड़ती है, लेकिन वहां तो प्रदूषण नहीं होता?

जवाब: ये जरूरी नहीं कि जहां सर्दी होगी वहां पॉल्यूशन बढ़ जाएगा। सर्दियों की वजह से पॉल्यूशन लॉक हो जाता है। ये खुद से पैदा नहीं होता। अगर लोग पॉल्यूशन नहीं पैदा करेंगे तो ये नहीं बढ़ेगा। दुनिया के कई देश हैं जहां तापमान पांच डिग्री सेल्सियस से कम होता है, लेकिन पॉल्यूशन का नामोनिशान तक नहीं है। क्लीन एयर क्वालिटी में आइसलैंड ऐसा देश है जहां तापमान 3-5 डिग्री के बीच रहता है। इनके अलावा फिनलैंड, कनाडा, न्यूजीलैंड और डेनमार्क भी इसी लिस्ट में शामिल है। डेनमार्क वहीं देश है जिसके कोपेनहेगन शहर में 2009 में जलवायु सम्मेलन हुआ था।

सवाल 4: सर्दी और गर्मी के पॉल्यूशन में क्या अंतर है, कौन ज्यादा खराब है?

जवाब: प्रदूषण कोई भी हो, वो खराब ही होता है। सर्दी का प्रदूषण हम इसलिए नोटिस करते हैं कि वो हमारे लोवर एटमास्फेयर में मौजूद होता है। हमें दिखाई देता है और ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। इसे आप ऐसे समझिए कि एक इंसान की हाइट 6 फीट है और 20 फीट की ऊंचाई पर प्रदूषण लॉक है तो इस हाइट पर प्रदूषण ज्यादा असरदार होगा। जब वो इंसान सांस लेगा तो उसे ज्यादा दिक्कत होगी। ये ठीक वैसा ही है जब कोई मिनरल वाटर से गंदी नाली का पानी पीने लगता है तो वह सहज नहीं होता। ठीक वैसे ही जब प्रदूषित हवा शरीर में जाएगी तो दिक्क्त तो होगी। खराब हवा से आंखों में जलन, सांस लेने में दिक्कत, स्किन में खुजली जैसी दिक्कतें होती हैं। यही कारण होता है कि सर्दियों में अस्थमा के मरीज ज्यादा मरते हैं। गर्मियों में प्रदूषण तो होता है, लेकिन वो बेहद ऊंची लेयर पर होता है जो सीधे इतना असर नहीं करता।

सवाल 5: बारिश से कैसे प्रदूषण कम हो जाता है

जवाब: वातावरण में कई प्रदूषक तत्व हैं, जैसे सल्फर के ऑक्साइड, कार्बन के आक्साइड और कई दूसरे पार्टिकुलेट मैटर। इनमें से कुछ पार्टिकुलेट मैटर का नेचर वाटर फ्रेंडली होता है। कुछ पार्टिकुलेट मैटर पानी के संपर्क में आकर क्रिया करते हैं और घुल जाते हैं। प्रदूषण के दौरान जब कभी बारिश होती है तो सल्फर, कार्बन, नाइट्रोजन के केमिकल पानी के साथ मिलकर नीचे गिरकर मिट्टी में मिल जाते हैं। इससे आधे प्रदूषित पार्टिकुलेट मैटर छन जाते हैं तो प्रदूषण कम हो जाता है। जैसा कल दिल्ली में हुआ वहां बारिश होने से हवा का प्रदूषण काफी हद तक कम हो गया था।

सवाल 6: क्या बाहर की हवा घर के अंदर की हवा पर असर डालती है?

जवाब: जी हां, पॉल्यूटेड एयर का असर घर के अंदर की हवा पर भी पड़ता है। ये हमारे घर के भीतर की हवा को भी दूषित करते हैं। घर में वेंटीलेशन की कमी प्रदूषकों को घरों में घुसने में मदद करती है। जब प्रदूषित तत्व घर से बाहर नहीं निकल पाते, तो वे इकट्‌ठा हो जाते हैं और तेजी से बढ़ने लगते हैं। बैक्टीरिया, वायरस, फफूंद बीजाणु और धूल के कण की मौजूदगी किसी को भी बीमार बना सकती है। इस कारण से घर के आसपास पेड़ लगाने चाहिए। दिल्ली जैसे शहरों में तो लोग एयर फिल्टर लगाने लगे हैं।

सवाल 7: सर्दी में प्रदूषण बढ़ाने में क्या इंसानों का बिहेवियर भी जिम्मेदार है?

जवाब: बिल्कुल। जब सर्दी आती है तो घर में अलाव जलता है। सर्दी में बाहर जाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट, टू व्हीलर या साइकिल की जगह कार का उपयोग होता है। कार तक तो ठीक है, लेकिन कार में भी ब्लोअर या हीटर चलाता है, जिसे चलाने पर कारें धुआं छोड़ती हैं। लोग सर्दी से बचने के लिए अपने घर की खिड़की तक नहीं खोलते, जो घर में प्रदूषण वाले पर्टिकुलेट मैटर की संख्या बढ़ाते हैं।

सवाल 8: PM2.5 क्या है। ये इंसानों पर कैसे असर करता है?

जवाब: PM का अर्थ होता है पर्टिकुलेट मैटर। हवा में जो बेहद छोटे कण यानी पर्टिकुलेट मैटर की पहचान उनके आकार से होती है। 2.5 उसी पर्टिकुलेट मैटर का साइज है, जिसे माइक्रोन में मापा जाता है। इसका मुख्य कारण धुआं है, जहां भी कुछ जलाया जा रहा है तो समझ लीजिए कि वहां से PM2.5 का प्रोडक्शन हो रहा है। इंसान के सिर के बाल की अगले सिरे की साइज 50 से 60 माइक्रोन के बीच होता है। ये उससे भी छोटे 2.5 के होते हैं। मतलब साफ है कि इन्हें खुली आंखों से भी नहीं देखा जा सकता। एयर क्वालिटी अच्छी है या नहीं, ये मापने के लिए PM2.5 और PM10 का लेवल देखा जाता है। हवा में PM2.5 की संख्या 60 और PM10 की संख्या 100 से कम है, मतलब एयर क्वालिटी ठीक है। गैसोलीन, ऑयल, डीजल और लकड़ी जलाने से सबसे ज्यादा PM2.5 पैदा होते हैं।

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