हत्या, गोलीबारी और धांधली के आरोपों के बीच मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों के लिए शुक्रवार को वोट डाले गए. वोट डालने के लिए कई जगहों पर देर रात तक लोग कतारों में खड़े नजर आए. चुनाव आयोग के मुताबिक राज्य में कुल 76.2 प्रतिशत वोट पड़े, जो अब तक का रिकॉर्ड है.
2018 में 75.63 प्रतिशत तो 2013 में 72.13 प्रतिशत वोट पड़े थे. चुनाव आयोग के मुताबिक विधानसभा की करीब 85 सीटों पर 80 प्रतिशत से ज्यादा वोट पड़े हैं. सिवनी जिले के बरघाट सीट पर सबसे ज्यादा 88.2 प्रतिशत वोट डाले गए हैं.
विधानसभा चुनाव के इस रिकॉर्डतोड़ मतदान ने सियासी दलों की धड़कनें बढ़ा दी है. वोटिंग के बाद चौक-चौराहे से लेकर सियासी गलियारों तक एक ही चर्चा है कि आखिर इस वोटिंग के संकेत क्या हैं?
मध्य प्रदेश के चुनाव में टूटे कई रिकॉर्ड
– बालाघाट जिले के सोनेवानी मतदान केंद्र में सबसे कम 42 मतदाता हैं, लेकिन यहां 100 प्रतिशत मतदान हुआ है. बालाघाट नक्सल बेल्ट माना जाता है और यहां दोपहर 3 बजे तक ही मतदान करवाया गया.
– पहली बार महिला वोटरों ने जमकर मतदान किया है. आयोग के मुताबिक कुल 2.72 करोड़ महिला वोटरों में से 1.93 करोड़ ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है.
– 2020 में बागी हुए कांग्रेस के 22 में से 14 विधायकों की सीट पर इस बार पिछली बार की तुलना में ज्यादा वोट पड़े हैं. इनमें कई मंत्रियों की सीट भी शामिल हैं. ये सभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ गए थे.
– पहली बार विधानसभा चुनाव में 3 केंद्रीय मंत्री और 7 सांसद मैदान में थे. 6 पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिवार भी चुनाव मैदान में उतरे हुए थे.
5 प्वाइंट्स में समझिए क्या है वोटिंग का ट्रेंड?
सवाल यही है कि क्या मध्य प्रदेश के वोटिंग में जो बढ़ोतरी हुई है, क्या वह सामान्य है? मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता नितिन दुबे कहते हैं- जिस तरह से मतदाता रात तक लंबी-लंबी कतारों में लगे रहे, इसे सामान्य नहीं कहा जा सकता है.
वे कहते हैं- यह सत्ता विरोधी लहर है और लोगों ने कांग्रेस के पक्ष में जमकर मतदान किया है. कांग्रेस पिछली बार से ज्यादा मजबूती से सरकार बनाएगी.
बीजेपी के प्रवक्ता हितेश वाजपेई इसे सामान्य बताते हुए सोशल मीडिया पर लिखते हैं, ‘2 प्रतिशत वोट मध्य प्रदेश के चुनाव में हर बार बढ़ता है.’ वाजपेई वोट प्रतिशत बढ़ने की मुख्य वजह दिनों-दिन बढ़ रही जनसंख्या और चुनाव आयोग की जागरूकता अभियान को बताते हैं.
ऐसे में इस स्टोरी में समझते हैं कि क्या सच में वोट प्रतिशत का बढ़ना एक सामान्य राजनीतिक घटना है या कुछ खेल होने वाला है?
1. महिला वोटों से मिलेगी सत्ता की चाभी?
महिलाओं ने इस बार मध्य प्रदेश में जमकर मतदान किया है. आयोग के मुताबिक पिछली बार की तुलना में इस बार 18 लाख से ज्यादा महिलाओं ने वोट डाले हैं.
आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2018 में 52 विधानसभा सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट किया था. जानकारों का कहना है कि इस बार यह संख्या 100 के पार जा सकता है.
ऐसे में महिलाओं के वोट उन सीटों पर काफी अहम रहने वाला है, जहां पर कांटे या त्रिकोणीय मुकाबला है.
महिलाओं को साधने के लिए बीजेपी की ओर से लाड़ली बहना योजना चलाई जा रही थी. कांग्रेस ने इस योजना की काट में नारी शक्ति योजना शुरू करने की बात कही थी.
2. सत्ता-विरोधी वोट बूथ तक जा पाए या नहीं?
आमतौर पर जब किसी चुनाव के वोटिंग में बढ़ोतरी होती है, तो उसे सत्ता विरोधी लहर से जोड़कर देखा जाता है. मध्य प्रदेश के संदर्भ में भी कांग्रेस इसे ही आधार बना रही है.
जानकारों का कहना है कि जब-जब वोट प्रतिशत बढ़ता है, तब-तब सत्ताधारी दल को नुकसान होता है, लेकिन सवाल है कि क्या सत्ता विरोधी वोट बूथ तक पहुंचा या नहीं?
ग्वालियर दक्षिण सीट, जहां पिछली बार कांग्रेस 111 वोटों से जीती थी. वहां इस बार वोटिंग काफी धीमा रहा. यहां के एक बूथ का वीडियो भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है.
वीडियो में कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीण पाठक जिले के कलेक्टर से स्लो वोटिंग कराने को लेकर बहस कर रहे हैं. पाठक का आरोप है कि कलेक्टर ने मुस्लिम इलाकों में जानबूझकर समय से वोटिंग नहीं करवाई.
दिमनी में भी कम मतदान चर्चा का विषय है. यह सीट अभी कांग्रेस के पास है, लेकिन यहां से चुनाव केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर लड़ रहे हैं.
3. स्थानीय स्तर का समीकरण काफी अहम
मध्य प्रदेश चुनाव को कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार रवि दुबे के मुताबिक इस बार चुनाव में स्थानीय स्तर का समीकरण काफी महत्वपूर्ण है. एक-एक सीट का अपना समीकरण है और उसी हिसाब से आकलन होना चाहिए.
वे कहते हैं- पहले की तुलना में इस बार का वोटिंग पैटर्न काफी बदला हुआ नजर आया. लोग वोटिंग के वक्त स्थानीय कैंडिडेट को ज्यादा देख रहे थे. कई सीटों पर निर्दलीय और अन्य पार्टियों के उम्मीदवार भी काफी मजबूत हैं.
दुबे के मुताबिक इस बार कई सीटों पर जीत-हार का मार्जिन काफी कम रहने वाला है. ऐसे में कौन कहां जीतेगा,यह तो मतगणना के दिन ही पता चल पाएगा.
राजनीतिक विश्लेषक मयंक शेखर मिश्रा भी स्थानीय समीकरण को काफी अहम मान रहे हैं. वे कहते हैं- ग्रामीण सीटों के मुकाबले शहरी सीटों पर वोटिंग कम हुआ है. इंदौर और भोपाल की कई सीटों पर 70 प्रतिशत से भी कम मतदान हुआ है.
मिश्रा आगे कहते हैं- ग्रामीण इलाकों की सीटों पर वोट बढ़ा है. ऐसे में बड़ा उलटफेर ग्रामीण इलाकों की सीटों से ही होगा. शहरी इलाकों में ज्यादा बदलाव मुश्किल है.
4. सपा और बीएसपी उम्मीदवार पर भी बहुत कुछ निर्भर
दिमनी, सिरमौर, सुमावली, सतना जैसी 2 दर्जन सीटों पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार कांग्रेस और बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. इसी तरह देवतालाब, निवाड़ी समेत 1 दर्जन सीटों पर सपा मजबूत स्थिति में है.
पिछले चुनाव में बीएसपी को 2 और सपा को 1 सीटों पर जीत मिली थी. इस बार अखिलेश यादव ने काफी मेहनत की है. बीएसपी से आकाश आनंद भी सक्रिय थे. ऐसे में सपा और बीएसपी को मिले वोट भी नतीजे को काफी प्रभावित करेगा.
2018 में सपा और बीएसपी को कुल 6.30 प्रतिशत वोट मिले थे. अगर यह 10 प्रतिशत के पार पहुंच गया, तो समीकरण काफी हद तक बदल सकता है.
5. नया वोटर किधर, यह भी जीत-हार तय करेगा
चुनाव आयोग के मुताबिक मध्य प्रदेश में इस बार 18-19 साल के 22 लाख युवा वोटर थे, जिनका नाम पहली बार मतदाता सूची में था. इन वोटरों के मुद्दे और वोटिंग के पैटर्न भी जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाएगा.
मध्य प्रदेश के स्वतंत्र पत्रकार रत्नदीप बांगरे के मुताबिक युवा वोटरों का मुख्य मुद्दा फ्रीबीज और रोजगार था. दोनों पार्टियों ने उन्हें लुभाने के लिए कई अहम घोषणाएं की.
बांगरे आगे कहते हैं- राजनीतिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया है. नए वोटर अब खुद फैसला लेने लगे हैं और इस बार युवाओं ने बढ़ चढ़कर मतदान भी किया है. ऐसे में आप यह कह सकते हैं कि यह जिधर गए होंगे, उसकी सरकार बननी तय है.
वोट प्रतिशत बढ़ने पर इन राज्यों में क्या हुआ था?
इसी साल कर्नाटक में चुनाव हुए थे, जहां 73.19 प्रतिशत मतदान हुआ था. यह 2018 के मुकाबले एक प्रतिशत ज्यादा था. वोट बढ़ने की वजह से कांग्रेस को फायदा हुआ और पार्टी अकेले दम पर सरकार बनाने में कामयाब हो गई.
रिजल्ट में 90 सीट वाली कांग्रेस 135 सीटों पर पहुंच गई. बीजेपी 75 के आसपास सिमट गई. जेडीएस को 19 सीटों पर जीत मिली.
गुजरात चुनाव के वोटिंग में कमी आई, तो सत्ताधारी दल को जबरदस्त फायदा हुआ. गुजरात में इस बार 64.25 प्रतिशत वोट पड़े थे, जो पिछली बार से करीब 3 प्रतिशत कम था.
वोटिंग प्रतिशत में गिरावट का फायदा सीधे सत्ताधारी बीजेपी को मिली. पार्टी ने रिकॉर्ड सीटों से गुजरात में जीत हासिल की.
हत्या, गोलीबारी और धांधली के आरोपों के बीच मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों के लिए शुक्रवार को वोट डाले गए. वोट डालने के लिए कई जगहों पर देर रात तक लोग कतारों में खड़े नजर आए. चुनाव आयोग के मुताबिक राज्य में कुल 76.2 प्रतिशत वोट पड़े, जो अब तक का रिकॉर्ड है.
2018 में 75.63 प्रतिशत तो 2013 में 72.13 प्रतिशत वोट पड़े थे. चुनाव आयोग के मुताबिक विधानसभा की करीब 85 सीटों पर 80 प्रतिशत से ज्यादा वोट पड़े हैं. सिवनी जिले के बरघाट सीट पर सबसे ज्यादा 88.2 प्रतिशत वोट डाले गए हैं.
विधानसभा चुनाव के इस रिकॉर्डतोड़ मतदान ने सियासी दलों की धड़कनें बढ़ा दी है. वोटिंग के बाद चौक-चौराहे से लेकर सियासी गलियारों तक एक ही चर्चा है कि आखिर इस वोटिंग के संकेत क्या हैं?
मध्य प्रदेश के चुनाव में टूटे कई रिकॉर्ड
– बालाघाट जिले के सोनेवानी मतदान केंद्र में सबसे कम 42 मतदाता हैं, लेकिन यहां 100 प्रतिशत मतदान हुआ है. बालाघाट नक्सल बेल्ट माना जाता है और यहां दोपहर 3 बजे तक ही मतदान करवाया गया.
– पहली बार महिला वोटरों ने जमकर मतदान किया है. आयोग के मुताबिक कुल 2.72 करोड़ महिला वोटरों में से 1.93 करोड़ ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है.
– 2020 में बागी हुए कांग्रेस के 22 में से 14 विधायकों की सीट पर इस बार पिछली बार की तुलना में ज्यादा वोट पड़े हैं. इनमें कई मंत्रियों की सीट भी शामिल हैं. ये सभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ गए थे.
– पहली बार विधानसभा चुनाव में 3 केंद्रीय मंत्री और 7 सांसद मैदान में थे. 6 पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिवार भी चुनाव मैदान में उतरे हुए थे.
5 प्वाइंट्स में समझिए क्या है वोटिंग का ट्रेंड?
सवाल यही है कि क्या मध्य प्रदेश के वोटिंग में जो बढ़ोतरी हुई है, क्या वह सामान्य है? मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता नितिन दुबे कहते हैं- जिस तरह से मतदाता रात तक लंबी-लंबी कतारों में लगे रहे, इसे सामान्य नहीं कहा जा सकता है.
वे कहते हैं- यह सत्ता विरोधी लहर है और लोगों ने कांग्रेस के पक्ष में जमकर मतदान किया है. कांग्रेस पिछली बार से ज्यादा मजबूती से सरकार बनाएगी.
बीजेपी के प्रवक्ता हितेश वाजपेई इसे सामान्य बताते हुए सोशल मीडिया पर लिखते हैं, ‘2 प्रतिशत वोट मध्य प्रदेश के चुनाव में हर बार बढ़ता है.’ वाजपेई वोट प्रतिशत बढ़ने की मुख्य वजह दिनों-दिन बढ़ रही जनसंख्या और चुनाव आयोग की जागरूकता अभियान को बताते हैं.
ऐसे में इस स्टोरी में समझते हैं कि क्या सच में वोट प्रतिशत का बढ़ना एक सामान्य राजनीतिक घटना है या कुछ खेल होने वाला है?
1. महिला वोटों से मिलेगी सत्ता की चाभी?
महिलाओं ने इस बार मध्य प्रदेश में जमकर मतदान किया है. आयोग के मुताबिक पिछली बार की तुलना में इस बार 18 लाख से ज्यादा महिलाओं ने वोट डाले हैं.
आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2018 में 52 विधानसभा सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट किया था. जानकारों का कहना है कि इस बार यह संख्या 100 के पार जा सकता है.
ऐसे में महिलाओं के वोट उन सीटों पर काफी अहम रहने वाला है, जहां पर कांटे या त्रिकोणीय मुकाबला है.
महिलाओं को साधने के लिए बीजेपी की ओर से लाड़ली बहना योजना चलाई जा रही थी. कांग्रेस ने इस योजना की काट में नारी शक्ति योजना शुरू करने की बात कही थी.
2. सत्ता-विरोधी वोट बूथ तक जा पाए या नहीं?
आमतौर पर जब किसी चुनाव के वोटिंग में बढ़ोतरी होती है, तो उसे सत्ता विरोधी लहर से जोड़कर देखा जाता है. मध्य प्रदेश के संदर्भ में भी कांग्रेस इसे ही आधार बना रही है.
जानकारों का कहना है कि जब-जब वोट प्रतिशत बढ़ता है, तब-तब सत्ताधारी दल को नुकसान होता है, लेकिन सवाल है कि क्या सत्ता विरोधी वोट बूथ तक पहुंचा या नहीं?
ग्वालियर दक्षिण सीट, जहां पिछली बार कांग्रेस 111 वोटों से जीती थी. वहां इस बार वोटिंग काफी धीमा रहा. यहां के एक बूथ का वीडियो भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है.
वीडियो में कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीण पाठक जिले के कलेक्टर से स्लो वोटिंग कराने को लेकर बहस कर रहे हैं. पाठक का आरोप है कि कलेक्टर ने मुस्लिम इलाकों में जानबूझकर समय से वोटिंग नहीं करवाई.
दिमनी में भी कम मतदान चर्चा का विषय है. यह सीट अभी कांग्रेस के पास है, लेकिन यहां से चुनाव केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर लड़ रहे हैं.
3. स्थानीय स्तर का समीकरण काफी अहम
मध्य प्रदेश चुनाव को कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार रवि दुबे के मुताबिक इस बार चुनाव में स्थानीय स्तर का समीकरण काफी महत्वपूर्ण है. एक-एक सीट का अपना समीकरण है और उसी हिसाब से आकलन होना चाहिए.
वे कहते हैं- पहले की तुलना में इस बार का वोटिंग पैटर्न काफी बदला हुआ नजर आया. लोग वोटिंग के वक्त स्थानीय कैंडिडेट को ज्यादा देख रहे थे. कई सीटों पर निर्दलीय और अन्य पार्टियों के उम्मीदवार भी काफी मजबूत हैं.
दुबे के मुताबिक इस बार कई सीटों पर जीत-हार का मार्जिन काफी कम रहने वाला है. ऐसे में कौन कहां जीतेगा,यह तो मतगणना के दिन ही पता चल पाएगा.
राजनीतिक विश्लेषक मयंक शेखर मिश्रा भी स्थानीय समीकरण को काफी अहम मान रहे हैं. वे कहते हैं- ग्रामीण सीटों के मुकाबले शहरी सीटों पर वोटिंग कम हुआ है. इंदौर और भोपाल की कई सीटों पर 70 प्रतिशत से भी कम मतदान हुआ है.
मिश्रा आगे कहते हैं- ग्रामीण इलाकों की सीटों पर वोट बढ़ा है. ऐसे में बड़ा उलटफेर ग्रामीण इलाकों की सीटों से ही होगा. शहरी इलाकों में ज्यादा बदलाव मुश्किल है.
4. सपा और बीएसपी उम्मीदवार पर भी बहुत कुछ निर्भर
दिमनी, सिरमौर, सुमावली, सतना जैसी 2 दर्जन सीटों पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार कांग्रेस और बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. इसी तरह देवतालाब, निवाड़ी समेत 1 दर्जन सीटों पर सपा मजबूत स्थिति में है.
पिछले चुनाव में बीएसपी को 2 और सपा को 1 सीटों पर जीत मिली थी. इस बार अखिलेश यादव ने काफी मेहनत की है. बीएसपी से आकाश आनंद भी सक्रिय थे. ऐसे में सपा और बीएसपी को मिले वोट भी नतीजे को काफी प्रभावित करेगा.
2018 में सपा और बीएसपी को कुल 6.30 प्रतिशत वोट मिले थे. अगर यह 10 प्रतिशत के पार पहुंच गया, तो समीकरण काफी हद तक बदल सकता है.
5. नया वोटर किधर, यह भी जीत-हार तय करेगा
चुनाव आयोग के मुताबिक मध्य प्रदेश में इस बार 18-19 साल के 22 लाख युवा वोटर थे, जिनका नाम पहली बार मतदाता सूची में था. इन वोटरों के मुद्दे और वोटिंग के पैटर्न भी जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाएगा.
मध्य प्रदेश के स्वतंत्र पत्रकार रत्नदीप बांगरे के मुताबिक युवा वोटरों का मुख्य मुद्दा फ्रीबीज और रोजगार था. दोनों पार्टियों ने उन्हें लुभाने के लिए कई अहम घोषणाएं की.
बांगरे आगे कहते हैं- राजनीतिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया है. नए वोटर अब खुद फैसला लेने लगे हैं और इस बार युवाओं ने बढ़ चढ़कर मतदान भी किया है. ऐसे में आप यह कह सकते हैं कि यह जिधर गए होंगे, उसकी सरकार बननी तय है.
वोट प्रतिशत बढ़ने पर इन राज्यों में क्या हुआ था?
इसी साल कर्नाटक में चुनाव हुए थे, जहां 73.19 प्रतिशत मतदान हुआ था. यह 2018 के मुकाबले एक प्रतिशत ज्यादा था. वोट बढ़ने की वजह से कांग्रेस को फायदा हुआ और पार्टी अकेले दम पर सरकार बनाने में कामयाब हो गई.
रिजल्ट में 90 सीट वाली कांग्रेस 135 सीटों पर पहुंच गई. बीजेपी 75 के आसपास सिमट गई. जेडीएस को 19 सीटों पर जीत मिली.
गुजरात चुनाव के वोटिंग में कमी आई, तो सत्ताधारी दल को जबरदस्त फायदा हुआ. गुजरात में इस बार 64.25 प्रतिशत वोट पड़े थे, जो पिछली बार से करीब 3 प्रतिशत कम था.
वोटिंग प्रतिशत में गिरावट का फायदा सीधे सत्ताधारी बीजेपी को मिली. पार्टी ने रिकॉर्ड सीटों से गुजरात में जीत हासिल की.