देश के वो 5 सियासी परिवार, जहां रिश्तों पर भारी है राजनीति !
गांधी, पासवान और चौटाला… देश के वो 5 सियासी परिवार, जहां रिश्तों पर भारी है राजनीति
पवार परिवार से इतर भी भारतीय राजनीति में कई परिवार ऐसे हैं, जिसमें फूट के बाद रिश्तों पर राजनीति भारी पड़ गई. इन परिवारों के बीच अभी भी सियासी कड़वाहटें बदस्तूर जारी है.
हालांकि, पवार परिवार के मिलन का यह पहला मौका नहीं है. पहले भी कई मौकों पर अजित पवार अपने चाचा शरद पवार और बहन सुप्रिया सुले से मिलते नजर आए हैं. मुलाकात के पीछे पवार परिवार का तर्क होता है- राजनीति से बड़ा रिश्ता है.
महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार संजय आउते भी सुप्रिया सुले और शरद पवार के साथ बार-बार अजित पवार के मुलाकात को पारिवारिक ही मानते हैं. आउते के मुताबिक यह सभी मुलाकातें किसी न किसी निजी मौकों पर ही हुई हैं.
आउते कहते हैं- महाराष्ट्र के भीतर यह धारणा भी है कि अगर शरद पवार और अजित पवार सीधे तौर पर एक-दूसरे के सामने आ गए, तो सुप्रिया का बारामती से सांसदी जीतना और अजित पवार का विधायकी जीतना मुश्किल हो जाएगा. हो सकता है, दोनों परिवार सभी मौकों इसलिए भी साथ आता हो.
पवार परिवार से इतर भी भारतीय राजनीति में कई परिवार ऐसे हैं, जिसमें फूट के बाद रिश्तों पर राजनीति भारी पड़ गई. इन परिवारों के बीच अभी भी सियासी कड़वाहटें बदस्तूर जारी है.
इस स्टोरी में इन्हीं परिवारों की कहानी को विस्तार से जानते हैं…
यहां रिश्ते पर राजनीति भारी
1. गांधी परिवार– इंदिरा गांधी का परिवार अभी भी दो धड़ों में बंटा हुआ है. इंदिरा के बड़े बेटे राजीव गांधी का परिवार अभी कांग्रेस में है, तो छोटे बेटे संजय का परिवार बीजेपी में. गांधी परिवार में फूट संजय गांधी की हत्या के बाद पड़ा. संजय की पत्नी मेनका इंदिरा से बगावत कर अलग रहने लगीं.
उस दौर में इंदिरा के खिलाफ मेनका गांधी के बयान अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर छपते थे.
इधर, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की बागडोर राजीव के पास आ गया. 1989 में राजीव गांधी जब सियासत से सबसे मुश्किल दौर में थे, तब मेनका ने जनता पार्टी का समर्थन कर दिया. मेनका को इसका ईनाम वीपी सिंह सरकार में मंत्री बनाकर दिया गया.
राजीव के निधन के 8 साल बाद कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी को मिली. 1999 के चुनाव में सोनिया के चेहरे पर कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन पार्टी सरकार बनाने से चूक गई. वहीं निर्दलीय सांसद मेनका को अटल बिहारी ने अपनी सरकार में मंत्री बना दिया.
2004 में मेनका अपने बेटे वरुण गांधी के साथ बीजेपी में शामिल हो गईं. उसी साल कांग्रेस ने सियासत में राहुल गांधी को लॉन्च किया था. वरुण गांधी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि शुरुआत में चुनाव प्रचार के दौरान मुझे गांधी परिवार के लोगों पर हमले की जिम्मेदारी दी गई थी.
वरुण के बीजेपी में जाने के बाद दोनों परिवारों में काफी दूरियां बढ़ गई. पिछले 20 साल में कभी भी दोनों की पारिवारिक तस्वीरें सामने नहीं आई.
कांग्रेस छोड़ने के एक सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार भावना बिज से बातचीत में वरुण ने इंदिरा की विरासत का जिक्र किया था. वरुण ने कहा कि मेरे पिता संजय गांधी इंदिरा गांधी के प्रिय बेटे थे, लेकिन उनकी विरासत पहले चाचा और अब उनके बेटे को मिली है. इस स्थिति में मैं क्या करता?
हाल के दिनों में वरुण गांधी के कांग्रेस में आने की भी खूब अटकलें लगी, लेकिन एक राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसे सिरे से खारिज कर दिया.
2. चौटाला परिवार– हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला का परिवार भी दो धड़ों में बंट चुका है. एक तरफ इनेलो का झंडा लिए ओम प्रकाश चौटाला और उनके छोटे बेटे अभय चौटाला खड़ा है, तो दूसरी तरफ जननायक पार्टी बनाकर अजय चौटाला अपने परिवार के साथ सियासी रण में हैं.
दोनों परिवार में फूट 2019 के चुनाव से पहले पड़ा. 2018 के आखिरी महीने में पोते दुष्यंत की बगावत से डरकर ओम प्रकाश चौटाला ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. इनेलो से निकाले जाने के बाद दुष्यंत ने खुद की पार्टी बना ली. वर्तमान में दुष्यंत हरियाणा के डिप्टी सीएम हैं.
दुष्यंत की बगावत के बाद अभय चौटाला का भी जनाधार छिटक गया. हालांकि, दोनों अभी भी एक दूसरे पर काफी आक्रामक हैं. विधानसभा के भीतर भी अभय और दुष्यंत के बीच नोकझोंक की कई वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं.
इनेलो में दरार के बाद से कभी भी अभय और अजय के परिवार को एक साथ नहीं देखा गया है. दोनों परिवार एक-दूसरे से दूरी बनाकर ही चल रहे हैं.
3. पासवान परिवार- बिहार के रामविलास पासवान परिवार में भी फूट पड़ चुकी है. दोनों परिवार में रिश्ते पर राजनीति अब तक भारी है. 2020 चुनाव के बाद रामविलास के छोटे भाई पशुपति पारस ने पार्टी पर कब्जा ठोक दिया.
उस वक्त पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान थे. परिवार की इस लड़ाई में पशुपति को अपने भतीजे प्रिंस पासवान का भी साथ मिला. लड़ाई के वक्त पशुपति पारस ने अपनी भाभी से भी मिलने से इनकार कर दिया.
पशुपति के दांव से चिराग पस्त हो गए. सांसदों का समर्थन देख एनडीए ने पशुपति को अपने साथ रखा और मोदी कैबिनेट में उसे मंत्री भी बनवाया. हालांकि, एक राजनीतिक घटनाक्रम में चिराग भी एनडीए का हिस्सा बन गए.
पशुपति और चिराग भले अभी एनडीए में हैं, लेकिन दोनों एक-दूसरे के खिलाफ लगातार हमलावर हैं. चिराग और पशुपति हाजीपुर सीट को लेकर लगातार बगावती मोड में हैं. चिराग चाचा के सीट पर अपनी मां रीना पासवान को उतारने की तैयारी में है.
वहीं पशुपति भी चिराग के खिलाफ उनकी बड़ी मां को उतारने की बात कह चुके हैं. कुल मिलाकर देखा जाए, तो कुर्सी के लिए पासवान परिवार के रिश्ते पर भी सियासत भारी है.
4. ठाकरे परिवार- मराठी सियासत के मशहूर बालठाकरे परिवार में भी रिश्ते पर सियासत भारी है. 2005 में शिवसेना में उद्धव ठाकरे को तरजीह मिलने पर राज ठाकरे ने पार्टी का दामन छोड़ दिया था. इसके बाद कई बड़े मौके आए, लेकिन दोनों चचेरे भाइयों का गिला-शिकवा दूर नहीं हुआ.
उद्धव के राजनीति में आने से पहले राज ठाकरे ही चाचा बालासाहेब ठाकरे के राजनीतिक उत्तराधिकारी थे, लेकिन उद्धव ने उनका पत्ता कटवा दिया.
इसके बाद राज ने मनसे का गठन किया. मनसे को राजनीतिक तौर पर ज्यादा फायदा नहीं मिला, लेकिन राज अक्सर शिवसेना की नीतियों के खिलाफ झंडा बुलंद करते नजर आए. 2022 में जब उद्धव ठाकरे बीमार थे और उनकी सरकार गिर गई, तो राज ने सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर उद्धव को खरी-खोटी सुनाया.
उद्धव और राज के साथ आने की खबर कई बार सामने आई, लेकिन दोनों में कभी आम सहमति नहीं बन पाई. राज और उद्धव के मुलाकात की जितनी भी तस्वीरें पब्लिक प्लेटफॉर्म पर है, सब 2005 से पहले की है.
5. मुंडे परिवार– महाराष्ट्र के कद्दावर दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे परिवार में भी अब तक फूट है. मुंडे के रहते ही उनके भतीजे धनंजय ने एनसीपी का दामन थाम लिया था. धनंजय इसके बाद से ही चाचा मुंडे के परिवार को सियासी नुकसान पहुंचाने में जुटे हैं.
2019 के चुनाव में धनंजय ने चचेरी बहन और बीजेपी सरकार में मंत्री रही पंकजा मुंडे को चुनाव हराया था. हाल ही में मुंडे अजित पवार के साथ एनडीए में आ गए हैं.
धनंजय के एनडीए में आने के बाद से ही पंकजा के नाराज होने की खबर कई बार मीडिया में आई है. पंकजा ने भी एक बयान में कहा था कि बीजेपी मेरी पार्टी नहीं है. मुंडे परिवार का झगड़े की तस्वीर 2024 के बाद ही साफ हो पाएगी.