जिसका जितना रसूख, उतना बड़ा बंगला
चंद मामलों से समझें आवास आवंटन की कहानी …
भोपाल. सरकारी अधिकारी, कर्मचारियों के लिए यूं तो शासकीय आवास आवंटन का नियम है। उनके ओहदे के हिसाब से सरकारी आवास उपलब्ध कराया जाता है, लेकिन विधायकों के लिए सरकार की मेहरबानी ही पर्याप्त है। यानी जिसका जितना ज्यादा प्रभाव, रसूख उसे उतना बड़ा बंगला मिल जाता है।
विधायकों को राजधानी भोपाल में आवास आवंटन कराने की जिम्मेदारी विधानसभा सचिवालय की है। विधानसभा परिसर में विधायक विश्राम गृह में विधायकों के आवास की व्यवस्था है। यहां विधायक परिवार के साथ निवास कर सकते हैं। विधानसभा सचिवालय प्राथमिकता के आधार पर आवास आवंटित करता है। करीब 36 आवास विधानसभा परिसर के बाहर भी हैं। यह भी विधानसभा के अधीन आते हैं।
आजादी ऐसी
वैसे तो ये शासकीय आवास हैं, लेकिन ये सरकार ने विधानसभा को उपलब्ध कराए हैं। इन्हें अध्यक्षीय पूल के आवास कहा जाता है। इनमें एफ, ई, जी, डी, सी टाइप बंगले भी शामिल हैं। विधायकों को आजादी होती है कि वे चाहें तो विधानसभा सचिवालय से आवास आवंटित करा लें या सरकार से शासकीय आवास आवंटित करवा सकते हैं। सरकार में मुख्यमंत्री एवं विधानसभा में अध्यक्ष का विशेषाधिकार होता है कि किस विधायक को किस श्रेणी का आवास आवंटित किया जाए।
पहली बार के विधायक भी मंत्री के बंगले पर
इसे विधानसभा और सरकार की मेहरबानी ही कहा जाएगा कि पहली बार के विधायकों को भी मंत्री बंगले आवंटित कर दिए गए। पांच साल से ये इन्हीं बंगलों का सुख भोग रहे हैं। जबकि कई वरिष्ठ विधायक विधायक विश्रामगृह में ही अपना आशियाना बनाए हुए हैं।