एमपी में शिवराज नहीं तो फिर CM कौन?

एमपी में शिवराज नहीं तो फिर CM कौन?
रेस में 5 नाम; इनमें एक आदिवासी चेहरा भी, क्या फिर चौंकाएगी बीजेपी …

शिवराज के इस बयान के बाद अब चर्चा इस बात की तेज हो गई है कि मध्यप्रदेश में शिवराज नहीं तो फिर कौन? उनके बयान के मायने इसलिए भी गहरे हैं, क्योंकि वे खुद कह चुके हैं कि राजनीति में हर बात के गहरे मायने होते हैं।

उधर, शिवराज के इस बयान से 36 घंटे पहले ही मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल दूसरे दावेदार भी दिल्ली में डट गए हैं। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रह्लाद पटेल, नरेंद्र तोमर और कैलाश विजयवर्गीय दिल्ली में हैं। वे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्‌डा से मुलाकात कर चुके हैं। हालांकि, इसमें से कोई भी नेता मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर कुछ भी कहने से बच रहा है। वहीं, वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह का कहना है कि मोदी हमेशा सरप्राइज देते हैं। इस बार भी सरप्राइज ही देंगे।

अब समझते हैं मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद के जो दावेदार कहे जा रहे हैं उनका दावा क्यों है और क्या बात है जो उनके दावे को कमजोर भी करती है?

जीत में महत्वपूर्ण भूमिका, लोकसभा चुनाव भी बड़ा फैक्टर
शिवराज भले ही खुद को मुख्यमंत्री पद की रेस में नहीं मानते, लेकिन वे स्वाभाविक और सबसे मजबूत दावेदार हैं। 17 सालों से मुख्यमंत्री हैं। चुनाव में मिली जीत में लाड़ली बहना को गेमचेंजर माना जा रहा है। ये शिवराज सरकार की ड्रीम योजना है। ओबीसी चेहरा हैं। किरार-धाकड़ समाज की आबादी प्रदेश की 100 विधानसभाओं में है। लोकप्रिय हैं, संगठन और सत्ता में तालमेल बनाकर काम करना जानते हैं। अब तक संघ की पसंद भी माने जाते रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर पांच महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव।

पक्ष में क्या नहीं : पार्टी की भविष्य (2028 का विधानसभा चुनाव भी) रणनीति के तहत नए नेतृत्व को तैयार करने की चर्चा।

शिवराज के बाद दूसरा बड़ा ओबीसी चेहरा, संगठन में मजबूत पकड़
मध्यप्रदेश में शिवराज के बाद ओबीसी का दूसरा बड़ा चेहरा हैं। उसी लोधी समाज से आते हैं, जिस समाज से पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती हैं। प्रदेश में लोधी समुदाय की आबादी 12 फीसदी है। पटेल, सिवनी, बालाघाट और दमोह अलग-अलग सीट से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। कुशल संगठक माने जाते हैं। मोदी कैबिनेट में होने की वजह से मोदी के करीबी हैं। पार्टी ने केंद्र से जितने दिग्गज भेजे थे, उसमें पटेल ही ऐसे थे, जो अपने चुनाव के साथ-साथ दूसरे जिलों की सीटों पर भी लगातार प्रचार करते रहे।

पक्ष में क्या नहीं : 2008 में उमा भारती के साथ भाजपा का साथ छोड़कर भारतीय जनशक्ति पार्टी में शामिल हो गए थे।

शाह के करीबी माने जाते हैं, चुनावी मैनेजमेंट में माहिर
पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं। पश्चिम बंगाल के प्रभारी रहे और वहां अपने चुनावी मैनेजमेंट से पार्टी को स्थापित किया। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। इंदौर की सभी 9 सीटें भाजपा ने जीती। जिस सीट से विजयवर्गीय जीतते हैं, वो भाजपा का गढ़ बन जाती है। पहले शिवराज कैबिनेट में रह चुके हैं। मालवा-निमाड़ में गहरी पकड़ हैं। चुनाव लड़ने के दौरान कह भी चुके हैं कि मुझे पार्टी ने लड़ाया है तो जरूर कोई बड़ी जिम्मेदारी देगी।

पक्ष में क्या नहीं : ऐसे बयान देते रहते हैं, जिससे कॉन्ट्रोवर्सी होती है। टिकट मिलने पर कहा- मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहता था।

चुनाव अभियान समिति के प्रमुख रहे, मोदी से नजदीकी
मध्यप्रदेश में भाजपा के चुनाव अभियान समिति के प्रमुख रहे। मोदी कैबिनेट का पुराना चेहरा हैं, इसलिए मोदी से नजदीकी है। प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं तो संगठन में मजबूत पकड़ है। शिवराज के भरोसेमंद माने जाते हैं। यदि शिवराज से उनकी बजाए कोई और नाम पूछा गया तो उनकी पहली पसंद तोमर हो सकते हैं।

पक्ष में क्या नहीं : ओबीसी बाहुल एमपी के जातीय समीकरण में फिट नहीं। चुनाव के दौरान बेटे से जुड़े वीडियो का वायरल होना।

भविष्य की लीडरशिप के फॉर्मूले पर फिट बैठते हैं
विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए सबसे कमजोर माने जाने वाले ग्वालियर-चंबल में इस बार फिर सिंधिया की धमक सुनाई दी है। 2018 में यहां की 34 सीटों में 7 सीटों पर सिमटी भाजपा को इस बार 18 सीटों पर जीत दिलाने में अहम रोल रहा।

भाजपा में शामिल होकर संघ परिवार और संगठन दोनों के साथ तालमेल बनाया है। शिवराज से भी अच्छी ट्यूनिंग रही है। मोदी और शाह दोनों के भरोसेमंद हैं। प्रदेश में भविष्य के लिए नया नेतृत्व तैयार करने की रणनीति के हिसाब से फिट हैं।

पक्ष में क्या नहीं : राजनीति में ज्यादा वक्त कांग्रेस में बिताया।

आदिवासी चेहरे के तौर पर पहचान, दूसरे वर्गों में भी स्वीकार्य
मध्यप्रदेश में 21 फीसदी आदिवासी आबादी है। आदिवासियों के लिए रिजर्व 47 सीटों में भाजपा ने 24 जीती है। सुमेर कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर रहे हैं। युवा नेता हैं। मोदी- शाह के साथ संघ परिवार के भी भरोसेमंद हैं। मोदी के चहेते भी हैं। लो प्रोफाइल हैं और ऐसे इकलौते आदिवासी चेहरे के तौर पर पहचान है, जो दूसरे वर्गों में भी स्वीकार्य हैं।

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