उत्तरप्रदेश में अखिलेश को चुनौती देंगे ‘मोदी के मोहन’ !
उत्तरप्रदेश में अखिलेश को चुनौती देंगे ‘मोदी के मोहन’
52% OBC में 20% यादवों पर फोकस, सपा को मुस्लिम वोटर्स तक सीमित करने की रणनीति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चौंकाते हैं। छत्तीसगढ़ में CM के नाम की घोषणा के बाद उन्होंने मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही किया। मुख्यमंत्री के लिए ऐसा अकल्पनीय नाम सामने आया, जिसकी दूर-दूर तक कहीं चर्चा भी नहीं थी। ये नाम है मोहन यादव का।
मोहन OBC वर्ग से आते हैं और उज्जैन के दक्षिण से विधायक हैं। प्रधानमंत्री ने पूर्व CM शिवराज सिंह चौहान से मोहन यादव का प्रस्ताव रखवाकर एक तरफ जहां सब कुछ ठीक होने का मैसेज दिया। वहीं इस नाम से उत्तर प्रदेश पर भी निशाना साधा। UP के लिए मोहन यादव (MY) इसलिए भी ज्यादा महत्व रखते हैं क्योंकि सुल्तानपुर जिले में उनकी ससुराल है। वह यहां आते रहे हैं। इसके अलावा पिछले लोकसभा चुनाव में वह गोंडा के प्रभारी रहे थे।
‘मोदी के मोहन’ 2024 के लोकसभा चुनाव में UP में भाजपा के लिए ट्रंप कार्ड बनेंगे। मोहन यादव के सहारे PM मोदी अखिलेश यादव के परिवारवाद की राजनीति पर निशाना साधेंगे। साथ ही उत्तर प्रदेश 52% OBC वोटर्स में 20% यादवों को भी यह बताएंगे कि यादव सिर्फ सपा में नहीं, BJP में भी टॉप पदों पर आ सकते हैं।
- आइए जानते हैं कि मोहन यादव से UP में कैसे भाजपा जातीय समीकरण जोड़ेगी? किस तरह अखिलेश को सिर्फ मुस्लिमों की पार्टी साबित करने की कोशिश करेगी..?
सबसे पहले बात UP में 5 CM देने वाले यादवों की…जिन पर BJP की नजर है
UP की पूरी सियासत OBC वोट बैंक के इर्द-गिर्द घूमती है। अनुमानित आंकड़े के हिसाब से UP में OBC वोट बैंक करीब 52% है। इनमें सबसे ज्यादा 20% हिस्सा यादव वोट बैंक का है। इस OBC समाज में 79 जातियां हैं। यादवों के बाद दूसरे नंबर पर कुर्मी समुदाय है।
CSDS के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की आबादी में यादवों की हिस्सेदारी 11% है, जो सपा का परंपरागत वोटर माना जाता है। गैर-यादव में OBC जातियों में सबसे ज्यादा कुर्मी-पटेल 10%, कुशवाहा-मौर्या-शाक्य-सैनी 6%, लोध 4%, गडरिया-पाल 3%, कुम्हार/प्रजापति-चौहान 3 %, राजभर 2 और गुर्जर 2% हैं।
उत्तर प्रदेश में इटावा, मैनपुरी, एटा, फर्रुखाबाद, कन्नौज, आजमगढ़, फैजाबाद, बलिया, संतकबीरनगर और कुशीनगर समेत कई जिलों में यादव समाज का दबदबा रहा है। इनकी सियासत की मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ब्राह्मण-ठाकुर की राजनीति से अलग और मायावती की दलितों की राजनीति को छोड़कर सिर्फ OBC और मुस्लिमों के बल पर यादव समाज से UP में 5 बार मुख्यमंत्री रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी अखिलेश यादव को सिर्फ मुस्लिम वोट बैंक तक समेट देना चाहती है। यादवों को अपनी ओर आकर्षित करने के साथ-साथ कुर्मी समुदाय, मल्लाह-निषाद, लोध समुदाय, राजभर, मौर्या समेत 78 OBC जातियों को अपनी ओर लाना चाहती है।
सपा को मिलते हैं यादवों के 90% वोट
2012 में 224 सीटें जीतने वाली सपा सिर्फ 47 सीटों पर सिमट गई, जबकि 47 सीटें जीतने वाली भाजपा 324 सीटों पर पहुंच गई। CSDS के मुताबिक, UP की तमाम OBC जातियों में यादव वोटर्स की हिस्सेदारी करीब 20% है। UP की कुल 11 प्रतिशत यादव आबादी के 90 प्रतिशत वोट समाजवादी पार्टी को पड़ते हैं। मोदी के मोहन अब इसी वोट बैंक के लिए ट्रंप कार्ड बनाए गए हैं।
यादवों को सत्ता में हिस्सेदारी देकर साथ लाने की कवायद
BJP ने MY यानी मोहन यादव को मध्य प्रदेश की कमान सौंप इस पर मुहर लगा दी है कि वह यादवों को सत्ता में हिस्सेदारी देकर इस वोट बैंक को अपने साथ लाने की कवायद कर रही है। यह तो बड़े पद की बात है, लेकिन BJP का यह प्लान कई दिनों से चल रहा था।
उत्तर प्रदेश में यादव समाज 80 के दशक से ही बहुत जागरूक और सत्ता में हिस्सेदारी में रहा है। यही कारण है कि अखिलेश के सत्ता से बाहर होने के बाद से यादव समाज फिर सत्ता में हिस्सेदारी तलाशने लगा। भाजपा ने इसे अवसर बनाया। 2017 से ही यादवों में पकड़ मजबूत करने की कोशिश शुरू कर दी।
UP में इस समय खेल मंत्री गिरीश चंद्र यादव हों या राज्य सभा सांसद हरनाथ सिंह यादव, ये यादव समाज में भाजपा के बड़े चेहरे हैं। आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में भाजपा दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को मैदान में उतारा। उन्होंने अखिलेश परिवार के सबसे खास धर्मेंद्र यादव को चुनाव में हराया। अब मोहन यादव के साथ-साथ यूपी में भाजपा इन्हीं बड़े चेहरों के साथ 24 के चुनाव में उतरेगी ओर यादव वोट बैंक में और सेंध लगाने की कोशिश करेगी।
अब UP में OBC वोट बैंक की सियासत को समझिए…जिन पर BJP सेंध लगा चुकी है
अपना दल की अनुप्रिया पटेल, ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद का पार्टी के साथ गठबंधन इसी स्ट्रैटजी का हिस्सा है। इस प्रयोग से भाजपा 20% सवर्ण, 32% गैर यादव OBC, 11% गैर जाटव दलितों को अपनी ओर खींचने की कोशिश करेगी। इसी के आधार पर लोकसभा चुनाव में 80 सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है।
MY फॉर्मूले से आगे जाने की कोशिश में अखिलेश MP में हुए फेल
उत्तर प्रदेश में MY फॉर्मूले का मतलब मुस्लिम और यादव वोटर से रहा है। दरअसल, 1992 की बाबरी विध्वंस की घटना के बाद मुलायम ने ‘एम’ समीकरण पूरी ताकत से बिल्ट किया। उन्होंने लगातार इसकी सियासी फसल काटी।
आज भी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को MY वोटबैंक के गणित पर काफी भरोसा है, लेकिन अब इस फॉर्मूले के साथ ही वह PDA के फॉर्मूले पर भी चल रहे हैं। जिसमें वह पिछले, दलित और अल्पसंख्यक को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में अखिलेश यादव ने PDA का प्रयोग किया और वह इसमें फेल हुए।
- बात उत्तर प्रदेश में दलित वोट बैंक की, जो मायावती से कटकर BJP की तरफ जा चुका है
1989 से 2022 तक मायावती 13 विधायकों से 206 विधायकों तक पहुंचीं और फिर 1 विधायक तक सिमट कर रह गईं। यानी जिस दलित वोट बैंक ने उन्हें सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाया, उसी ने नीचे भी उतार दिया। वर्ष 2007 में मायावती दलित और ब्राम्हणों के सोशल इंजीनियरिंग से सत्ता में आईं। इसी दौरान एक इंटरव्यू में मायावती से जब उत्तराधिकारी के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि मेरा उत्तराधिकारी कोई जाटव ही होगा। यह दलितों की एक उपजाति होती है। इसके बाद से ही मायावती का डाउनफाल शुरू हो गया। अब उन्होंने आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी बना दिया है।
CSDS के मुताबिक (2007) UP विधानसभा चुनावों में 30.43% वोट के साथ मायावती ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। इसके बाद 2009 में लोकसभा में बसपा का वोट बैंक गिरकर 27.4% रह गया। हालांकि, उन्होंने 21 सीटें जीती थीं। 2012 का चुनाव आते आते बसपा की चमक और फीकी हो गई।
ब्राम्हण और कुछ दलित वोट मायावती से कट गया, बसपा सिर्फ 80 सीटों पर सिमट गई। यहां तक कि वोट शेयर भी 5% घटकर 25.9% पर आ गया। 2014 लोकसभा चुनाव मायावती के लिए किसी बुरे सपने जैसा साबित हुआ और बसपा ने 20% वोट तो हासिल किए, लेकिन उसका खाता नहीं खुल पाया।
उत्तर प्रदेश में दलित वोट बैंक
सूबे में तकरीबन 21 % दलित वोट बैंक है। इनमें 66 उपजातियां पाई जाती हैं। OBC वोट बैंक के बाद सबसे बड़ा वोट बैंक यही है। इसमें जाटव प्रमुख जाति है, 21 प्रतिशत में इनकी संख्या 10 प्रतिशत से ज्यादा है। इसके अलावा वाल्मीकि, धोबी, कोरी और पासी भी प्रमुख रूप से इन्हीं में शामिल हैं। यह वोट पूरी तरह से बसपा का कोर वोट बैंक माना जाता था। हालांकि, पिछले दो लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इसमें बिखराव आया है। जाटव के अलावा अन्य दलितों ने बसपा से नाराजगी जताई है। यह वोट बैंक BJP की तरफ खिसक गया है।
भाजपा की स्ट्रैटजी: 11 प्रतिशत को पूरी तरह अपनी ओर करना
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, बहुजन समाज आंदोलन में तक़रीबन 60 गैर-जाटव दलित जातियों को नेतृत्व में जगह नहीं मिली। इनमें वाल्मीकि, धोबी, कोरी और पासी शामिल हैं। दलितों में इनका प्रतिनिधित्व 11 प्रतिशत से ज्यादा है। इसीलिए BJP ने इन पर टारगेट किया और तमाम योजनाएं इनको ध्यान में रखते हुए बनाईं। इस बार भी BJP का लक्ष्य इस वोट बैंक को अपने साथ जोड़े रखना है। मायावती को सिर्फ जाटव समाज तक सीमित कर देना है।
- अब बात 18% मुस्लिम वोट बैंक की, जिसे BJP सपा और कांग्रेस में बांटने की रणनीत बना रही है
उत्तर प्रदेश में तकरीबन 18% मुस्लिम वोटर्स हैं। जातीय आधार पर यह सवर्ण, OBC और दलितों में शामिल हैं। राजनीतिक जानकार अभी तक ऐसा मानते रहे हैं कि मुस्लिम वोट बैंक स्टेट में सपा को, जबकि केंद्र में कांग्रेस को जाता रहा है। लेकिन CSDS के मुताबिक, वर्ष 2009 के चुनाव में 3 प्रतिशत मुस्लिमों का वोट BJP को मिला, जबकि 19 तक यह बढ़कर 10 से 12 प्रतिशत तक पहुंच गया। CSDS के अनुसार यह वोट जनभावनाओं के तहत युवा-बुजुर्ग महिलाओं का रहा है।
अब BJP इसे और मजबूत करने की कोशिश में लगी है। इसीलिए पसमांदा समाज पर विशेष रूप से फोकस किया जा रहा है। तीन तलाक, गरीब मुस्लिमों को योजनाओं का लाभ देकर उन्हें अपनी ओर जोड़ने की कोशिश हो रही है। वहीं बचे हुए वोट बैंक को सपा और कांग्रेस में बांटने की कोशिश की जा रही है।