दवा कंपनियों की मनमानी, स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ रोकने को कड़ी कार्रवाई की दरकार

दवा कंपनियों की मनमानी, स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ रोकने को कड़ी कार्रवाई की दरकार
‘जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल पॉलिसी ऐंड प्रैक्टिस’ में छपे एक शोध पत्र में एंटीबायोटिक दवाओं के ‘निश्चित खुराक सम्मिश्रण’ के मनमाने कारोबार और उसके दुष्प्रभाव पर चिंता प्रकट की गई है। इस शोध पत्र में भारतीय जनमानस के स्वास्थ्य की हिफाजत के लिए सचेत भी किया गया है। एक मरीज को दी जाने वाली कई दवाओं को मिलाकर एक मिश्रित दवा तैयार करने का विचार इसलिए स्वीकृत किया गया था कि इससे खुराक लेने में मरीज को सहूलियत होगी, पर दवा कंपनियों की मनमानी से जहां ऐसे सम्मिश्रणों में मनमाना वृद्धि की गई, वहीं नियंत्रक संस्थाओं की कमजोरी का फायदा उठाते हुए बिना मंजूरी के भी मिश्रणों को बाजार में उतार दिया गया।

इस शोध पत्र को दुनिया के जाने-माने चिकित्सक, पेट्र ब्रिलिकोवा (ब्रिटेन), आशना मेहता (भारत), पेट्रीसिया मैकगेटिगन (ब्रिटेन), एलिसन एम पोलक (ब्रिटेन), पीटर रोडरिक (ब्रिटेन) और हबीब हसन फारूकी (कतर) ने तैयार किया है। 2008 में दवाओं के एंटीबायोटिक ‘निश्चित खुराक सम्मिश्रण’ बनाने की 68 दवाओं का लाइसेंस जारी और 47 दवाओं को प्रतिबंधित किया गया था, लेकिन दवा उत्पादक कंपनियों ने 2020 तक एंटीबायोटिक ‘निश्चित खुराक सम्मिश्रण’ की 60.5 फीसदी ऐसी दवाएं बाजार में उतार दीं, जिनकी मंजूरी नहीं ली गई थी। इतना ही नहीं, 9.9 फीसदी ऐसे एंटीबायोटिक ‘निश्चित खुराक सम्मिश्रण’ बेचे जाने लगे, जो प्रतिबंधित थे। इस प्रकार 2020 में बाजार में उतारे गए 15.9 फीसदी एंटीबायोटिक निश्चित खुराक सम्मिश्रण बिना मंजूरी के थे। शोध में इस बात पर चिंता व्यक्त की गई है कि गलत एंटीबायोटिक या उसके साथ अन्य दवाओं के सम्मिश्रण के इस्तेमाल से मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है और तब दूसरी दवाएं भी काम नहीं करतीं।

भारत में अनुमोदित एक-तिहाई एंटीबायोटिक निश्चित खुराक सम्मिश्रण को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है। दवा कंपनियों की मनमानी यहां तक रही है कि 2018 और 2019 में जिन 39 सम्मिश्रण को प्रतिबंधित किया गया था, वे भी 2020 में बाजार में बने रहे। यहां तक कि 2019 में जिन सम्मिश्रणों को सबसे ज्यादा बेचा गया, उन्हें बेचने की अनुमति डब्ल्यूएचओ द्वारा नहीं दी गई थी। इसी प्रकार 2020 में सबसे ज्यादा बिकने वाले 20 सम्मिश्रण में से 13 की अनुमति भी विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा नहीं दी गई थी। यही कारण है कि 2008 की तुलना में 2020 में एंटीबायोटिक सम्मिश्रण की बिक्री में इजाफा होता गया।

हाल के वर्षों में भारतीय दवा कंपनियों ने विश्व बाजार में देश की छवि को नुकसान पहुंचाया है।  2018 में हिमाचल की दवा कंपनियों द्वारा उत्पादित घटिया दवाओं की जांच की गई थी और 13 कंपनियों द्वारा गैस्ट्रिक, हाईपरटेंशन, दर्द निवारक, डायबिटिज, आयरन, किडनी ट्रांसप्लांट, मल्टी विटामिन और कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाओं के घटिया पाए जाने पर केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने कार्रवाई की थी।

वर्ष 2020 में भी इस संगठन की जांच में देश के अलग-अलग राज्यों में निर्मित 46 तरह की दवाएं मानकों पर खरी नहीं पाई गई थीं। हिमाचल के आठ दवा उत्पादकों द्वारा निर्मित 13 तरह की दवाएं मानकों पर खरी नहीं उतरीं। इनके अलावा उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, सिक्किम, महाराष्ट्र, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, कोलकाता, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के दवा उद्योगों में निर्मित 41 दवाएं भी जांच में घटिया पाई गई थीं। अक्तूबर, 2022 में पश्चिमी अफ्रीकी देश गांबिया में 66 बच्चों की मौत का कारण एक भारतीय कफ सिरप बना, जिसे हरियाणा के सोनीपत स्थित एक कंपनी ने बनाया था। इसके कारण देश की छवि खराब हुई थी। इस वर्ष जनवरी में एंब्रोनोल और डॉक-1 मैक्स नामक घटिया कफ सिरप पीने से उज्बेकिस्तान के 20 बच्चों की मौत हो गई थी। तब भी भारत निर्मित घटिया कफ सिरप को लेकर सवाल खड़े हुए थे।

यह चिंता का विषय है कि दवा कंपनियां मनमानी कर अपने लाभ के लिए जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। दवा नियंत्रक संगठन ‘केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन’ को इस दिशा में सख्त कार्रवाई करते हुए दवा उत्पादन की गुणवत्ता को विश्वसनीय बनाना चाहिए।

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