चौधरी चरण सिंह…किसानों का कर्ज माफ कराने वाले पहले नेता
35 रुपए रिश्वत ली, 24 घंटे में पूरा थाना सस्पेंड …
चौधरी चरण सिंह…किसानों का कर्ज माफ कराने वाले पहले नेता, चौधराहट इतनी कि उसूलों के लिए कांग्रेस छोड़ी
आज की कहानी भी एक ऐसे किसान नेता पर है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन किसानों के नाम समर्पित कर दिया। नाम चौधरी चरण सिंह है, लेकिन राजनीतिक पंडित उन्हें ‘किसानों का कोहिनूर’ कहकर बुलाते थे। साल 1939 में चौधरी साहब ने किसानों की कर्ज माफी से जुड़ा एक बिल पास करवाया। अंग्रेजी हुकूमत में यह उस दौर का क्रांतिकारी बिल साबित हुआ, जिसकी वजह से यूपी के हजारों किसान साहूकारों के चंगुल से हमेशा-हमेशा के लिए आजाद हो गए। अपनी जमीनों के मालिक बन गए, जो कभी उन्होंने अंग्रेजों को गिरवी पर दे रखी थीं।
चौधरी साहब के जन्म से लेकर मृत्यु तक…उनकी राजनीति से लेकर किसानों के हक के लिए नेहरू से दुश्मनी मोल लेने तक की तमाम कहानियां इंटरनेट पर बिखरी हुई हैं। लेकिन आज की कहानी बाकियों से अलग है। इसमें वह किस्से हैं, जो एक आम नेता को किसानों का मसीहा बनने की दास्तान बयां करता है।
- शुरुआत उस किस्से से जिसने चरण सिंह को चौधरी चरण सिंह बना दिया…
साल 1979…गर्मियों के दिन थे। इटावा के ऊसराहार थाने के सिपाही दिन का काम निपटाकर रजिस्टर मेंटेन करने में जुटे थे। इसी बीच धोती-कुर्ता पहने एक किसान थाने पहुंचा। माथे पर आए पसीने को पोछते हुए उसने सिपाही से कहा- साहब मेरे 2 बैल चोरी हो गए हैं। शिकायत लिखवानी है। सिपाही ने बुजुर्ग किसान से कहा- बाबा बहुत टाइम हो गया है, कल आना। रपट लिख जाएगी।
किसान निराश होकर थाने से बाहर जाने लगा, तभी अंदर से दूसरा सिपाही बुजुर्ग के पास दौड़ता हुआ आया। बोला- ‘बाबा चलो तुम्हें दरोगा जी बुला रहे हैं।’ दरोगा ने फिर किसान से कुछ आड़े-टेढ़े सवाल पूछे और बिना रिपोर्ट दर्ज कर उसे डांटकर थाने से भगा दिया।
किसान थाने से जाने लगा, तो वही सिपाही फिर दौड़ते हुए आया। बोला- ‘बाबा थोड़ा खर्चा-पानी दे दो, तो रपट लिख ली जाएगी।’ रिपोर्ट लिखे जाने पर किसान फिर खुश हो गया, लेकिन खर्चा-पानी की बात उसे अंदर से खाए जा रही थी। हालांकि, वह कुछ पैसे देने पर राजी हो गया। मामला एक बार फिर से दरोगा के पास पहुंचा। 35 रुपए की रिश्वत पर रपट लिखना तय हुआ। शिकायत दर्ज कर मुंशी ने हंसते हुए पूछा, ‘बाबा साइन करोगे कि अंगूठा मारोगे।’
सभी हंस रहे थे। इसी बीच किसान ने अपने मैले कुर्ते से पेन निकाली और रिपोर्ट पर साइन किया। नाम लिखा- चौधरी चरण सिंह। देखते ही देखते कागज पर मुहर लगा दी गई। जिस पर लिखा था- प्रधानमंत्री, भारत सरकार। ये देखते ही दरोगा सन्न रह गया, शरीर कांपने लगा और कुर्सी से खड़ा हो गया। इस बार पसीना उसके माथे पर था। लेकिन किसान बनकर पहुंचे प्रधानमंत्री चरण सिंह ने किसी को माफ नहीं किया। 24 घंटे के अंदर पूरा का पूरा थाना सस्पेंड कर दिया गया।
पहली बार विधायकी मिली, तो अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया
चौधरी चरण सिंह का जन्म मेरठ के नूरपुर गांव में 23 दिसंबर, 1902 को हुआ। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। खेती-किसानी से घर चलता था। पिता चौधरी मीर सिंह चाहते थे कि चरण पढ़-लिखकर जल्दी परिवार की जिम्मेदारी उठा लें। चरण की पढ़ाई मेरठ के सरकारी उच्च विद्यालय में हुई। साल 1923 में उन्होंने साइंस से ग्रेजुएशन किया। फिर, 1925 में आर्ट्स साइड लेकर पीजी किया। फिर कानून की पढ़ाई पूरी कर वकालत करने गाजियाबाद चले गए।
उन दिनों देश में चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह को देखकर युवाओं में आजादी को लेकर जोश बढ़ा हुआ था। साल 1929 में चरण सिंह भी इस लड़ाई में कूद गए। 1937 उनका नाम पहली बार यूपी की राजनीति में सुनाई दिया। जब कांग्रेस की तरफ से उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता भी। 3 साल बाद यानी 1940 में वह सत्याग्रह आंदोलन में शामिल हुए, इस दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
जमींदारी प्रथा खत्म कराकर चरण किसानों के मसीहा बन गए
सत्याग्रह आंदोलन में चरण सिंह को जेल जाना जाया नहीं गया। 7 साल बाद देश को आजादी मिल गई। चरण सिंह के त्याग और उनकी हिम्मत के कारण लोग अब उन्हें ‘चौधरी चरण सिंह’ बुलाने लगे थे। उनकी गिनती कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में होने लगी। साल 1951 में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिली। उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला। इस दौरान उन्होंने न्याय एवं सूचना विभाग का कार्यभार भी संभाला।
1952 में डॉ. सम्पूर्णानंद यूपी के सीएम बने, तो चौधरी चरण सिंह को राजस्व और कृषि विभाग का दायित्व मिला। इसी साल चौधरी साहब ने यूपी के किसानों के लिए जमींदारी उन्मूलन विधेयक पारित किया। इससे अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही जमींदारी प्रथा खत्म हो गई। इससे किसानों को भी खेती के लिए जमीनें मिलने लगी, जिस पर पहले जमींदारों का हक चलता था।
इस फैसले ने राजनीतिक और व्यक्तिगत तौर पर चौधरी चरण सिंह का कद बढ़ा दिया। विधेयक पारित करने वाली कांग्रेस पार्टी 1960 में फिर से चुनाव जीती और चौधरी साहब को किसानों का नेता माना जाने लगा। इसी साल चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह और कृषि विभाग दिया गया।
चौधराहट इतनी कि अपने उसूलों के लिए कांग्रेस छोड़ दी
चौधरी चरण सिंह 17 साल तक (1951-1967) यूपी में कांग्रेस का बड़ा चेहरा बने रहे। हालांकि, सन 1967 में पंडित जवाहर लाल नेहरू से मनमुटाव के चलते उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। यूपी के राजनीतिक पंडित यह मान चुके थे कि शायद अब चौधरी चरण सिंह की चौधराहट में फर्क आएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस से कट कर उन्होंने राज नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे कद्दावर नेताओं के सहयोग से एक नई राजनीतिक पार्टी ‘भारतीय क्रांति दल’ बनाई। इसी साल चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
3 अप्रैल, 1967 से यूपी की सत्ता संभालने वाले चौधरी चरण सिंह ने एक साल बाद यानी 1968 में सीएम के पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, 1970 में हुए मध्यावधि चुनाव में उन्होंने बड़ी जीत हासिल की और दोबारा 17 फरवरी, 1970 में वह मुख्यमंत्री बने। इसके बाद वो केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने, तो उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की।
इसके बाद वह केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने, तो उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की। 28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों और कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बन गए।
अनोखा रिकॉर्ड: कभी चुनाव नहीं हारे
चौधरी चरण सिंह के नाम एक अनोखा रिकॉर्ड है। वह यूपी के इकलौते ऐसे नेता थे, जिन्होंने कभी भी कोई चुनाव नहीं हारा। बागपत जिले का छपरौली गांव, जहां से उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा। वहां आज भी लोग उनके किस्से-कहानियां सुनाते हैं।
छपरौली के रहने वाले रामपाल कहते हैं, “चौधरी साहब का एक बेहद चर्चित किस्सा है। प्रधानमंत्री बनने के 19 दिन बाद चौधरी साहब को लालकिले पर झंडा फहराना था। वह पहली दफा झंडा-रोहण करने गए, तो उनसे पीए ने पूछा कि सर क्या आप धोती-कुर्ता और टोपी में ही झंडा फहराने चलेंगे? इस पर चौधरी साहब ने कहा- बिल्कुल। आज पूरा देश देखेगा कि किसान-मजदूर का बेटा लाल किले पर झंडा फहराएगा।”
अब जयंत संभाल रहे चौधरी साहब की विरासत
चौधरी साहब ने अपने कार्यकाल के दौरान गांव और किसानों के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले लिए। खाद पर से सेल्स टैक्स हटा दिया। लेखपाल का पद बनाया। मंत्रियों के वेतन और दूसरे लाभों को काफी कम किया। बिजली का 50% हिस्सा गांवों को दिया गया। बिजलीघर शहर और गांव दोनों में समान किए गए। गांवों में पेयजल और सड़क निर्माण का काम तेजी से करवाया गया। 29 मई, 1987 को उनका निधन हो गया।
चौधरी चरण सिंह ने अपने बेटे अजित सिंह को आगे किया। अजित सिंह ने 1980 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा और 1986 में राज्यसभा के रास्ते पहली बार संसद पहुंचे। वह 6 बार लोकसभा के भी सदस्य रहे और कई सरकारों में उद्योग और नागरिक उड्डयन सहित कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली। 1996 में जनता दल से अलग होने के बाद चौधरी अजित सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल यानी RLD बनाई। 6 मई, 2021 को कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से उनका निधन हो गया। अब RLD की कमान चौधरी अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी संभाल रहे हैं। जयंत राज्यसभा सांसद हैं।
आखिर में चौधरी चरण सिंह से जुड़ी कुछ रोचक बातों को जान लेते हैं…
- चरण सिंह का विवाह साल 1929 में गायत्री देवी के साथ हुआ। इन दोनों के 5 बच्चे हुए।
- पॉलिटिक्स के अलावा चौधरी चरण सिंह अच्छे लेखक भी थे और अंग्रेजी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ थी।
- उन्होंने ‘अबॉलिशन ऑफ जमींदारी’, ‘लिजेंड प्रोपराइटरशिप’ और ‘इंडियास पॉवर्टी एंड इट्स सोल्यूशंस’ नाम की किताबें भी लिखीं।
- चौधरी चरण सिंह कभी भी चुनाव नहीं हारे।
- अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की।
- ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की।
- लखनऊ एयरपोर्ट को उनके नाम से जाना जाता है।