राजस्थान और मध्य प्रदेश में 20 दिनों से क्यों फंसा है कैबिनेट विस्तार?
छत्तीसगढ़ में फाइनल पर राजस्थान और मध्य प्रदेश में 20 दिनों से क्यों फंसा है कैबिनेट विस्तार?
छत्तीसगढ़ में कैबिनेट विस्तार के बाद एक ही सवाल चर्चा में है कि आखिर मध्य प्रदेश और राजस्थान में कैबिनेट का गठन क्यों नहीं हो पा रहा है?
3 दिसंबर को भारतीय जनता पार्टी तीन राज्यों में चुनाव जीता लेकिन छत्तीसगढ़ को छोड़कर पार्टी मध्य प्रदेश और राजस्थान में सरकार गठन की प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाई है. दोनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री को शपथ लिए भी 10 दिन से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है, लेकिन कैबिनेट का स्ट्रक्चर अब तक तय नहीं हो पाया है.
कैबिनेट विस्तार के लिए राजस्थान और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिल्ली दौरा भी कर चुके हैं, लेकिन लिस्ट फाइनल नहीं हो पाने की वजह से दावेदारों की धड़कने बढ़ी हुई हैं.
दोनों ही राज्यों में जिस तरह से मुख्यमंत्री का चयन अप्रत्याशित था. वैसा ही मंत्री को लेकर कहा जा रहा है. ऐसे में ‘कौन बनेगा मंत्री’ वाला सवाल भी जयपुर से लेकर भोपाल तक के सियासी गलियारों में सुर्खियां बटोर रहा है.
इस स्टोरी में आइए विस्तार से जानते हैं कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में क्यों कैबिनेट का गठन अटका हुआ है?
2018 में कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार का गठन किया था. दोनों दलों के बीच फॉर्मूला तय होने में करीब 3 हफ्ते का वक्त लगा. बीजेपी ने इस मुद्दे को कर्नाटक की जनता से जोड़ दिया. पार्टी के आधिकारिक हैंडल से इसको लेकर पोस्ट भी किया गया.
2022 में हिमाचल में भी कांग्रेस को कैबिनेट विस्तार करने में 3 हफ्ते का वक्त लग गया, जिस पर बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने तंज कसा था.
(Photo- Amit Malviya X Post)
मालवीय ने पोस्ट कर लिखा था- हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार शपथ लेने के तीन सप्ताह बाद भी बिना कैबिनेट के बनी हुई है. यह कांग्रेस का शासन मॉडल है.
जल्द कैबिनेट का गठन क्यों है जरूरी?
संविधान के अनुच्छेद 163 में राज्यों के मंत्रिमंडल के बारे में बताया गया है. मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल मंत्री तय करते हैं. संविधान के मुताबिक मंत्रिमंडल की सलाह पर ही कार्यपालिका कार्यवाही हो पाएगी. यह कार्यवाही राज्यपाल के नाम से होती है.
मंत्री अपने-अपने विभाग के प्रमुख होते हैं और उसके बजट का रिव्यू करते हैं. वर्तमान में मध्य प्रदेश और राजस्थान में जल्द कैबिनेट गठन 2 वजहों से जरूरी है.
1. बीजेपी ने मेनिफेस्टो में कई घोषणाएं की है, जिसे लोकसभा चुनाव से पहले पूरा करना जरूरी है, नहीं तो विपक्ष को बड़ा मुद्दा मिल जाएगा. अब से 2 महीने बाद लोकसभा चुनाव की घोषणा होनी है और यह चुनाव 3 महीने तक चलेंगे. यानी जल्द कैबिनेट विस्तार नहीं हुआ, तो कई काम मई तक अटक सकते हैं.
2. फरवरी में बजट प्रस्तावित है और दोनों राज्यों की माली हालत ठीक नहीं है. अगर कैबिनेट विस्तार जल्द नहीं हुआ, तो मंत्री ठीक ढंग से अपने विभाग का रिव्यू भी नहीं कर पाएंगे.
मध्य प्रदेश और राजस्थान में क्यों फंसा है पेंच?
छत्तीसगढ़ में कैबिनेट विस्तार हो चुका है, लेकिन मध्य प्रदेश और राजस्थान को लेकर बीजेपी हाईकमान ने हरी झंडी नहीं दी है. ऐसे में सवाल उठता है कि दोनों ही राज्यों में कैबिनेट विस्तार का पेंच क्यों फंसा हुआ है?
बात पहले मध्य प्रदेश की
विधानसभा की 230 सीटों वाली मध्य प्रदेश में बीजेपी ने 162 सीटों पर जीत दर्ज की है. पन्ना, दमोह, सिंगरौली, इंदौर, देवास, उमरिया, कटनी, नरसिंहपुर, बैतूल, होशंगाबाद, विदिशा, सीहोर, रायगढ़, शाजपुर, खंडवा, बुरहानपुर और नीमच की सभी सीटों पर बीजेपी को जीत मिली है.
उज्जैन, ग्वालियर, शिवपुरी, सागर, भोपाल, रीवा जैसे जिलों में एकाध सीट छोड़कर सभी पर बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया है. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी कैबिनेट विस्तार के लिए 3 फॉर्मूले पर काम कर रही है.
– हर लोकसभा सीट से एक मंत्री. इस फॉर्मूले से करीब 29 मंत्री बनाए जा सकते हैं.
– गुजरात की तर्ज पर मध्य प्रदेश में भी पुराने मंत्रियों की जगह नए लोगों को मौका देने की तैयारी.
– राज्य में स्वतंत्र प्रभार जैसी परंपरा को खत्म कर सभी मंत्रियों को कैबिनेट का दर्जा दिया जाए. 2018 में कमलनाथ ने ऐसा किया था.
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री समेत कुल 35 मंत्री बनाए जा सकते हैं. वर्तमान में मुख्यमंत्री और 2 उपमुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण हो चुका है. यानी अब राज्य में कुल 32 मंत्री और बनाए जा सकते हैं. हालांकि, 5-7 मंत्री पद रिक्त रखने की बात कही जा रही है.
कैबिनेट विस्तार क्यों अटका है, 5 वजहें…
1. 17 जिले ऐसे हैं, जहां बीजेपी को एकतरफा जीत मिली है. वहीं 10-15 जिले ऐसे हैं, जहां पर 90 प्रतिशत सीटें बीजेपी ने जीती है. यानी कुल 30-32 जिले ऐसे हैं, जहां पर पार्टी को 90 प्रतिशत से ज्यादा सीटों पर जीत मिली है.
ऐसे में इन जगहों पर मंत्री नहीं बनाने से पार्टी के खिलाफ लोगों में नाराजगी हो सकती है. लोकसभा चुनाव में इसका असर दिख सकता है.
2. पिछले कैबिनेट में सागर से 3, इंदौर से 2 मंत्री थे. इस बार भी भोपाल, इंदौर, देवास और ग्वालियर में एक से ज्यादा नेता मंत्री पद के दावेदार हैं. बीजेपी के सामने मुश्किल यह है कि किसे लिया जाए और किसे हटाया जाए.
इसे उदाहरण से समझिए- इंदौर से रमेश मेंदोला, मालिनी गौड़, महेंद्र हार्डिया, उषा ठाकुर और तुलसीराम सीलावट मंत्री की रेस में शामिल हैं. सभी नेता कद्दावर हैं और इंदौर की राजनीति में मजबूत पकड़ रखते हैं.
ऐसे में पार्टी के सामने मुश्किल यह है कि किसे मंत्री बनाया जाए और किसे नहीं?
(Photo- Mohan Yadav)
3. कोटा सिस्टम भी पार्टी के लिए चुनौती बना हुआ है. पिछले कैबिनेट में ज्योतिरादित्य सिंधिया के 7-8 मंत्री को जगह मिली थी. शिवराज सिंह ने कैलाश, तोमर, उमा और प्रह्लाद पटेल गुट को भी साधा था. शिवराज खुद मुख्यमंत्री थे, इसलिए उनके करीबी दावेदार होते भी मंत्री नहीं बने थे.
इस बार समीकरण बदला हुआ है. शिवराज मुख्यमंत्री नहीं हैं. ऐसे में उनके गुट के लोग भी जमकर दावेदारी कर रहे हैं. विदिशा, सीहोर और होशंगाबाद में बीजेपी ने एकतरफा जीत दर्ज की है. यह शिवराज का गढ़ माना जाता है.
यहां से मंत्री पद के कई दावेदार हैं, जिनकी दावेदारी नकार पाना पार्टी के लिए आसान नहीं रहने वाला है.
4. वरिष्ठ नेताओं का मामला भी पेंच फंसाने वाला है. सूत्रों के मुताबिक बीजेपी विधायकी जीते कई वरिष्ठ नेताओं को मंत्री बनाना चाहती है, लेकिन कुछ नेता इसको लेकर तैयार नहीं हैं. नेता अपनी जगह अपने करीबी को मंत्री बनाना चाहते हैं.
हालांकि, इस पर पार्टी के कोई भी नेता खुलकर कुछ भी नहीं बोलना चाहते हैं. सबकी एक ही रट है- दिल्ली से जो तय होगा, वही फाइनल है.
5. नाम के साथ-साथ पोर्टफोलियो भी तय होना है. शिवराज सरकार में टॉप 5 विभाग (वित्त जगदीश देवड़ा, गृह नरोत्तम मिश्रा, पीडब्ल्यूडी गोपाल भार्गव, नगर विकास भूपेंद्र सिंह और राजस्व गोविंद राजपूत) को मिला था.
देवड़ा तो उपमुख्यमंत्री बन गए हैं, लेकिन 4 नाम पर सस्पेंस है. नरोत्तम चुनाव हार चुके हैं, तो उन्हें शायद ही कैबिनेट में जगह मिले. गोपाल, गोविंद और भूपेंद्र का भी कुछ तय नहीं है. ऐसे में नए सिरे से पोर्टफोलियो भी फाइनल होना है.
मध्य प्रदेश में कैबिनेट विस्तार क्यों अटका है? इस सवाल के जवाब में बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता लोकेंद्र पराशर कहते हैं- मुख्यमंत्री अभी दिल्ली गए हैं, वहां से आते ही कैबिनेट विस्तार की प्रक्रिया शुरू हो सकती है?
पराशर आगे कहते हैं- कैबिनेट में कौन आएगा और कौन नहीं, यह मुख्यमंत्री और हाईकमान को तय करना है. जो समीकरण में फिट होंगे, उन्हें कैबिनेट में लिया जाएगा. इससे ज्यादा जानकारी जल्द ही मुख्यमंत्री जी प्रदेश की जनता को देंगे.
अब राजस्थान की बात
राजस्थान में भी भजनलाल सरकार का शपथग्रहण हो चुका है, लेकिन कैबिनेट विस्तार अब तक अटका हुआ है. राजस्थान में कौन बनेगा मंत्री, इसको लेकर चर्चा जोरों पर हैं. राजस्थान में मुख्यमंत्री समेत कुल 30 मंत्री बनाए जा सकते हैं.
सरकार में 27 मंत्री पद अभी रिक्त है. अगर लोकसभा समीकरण के हिसाब से कैबिनेट का विस्तार होता है तो राज्य में 22 और मंत्री बनाए जा सकते हैं. वर्तमान में भरतपुर लोकसभा से मुख्यमंत्री भजनलाल, जयपुर लोकसभा से उपमुख्यमंत्री दीया और अजमेर लोकसभा से उपमुख्यमंत्री प्रेमलाल बैरवा हैं.
राजस्थान में बीजेपी को 115 सीटों पर जीत मिली है. हालांकि, हनुमानगढ़, बूंदी, बांसवाड़ा, धोलपुर और चूरु जिलों में पार्टी की स्थिति काफी खराब रही है. लोकसभा चुनाव में इन सभी जिलों में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था.
इन जिलों को साधना बीजेपी के लिए इसबार चुनौतीपूर्ण है. यह जिला लोकसभा की 5 सीटों को प्रभावित करती है.
(Photo- Bhajan Lal Sharma)
कैबिनेट विस्तार में जातीय समीकरण को साधना भी बीजेपी के लिए इस बार आसान नहीं है. पार्टी ने इस बार परंपरा से हटकर ब्राह्मण नेता को मुख्यमंत्री की कमान सौंपी है. राजपूत और दलित को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है.
पार्टी के इस कदम से जाट, गुर्जर और मीणा में काफी नाराजगी है. बीजेपी के सिंबल पर इस बार 14 जाट, 12 मीणा और 5 गुर्जर चुनाव जीतकर आए हैं. यह बीजेपी के कुल विधायकों का करीब 25 प्रतिशत है.
राजस्थान में कैबिनेट विस्तार में हो रही देरी पर कांग्रेस ने तंज कसा है. कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा है कि कम से कम दोनों उपमुख्यमंत्रियों को विभाग मिल जाना चाहिए था. दोनों विभाग के चक्कर में सीएम के पीछे-पीछे घुम रहे हैं.