उद्योग विहीन बिहार में भी वायु प्रदूषण का कहर, पर्यावरण के लिए खतरनाक मंजर
उद्योग विहीन बिहार में भी वायु प्रदूषण का कहर, पर्यावरण के लिए खतरनाक मंजर
गंगा के मैदानी इलाकों में कहर
जाड़े की शुरुआत से ही गंगा के मैदानी इलाकों के शहर वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति में हैं. पिछले साल के दिल्ली के मुख्य मंत्री के बिहार के शहर मोतिहारी के देश में सबसे प्रदूषित शहर होने के खुलासे के बाद बिहार के शहरों पर जो वायु प्रदूषण का कहर टूटा है वो इस साल भी जारी है! औसतन चार से पांच शहर ‘बहुत खराब’ स्तर के साथ देश के सबसे प्रदूषित शहरों में नामित हो रहे है! नये साल के पहले हफ्ते में तो भागलपुर ‘गंभीर’ वायु प्रदूषण स्तर के साथ देश का सबसे प्रदूषित शहर रहा! भागलपुर के अलावा आरा, छपरा, पटना, राजगीर, कटिहार, सहरसा, राजगीर, मुज़फरपुर, अररिया, किशनगंज जैसे शहर इस बार भी काले धुएं के चपेट में है! उद्योगविहीन बिहार का मैदानी इलाका जिसकी अर्थव्यवस्था केवल परम्परागत कृषि पर टिकी हुई है और यहां वायु प्रदूषण का प्रथम दृष्ट्या कोई स्रोत दिखता नहीं है.
बिहार का हाल दिल्ली-गुरुग्राम जैसा
बिहारी शहरों का वायु प्रदुषण का स्तर परम्परागत रूप से सर्वाधिक प्रदूषित दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद से कहीं अधिक, गंभीर और खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है. बिहार और इससे सटे बंगाल में आश्चर्यजनक रूप से बढ़े वायु प्रदूषण के कारणों पर प्रदूषण नियंत्रण से जुड़ी एजेंसियां भी पिछले साल से ही कयास लगाती ही दिख रही हैं. राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मानव जनित निर्माण कार्य और सड़क की धूल, गाड़ियां, घर में जलाये जाने वाले लकड़ी के चूल्हों, कृषि अपशिष्ट और खुले में कचरे के जलने और औद्योगिक इकाई आदि से निकले धुएं को कारण के रूप में चिन्हित किया. इसके अलावा सर्दी में तापमान के इन्वरसन और वायु के न्यूनतम बहाव तथा भौगोलिक परिस्थितियां जैसे जलोढ़ मिट्टी, बाढ़ आदि के कारण उपजी धूल को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना. खास कर जलोढ़ मिट्टी और उससे आसानी से फैल जाने वाले धूल को बोर्ड मुख्य से प्रदूषण का कारण मान रहा है, पर ये सारी स्थितियां एक्यूआई में आए सामान्य से डेढ़ से दोगुने बढ़ोतरी के लिए काफी नाकाफी जान पड़ती हैं.
भारत का एक्यूआई खतरनाक स्तर पर
भारत के एक्यूआई को मापने के लिए राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक सितंबर 2014 में नई दिल्ली में लॉन्च किया गया था, जिसकी शुरुआत भारत के छह शहरों- नई दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, पुणे और अहमदाबाद में एक सतत निगरानी प्रणाली के रूप हुई और आज इसके दायरे में देश के लगभग 210 से अधिक शहर शामिल हैं. राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक में छह एक्यूआइ्र श्रेणियां निर्धारित की हैं: अच्छा (0-50), संतोषजनक (51-100), मध्यम प्रदूषित 101-200), खराब (201-300), बहुत खराब (301-400) और गंभीर (401 से उपर). हवा में मौजूद आठ प्रमुख प्रदूषकों- पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5 और पीएम10), ओजोन (ओ3), कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ), नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (एनओ2), सल्फर डाईऑक्साइड (एसओ2), लेड (पीबी) और अमोनिया (एनएच3) के उत्सर्जन को मापकर एक्यूआई की गणना की जाती है. पीएम2.5 और पीएम10 वायु गुणवत्ता को सबसे अधिक और व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं. पीएम 2.5 मुख्य रूप से जलने और रासायनिक प्रक्रिया से गैस के सूक्ष्म कणों में बदल जाने से बनते हैं, वही अपेक्षाकृत बड़े कण पीएम10 यांत्रिक प्रक्रिया और टूट-फूट से बनते हैं. दरअसल एक्यूआई इन आठ में से किसी एक प्रदूषक का सबसे ज्यादा वाला सबइंडेक्स वैल्यू होता है.
बिहार में वायु-प्रदूषण चिंताजनक
बिहार के एयर क्वॉलिटी के पिछले दो सालों के सर्दी के (अक्टूबर से जनवरी तक के) आंकड़े देखें तो पार्टिकुलेट मैटर पीएम10 और पीएम2.5 सहित अन्य प्रदूषकों जैसे सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि में वृद्धि बिहार के लगभग सारे शहरों और यहां तक गैर शहरी इलाकों में जिसमें मंगुराहा (वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना क्षेत्र, पश्चिमी चंपारण में स्थापित एयर क्वालिटी मोनिटरिंग केंद्र) भी शामिल है, एक साथ हुई है. यह वृद्धि सर्दी की शुरुआत में तापमान के इन्वरसन से पृथ्वी की सतह के आसपास बने “स्थायी वायुमंडल” जो कि वायुमंडल में प्रदूषण के फैलाव को रोक देता है, के कारण हुई है. अत्यंत कम गति से हवा का बहाव भी एक्यूआई में आयी गिरावट का एक प्रमुख कारण रहा है. बिहार के विभिन्न शहर के जाड़े के शुरुआत से अब तक के एक्यूआई के आंकड़े स्पष्ट रूप से पीएम2.5 जनित है. यह मानव जनित उन कारणों की तरफ इशारा करते हैं, जिसमें किसी भी पदार्थ का व्यापक स्तर पर जलना शामिल. ऐसे में पहेली यह है कि आखिर बिहार के लगभग उद्योगविहीन गंगा का मैदानी इलाके में पीएम2.5 के कौन से मानव जनित स्रोत हैं?
गंगा के मैदानी इलाके का प्रदूषण आश्चर्यजनक
बिहार के गंगा का मैदानी इलाका भारत के सबसे सघन आबादी का क्षेत्र है जहां बेतरतीब और बेतहाशा फैलता शहरी क्षेत्र आधारभूत व्यवस्था की कमी से जूझ रहा है. इसमें म्युनिसिपल वेस्ट तथा मेडिकल वेस्ट निस्तारण की आधारभूत संसाधन का सिरे से अभाव और व्यापक कुव्यवस्था भी शामिल है. बिहार के लगभग सभी शहर ब्रिटिश दौर के प्रशासनिक शहर हैं या पुराने बाजार/कस्बे रहे हैं. यहां की आंतरिक सड़कें वर्तमान यातायात जरूरतों के लिए नाकाफी हैं. नतीजतन, सभी शहर छोटे वाहन, कार, मोटरसाइकिल और टेंपो के ट्रैफिक जाम से ग्रसित हैं और बिना किसी अपवाद के लगातार छोटे स्तर पर डीजल और पेट्रोल के धुंए के स्रोत है. एक अनुमान के मुताबिक बिहार में प्रतिदिन औसतन 36 मीट्रिक टन मेडिकल कूड़ा निकलता है, जिसका अधिकांश हिस्सा खुले में जलाया जाता है. वहीं शहरों के बाईपास म्युनिसिपल कूड़े के निस्तारण के केंद्र है, जिससे निजात खुले में जला के पाया जा रहा है. हाल के वर्षों में कुछ शहरों में विकेंद्रीकृत बायोमेडिकल इन्सिनरेटर लगाए गए हैं जो छोटे-छोटे कस्बे में फैले मेडिकल उद्योग से निकले कचरे के लिए नाकाफी हैं.
बिहार है धुआं-धुआं
धुंए के ये तीनों प्रमुख स्रोत (शहरी ट्रैफिक, मेडिकल और म्युनिसिपल कूड़े के जलने से व्यापक रूप निकलने वाला धुंआ) हर शहर में समान रूप से व्याप्त है, चाहे यूपी से सटे मोतिहारी, बेतिया, छपरा या फिर गंगा के किनारे बसा हाजीपुर, बेगुसराय, समस्तीपुर या फिर सुदूर पूर्णिया, कटिहार या सहरसा हो. भौगोलिक और मौसमी कारण पूरे गंगा के मैदानी क्षेत्र में समान रूप से प्रदूषण में बढ़ोतरी करता है. परंतु मैदानी इलाकों में बसे शहर वायु प्रदूषण खासकर सूक्ष्मतम कण पीएम2.5 सहित अन्य रासायनिक उत्सर्जन के छोटे-छोटे और स्थानीय संकेंद्रीय स्रोत के रूप में काम कर रहे हैं. शहरी ट्रैफिक और कूड़े के जलने से उत्पन्न धुएं में उपस्थित सूक्ष्म कण (पीएम2.5) या तो वायुमंडल में सीधे मिल रहे हैं या धुएं के जटिल मिश्रण से बारीक कण यानी पीएम2.5 में बदल रहे हैं. अक्टूबर- नवम्बर में धान के पराली के जलने से निकले धुएं का भी खराब एक्यूआई में योगदान से इनकार नहीं किया जा सकता, पर अगर वायु प्रदूषण के हालात जनवरी के शुरुवात तक गंभीर बनी हुई हुई है तो पराली का जलना इसका मुख्य कारण प्रतीत नहीं होता. हालांकि मंगुराहा (पश्चिमी चंपारण) को छोड़कर बिहार में उपलब्ध सारे वायु प्रदूषण मापन केंद्र शहर में है. मंगुराहा के आंकड़े, जिसमें सर्दी में आई एक्यूआई में बढ़ोतरी शहरों जैसा ही है, पर पीएम10 का योगदान ज्यादा है. सीपीसीबी के पिछले कुछ महीनों के उपलब्ध एयर क्वॉलिटी के आंकड़े और स्थानीय शहरों का मुआयना के आधार पर ये बात कही जा सकती है कि भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियां सर्दी में वायु प्रदूषण को काफी हद तक बढ़ा देती है, जो शहरी क्षेत्र में ट्रैफिक और कूड़े के जलने से लगातार निकलते धुएं से मिलकर बिहार के मैदानी इलाकें के शहरों को पॉल्यूशन हॉटस्पॉट में बदल दे रही है.
शहरों के आंतरिक ट्रैफिक को दुरुस्त करने की जरूरत
ऐसे में जरूरत है त्वरित स्तर पर प्रथम दृष्ट्या प्रदूषण स्रोतों जैसे शहरों के आंतरिक ट्रैफिक को दुरुस्त किया जाए, म्युनिसिपल कचरे पर सरकार श्वेत पत्र जारी कर उनके निष्पादन के तरीके ढूंढे, खुले में जलाने पर रोक हो, मेडिकल कचरे पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की पिछले कई सालों के प्रयासों को अमल में लाया जाए. साथ ही साथ समुचित आंकड़ों के आधार पर प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों और उनके समयक समाधान को सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है. उद्योगविहीन बिहार के शहरों में आई वायु प्रदूषण की सुनामी इस बात की ओर स्पष्ट इशारा करती है कि प्रकृति के मूल तत्वों का प्रदूषण को सोखने या निस्तारित करने की क्षमता में गुणात्मक रूप से कमी आ रही है, चाहे वो वायुमंडल हो या नदियां, तालाब. यहां तक कि समुद्र भी अब वायु प्रदूषण या जल प्रदूषण को निस्तारित करने या सोखने में नाकाफी साबित हो रहे हैं. इन सब के मूल मानवजनित प्रदूषण है. इसका समाधान है बिना किसी किंतु परंतु, लाग लपेट के प्रदूषण पर लगाम नहीं तो सिर्फ़ हम क्रिकेट के स्कोर की तरह प्रदूषण की दशा को देखते रह जाएंगे.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि …न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]