दुनिया से प्रतिस्पर्धा के लिए गुणवत्ता नियंत्रण जरूरी है …
दुनिया से प्रतिस्पर्धा के लिए गुणवत्ता नियंत्रण जरूरी है …
“सर, हमारे स्कूल में बास्केटबॉल हर दो दिन में पंक्चर हो जाती है और नेट 15 से 25 मैच में ही फट जाती है। हालांकि स्कूल वालों ने खेल का नया सामान लाकर दिया है, लेकिन हमारे बास्केटबॉल ट्रेनर खेलने के लिए किट देते ही नहीं।’ राजस्थान के एक स्कूल के बच्चों से हाल ही में बात करते हुए उन्होंने ये सब बताया।
जब मैंने छानबीन की तो शुरुआती तौर पर पता चला कि क्रय विभाग ने बिना इसका ख्याल किए कि बच्चे कोई भी खेल उटपटांग तरीके से खेलते हैं, उन्होंने बॉल और नेट ऐसी कंपनी से खरीदीं, जिसने सबसे कम कीमत बताई थी। जबकि क्रय विभाग ने खुद कभी खेल नहीं खेला और खरीदी में स्पोर्ट्स टीचर को भी शामिल नहीं किया।
क्रय विभाग से जब मुद्दा सुलझ गया तो बॉल और नेट की क्वालिटी तो सुधर गई लेकिन स्पोर्ट्स टीचर के हिसाब से नहीं थी, जो कि बच्चों को नेशनल कॉम्पिटीशन के लिए तैयार करना चाहते थे। क्रय विभाग के पास वह वीटो पावर थी और वे ऐसी चीजें लाते थे जो कि निचले क्रम में तीसरी सबसे अच्छी होती थीं ना कि टॉप में से। नई किट भी क्षतिग्रस्त होती रहीं हालांकि पहले जितनी नहीं हो रही थी।
क्रय विभाग ऊंची कीमतों का रोना रोता रहा, इस बीच स्कूल प्रबंधन ने एक जांच समिति गठित की, जिसने पाया कि बास्केटबॉल टीचर निजी तौर पर खेल की किट का ध्यान नहीं रख रहे थे और बच्चों को इसका दुरुपयोग करने दे रहे थे। उन्होंने यहां तक देखा कि पांचवी कक्षा का एक छात्र मैदान में बॉल पर बैठा हुआ था।
स्पोर्ट्स टीचर को केयरफुल रहने के संबंध में चेतावनी पत्र जारी किया गया। इसका नतीजा ये हुआ कि वह बच्चों से कुछ ना कुछ बहाना बनाकर उन्हें किट देने से बचने लगे ताकि ये लंबी चले और अंततः उनकी नौकरी बची रहे। और उसका नतीजा ये रहा कि स्कूल की टीम इंटर स्कूल कॉम्पिटीशन के पहले ही राउंड में बाहर हो गई और नतीजतन बास्केटबॉल टीम का मनोबल भी गिर गया। जब मैंने अपने निष्कर्ष बताए तो स्कूल मालिकों ने हस्तक्षेप किया और मुझे बताया गया कि मुद्दा सुलझ गया है।
मुझे यह घटना अचानक तब याद आ गई, जब मैंने सुना कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक याचिका खारिज कर दी है जिसमें भारत में आयातित प्लास्टिक की गुणवत्ता जांच में हस्तक्षेप की मांग की गई थी। भारत सरकार ने 5 जनवरी 2024 से देश के तटों पर आयातित प्लास्टिक की गुणवत्ता से जुड़ी अधिसूचना जारी की है।
गुणवत्ता नियंत्रण के लिए इसे आवश्यक कदम बताते हुए हाईकोर्ट ने कहा, ‘अगर ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत शुरू से लेकर उत्पाद तैयार होने तक गुणवत्ता ठीक रहती है, तभी देश दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होगा। अगर ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत बने उत्पाद को ‘मेड इन इंडिया’ टैग के तहत निर्यात करने की मांग की जाती है तो गुणवत्ता अनिवार्यता यह सुनिश्चित करेगी कि अंतिम उत्पाद आवश्यक वैश्विक मानकों को पूरा करे।’
ऑल इंडिया एचडीपीई/पीपी वूवन फैब्रिक मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका को 8 जनवरी को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने कहा कि प्लास्टिक निर्माण में गुणवत्ता नियंत्रण का तात्पर्य विनिर्माण प्रक्रिया के विभिन्न चरणों की निगरानी और निरीक्षण है, ताकि यह सुनिश्चित हो कि अंतिम प्लास्टिक उत्पाद गुणवत्ता के मानकों पर खरा हो। हाई कोर्ट ने कहा कि दुनिया के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए गुणवत्ता नियंत्रण जरूरी है।
….. आपका लक्ष्य है कि टीम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करे तो आपको उस मंच पर इस्तेमाल किट देनी होगी। आप टेंडर जारी करके सबसे सस्ते सामान की बोली लगाने वाली कंपनी का चयन करके अंततः विफलता के लिए टीम को दोषी नहीं ठहरा सकते।