बच्चों की आत्महत्या में कसूरवार सभी हैं !

बच्चों की आत्महत्या में कसूरवार सभी हैं !

कई रिपोर्टों की मानेंं तो सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले लगभग 70% छात्र उस कक्षा में सीखने योग्य ही नहीं होते हैं जिसमें उन्होंने दाखिला लिया है. अधिकतर राज्यों में पर्याप्त शिक्षक नहीं है. कई राज्यों मेंं तो 60-70% तक शिक्षक कम हैं. लगभग 95% निजी शिक्षण संस्थान भी खराब शिक्षा दे रहे हैंं. प्रथम की एएसईआर रिपोर्ट-2020 के अनुसार, अधिकतर माता पिता चाहते हैंं कि उनके बच्चे प्राइवेट संस्थानों में ही पढ़ें. ऐसे में सरकारों की प्राथमिक जिम्मेदारी बनती है कि वे गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करवाए.  

आत्महत्या करने वाले अधिकतर मामलों में सोशल और पीयर प्रेशर ज्यादा दुष्परिणाम देते हैं. मसलन फलां का बच्चा बीटेक या मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है तो आसपास के बच्चों को भी वही करना चाहिए. अगर कोई बच्चा पसंद के अनुसार कुछ अलग कोर्स चुनता है तो समाज को यह भी बर्दाश्त नहीं है. ऐसी-ऐसी बातें करते हैं जैसे कि फलां का बच्चा कमजोर होगा या उसके पैरेंट्स फीस अफोर्ड नहीं कर पा रहे होंगे…. उन्हें यह समझ में नहीं आता है इसका प्रेशर बच्चे को ही उठाना पड़ता है. मेरिअम वेबस्टार रिपोट्र्स की मानें तो हाई स्कूल मेंं पढऩे वाले 85% छात्र पीयर प्रेयर महसूस करते हैं. ऐसे में वे कई बार उस स्ट्रीम को चुनते हैं जो उनके ज्यादातर दोस्त चुन रहे होते हैं. 

पत्रिका के हालिया रिपोर्ट की मानें तो 89% भारतीय अभिभावकों को अपने बच्चोंं से बहुत ज्यादा उम्मीदें होती हैंं. इसलिए अधिकतर पैरेंट्स को समझदार नहीं कहा जा सकता क्योंकि वे अपने बच्चे का भविष्य इधर-उधर के लोगों की बातों के निचोड़ से तय करते हैं. अपना फैसला उन पर थोप देते हैं और कई बार एडवांस में कोचिंगों का पैसा भर देते हैं. यहां यह भी कहना जरुरी है अधिकतर  कोचिंग में दाखिला को लेकर कोई क्राइटेरिया नहीं है.

कुछ तो बीच सत्र में भी दाखिला देकर बच्चों को दौड़ाना शुरू कर देते हैं. ऐसे में बच्चे तनाव में आ जाते हैं. अब जरा सोचिए कि आप अपने बच्चों को 15-17 वर्षों में समझ नहीं पाएं हैं तो जिन कोचिंग संस्थानों में हजारों बच्चे पढ़ते हैं वहां उन्हें कौन समझेगा. यहां आप ही मान जाइए. आप खुद बढकऱ बच्चे से कहें कि बेटा नहीं हो पा रहा तो परेशान न हो. दूसरे विकल्पों पर बात करें. बच्चे को फेल्योर जैसा महसूस नहीं कराएं. उसे दोषी न मानें. 
 
माइंडलर सर्वे रिपोर्ट-2019 की मानें तो भारत में कॅरियर के करीब 250 विकल्प हैं लेकिन 93% बच्चों को केवल सात प्रकार के कॅरियर जैसे कि मेडिकल, इंजीनियरिंग, लॉ, अकाउंट एंड फाइनेंस, डिजाइन, कम्प्यूटर अप्लीकेशन, मैनेजमेंट और आइटी के बारे में ही जानकारी है. बच्चोंं को भी पढ़ाई को लेकर जागरूक होने की जरूरत है. जब आप सब्जेक्ट नहीं समझ पा रहे हैं तो क्यों नहीं कई बार कोशिश करते? फिर भी तनाव हो तो पेरेंट्स, मित्र और टीचर से साझा करे.  अगर फिर भी आपको लगता है कि आपसे यह नहीं हो पा रहा है तो थोड़ा रुकें. अपनी पसंद का एक विकल्प तैयार करें. फिर उसपर जुट जाएँ. याद रखिये पेरेंट्स, टीचर और समाज के लिए आपके जीवन से बढ़कर आपके सपने नहीं हो सकते हैं.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि  … न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *