देशभर में UCC लाने से क्यों बच रही BJP ?

 देशभर में UCC लाने से क्यों बच रही BJP, उत्तराखंड के इस फैसले का चुनाव पर क्या पड़ेगा असर?
राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बताया है कि अगले सप्ताह से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में इसे सदन के पटल पर रखा जा सकता है। इस तरह समान नागरिक संहिता लाने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा। असम, गुजरात और बाद में उत्तर प्रदेश में भी इसी तर्ज पर यूसीसी लाने की चर्चा है…

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर बनी कमेटी ने अपना ड्राफ्ट सरकार को सौंप दिया है। राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बताया है कि अगले सप्ताह से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में इसे सदन के पटल पर रखा जा सकता है। इस तरह समान नागरिक संहिता लाने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा। असम, गुजरात और बाद में उत्तर प्रदेश में भी इसी तर्ज पर यूसीसी लाने की चर्चा है।

विपक्ष इसे मतदाताओं को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की कोशिश बता रहा है। उसके अनुसार यह हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने की भाजपा की सोची समझी चाल है। लेकिन भाजपा के लिए समान नागरिक संहिता कोई छिपा हुआ एजेंडा नहीं रहा है। उसने हमेशा से अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसका उल्लेख किया और समय आने पर इसे लागू करने की बात की है। यानी अब भाजपा मतदाताओं से यह कह सकती है कि उसने राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 और तीन तलाक के बाद समान नागरिक संहिता का एक और वादा भी निभा दिया है।

क्या पड़ेगा असर

सही मायने में कहें तो व्यावहारिक स्तर पर हिंदू समुदाय पर इससे ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। लेकिन इसमें लड़कियों के विवाह की उम्र बढ़ाने पर बात की गई है। यह अभी 18 वर्ष हो सकती है। आने वाले समय में पुरुष और स्त्री सबके लिए विवाह की एक सामान उम्र करने की बात हो सकती है। ऐसा होने पर विवाह की उम्र सबके लिए न्यूनतम 21 वर्ष हो सकती है। यूसीसी के बाद सबके लिए तलाक लेने के लिए केवल अदालत जाना होगा। तीन तलाक, या तलाक की किसी भी प्रकार का तरीका अवैध हो जायेगा।       

मुस्लिम समाज के कुछ विद्वानों के द्वारा यह कहा जा रहा है कि यह उनके धर्म के मामलों में छेड़छाड़ है। यदि यूसीसी कानूनों के कारण उनकी धार्मिक परंपराओं में किसी भी तरह की बाधा आती है, तो वे इसे किसी भी प्रकार स्वीकार नहीं करेंगे। इससे तनाव बढ़ने की आशंका पैदा हो गई है। हालांकि, कुछ मुस्लिम विद्वानों ने यह कहा है कि यूसीसी का कोई भी कानून इस्लाम की धार्मिक परंपराओं से छेड़छाड़ नहीं है और इसे लागू करने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए।    

हालांकि, यह बात भी सही है कि पूरे देश में एक साथ लागू करने पर इस कानून पर कड़ी प्रतिक्रिया हो सकती है। संभवतः यही कारण है कि भाजपा ने इसे एक साथ पूरे देश में लाने की बजाय कुछ जगहों पर लाकर इसके असर का मूल्यांकन करना चाहती है। यदि बेहतर परिणाम मिले, तो बाद में इसे पूरे देश में लाया जा सकता है। फिलहाल, एक-दो राज्यों में लाकर भी भाजपा अपने मतदाताओं को वह संदेश देने में सफल रहेगी, जिस उद्देश्य से ठीक लोकसभा चुनावों के पहले इसे लाया जा रहा है।

बड़ा चुनावी पैंतरा

राजनीतिक विश्लेषक धीरेंद्र कुमार ने अमर उजाला से कहा कि भाजपा ने यूसीसी को हमेशा से अपने चुनावी एजेंडे में रखा और घोषणा पत्र में इसको जगह दी। ऐसे में आज उसे इसके लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। राम मंदिर के बाद समान नागरिक संहिता लागू करने से भाजपा की विश्वसनीयता और ज्यादा बढ़ जाएगी, उसे इसका बड़ा चुनावी लाभ मिल सकता है। विशेषकर असम, पश्चिम बंगाल या केरल जैसे राज्यों में इसका बड़ा असर हो सकता है। बड़ा चुनावी वादा निभाने के कारण भाजपा को इसका बड़ा चुनावी लाभ मिल सकता है और उसकी सीटों की संख्या बढ़ाने में यह मुद्दा बड़ी भूमिका निभा सकता है।

उन्होंने कहा कि राजनीति की मूल परिभाषा में यह है कि राजनीतिक दल जनता की भावनाओं का ध्यान रखते हुए नीतियां बनाएं और सबके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करें। इस दृष्टि से भाजपा ने वही काम किया है, जो इस देश का ज्यादातर मतदाता चाहता है। हिंदू ही नहीं मुसलमानों के बीच भी ऐसे लोग हैं जो यूसीसी का समर्थन कर रहे हैं। यूसीसी के माध्यम से लड़कियों के विवाह की उम्र बढ़ाना जिससे वे शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन का निर्णय स्वयं लेने में सक्षम बन सकें, इससे किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यह देश और समाज को आगे बढ़ाने वाला कदम है।

इसी तरह यदि यूसीसी से मुस्लिम महिलाओं में तलाक का भय समाप्त हो सके, उन्हें भी किसी बच्चे को गोद लेने का अधिकार मिल सके तो इससे आज पढ़े लिखे मुस्लिम युवाओं को भी इनकार नहीं है। यदि कुछ लोगों को कुछ बिंदुओं पर आपत्ति है, तो उनसे इस पर बात कर सही रास्ता निकालना चाहिए।

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