देश की श्वेत-श्याम राजनीति के सदके !

देश की श्वेत-श्याम राजनीति के सदके

मौनी अमावस्या पर भी देश हम जैसे लेखकों को मौन नहीं रहने देता,क्योंकि देश में हर दिन कुछ न कुछ नया होता रहता है। कभी हल्द्वानी में कर्फ्यू लगता है तो कभी नोएडा की सीमाओं पर किसानों का डेरा जम जाता ह। लेकिन बेफिक्र रहिये ! आज मै इन विषयों पर आपसे कोई संवाद नहीं करूंगा । आज मै राजनीति के ‘ श्वेत-श्याम ‘ युग पर बात कर रहा हूँ। देश में एक युग श्वेत-श्याम फिल्मों का हुआ करता था ,फिल्मों ने समय के साथ अपने आपको बदला । फ़िल्में ‘ ईस्टमैन कलर ‘ की हो गयीं ,लेकिन हमारी राजनीति आजादी के आठवें दशक बाद भी ‘ श्वेत-श्याम ‘ में उलझी हुई है।
देश में पहली बार हुआ है कि किसी सरकार ने बिना मांगे विपक्ष के बारे में श्वेत पात्र जारी किया है। उस विपक्ष के बारे में ये श्वेत-पत्र है जिसकी सरकार एक दशक पहले काल कवलित हो चुकी है। अतीत में हमेशा विपक्ष सरकार से उसके काले -सफेद कारनामों को लेकर श्वेत-पत्र लाने की मांग करता था,क्योंकि विपक्ष को भरोसा होता था की सरकार के श्वेत -पत्र में कुछ तो सच्चाई सामने आएगी । लेकिन इस बार राजनीति की गंगा ‘ एकदम उलटी बहा दी गयी । सरकार ने बिना मांगे विपक्ष की स्वर्गीय सरकार के बारे में ‘ श्वेत -पत्र ‘ जारी कर दिया। मजबूरन विपक्ष को सरकार के कामकाज के बारे में ‘ श्याम-पत्र ‘ यानि काला-पत्र जारी करना पड़ा।

कायदे से चुनावी साल में सत्तापक्ष अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिए अपना ‘ रिपोर्ट -कार्ड ‘ जारी करता आया है ,किन्तु जब गिनाने के लिए कोई उपलब्धि हो ही न तो सरकार को भी विपक्ष के नाम ‘ श्वेत- पत्र जारी करना पड़ा। सरकार चाहती तो अपनी उपलब्धियों का रिपोर्ट कार्ड फिल्मों की तरह ‘ ईस्टमैन कलर ‘ में भी जारी कर सकती थी।’ फूजी कलर ‘ का इस्तेमाल भी एक विकल्प था। नहीं किया ये भी ठीक किया ,अन्यथा रिपोर्ट कार्ड में सरकार को अपनी वादा खिलाफियों का जिक्र करने में मुश्किल होती। सरकार के पास देश के मुकुट-मणि जम्मू- कश्मीर को तोड़ने का कलंक लगा हुआ है ,वहां पांच साल बाद भी चुनाव न करने की तोहमत लगी हुई है। । मणिपुर को जलाने का कलंक लगा हुआ है। संवैधानिक संस्थाओं को पालतू बनाने का कलंक लगा हुआ है । विपक्ष को खंड -खंड करने का कलंक लगा हुआ है।

मुझे ख़ुशी इस बात की है कि सरकार ने विपक्ष द्वारा जारी श्याम पात्र को अपने लिए शुभ काला टीका मान लिया है। सरकार को लगता है कि विपक्ष के श्याम -पत्र की वजह से अब उसकी उपलब्धियों को नजर नहीं लगेगी। यानि राजनीति में अब एक-दूसरे की नजर भी लगने लगी है। नजर प्राय: खूबसूरत चीजों को लगती है और हमारी राजनीति खूबसूरत नहीं बल्कि ‘विद्रूप ‘ बदसूरत हो चुकी है। यूं भी नजर लगना ,नजर उतारना पोंगा-पंथ है । हमारे घरों में जनर लगने और नजर उतरने के टोटके सदियों से हो रहे हैं। अब राजनीति भी इसकी जद में आ गयी है। आये भी क्यों नहीं ? आखिर सरकार चल ही टोटकों के सहारे हैं। लेकिन कमाल ये है की सरकार का हर टोटका कामयाब हो रहा है और विपक्ष के टोटके बेअसर दिखाई दे रहे हैं। आपको याद रखना चाहिए नजर या तो जूते-चप्पल से या लाल मिर्च से या फिर झाड़ू से उतारी जाती है।
फ़िल्में हों या राजनीति उन्हें श्वेत-श्याम ‘ युग से बाहर निकलना आसान काम नहीं होता। सब कुछ मुमकिन है के लिए मशहूर किये जा रहे हमारे नेतागण भी ये कठिन काम करने में कामयाब नहीं हुए। पूरा देश और दुनिया सरकार के सिर पर रखी उपलब्धियों की आधी भरी गगरी को छलकते हुए देख रहा है। ‘अध् जल गगरी ,छलकत जाये ‘ इसी तरह के अवसरों के लिए गढ़ी गयी कहावत है । एक कहावत और है कि ‘ मुठ्ठक चना,बाजे घना ‘ ,सरकार की मुठ्ठी में जो थोड़ी सी उपलब्धियां हैं भी उन्हें जोर -शोर से बजाया तो जा रहा है लेकिन उनका ‘ राम नाम सत्य है ‘ होता दिखाई दे रहा है।
कलियुग में रामराज की ये तस्वीर बड़ी मनोहर है । उसमें कर्फ्यूग्रस्त हल्द्वानी है । किसानों से घिरी दिल्ली है । जलता मणिपुर है ,राम=राम जपता उत्तर प्रदेश है।सड़कों पर न्याय माँगता बिखरा विपक्ष है। सरकार की कोशिशों से कहते हैं कि 25 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से बाहर आ गए लेकिन इसके बावजूद 80 करोड़ की ऐसी आबादी अभी भी है जो सरकार के रहमो-करम पर दो जून की रोटी खा रही है। इस आंकड़े में कोई तब्दीली नहीं हुई । और हो भी नहीं सकती ,क्योंकि ये नामुमकिन काम है। आप चंद्रयान बना और भेज सकते है। आप सूरज की आँखों में आँखें डालने की कोशिश कर सकते हैं,किन्तु 80 करोड़ लोगों को आत्मनिर्भर नहीं बना सकते,क्योंकि आपके पास ऐसा करने कोई योजना ही नहीं है ।
ख़ुशी की बात ये है कि हमारी लोकप्रिय सरकार अपने जन्म के 44 वे साल में होने वाले आम चुनाव में ‘ राम-राम’ कहते हुए उतर रही है । कहते हैं न ‘तेरा राम जी करेंगे बड़ा पार ,उदासी मन काहे को भरे ?’ कलिकाल में राम का नाम ही सबसे बड़ा आधार होगा ऐसा जब बाबा तुलसीदास ने लिखा,तब हमें यकीन नहीं हुआ था,किन्तु अब हम ऐसा होते देख रहे हैं। हम बाबा तुलसीदास की जय बोलना चाहते हैं। वे दूरदृष्टा थे। वे भीख मांगकर ज़िंदा रहने और मस्जिद में सोने का हौसला रखते थे ,लेकिन आज सत्ता प्रतिष्ठान के पास तो ये हौसला भी हुईं है। सत्ता प्रतिष्ठान दिल्ली हो या हल्द्वानी सभी जगह मस्जिदें गिराकर राम को खुश करने में लगी है । आज की अयोध्या यानि कल के फैजाबाद में 32 साल पहले मस्जिदे गिराने का जो अभियान शुरू किया गया था ,वो निरंतर जारी है। गनीमत है की विपक्ष के श्याम पत्र में ये बात नहीं लिखी की यदि तीसरी बार भी भाजपा की सरकार बनी तो ये देश कांग्रेस विहीन हो न ,हो किन्तु मस्जिद विहीन अवश्य हो जाएगा।
आप मानें या न मानें किन्तु ये विचित्र सत्य है कि मै तमाम महत्वाकांक्षाओं से दूर आ चुका हों ,लेकिन अपवाद है कि मेरी इच्छा है कि इस देश में ‘ श्वेत-श्याम ‘सियासत का युग खत्म हो । राजनीति में नए रंग शामिल हो। नफरत और मुहब्बत की दुकानें खोलने की जरूरत न पड़े । सब काम भाई-चारे के साथ चलता रहे। ऐसा होगा या नहीं ये राम जी ही जानें ! राम राज में तो ऐसा मुमकिन था । एक धोबी को भी अभिव्यक्ति की आजादी थी । उसे राष्ट्रद्रोह नहीं माना जाता था। उसे किसी की व्यक्तिगत अवमानना भी नहीं माना जाता था। उस गरीब की टीप पर भी ‘ एक्शन’ लिया जाता था। लेकिन आज के राम राज में ईडी हो या सीबीआई ‘ एक नयन ‘ है केवल विपक्ष के नेता और व्यापारी उसे नजर आता है। भगवाधारी एक भी नहीं दिखा और न शायद भविष्य में दिखेगा। जय सियाराम

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