MSP पर फिर बवाल ?
MSP पर फिर बवाल: आखिर यह तय कैसे होता है और इससे किसानों को कितना फायदा होगा?
किसान संगठन और सरकार के बीच वार्ता बेनतीजा रही. ऐसे में अब किसान आंदोलन एक बार फिर बड़ा रूप लेता दिख रहा है. दिल्ली के सभी बॉर्डर सील कर दिए गए हैं. पुलिस और प्रदर्शनकारी किसान आमने सामने हैं.
भारत सरकार ने दो साल पहले तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेकर किसानों का धरना प्रदर्शन खत्म करा दिया था. लेकिन किसानों की एक सबसे अहम मांग ‘फसलों पर MSP की गारंटी’ अभी भी पूरी नहीं हुई है. इस कारण तमाम किसान संगठनों ने एक बार फिर सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है.
हजारों की तादाद में यूपी, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसान दिल्ली बॉर्डर पर पहुंच गए हैं. किसानों का आरोप है कि सरकार ने दो साल पहले किए अपने वादों को पूरा नहीं किया. सबसे अहम एमएसपी पर कानून नहीं बनाया.
ऐसे में बहुत से लोगों के मन में सवाल है कि आखिर ये एमएसपी होता क्या है, कैसे तय होता है, स्वामीनाथन फॉर्मूला क्या है, किसानों के लिए क्यों अहम, सरकार का क्या कहना है, किस फसल का कितना सरकारी रेट है और जब एमएसपी तय हैतो किसानों को किस बात का है डर?
पहले समझिए होता क्या है MSP
MSP मतलब मिनिमम सपोर्ट प्राइस. हिंदी में न्यूनतम समर्थन मूल्य कहते हैं. ये किसानों के फसल की कीमत होती है जिसे सरकार तय करती है. देश की जनता तक पहुंचने वाले अनाज को पहले सरकार किसानों से एमएसपी पर खरीदती है. फिर सरकार इस अनाज को राशन व्यवस्था या अन्य सरकार योजनाओं के तहत जनता तक पहुंचाती है.
इसके अलावा उम्मीद की जाती है कि सीधे बाजार में भी बेचने पर किसानों को फसल का दाम एमएसपी से कम नहीं मिलेगा. इस तरह किसानों को फसल की सही कीमत मिलती है और बिचौनियो के शोषण से बचते हैं.
किसानों के हित के लिए एमएसपी की व्यवस्था 5 दशक से चल रही है. अगर कभी फसलों की कीमत बाजार में किसी कारण गिर भी जाती है, तब भी भारत सरकार उस फसल को एमएसपी पर ही खरीदती है. इससे किसानों को नुकसान नहीं होता है.
अब जानिए कौन तय करता है MSP
सरकार हर साल रबी और खरीफ की फसलों की कीमत तय करती है. ये एमएसपी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस (CACP) की सिफारिश पर तय की जाती है. सीएसीपी फसलों की लागत और फसलों की पैदावार के आधार पर कीमत तय करके सरकार के पास भेजता है. सरकार इन सुझावों पर चर्चा के बाद MSP की घोषणा कर देती है.
सबसे पहले कब तय हुआ MSP
CACP समिति की स्थापना साल 1965 में हुई थी. समिति में मुख्य रूप से चार सदस्य होते हैं. एक अध्यक्ष, एक सदस्य सचिव और दो अन्य सचिव शामिल होते हैं. समिति की सिफारिश पर भारत सरकार ने सबसे पहले साल 1966-67 में गेंहू के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान किया था.
सरकार ने पहली बार गेहूं की कीमत 54 रुपये प्रति क्विंटल तय की थी. तब देश में इंदिरा गांधी की सरकार थी. कहा जाता है यहीं से हरित क्रांति की शुरुआत हुई. गेंहू के बाद धीरे-धीरे दूसरी फसलों पर भी एमएसपी लागू किया जाता रहा.
क्या सभी फसलों पर तय होता है MSP?
नहीं! हर फसल पर एमएसपी नहीं दिया जाता है. एमएसपी के दायरे में सिर्फ 23 फसलों को रखा गया है. इनमें अनाज की 7, दलहन की 5, तिलहन की 7 और चार कमर्शियल फसलें शामिल हैं. इनमें धान, गेंहू, मक्का, जौ, बाजरा, चना, मसूर, उड़द, मूंग, तुअर, सरसों, सोयाबीन, जूट, कपास, सूरजमुखी, गन्ना शामिल जैसी फसले हैं.
हर साल फसलों की बुआई से पहले ही एमएसपी तय हो जाता है. बहुत से किसान एमएसपी देखकर ही फसलों की बुआई का फैसला करते हैं. फसल तैयार हो जाने के बाद सरकार अलग-अलग एजेंसियों के माध्यम से एमएसपी पर अनाज खरीदती है. इन अनाज को गोदामों में जमा कर लिया जाता है. इसके बाद मांग के अनुसार देश या विदेशों में भेजा जाता है.
2018-19 के आम बजट में सरकार ने ऐलान किया था कि सभी अनिवार्य फसलों का एमएसपी उत्पादन लागत के कम से कम 1.5 गुना ज्यादा तय किया जाएगा.
जब MSP तय है तो किसानों को किस बात का डर?
एमएसपी तय करते वक्त इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किसानों को उनकी लागत का कम से कम 50 फीसदी मुनाफा हो जाए. लेकिन असल में ऐसा नहीं होता है. कई बार किसानों को मजबूरीवश एमएसपी से कम कीमत पर फसल बेचनी पड़ती है. क्योंकि एमएसपी सिर्फ एक पॉलिसी है, कानून नहीं. ऐसे में किसान अदालत में जाकर अपना हक भी नहीं सकते.
23 फसलों में से गन्ने पर ही कुछ हद तक कानूनी पाबंदी लागू होती है. एसेंशियल कमोडिटी एक्ट के अनुसार, गन्ने पर उचित कीमत देना जरूरी है. किसानों को डर है कि सरकार जब चाहें एमएसपी का सिस्टम खत्म कर सकती है क्योंकि ये सिर्फ एक पॉलिसी है. 2014 में बनी शांता कुमार कमेटी के मुताबिक छह फीसदी किसानों को ही एमएसपी का फायदा मिल सका है.
MSP पर क्या बदलाव चाहते हैं किसान
प्रधानमंत्री मोदी किसानों को आश्वासन दे चुके हैं कि एमएसपी सिस्टम जारी रहेगा और सरकार इसके तहत खरीद जारी रखेगी. लेकिन किसान इतने से संतुष्ट नहीं हैं. किसान चाहते हैं सरकार एमएसपी पर एक कानून बनाए ताकि उन्हें गारंटी मिल जाए.
किसान चाहते हैं कि कानून के तहत एमएसपी से कम कीमत पर फसल खरीद को अपराध घोषित किया जाए. साथ ही दूसरी फसलों को भी एमएसपी के दायरे में लाने की मांग की जा रही है.
MSP से सरकार पर कितना बड़ा बोझ?
सरकार आंकड़ों के अनुसार, एमएसपी के दायरे में शामिल 23 फसलों का साल 2019-20 में 10.78 लाख करोड़ रुपये का उत्पादन रहा. इनमें करीब 25 फीसदी फसल किसान अपनी निजी जरूरत और पशुओं के लिए अलग रख लेते हैं.
गन्ने के लिए सरकार को कोई पैसा नहीं देना होता है. गन्ने का पैसा शुगर मिल से आता है. सरकार ने एजेंसियों के जरिए 2019-20 में 2.7 लाख करोड़ की फसल खरीदी. ये कुल उत्पादन का करीब एक तिहाई हिस्सा है. हालांकि इतनी खरीद से ही बाजार में फसल की कीमत बढ़ जाती है और किसान मुनाफा कमा लेते हैं.
MSP की गारंटी क्यों नहीं दे रही सरकार?
एमएसपी हमेशा फसल की एक ‘फेयर एवरेज क्वालिटी’ के लिए दिया जाता है. यानी कि जब फसल की अच्छी क्वालिटी होगी तभी उसकी एमएसपी पर खरीद की जाएगी अन्यथा नहीं. ऐसे में अगर सरकार ने एमएसपी पर गारंटी दे दी तो उस फसल की क्वालिटी अच्छी है या नहीं ये कैसे तय किया जाएगा और अगर फसल तय मानदंडों पर खरी नहीं उतरती है तो उसका क्या होगा. दूसरा अन्य फसलों को एमएसपी में शामिल करने से पहले सरकार उसका बजट भी तय करना होगा.
सरकार को कई समितियों ने सुझाव दिया है कि गेंहू और धान की खरीद कम करनी चाहिए. भारत सरकार इस सुझाव पर काम भी कर रही है. अब यही डर किसानों को सता रहा है कि सरकार अगर कम खरीद करेगी तो उन्हें मजबूरी में निजी कंपनियों और बिचौलियों को फसल बेचनी पड़ेगी. ऐसे में उन्हें कम कीमत मिलेगी और उन्हें नुकसान होगा.
क्या है स्वामीनाथन रिपोर्ट
मोदी सरकार ने हाल ही में दिवंगत कृषि वैज्ञानिक डॉ एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने का ऐलान किया. उन्हें भारत में ‘हरित क्रांति’ का जनक माना जाता है. 2004 में उनकी अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग (NCF) का गठन किया गया था.
आयोग ने 2006 तक पांच रिपोर्टें पेश कीं, जिनमें भारत में एग्रीकल्चर सिस्टम सुधारने के सुझाए दिए थे. हालांकि तब से अब तक रिपोर्ट लागू नहीं हो सकी. उस वक्त केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी. इन्हें ही स्वामीनाथन रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है और अक्सर इन्हीं रिपोर्टों को लागू करने की मांग भी की जाती है.
नरेंद्र मोदी कमेटी ने MSP पर क्या कहा
नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते साल 2011 में केंद्र की मनमोहन सरकार को किसानों को लेकर एक रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट का नाम है ‘रिपोर्ट ऑफ वर्किंग ग्रुप कंज्यूमर अफेयर्स’. ये रिपोर्ट आज भी narendramodi.in है.
दरअसल, 2010 में उपभोक्ता मामलों से जुड़े वर्किंग ग्रुप का गठन किया गया था. तब नरेंद्र मोदी इस कमेटी के अध्यक्ष थे. रिपोर्ट में 20 तरह की सिफारिशें की गई थी. इन सिफारिशों को लागू करने के लिए 64 सूत्रीय एक्शन प्लान भी बताया गया था.
रिपोर्ट में एमएसपी पर खरीदी जाने वाली फसलों को खरीदने के लिए एक संस्था का निर्माण करने की सिफारिश की गई थी. क्योंकि केंद्रीय संस्थान फसल खरीदने के लिए हर जगह नहीं पहुंच पाते हैं इसलिए राज्य की सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन और कोऑपरेटिव संस्थाओं को फसल की खरीद का काम सौंपने की जिम्मेदारी देने की बात कही गई थी.
इसके अलावा मोदी कमेटी की रिपोर्ट ने आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 10-ए के तहत जमाखोरी के अपराध को गैर-जमानती बनाने और ईसी अधिनियम के तहत जल्द न्याय के लिए विशेष अदालतों की स्थापना की सिफारिश की थी. साथ ही मोदी समिति की रिपोर्ट यह भी सिफारिश करती है कि पीबीएम अधिनियम (आम बोलचाल में कालाबाजारी अधिनियम) के तहत निवारक निरोध की अवधि को छह महीने से बढ़ाकर एक साल कर दिया जाए.