पुलिस कस्टडी और सुधार गृह में भी सुरक्षित नहीं महिलाएं ?
पुलिस कस्टडी और सुधार गृह में भी सुरक्षित नहीं महिलाएं,
पांच सालों में दुष्कर्म के 275 केस दर्ज; NCRB की रिपोर्ट में खुलासा
हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) ने एक डेटा पेश किया है जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि हिरासत में दुष्कर्म के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। डेटा के मुताबिक 2022 में 24 मामले दर्ज किए गए जबकि 2021 में 26 2020 में 29 2019 में 47 2018 में 60 और 2017 में 89 मामले दर्ज किए गए थे।
नई दिल्ली। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) ने 2017 से 2022 तक के दुष्कर्म के कुछ आंकड़े पेश किए हैं। आंकड़ों के मुताबिक, इन पांच सालों में हिरासत में दुष्कर्म के कुल 270 से अधिक मामले दर्ज किए गए। एक महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने ऐसे मामलों के लिए कानून प्रवर्तन प्रणालियों के भीतर संवेदनशीलता और जवाबदेही की कमी को जिम्मेदार ठहराया
हिरासत में दुष्कर्म के मामलों में आई गिरावट
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, अपराधियों में पुलिसकर्मी, लोक सेवक, सशस्त्र बलों के सदस्य और जेलों, रिमांड होम, हिरासत के स्थानों और अस्पतालों के कर्मचारी शामिल हैं। डेटा में इस बात पर जोर दिया गया है कि पिछले कुछ सालों में ऐसे मामलों में धीरे-धीरे कमी आई है। 2022 में 24 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2021 में 26, 2020 में 29, 2019 में 47, 2018 में 60 और 2017 में 89 मामले दर्ज किए गए थे।
उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक मामले
हिरासत में दुष्कर्म के मामले भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) के तहत दर्ज किए जाते हैं। यह धारा विशेष रूप से उन मामलों से संबंधित है, जहां अपराधी किसी महिला के साथ दुष्कर्म करने के लिए अपने अधिकार या उसकी हिरासत की स्थिति का लाभ उठाता है। 2017 के बाद से हिरासत में दुष्कर्म के जो 275 मामले दर्ज किए गए हैं, उनमें उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 92 मामले हैं, इसके बाद मध्य प्रदेश में 43 मामले हैं।
यौन इच्छाओं के लिए महिलाओं को किया जाता मजबूर
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक, पूनम मुत्तरेजा ने कहा, “कस्टोडियल सेटिंग्स दुर्व्यवहार के लिए अवसर प्रदान करती हैं। राज्य एजेंट अक्सर अपनी यौन इच्छाओं को पूरा करने के लिए महिलाओं को मजबूर करते हैं।”
उन्होंने कहा, “ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां महिलाओं को उनकी सुरक्षा के नाम पर या उनकी कमजोर स्थिति के कारण हिरासत में लिया गया और यौन हिंसा का शिकार बनाया गया।”
दर्ज नहीं होते कई मामले
मुत्तरेजा ने कहा कि दुष्कर्म के ऐसे कारणों में पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंड, अधिकारियों द्वारा सत्ता का दुरुपयोग, पुलिस के लिए लिंग-संवेदनशीलता प्रशिक्षण की कमी और पीड़ितों से जुड़ा सामाजिक कलंक शामिल हैं। उन्होंने कहा, “ये तत्व ऐसे माहौल में योगदान करते हैं, जहां इस तरह के जघन्य अपराध हो सकते हैं। यहां तक कि कई मामलों में तो रिपोर्ट ही नहीं की जाती या उन पर ध्यान नहीं दिया जाता।”
कानूनी सुधार और बेहतर प्रशिक्षण से आएगा सुधार
मुत्तरेजा ने कहा कि हिरासत में दुष्कर्म के मूल कारणों और परिणामों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए सरकार को बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा, “इसमें कानूनी सुधार, कानून प्रवर्तन के लिए बेहतर प्रशिक्षण, सामाजिक मानदंडों को बदलने के लिए सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार और जवाबदेही के लिए मजबूत तंत्र शामिल होना चाहिए। इसके साथ ही, गैर सरकारी संगठनों, नागरिक समाज और सामुदायिक समूहों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने से अधिक समावेशी और सूचित प्रतिक्रिया बनाने में मदद मिल सकती है।”
उन्होंने कहा, “पुलिस स्टेशनों में हिरासत में दुष्कर्म एक बहुत ही आम बात है। जिस तरह से जूनियर पुलिस अधिकारी, यहां तक कि महिला कांस्टेबल भी पीड़िताओं से बात करते हैं, उससे पता चलता है कि उनके मन में उनके लिए कोई सहानुभूति नहीं है।”
उन्होंने अपराधियों को जवाबदेह ठहराने के लिए कानूनी तंत्र के साथ-साथ पुलिसकर्मियों के बीच संवेदनशीलता और जागरूकता की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर जोर दिया।