‘इंडिया शाइनिंग’ से ‘मोदी की गारंटी’ तक भाजपा का सफर
‘इंडिया शाइनिंग’ से ‘मोदी की गारंटी’ तक भाजपा का सफर
2004 के आम चुनाव से पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दो गलतियां की थीं। एक, उन्होंने चुनाव को समय से पूर्व ही करवा लिया। दो, उन्होंने प्रमोद महाजन और अन्य भाजपा नेताओं द्वारा प्रस्तावित ‘इंडिया शाइनिंग’ के नारे को स्वीकार कर लिया। क्या 2004 की शुरुआत में भारत चमक रहा था?
यह सच है कि तब अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी। मुद्रास्फीति गिरकर 3.7 फीसदी पर आ गई थी। बेरोजगारी कम थी। वाजपेयी अपने सफल प्रधानमंत्रित्व काल के छठे वर्ष में थे। मार्च 1998 में उन्होंने एनडीए सरकार बनाने के लिए एक बहुदलीय गठबंधन बनाया था।
प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार सम्भालने के कुछ ही हफ्तों के भीतर वाजपेयी ने मई 1998 में परमाणु परीक्षण (पोखरण 2) का आदेश दे दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन द्वारा लगाए गए कठोर आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद भारत दृढ़ बना रहा था।
पाकिस्तान ने जुलाई-अगस्त 1999 में कारगिल युद्ध छेड़ दिया था। अटल सरकार तब भी दृढ़ रही और पाकिस्तान को हराया। तत्कालीन पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को युद्ध समाप्त करने के लिए वॉशिंगटन जाने को मजबूर होना पड़ा।
इसके कुछ महीनों बाद सितम्बर-अक्टूबर 1999 में हुए लोकसभा चुनावों में कारगिल विजय से उत्साहित मतदाताओं ने भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को पूरे पांच साल के लिए जनादेश दिया। जनवरी 2004 आते-आते, जब भारतीय अर्थव्यवस्था दशकों में अपनी सबसे तेज गति से बढ़ रही थी, मुद्रास्फीति कम थी, बेरोजगारी घट रही थी और सफल वाईटूके ट्रांसफॉर्मेशन के बाद देश का इन्फोटेक सेवा उद्योग भी आगे बढ़ रहा था, तब प्रमोद महाजन ने वाजपेयी से कहा कि आम चुनावों को समय से पहले कराने के लिए यही सबसे अच्छा समय है।
वाजपेयी पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थे। लेकिन महाजन और अन्य भाजपा नेताओं ने बताया कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और राजनीतिक स्थिरता ने भाजपा को 182 सीटों की अपनी संख्या में सुधार लाने का अवसर प्रदान किया है। आखिरकार वाजपेयी ने मंजूरी दे दी।
पार्टी ने तुरंत ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा बनाया और एनडीए- 2 का पांच साल का कार्यकाल समाप्त होने से छह महीने पहले ही अप्रैल-मई में चुनाव कराए। दोनों निर्णय उलटे पड़े। भाजपा 182 सीटों से घटकर 138 पर आ गई।
सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 145 सीटें जीतीं। वामदलों के 59 सांसदों और ‘धर्मनिरपेक्ष’ सहयोगियों के समर्थन से कांग्रेस मई 2004 में यूपीए की गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब रही। वाजपेयी इस झटके से कभी उबर नहीं पाए। उनका स्वास्थ्य बिगड़ा। पार्टी का नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी के पास आ गया।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी गांधीनगर से इन घटनाओं पर नजर बनाए हुए थे। अक्टूबर 2001 में मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर नियुक्त किया गया था। दिसंबर 2002 में उन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता। इसके 12 साल बाद, 2014 में उन्होंने लोकसभा चुनाव में भाजपा को जीत दिलाई।
अब जब 2024 के लोकसभा चुनाव सिर पर आ चुके हैं, मोदी जानते हैं कि 2004 में वाजपेयी सरकार की हार में अति-आत्मविश्वास का योगदान था। लेकिन साथ ही 2024 का साल 2004 नहीं है और मोदी वाजपेयी नहीं हैं। यही कारण है कि मोदी एक्सीलेटर से पैर नहीं हटाने वाले हैं।
उनके लिए हर चुनाव करो या मरो का चुनाव होता है और 2024 भी कुछ अलग नहीं होगा। मतदान में केमिस्ट्री भी अंकगणित जितनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मोदी यह भी जानते हैं कि 2019 में भाजपा ने उत्तर-पश्चिम के दस प्रमुख राज्यों की 159 में से 149 सीटें जीत ली थीं। लेकिन आज जब विपक्ष में सीट बंटवारे पर चर्चा चल रही है तो वैसे क्लीन-स्वीप को दोहराना एक चुनौती होगी।
यही कारण है कि पार्टी को यूपी में अपनी सीटों की संख्या 62 से बढ़ाकर 70 से अधिक करने की जरूरत होगी। तेलंगाना (4/17), तमिलनाडु (0/39) और असम (9/14) में बेहतर प्रदर्शन भी महत्वपूर्ण है। मोदी का कहना है कि इस बार भाजपा अपने दम पर 370 सीटें और एनडीए के लिए 400 से ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश करेगी।
ऐसा होना मुश्किल है। लेकिन 182 सीटों से बढ़कर 2014 में 282 और 2019 में 303 सीटों तक पहुंचना और इस बार फिर 300 से अधिक सीटें हासिल करने का दमखम दिखाना बताता है कि सत्ता-विरोधी लहर और संयुक्त विपक्ष से लड़ने के बावजूद ‘मोदी की गारंटी’ भाजपा के लिए जीत का प्रयोजन साबित हो सकती है।
मोदी जानते हैं कि 2004 में अटल सरकार की हार में अति-आत्मविश्वास का योगदान था। लेकिन वे एक्सीलेटर से पैर नहीं हटाने वाले हैं। उनके लिए हर चुनाव करो या मरो का चुनाव होता है और 2024 भी कुछ अलग नहीं होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)