हम कब बंद करेंगे प्लास्टिक का उपयोग?

प्रदूषण: हम कब बंद करेंगे प्लास्टिक का उपयोग? UN की बाध्यकारी संधि जैसी पहल के बाद भी सवाल का जबाव मिलना बाकी
प्लास्टिक प्रदूषण से दुनिया का कोई भी राष्ट्र अछूता नहीं है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने एक बाध्यकारी संधि की पहल की है।

Plastic Pollution Menace Question of curbing usage still unanswered despite UN Treaty
प्लास्टिक के कारण प्रदूषण, तत्काल इस्तेमाल रोकना बेहद जरूरी …

हाल ही में कनाडा की राजधानी ओटावा में प्लास्टिक प्रदूषण पर अंतरराष्ट्रीय संधि के लिए गहन मंथन के बाद राष्ट्रों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि के प्रारूप पर सहमति बनी, जो इसी वर्ष के अंत में बुसान में होने वाली बैठक में सहभागियों के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी। प्लास्टिक प्रदूषण से दुनिया का कोई भी राष्ट्र अछूता नहीं है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र एक बाध्यकारी संधि के लिए पहल की ह

प्लास्टिक प्रदूषण से समस्त मानवता और जैविक सभ्यता निरंतर प्रभावित हो रही है। 20वीं सदी की महान उपलब्धि प्लास्टिक धीरे-धीरे संपूर्ण मानव सभ्यता व प्रकृति के लिए एक बड़े संकट के रूप में प्रकट हो गई है। पिछले कुछ वर्षों में एक ही बार उपयोग में आने वाली प्लास्टिक सामग्री पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, लेकिन अब भी प्रतिवर्ष 600 अरब डॉलर मूल्य का करीब 40 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन हो रहा है। यह उत्पादन 2050 तक करीब 100 करोड़ टन प्रतिवर्ष से भी बढ़ जाएगा। तथ्य यह है कि जितने प्लास्टिक का उत्पादन हो रहा है, उसके नौ फीसदी की ही रीसाइक्लिंग हो पा रहा है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, अधिकांश प्लास्टिक या तो खुले में जलाया जा रहा है या यत्र-तत्र फेंक दिया गया है। दीर्घ आयु होने के नाते इसका निरंतर उपयोग या दुरुपयोग होता रहता है। इन्हीं वजहों से वर्ष 2040 तक सभी प्रकार के प्लास्टिक उत्पादन को 60 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य निर्धारित किया जा रहा है, अन्यथा यह चक्र कभी रुकने वाला नहीं है।

प्लास्टिक के समर्थक तर्क देते हैं कि इससे 3.5 फीसदी ही कार्बन उत्सर्जन होता है, लेकिन प्लास्टिक की पहुंच और भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पश्चिम प्रशांत महासागर में 36,000 फुट की गहराई और माउंट एवरेस्ट की 29,000 फुट ऊंचाई तक प्रचुर मात्रा में प्लास्टिक पाया गया है। यह तो वह प्लास्टिक है, जो हम प्रत्यक्ष रूप में देखते हैं। व्यापक जनजागृति और तमाम प्रयासों के बावजूद हम अपने शरीर में जगह बना चुके प्लास्टिक से बेखबर हैं। हमें इसका जरा भी इल्म नहीं है कि प्लास्टिक के साथ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कई प्रकार के रसायन हमारे शरीर में प्रवेश कर चुके हैं। संभवतः इस पृथ्वी पर अब ऐसा कोई भी स्थान शेष नहीं है, जहां प्लास्टिक न हो। भोजन, पानी, वस्त्र, आदि के जरिये प्लास्टिक के सूक्ष्म कण हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। यहां तक कि सौंदर्य प्रसाधन एवं स्वास्थ्य रक्षा हेतु भी प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है। बीस वर्ष पूर्व पहली बार छोटे प्लास्टिक यानी 2-5 मिलीमीटर आकार वाले प्लास्टिक के कणों की खोज हुई, जो प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों के टूटने से बने थे। फिर नैनो प्लास्टिक का पता चला, जो अत्यंत ही सूक्ष्म आकार के होते हैं। नैनो प्लास्टिक अपने सूक्ष्म आकार के कारण सामान्य दृष्टि से ओझल रहते हैं और विभिन्न माध्यमों से हमारे शरीर में पहुंचकर ऊतकों में जमा हो जाते हैं तथा दूरगामी असर पैदा करते हैं। विभिन्न अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि बढ़ते कैंसर, दिमागी रक्तस्राव जैसी गंभीर अवस्थाओं के लिए प्लास्टिक भी बहुत बड़ा कारक है।

प्लास्टिक मुक्त वातावरण की संकल्पना के लिए सबसे बड़ा अवरोध है इसका सार्थक विकल्प  न होना। यदि कुछ विकल्प सुझाए भी गए हैं, तो वे सुगमता की कसौटी पर प्लास्टिक से कोसों दूर हैं। बहरहाल इस विकट समस्या से निजात पाने के लिए जरूरी है, प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग व पुनः उपयोग की व्यवस्था को सुदृढ़ करना। भारत में स्वच्छ भारत अभियान के बाद प्लास्टिक उपयोग में सांकेतिक रूप से कमी आई है। अनेक स्टार्ट अप के माध्यम से प्लास्टिक संग्रहण, पृथकीकरण एवं पुनः उपयोग के कार्यों में तेजी आई है। लेकिन ये सभी प्रयास सूक्ष्म एवं नैनो प्लास्टिक को रोकने में कहीं कारगर नहीं है। जब तक हर व्यक्ति निजी स्तर पर प्लास्टिक के उपयोग से परहेज नहीं करेगा, तब तक इससे निजात पाना असंभव है।

नीतिगत स्तर पर प्लास्टिक उत्पादन में कमी लाने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे। जब तक प्लास्टिक के उपयुक्त विकल्प नहीं मिलते, रीसाइकल एवं अपसाइकल को प्रोत्साहित करने की नीति अपनानी होगी। खुले में छूटा प्लास्टिक सृष्टि पर आक्रमण की क्षमता रखता है। विनाश से बचने के लिए हर व्यक्ति को उत्तरदायी होना होगा। प्लास्टिक का न्यूनतम अथवा वर्जित उपयोग सबके हित में है।

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