MP में​​​​​​​ भाजपा की पहली लिस्ट का एनालिसिस !

MP में​​​​​​​ भाजपा की पहली लिस्ट का एनालिसिस …
शिवराज को दिल्ली का बुलावा; 5 सीटें क्यों छोड़ी, 6 सांसदों के टिकट क्यों काटे, जानें सबकुछ…

लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की पहली सूची में मध्यप्रदेश की राजनीति के सबसे कठिन सवाल का जवाब मिल गया है कि आखिर शिवराज की नई भूमिका क्या होगी?

भाजपा की पहली सूची से ऐसे ही कई सवालों के जवाब आए तो कुछ नए सवाल भी खड़े हुए हैं। 8 सवालों के जवाब में मध्यप्रदेश में भाजपा की 24 प्रत्याशियों की लिस्ट का एनालिसिस…

1. सबसे बड़ा सवाल- पांच सीटों को होल्ड पर क्यों रखा?

इंदौर, उज्जैन, धार, छिंदवाड़ा और बालाघाट। ये वो पांच सीटें हैं, जहां पार्टी ने अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं। पहला संकेत तो यही मिल रहा है कि यहां मौजूदा सांसद का टिकट संकट में है। वैसे हर एक सीट का अपना अलग चुनावी गणित है। इस गणित को सीट के हिसाब से समझते हैं…

  • छिंदवाड़ा : भाजपा अपने लिए एकमात्र चुनौती छिंदवाड़ा को मानती है। पार्टी जीत के लिए ‘कुछ भी’ कर सकती है। इस ‘कुछ भी’ की वजह से ही कमलनाथ और नकुलनाथ को लेकर तमाम तरह की खबरें चली थीं। हालांकि पिता-पुत्र ने भाजपा में जाने की अटकलों को खारिज कर दिया। पार्टी ने यहां प्रत्याशी की घोषणा नहीं अभी अपना दरवाजा खुला रखा है।
  • इंदौर : यहां ‘ताई’ यानी पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और ‘भाई’ यानी कैलाश विजयवर्गीय के बीच नाम को लेकर सहमति नहीं बनने की बात सामने आ रही है। एक धड़ा मौजूदा सांसद के पक्ष में तो दूसरा खेमा नए चेहरे के लिए जोर लगा रहा है। सिंधी जाति का समीकरण भी एक फैक्टर है।
  • उज्जैन : मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के गृह नगर वाली इस सीट को होल्ड पर रखना जरूर चौंका रहा है। मौजूदा सांसद अनिल फिरोजिया की जगह किसी महिला प्रत्याशी को मौका देने की बात सामने आई थी, लेकिन संघ परिवार की वजह से आलोट विधायक डॉ. चिंतामणि मालवीय ने दिल्ली जाने के लिए पूरी ताकत लगा दी है, वहीं फिरोजिया भी डटे हुए हैं।
  • धार : यह सीट भाजपा के लिए रेड जोन में है। विधानसभा चुनाव के रिजल्ट ने यहां पार्टी की चिंता बढ़ा दी है। संसदीय क्षेत्र में आने वाली आठ में से पांच सीटें कांग्रेस ने जीतीं। लोकसभा चुनाव से तुलना करें तो यहां पार्टी वोटों के हिसाब से माइनस में रही। अब पार्टी यहां ऐसे आदिवासी चेहरे को लाना चाहती है जो विधानसभा चुनाव के वोट के घाटे को पूरा कर सके।
  • बालाघाट : पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने अपनी बेटी मौसम के लिए महिला कोटे का हवाला देते हुए पूरी ताकत लगा दी है। मौसम को विधानसभा चुनाव में टिकट दिया गया था लेकिन स्वास्थ्य की वजह से वे पीछे हट गईं। पिता गौरीशंकर बिसेन चुनाव लड़े मगर हार गए। वहीं प्रदेश संगठन भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष वैभव पंवार के पक्ष में है, इसी वजह से यहां पेंच फंस गया।

2. छह सांसदों के टिकट काटने की क्या वजह रही?

प्रज्ञा सिंह ठाकुर (भोपाल) : भोपाल सांसद अपने बयानों के कारण पूरे कार्यकाल में विवादों में रहीं। गोडसे पर बयान देने के चलते पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वे उन्हें कभी माफ नहीं कर पाएंगे। माना जा रहा था कि उन्हें दोबारा मौका नहीं मिलेगा, ऐसा ही हुआ।

विवेक शेजवलकर (ग्वालियर) : मेयर रह चुके शेजवलकर 76 साल के हो चुके हैं। एज फैक्टर के चलते वे बाहर हुए। यहां विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की पसंद से उम्मीदवार तय हुआ।

राजबहादुर सिंह (सागर) : परफॉर्मेंस के मामले में पीछे रहे। पिछली बार शिवराज सरकार में मंत्री रहे भूपेंद्र सिंह की पसंद से राजबहादुर सिंह को टिकट मिला था। इस बार ओबीसी महिला के कोटे से लता वानखेडे़ को मौका मिल गया।

डॉ. केपी यादव (गुना) : 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया को केपी यादव ने हराया था। 2020 में सिंधिया कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा में आ गए। सिंधिया अपनी परंपरागत सीट को अपने कब्जे में रखने और राजनीतिक करियर पर लगे हार के टैग को हटाना चाहते हैं। ऐसे में बीजेपी ने सिंधिया की इच्छा का ध्यान रखा।

रमाकांत भार्गव (विदिशा) : शिवराज को टिकट देने के लिए भार्गव का टिकट काटना स्वाभाविक था। रमाकांत, शिवराज सिंह चौहान के करीबी हैं और विदिशा शिवराज की परंपरागत सीट।

गुमान सिंह डामोर (रतलाम) : परफॉर्मेंस के मामले में कमजोर रहे। जयस के प्रभाव और विधानसभा चुनाव में भारत आदिवासी पार्टी के कमलेश्वर डोडियार की जीत की वजह से पार्टी यहां कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। इसी वजह से यहां पार्टी ने परिवारवाद के आरोपों की परवाह नहीं करते हुए मोहन सरकार में मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनिता को प्रत्याशी बनाया है। रतलाम सीट को लेकर पार्टी कितनी सतर्क है, यह इस फैक्ट से समझ सकते हैं कि इस संसदीय क्षेत्र से राज्य सरकार में तीन मंत्री हैं।

3. टिकट वितरण में नेताओं की पसंद का कितना ध्यान रखा?

शिवराज सिंह चौहान की पसंद का खास ध्यान रखा गया। नए चेहरों को मौका देने से लेकर लेकर मौजूदा सांसदों पर भरोसा करने में उनकी राय का ध्यान रखा। होशंगाबाद से किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी दर्शन सिंह और राजगढ़ से रोड़मल नागर उन्हीं की पसंद है।

केंद्र से मध्यप्रदेश लौटे और राजनीति की मुख्यधारा से अलग हुए नरेंद्र सिंह तोमर को भी तवज्जो मिली। मुरैना, भिंड और ग्वालियर के उम्मीदवार तोमर की पसंद के हैं।

केंद्रीय मंत्री पद छोड़कर विधानसभा चुनाव लड़े और मोहन सरकार में मंत्री बने प्रहलाद पटेल की परंपरागत दमोह सीट पर राहुल सिंह लोधी को टिकट दिया। कांग्रेस से विधायक रहे राहुल प्रहलाद पटेल के कहने पर ही विधायकी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। हालांकि, वे उपचुनाव हार गए थे, लेकिन अब पटेल ने अपने प्रभाव वाली सीट पर उन्हें प्रत्याशी बनवाकर उनका ध्यान रखा।

जबलपुर और सीधी के प्रत्याशी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की पसंद के हैं।

4. जातीय समीकरणों का कितना ख्याल रखा?

पार्टी ने 24 में से 8 सीटों पर ओबीसी वोटों के गणित का ध्यान रखा। तीन सीटों पर किरार-धाकड़, दो पर कुर्मी, एक पर कुशवाहा, एक लोधी और एक सीट पर मराठा को टिकट दिया है। पांच ब्राह्मण उम्मीदवार भी इस लिस्ट में हैं। क्षत्रिय-राजपूत और वैश्य समाज से एक-एक उम्मीदवार हैं।

5. महिलाओं को कितना महत्व मिला?

2019 में 29 सीटों में 4 महिलाओं को टिकट दिया था। इस बार 24 उम्मीदवारों की सूची में ही चार महिलाएं हैं। इनमें दो मौजूदा सांसद हैं और दो नए चेहरे। भिंड से संध्या राय और शहडोल से हिमाद्री सिंह पर फिर भरोसा जताया है। भोपाल से प्रज्ञा सिंह ठाकुर को टिकट नहीं दिया है। सीधी से सांसद रही रीति पाठक विधायक बन गई हैं। इन दो की जगह दूसरी सीटों से दो महिलाओं टिकट देकर पार्टी ने कोटा पूरा कर लिया।सागर और रतलाम सीट पर मौजूदा सांसदों की जगह महिला को मौका दिया। सागर में लता वानखेड़े और रतलाम में अनिता नागर सिंह चौहान नया चेहरा है।

6. विधानसभा चुनाव हारे सांसद-मंत्री पर भरोसा क्यों?

इस लिस्ट में चार नाम ऐसे हैं जो हाल ही में विधानसभा चुनाव हार गए। मंडला की निवास सीट पर केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते और सतना में सांसद गणेश सिंह विधानसभा चुनाव में मतदाताओं का भरोसा नहीं जीत पाए थे लेकिन पार्टी ने इन पर फिर भरोसा जताया। कुलस्ते बडे़ आदिवासी नेता हैं जबकि गणेश सिंह ओबीसी कुर्मी समाज से आते हैं। सतना लोकसभा और विंध्य क्षेत्र में कुर्मी पटेल समुदाय निर्णायक है। इस वर्ग को साधे रखने के लिए गणेश सिंह को फिर मौका मिला है।

यही स्थिति ग्वालियर से लोकसभा प्रत्याशी बनाए गए भारत सिंह कुशवाह की है। ग्वालियर और मुरैना लोकसभा में कुशवाहा समाज के प्रभाव को देखते वे जातीय समीकरणों के गणित में फिट बैठे। आलोक शर्मा विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए सबसे कठिन सीट भोपाल उत्तर से चुनाव लड़े थे, इसलिए हार के बावजूद संगठन में उनकी सक्रियता का ध्यान रखा।

7. सबसे चौंकाने वाला नाम कौन सा?

मोहन सरकार में मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता का है। आदिवासी रतलाम सीट से कई नेता दावेदारी कर रहे थे लेकिन बीजेपी ने मौजूदा सांसद गुमान सिंह डामोर का टिकट काटकर अनीता को उतारा है, यह जानते हुए भी कि परिवारवाद की बात उठेगी।

8. शिवराज सिंह चौहान की केंद्र में नई भूमिका क्या तय हो गई?

20 साल बाद शिवराज सिंह चौहान लोकसभा की अपनी परंपरागत सीट विदिशा वापस लौट रहे हैं। 2004 में वे पांचवीं बार सांसद चुने गए थे। 11 दिसंबर को विधायक दल की बैठक में प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. मोहन यादव का नाम तय होते ही यह सवाल भी खड़ा हो गया था कि शिवराज की नई भूमिका क्या होगी? टिकट के साथ ही यह तय हो गया है कि शिवराज की भूमिका केंद्रीय राजनीति में रहेगी। लोकसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद तय होगा कि केंद्रीय राजनीति में उनका रोल क्या होगा?

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