‘40-40 लाख में बिके थे सांसद…

 ‘40-40 लाख में बिके थे सांसद…’ घूसकांड से जब हिल गया था भारत, अब सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना ही फैसला
कैश फॉर वोट को लेकर जो पैसे उपयोग में लाए गए थे, उसको लेकर भी बड़ा खुलासा हुआ था. झामुमो के तत्कालीन सांसद शैलेंद्र महतो ने आरोप लगाया था कि सभी पैसे हवाला कारोबारी एसके जैन ने दिए थे. 

1993 का साल था, देश की अर्थव्यवस्था के दरवाजे विदेशी कंपनियों के लिए खुल चुके थे. पीवी नरसिम्हा राव की अगुवाई में चल रही कांग्रेस की सरकार पीठ थपथपा रही थी, लेकिन उसी समय एक ऐसा कांड हुआ कि पूरा देश हिल गया. दरसअल, पहली बार सांसदों पर घूस लेने के आरोप लगे. देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद की पवित्रता पर अब तक ये सबसे बड़ा सवाल था.

31 साल बाद यह घटना फिर से भारत की राजनीति में सुर्खियों में है. वजह सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है.

सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने कैश फॉर वोट पर अपने ही 26 साल पुराने फैसले को पलट दिया है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि रिश्वत लेकर सदन में वोट देने या सवाल पूछने पर सांसदों या विधायकों को विशेषाधिकार के तहत मुकदमे से छूट नहीं मिलेगी.

1998 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने अपने फैसले में रिश्वत लेकर सदन के भीतर वोट देने को विशेषाधिकार माना था. उस वक्त 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने बहुमत से कहा था कि सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने पर  सांसदों और विधायकों के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं चलेगा.

कोर्ट ने कैश फॉर वोट मामले में फिर क्यों की सुनवाई?
1998 में सुप्रीम फैसले के बाद कैश फॉर वोट कांड का मामला खत्म हो गया था, लेकिन 2012 में इसका जिन्न फिर से निकला. दरअसल, 2012 के राज्यसभा चुनाव में झामुमो की सीता सोरेन पर राज्यसभा के निर्दलीय प्रत्याशी आरके अग्रवाल से डेढ़ करोड़ रुपए लेने का आरोप लगा.

मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई. सीबीआई ने इस केस में सीता सोरेन के नौकर को सरकारी गवाह बनाया. कोर्ट में सोरेन की तरफ 1998 के नरसिम्हा राव वर्सेज स्टेट मामले की दलील दी गई, जिसके बाद यह मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. 

सुप्रीम कोर्ट इस पर फिर से सुनवाई करने को राजी हो गई और कैश फॉर वोट कांड में 7 जजों की बेंच गठित कर दी. 

अब जानिए कैश फॉर वोट कांड क्या है?
1993 में भारतीय जनता पार्टी और सीपीएम समेत कई विपक्षी दलों ने नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया. विपक्ष के इस साझा गठबंधन के पास पर्याप्त बहुमत था, लेकिन फिर भी राव सरकार बचाने में सफल रहे. 

राव के विश्वासमत हासिल करने के बाद विपक्ष ने सरकार पर हॉर्स ट्रेडिंग(खरीद-फरोख्त) का आरोप लगाया. विपक्ष के इस आरोप को 1996 में तब बल मिला, जब झामुमो के एक सांसद शैलेंद्र महतो ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कैश फॉर वोट कांड का खुलासा किया.

‘40-40 लाख में बिके थे सांसद…’ घूसकांड से जब हिल गया था भारत, अब सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना ही फैसला

आइए इस खुलासे को सिलसिलेवार तरीके से जानते हैं…

1. राव ने बूटा सिंह को सौंपी सरकार बचाने की जिम्मेदारी
तत्कालीन झामुमो सांसद शैलेंद्र महतो ने 1996 में खुलासा करते हुए कहा था-  सरकार गिरने के खतरे को देखते हुए तत्कालीन स्पीकर शिवराज पाटील ने अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के लिए 3 दिन का समय आवंटित किया. स्पीकर के समय आवंटित करते ही पीएम राव ने जोड़-तोड़ की कमान कद्दावर कांग्रेसी बूटा सिंह सौंप दी. 

बूटा ने पहले कांग्रेस को जोड़ने का अभियान चलाया. उस वक्त नरसिम्हा राव से कांग्रेस का एक खेमा काफी नाराज था. इस खेमे का नेतृत्व अर्जुन सिंह कर रहे थे.

कांग्रेस को जोड़ने के बाद बूटा सिंह ने दूसरे दलों को साधने की रणनीति तैयार की. सिंह के निशाने पर अजित सिंह की पार्टी और शिबू सोरेन की झामुमो थी. दोनों के पास लोकसभा में कुल 24 सांसद थे.

2. देर रात की मुलाकात और 40-40 लाख का ऑफर
सीबीआई को दिए अपने बयान में झामुमो के तत्कालीन सांसद शैलेंद्र महतो ने बताया था कि वोटिंग से 2 दिन पहले बूटा सिंह झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन से मिलने आए थे. यहीं पर सिंह ने सभी सांसदों को सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए मनाया.

झामुमो की तरफ से डील फाइनल करने की जिम्मेदारी शिबू सोरेन ने सूरज मंडल को सौंपी थी.

महतो के मुताबिक डील तय होने के बाद बूटा ने सभी सांसदों को तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से मिलवाया. राव ने हम सभी को झारखंड राज्य बनाने का आश्वासन दिया. 

शैलेंद्र महतो ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से मिलने के बाद हम लोग ललित सूरी के होटल हॉलीडे-इन में पहुंचे, जहां पहले से ही केंद्रीय मंत्री वीसी शुक्ला आरके धवन बैठे थे. 

हम लोग जब वहां पहुंचे, तो शुक्ला ने 40-40 लाख रुपए सभी को दिए. पैसा लेने के बाद हम लोग वापस रांची आ गए. फिर वोटिंग के दिन दिल्ली पहुंचे.

‘40-40 लाख में बिके थे सांसद…’ घूसकांड से जब हिल गया था भारत, अब सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना ही फैसला

3. अजित सिंह की पार्टी भी टूटी, 7 ने किया था क्रॉस वोटिंग
वोटिंग के दौरान अजित सिंह की पार्टी भी टूट गई थी. सिंह के पास उस वक्त 20 सांसद थे, लेकिन कांग्रेस ने 7 सांसदों से क्रॉस वोटिंग करवा दिया. 

इसी क्रॉस वोटिंग की वजह से राव के समर्थन में 265 वोट पड़े, जो विपक्ष के 251 से 14 अधिक था. कांग्रेस के पास उस वक्त सिर्फ 244 सांसद थे. 

वोटिंग में अजित सिंह पार्टी के करीब 7 सदस्यों ने सरकार के पक्ष में मतदान किया था. हालांकि, इन सदस्यों को पैसे मिले या नहीं, इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं मिल पाया. अजित सिंह के सांसदों को साधने की जिम्मेदारी बलराम जाखड़ और भजनलाल को मिली थी. 

इस क्रॉस वोटिंग ने अजित सिंह के राजनीतिक करियर काफी नुकसान पहुंचाया.

4. हवाला का पैसा था, खपाने के लिए अपनाए थे ये हथकंडे
कैश फॉर वोट कांड में खरीद-फरोख्त को लेकर जो पैसे उपयोग में लाए गए थे, उसको लेकर भी बड़ा खुलासा हुआ था. झामुमो के तत्कालीन सांसद शैलेंद्र महतो ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आरोप लगाया था कि सभी पैसे हवाला कारोबारी एसके जैन ने दिए थे. 

सीबीआई को दिए अपने बयान में महतो ने कहा था कि विवादास्पद धर्मगुरु चंद्रास्वामी और केंद्रीय मंत्री सतीश शर्मा को 3 करोड़ रुपये दिए थे. इसी पैसे को सांसदों के बीच बांटा गया था.

सीबीआई की ओर से कैश फॉर वोट मामले में दाखिल चार्जशीट के मुताबिक पैसे खपाने के लिए जेएमएम के सांसदों ने कई हथकंडे अपनाए. सबसे पहले पैसे को पार्टी फंड में डाला गया. उसके बाद सांसदों की तरफ से दो-दो हजार का कूपन खरीदा गया. 

सीबीआई के मुताबिक झामुमो ने कैश फॉर वोट के पैसों को 2 प्रतिशत के हिसाब से ब्याज पर लगाने की व्यवस्था भी कर दी थी.

5. 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर लगा दी थी रोक
1996 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जिस पर 1998 में 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने सुनवाई पूरी की. मामले में नरसिम्हा राव और बूटा सिंह आरोपी थे. 

नरसिम्हा राव की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि इस तरह मामले की सुनवाई से अनुच्छेद 105 (2) कमजोर होगा, जिसमें संसद को कई विशेषाधिकार मिले हैं. 

कोर्ट ने बहुमत से फैसला सुनाते हुए मामले की सीबीआई जांच पर रोक लगा दी. 

2000 में दिल्ली हाईकोर्ट ने सीबीआई को सही सबूत पेश नहीं करने के लिए फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा कि सीबीआई ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाई, जिससे यह साबित हो कि पैसे सरकार बचाने के लिए दिए गए थे.

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