दलबदल के मामलों में पार्टी व्हिप की भूमिका चर्चाओं में

दलबदल के मामलों में पार्टी व्हिप की भूमिका चर्चाओं में

दलबदल विरोधी कानून चर्चाओं में है। गत 27 फरवरी को बिहार विधानसभा में तीन विपक्षी विधायक पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गए। इनमें से दो कांग्रेस के थे और एक राजद का। हालिया रिपोर्टों के मुताबिक, कांग्रेस ने दलबदल विरोधी कानून के तहत दोनों विधायकों को विधानसभा से अयोग्य ठहराने की मांग की है।

ये मामले बिहार विधानसभा विश्वास मत में कथित दलबदल के बमुश्किल एक पखवाड़े के भीतर सामने आए हैं। फ्लोर टेस्ट के दौरान राजद के तीन विधायकों ने एनडीए के पक्ष में मतदान किया था, जबकि जदयू के दो विधायक अनुपस्थित थे।

दलबदल से तात्पर्य वह पार्टी छोड़ने से है, जिसकी उम्मीदवारी पर जनप्रतिनिधि संसद या विधानसभा के लिए चुने जाते हैं। ज्ञात हो कि भारत में यह कानून मूलतः संविधान का हिस्सा नहीं था। बड़े पैमाने पर दलबदल होने से 1985 में इस पर रोक लगाने के लिए संवैधानिक संशोधन के माध्यम से दसवीं अनुसूची या दलबदल विरोधी कानून पेश किया गया।

इसके तहत निर्वाचित जनप्रतिनिधि को (अ.) स्वेच्छा से अपने दल की सदस्यता छोड़ने या (ब.) पार्टी के खिलाफ मतदान करने के लिए सदन की सदस्यता से अयोग्य ठहराया जा सकता है। हालांकि विधायकों के समूह के किसी अन्य दल में विलय को छूट दी गई है।

अब ताजा मामले को देखें। कांग्रेस और राजद के तीन विधायकों द्वारा पाला बदलने पर उन्हें दसवीं अनुसूची के परिच्छेद 2(1)(ए) के तहत कार्रवाई के लिए उत्तरदायी बनाया गया है। दिलचस्प यह है कि दलबदल के एक दिन बाद ही कांग्रेस ने संबंधित विधायकों के खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष अयोग्यता याचिका दायर की थी।

विश्वास मत के दौरान दलबदल के इन मामलों में परिच्छेद 2(1)(ए) और 2(1)(बी) दोनों के तहत कार्रवाई हो सकती थी। इसलिए फ्लोर टेस्ट से पहले लगभग सभी दलों ने अपने विधायकों के लिए व्हिप जारी किया था। संसदीय लोकतंत्र में व्हिप किसी दल द्वारा सदन में अपने सदस्यों को पार्टी के निर्देशों का पालन करने के लिए जारी किया गया लिखित निर्देश है।

इसके तहत सदस्यों को सदन में किसी प्रस्ताव के पक्ष या विपक्ष में मतदान करने की आवश्यकता हो सकता है। जनप्रतिनिधि व्हिप से बंधे होते हैं और इसकी अवज्ञा उन्हें दलबदल विरोधी कानून के दायरे में ला सकती है।

इस बार भी विश्वास मत से पहले जदयू और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने अपने-अपने विधायकों को मतदान के दौरान विधानसभा में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए व्हिप जारी किया था। विश्वास मत से दो जदयू विधायकों की अनुपस्थिति को व्हिप की अवज्ञा के रूप में देखा जा सकता है और दसवीं अनुसूची के परिच्छेद 2(1)(बी) के तहत उन्हें सदस्यता से अपात्र घोषित किया जा सकता है, बशर्ते उनकी अनुपस्थिति को पार्टी द्वारा माफ न किया गया हो। लेकिन परिच्छेद 2(1)(बी) के निहितार्थों को लेकर चिंता की स्थिति है, जो सदन में क्रॉस-वोटिंग को दंडित करता है।

यह महसूस किया जाता रहा है कि व्हिप-चालित दलबदल विरोधी कानून विधायकों को अपने स्वतंत्र वोट का प्रयोग करने का मौका देने के बजाय अपने दल से बांध देता है। सभी पक्षों से आए महत्वपूर्ण सुझावों में से एक यह है कि क्रॉस-वोटिंग को विश्वास मत या वित्तीय मामलों से संबंधित प्रस्तावों में ही दंडित किया जाना चाहिए।

यह देखते हुए कि जदयू विधायकों ने विश्वास प्रस्ताव में व्हिप का उल्लंघन किया, उन पर कार्रवाई होगी, बशर्ते पार्टी उनकी अनुपस्थिति को माफ नहीं कर देती। राजद द्वारा व्हिप जारी करने की सूचना नहीं थी, लेकिन विश्वास प्रस्ताव में सरकार के पक्ष में मतदान करने वाले तीन विधायकों को भी अयोग्य घोषित किया जा सकता है। दलबदल के दोनों मामलों (भाजपा में शामिल होना और विश्वास मत के पक्ष में मतदान करना) के लिए राजद विधायक भी अयोग्य ठहराने के पात्र होने चाहिए।

यह व्यापक रूप से महसूस किया जाता रहा है कि व्हिप-चालित दलबदल विरोधी कानून विधायकों को स्वतंत्र वोट का प्रयोग करने का मौका देने के बजाय अपने दल से बांध देता है। ऐसे में उन्हें कब दंडित किया जाना चाहिए?

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *