स्वर्ण रेखा …. जनता का पैसा और बर्बाद नहीं होने देंगे : जस्टिस आर्या

स्वर्ण रेखा में अब आंकड़े नहीं काम की अंडरटेकिंग दें, जनता का पैसा और बर्बाद नहीं होने देंगे: जस्टिस आर्या

स्वर्ण रेखा नदी में साफ पानी, सीवर की ट्रंक लाइन समेत तमाम सवालों का गोलमोल जवाब लेकर हाईकोर्ट पहुंचे नगर निगम अधिकारियों के रवैए पर जस्टिस रोहित आर्या व जस्टिस बीके द्विवेदी की बेंच ने काफी नाराजगी जताई। सोमवार को हुई सुनवाई में जस्टिस आर्या ने नगर निगम आयुक्त हर्ष सिंह से कहा- बेशक, मैं अगले महीने रिटायर हो रहा हूं।

लेकिन आपकी सभी बातें ऑर्डर शीट में लिखकर जाऊंगा। ताकि, जो भी केस को सुने, उन्हें पता रहे कि आप लोगों ने क्या-क्या कहा था। करीब 46 मिनट तक सुनवाई के दौरान अधिकारियों को कई बार अफसरों को फटकार लगी। जस्टिस आर्या ने स्पष्ट रूप से कहा कि अब इस मामले में आंकड़े नहीं, काम होने की अंडरटेकिंग चाहिए। हाईकोर्ट ने इस केस की अगली सुनवाई 14 मार्च को रखी है। तब नगर निगम द्वारा स्वर्ण रेखा की डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) और शहर की सीवेज व्यवस्था की जानकारी प्रस्तुत करनी होगी।

बिजली व्यवस्था पर भी हाईकोर्ट की टिप्पणी, कहा- लाइन तो पूरे शहर में बिजली की भी है लेकिन बिजली आती है क्या?

कोर्ट रूम लाइव हम चाहते हैं आगे काम सही से हो, मि. हर्ष, स्पष्ट हलफनामा दें ताकि भविष्य में जो जिम्मेदार होगा उस पर अपराधिक केस चलेगा सविता प्रधान गौर (संयुक्त संचालक नगरीय प्रशासन एवं विकास)- नगर निगम सर्वे का काम कुछ दिन में पूरा कर लेगा। जस्टिस आर्या- 2 बातें और थी उस दिन। एक तो सीवेज लाइन और दूसरी है ट्रंक लाइन। तो लश्कर के साथ मुरार व ग्वालियर एरिया में इन लाइन का क्या स्टेट्स है। पहले अधिकारियों ने क्या-क्या किया, पैसा कहां-कितना खर्च किया? क्या आप ये सब बता पाएंगी? तो बोलिए…। सविता- वर्तमान में 102 किलोमीटर सीवर लाइन डाली जा चुकी है अमृत योजना में…। जस्टिस आर्या- आप जो बता रही हैं उसे सोच लो…आप बता पाओगी सब, या फिर हम लोकल बॉडी से ही पूछ लें । (इसके बाद सविता प्रधान पीछे हटीं और नगर निगम आयुक्त हर्ष सिंह आगे आए।) जस्टिस आर्या- मिस्टर खोत, शहर में कितनी सीवर लाइन है। हर्ष सिंह, नगर निगम आयुक्त- डीपीआर तैयार हो रही है 30 साल के हिसाब से। पूरे शहर में सीवेज का नेटवर्क है। उसके लिए 10 मशीनें भी हैं, लेकिन सभी लाइनें एक साथ दुरुस्त नहीं रह पातीं। जस्टिस आर्या- आप एक बात समझिए, स्टेट समय की सीवर लाइन में 50 साल से दिक्कत नहीं आई, आपने जो लाइनें डाली हैं। उनमें 10 साल में ही परेशानी आने लगी। क्यों? हर्ष- सर, प्रॉब्लम है कि पॉपुलेशन बढ़ गई है। जस्टिस आर्या- स्टेट टाइम की सीवर लाइन इतने साल चल गई। आपकी डाली लाइन नहीं चल पा रही। मतलब ये है कि सही तरीके से तकनीकी परीक्षण नहीं किया गया काम का। हर्ष- स्टेट टाइम की कई लाइन बदल चुके हैं। जस्टिस आर्या- आप एक काम करिए, एक स्पष्ट हलफनामा दे दीजिए कि आपके हिसाब से सीवेज लाइन परफेक्ट है और अगले 10-20 साल तक कोई दिक्कत नहीं आएगी। अब हमें ट्रंक लाइन के लिए पैसा दे दो। हर्ष- सर, हमें एक्सपर्ट से सर्वे कराना होगा। जस्टिस आर्या- मैं तो निवेदन कर रहा था आपसे, लेकिन आपने कटशॉट लिया। जो आपके तीरंदाज अफसर पीछे खड़े हैं। उन्होंने समझाया कि साहब बोल दो इतना तो कर दिया है। लेकिन अब कोर्ट में ये न चल पाएगा। हम और पैसा बर्बाद होने देना नहीं चाहते जनता का। जो अाप कहेंगे वह पूरा लिखकर जाएंगे। बेशक मैं अगले महीने रिटायर हो रहा हूं। लेकिन यहां जो भी होंगे, उनके पास पूरा रिकॉर्ड होगा कि आपने कब क्या कहा। मेरा मकसद है सीवर समस्या खत्म हो, ट्रंक लाइन डले, स्वर्ण रेखा में साफ पानी आए, जिसे लोग उपयोग कर सकें। साबरमती नदी की तरह, वहां जनप्रतिनिधि, अफसर और लोगों ने मिलकर हालात बदले। हम चाहते हैं आगे सब सही हो। यदि आप उसमें भी परेशानी डालोगे तो आप सब दिक्कत में आ जाओगे। हर बात ऑर्डर शीट में रखी जाएगी। ताकि, भविष्य में जो भी जिम्मेदार होगा उस पर आपराधिक प्रकरण चलेगा। हर्ष- सर्वे के लिए 2 महीने का समय दे दें। जस्टिस आर्या- 2 महीने ज्यादा हैं। अब तक कितनी बार सर्वे हो चुका है। हर्ष- समय-समय पर….। जस्टिस आर्या- अंतिम सर्वे कब हुआ। हर्ष- 10 दिन पहले। जस्टिस आर्या- पूरे शहर का रिकॉर्ड बताओ। आपने बताया है कि 83 प्रतिशत एरिया सीवेज लाइन से कवर है। फिर स्वर्ण रेखा में पानी कैसे जा रहा। आपने जो सर्वे किया, वो कहां है। हर्ष- सर, इंजीनियरों को भेजकर कराया। जस्टिस आर्या- इंजीनियर ने तो 83% में लाइन बता दीं। उनकी कंडीशन बताओ। हर्ष- सर, इसमें समय लगेगा। जस्टिस आर्या- तो फिर काम क्या किया? वो देखकर चले आए, ये तो मस्टर रोल वाले भी बता देते। लाइन बिछी होने से ये मतलब नहीं कि सब सही है। लाइनें तो पूरे शहर में बिजली की भी हैं तो पूरे शहर में बिजली आती है क्या? आप लिखित में दो सब कुछ। नहीं तो सर्वे के लिए हम एजेंसी बुलाते हैं अब पेपर के आंकड़े पर नहीं जाएंगे, हमें काम कराने के लिए अंडरटेकिंग चाहिए। हां, मैडम आपको क्या कहना है और, पैसा कब दिलवाओगी इन्हें ट्रंक लाइन के लिए? सविता- सर, अमृत 2 में 100 करोड़ रुपए रिजर्व हैं सीवर के लिए। जस्टिस आर्या- 100 करोड़ में हो जाएगा। सविता- डीपीआर के बाद अतिरिक्त राशि भी मिल सकती है। 40 दिन का समय है डीपीआर के लिए चाहिए। अभी 13 किलोमीटर का सर्वे हो चुका है। जस्टिस आर्या- 40 दिन का समय तो नहीं मांगा था हमसे, डीपीआर तो जा चुकी है..। सविता- सर, वो डीपीआर प्रथम आकलन रिपोर्ट थी। स्वर्ण रेखा के बाद मुरार नदी में भी सीवर का पानी रोकने की याचिका, नोटिस हुए…

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स्वर्ण रेखा नदी केस…कोर्ट ने फिर लगाई फटकार:कहा- हर बार नया अधिकारी भेज दिया जाता है, यह तीरंदाज अफसरों की मीटिंग नहीं है

ग्वालियर में “स्वर्ण रेखा नदी’ मामले में मंगलवार को हाईकोर्ट की डबल बेंच में फिर सुनवाई हुई है। कोर्ट में नगरीय प्रशासन विभाग भोपाल की सहायक संयुक्त संचालक सविता प्रधान उपस्थित हुई थीं। उन्होंने कोर्ट में एक शपथ पत्र पेश किया, लेकिन उसे परिभाषित नहीं कर पाईं। जिस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते कहा है कि हर बार नए अधिकारी को कोर्ट में भेज दिया जाता है। अधिकारियों ने जो एफिडेविट बनाकर दिया था उसे आपने यहां पेश कर दिया।

आप अपनी डायरी के आधार पर चर्चा कर रही है। पर हम आपको बता दें कि यह आपके तीरंदाज अधिकारियों की मीटिंग नहीं है जहां कुछ भी चल जाएगा। यह हाईकोर्ट है यहां कागजों के आधार पर सुनवाई होती है। इसलिए ध्यान रखें जो कागज आपने पेश किया है उसी आधार पर अपनी बात करें। कोर्ट ने सहायक संयुक्त संचालक नगरीय प्रशासन को यह भी कहा कि आप कोर्ट को गुमराह कर रही हैं। इससे पहले भी कोर्ट एफिडेविट में खामियों पर अफसरों को मूर्ख, नालायक, अनपढ़, डफर तक चुके हैं।

मंगलवार को हाईकोर्ट में “स्वर्ण रेखा नदी’ मामले में सुनवाई के दौरान नगरीय प्रशासन विभाग की सहायक संयुक्त संचालक सविता प्रधान ने बताया कि हम सर्वे करा रहे हैं, 8 दिन से सर्वे जारी भी है, हमने 40 दिन का समय मांगा था। हम DPR (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बना रहे हैं। अधिकारी के यह बात कहते ही हाईकोर्ट ने तत्काल कहा कि दो माह पहले जो प्रपोजल आप भेजने की बात कह चुके हैं क्या वो प्रपोजल बिना DPR के भेजा गया था। इस पर सहायक संयुक्त संचालक ने कोर्ट को बताया कि वो प्रपोजल भी हमने DPR के आधार पर भेजा था। महिला अधिकारी के इतना कहने पर ही कोर्ट फिर नाराज होते हुए कहते हैं कि आप न्यायालय को गुमराह करने का काम कर रहे हैं। यह जनता का पैसा है और हम इसे ऐसे ही बर्बाद नहीं होने देंगे। कोर्ट में नगर निगम कमिश्नर भी उपस्थित हुए थे।

14 मार्च को अगली सुनवाई, ट्रंक लाइन बिछाने वाली एजेंसी को बुलाया
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कई खामियों पर अफसरों को पकड़ा और लताड़ लगाई है। अब इस मामले में अगनी सुनवाई के लिए 14 मार्च का दिन तय किया है। साथ ही अगली सुनवाई पर अधिकारियों को संपूर्ण दस्तावेजों के साथ आने के लिए कहा है। इतना ही नहीं “स्वर्ण रेखा नदी’ में ट्रंक लाइन का काम करने वाली एजेंसी के इंजीनियर व अधिकारिों को भी उपस्थित होने के लिए निर्देश दिए हैं।

आप चाह रहे हैं कि हम रिटायर हो जाएंगे तो मामला ठंडा पड़ जाएगा
हाईकोर्ट ने इस मामले में नगर निगम के अफसरों को लताड़ लगाते हुए यह कहा कि आप चाह रहे हैं कि हम अगने माह रिटायर हो जाएंगे। उसके बाद यह याचिका धरी की धरी रह जाएगी और इस पर कुछ नहीं होगा। आप ऐसा मत सोचिए मैं, ऐसी नोट शीट बनाकर जाऊंगा और यहां पूरा रिकॉर्ड उपलब्ध रहेगा। नोटशीट में वह कहकर जाऊंगा, जिससे आने वाले जज भी ऐसे ही सुनवाई करते रहेंगे। इतना ही नहीं आप जिस तरह से हर बार गलत शपथ पत्र पेश कर रहे हैं उस पर भी मैं नोट शीट में लिखकर जाऊंगा कि इसके लिए जो अधिकारी जिम्मेदार हैं उनके खिलाफ अपराधिक केस चलाया जाए।

ऐसे समझिए पूरा मामला
ग्वालियर की स्वर्ण रेखा नदी के लिए हाईकोर्ट के अधिवक्ता विश्वजीत रतोनिया ने जनहित याचिका साल 2019 में दायर की थी। इससे पहले भी सुनवाई के दौरान कोर्ट नगर निगम कमिश्नर, स्मार्ट सिटी की सीईओ सहित कई अधिकारियों को फटकार लगा चुकी है। इससे पहले नगर निगम की ओर से शपथ पत्र दाखिल किया गया था। इसमें लापरवाही और गलतियों पर कोर्ट ने नाराज होते हुए अफसरों को आड़े हाथ लिया था। हर सुनवाई पर अफसरों को फटकार मिल रही है। कोर्ट ने पिछली सुनवाई में फटकार लगते हुए कहा था, ‘नगर निगम और उसके द्वारा पेश किए जा रहे शपथ पत्र न्यायालय का समय खराब कर रहे हैं। टेलिफोनिक चर्चा के आधार पर ही स्वर्ण रेखा नदी प्रोजेक्ट को लेकर रिपोर्ट पेश कर दी जाती है। यह गलत तरीका है।’

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