Gwalior :महापौर के लिए आठ चुनावी वादे पूरे करना चुनौती ….?
Gwalior Municipal chairman Elections: महापौर के लिए आठ चुनावी वादे पूरे करना चुनौती, नीतिगत निर्णयों में हावी रहेगा विपक्ष
नगर निगम परिषद में भाजपा का सभापति बनने से अब महापौर डा. शोभा सिकरवार के लिए आठ चुनावी वादे पूरा करना बड़ी चुनौती होगी।
ग्वालियर .. नगर निगम परिषद में भाजपा का सभापति बनने से अब महापौर डा. शोभा सिकरवार के लिए आठ चुनावी वादे पूरा करना बड़ी चुनौती होगी। इसका कारण यह है कि संख्या बल के हिसाब से विपक्ष हावी है और सभापति को मिलाकर उनकी संख्या 34 है, जबकि कांग्रेस के 25 पार्षदों के अलावा निर्दलीय और बसपा पार्षद का साथ है। फिर भी यह संख्या कम है। महापौर ने अपने संकल्प पत्र में आठ दावे किए थे, वे सभी नीतिगत निर्णय हैं। ये सभी परिषद में जाकर ही पूरे हो सकेंगे। इसके अलावा शहर में विकास कार्यों के लिए शासन स्तर से मिलने वाले अनुदान और निगम द्वारा मांगे गए बजट पर जरूर फर्क पड़ेगा।
जानकारों के मुताबिक परिषद में बने इस समीकरण से विकास कार्यों पर तो असर पड़ेगा, लेकिन महापौर मेयर इन काउंसिल के माध्यम से स्थानीय स्तर पर होने वाले कामों को करा सकेंगी। एमआईसी को पांच करोड़ तक के कार्य स्वीकृत करने का अधिकार है और वे इससे अधिक राशि के कार्यों को टुकड़ों यानी एक से अधिक फाइल बनाकर करा सकते हैं। महापौर ने अपने चुनावी संकल्प पत्र में 21 वादे किए थे। इनमें गार्बेज शुल्क को पूरी तरह से हटाना, संपत्तिकर वसूली के स्लैब में बदलाव करना, जलकर के बकाया बिलों को माफ करना और जलकर कम कम करना, 500 वर्गफीट के प्लाट पर भवन निर्माण के लिए शुल्क नहीं लेना, 1000 लोगों को स्वरोजगार के लिए 50-50 हजार रुपए देना, वीरांगना लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस को भव्य रूप से मनाना, विनियमित कर्मचारियों को नियमित कर ठेका प्रथा खत्म करने वअनुकंपा नियुक्ति समय सीमा में करने के अलावा भवन नामांतरण नियमों को सरल करने जैसे वादे हैं। ये सभी वादे परिषद में जाकर ही हल होंगे।
समन्वय नहीं बना, तो हर बिंदु पर होगी वोटिंग
यदि महापौर और सभापति के बीच समन्वय स्थापित नहीं होता है तो परिषद में हर छोटे-छोटे मुद्दे पर पार्षदों से वोटिंग कराई जाएगी। यह सभापति के अधिकार क्षेत्र का मामला होता है। इससे परिषद की कार्रवाई में समय लगेगा, साथ ही वोटिंग होने की स्थिति में सत्ता पक्ष को नुकसान उठाना पड़ेगा। इसके अलावा विपक्ष यदि किसी मुद्दे को पास कराना चाहता है, तो सभापति विशेष रूप से आयुक्त को बोलकर उस मुद्दे को एजेंडे में शामिल करा सकता है। ऐसी स्थिति में विपक्ष के नीतिगत निर्णय भी हो सकेंगे। इससे परिषद में टकराव की स्थिति निर्मित होगी।
मनमानी पर लगाम लगेगी
संख्या बल अधिक होने और सत्ता पक्ष का सभापति बनने से परिषद में एकतरफा फैसले होते हैं। मौजूदा परिषद को देखते हुए अब मनमानी पर लगाम लगेगी। कांग्रेस को अपने मुद्दे पास कराने में दिक्कत आएगी। सभापति चाहे तो हर मुद्दे पर वोटिंग करा सकते हैं।
विनोद शर्मा, रिटायर्ड आइएएस और पूूर्व निगमायुक्त
नीतिगत निर्णय पूरे नहीं होंगे
परिषद में नीतिगत निर्णय पहुंचते हैं। ये वो मुद्दे होते हैं, जिनमें करों या नियमों में बदलाव करना होता है। सत्ता पक्ष के ऐसे नीतिगत निर्णय परिषद में पूरे नहीं हो पाएंगे। विकास कार्यों के लिए एमआईसी के माध्यम से अप्रूवल मिल जाएगा।
रमाकांत चतुर्वेदी पूर्व सचिव नगर निगम परिषद
टकराव की स्थिति बनेगी
यदि महापौर और सभापति के बीच समन्वय स्थापित नहीं हुआ, तो परिषद में टकराव की स्थिति बनेगी। वर्तमान में मेयर इन काउंसिल को अधिकार बहुत हैं। फिर भी नीतिगत निर्णय तो परिषद में ही जाएंगे, जहां विरोध होगा।
लालजी जादौन पूर्व सभापति नगर निगम
विकास के मुद्दे पर दलगत भावना के ऊपर उठकर निर्णय किया जाएगा। जीत एक मत से हो या हजारों से, जीत तो जीत होती है। निर्दलीय पार्षद अपने मत देने के लिए स्वतंत्र थे। जो लोग इनकी खरीद-फरोख्त कर रहे थे। उनसे सवाल किए जाएं।
तनोज तोमर नवनिर्वाचित सभापति
कहां रणनीतिक चूक हुई इसकी समीक्षा करेंगे
जनमत का निर्णय सिरौधार्य है। कहां रणनीतिक चूक हुई है, इसकी समीक्षा की जाएगी। विकास के मुद्दे पर आम सहमति से परिषद को चलाने के लिए कांग्रेस पूरी कोशिश करेगी।
सतीश सिकरवार कांग्रेस विधायक