इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा SBI ने दो जगह क्यों बांटा !

इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा SBI ने दो जगह क्यों बांटा
एक्सपर्ट बोले- 24 घंटे में दे सकते हैं पूरा हिसाब, फिर क्यों चाहिए 4 महीने

आखिर SBI को इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा देने में क्या दिक्कत है और उसे इसके लिए इतना वक्त क्यों चाहिए, दैनिक भास्कर ने ये सवाल बैंकिंग सिस्टम में रहे एक्सपर्ट्स से पूछा। उनके मुताबिक, इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा देने में SBI को सिर्फ 24 घंटे लगेंगे। पता नहीं क्यों बैंक इसके लिए 4 महीने मांग रहा है।

इलेक्टोरल बॉन्ड का पूरा मामला इन 4 सवालों से समझिए

1. इलेक्टोरल बॉन्ड कैसे मिलता था?
केंद्र सरकार 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम लाई थी। SBI पॉलिटिकल पार्टियों को पैसे देने के लिए ये बॉन्ड जारी करता था। इन पर खरीदने वाले का नाम नहीं होता। इन्हें कोई भी खरीद सकता था, जिसके पास बैंक खाता हो और उसका KYC हुआ हो।

SBI की चुनिंदा ब्रांच से एक हजार, 10 हजार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा सकते थे। खरीदार इन्हें पार्टी को देता था और पार्टी उसे कैश करा सकती थी। इससे डोनर अपनी पहचान सामने लाए बिना पार्टी को चंदा दे सकता था।

2. SBI कैसे इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा रखता है?
SBI ने बॉन्ड के नंबर जैसी जानकारियां डिजिटली स्टोर करके रखी हैं, जबकि बॉन्ड खरीदने वालों के नाम, KYC जैसी जानकारियां फिजिकली रखी हैं। सारी जानकारियां डिजिटली नहीं रखी गईं, ताकि इन्हें आसानी से हासिल न किया जा सके। इतना ही नहीं, बॉन्ड खरीदने और उसे इनकैश करने वालों की जानकारियां भी अलग-अलग रखी हुई हैं। इसके लिए कोई सेंट्रल डेटाबेस नहीं बनाया गया।

3. SBI को डेटा देने में क्या दिक्कत है?
इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा अलग-अलग ब्रांच से मुंबई मेन ब्रांच भेजा गया था। इसमें डोनर्स और पार्टियों की जानकारियां अलग-अलग हैं, ताकि डोनर्स की गोपनीयता बनी रहे।

डोनर्स की डिटेल्स देने के लिए हर बॉन्ड के जारी होने की तारीख को डोनर की तरफ से खरीदे गए बॉन्ड की तारीख से मैच करना होगा। फिर इसको पार्टियों की तरफ से कैश कराए गए बॉन्ड्स की डिटेल से मैच करना होगा। SBI के मुताबिक, दोनों जानकारियों का मिलान करना जटिल प्रकिया है, इसलिए इसमें समय लगेगा।

4. इलेक्टोरल बॉन्ड का मामला कोर्ट क्यों गया?
इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ ADR ने 2018 में जनहित याचिका दायर की थी। ADR का कहना है कि चंदे का सिस्टम ट्रांसपेंरेंट होना चाहिए कि किसने किसे कितना पैसा दिया। अगर ऐसा नहीं होगा तो सरकारें या पार्टियां चंदा देने वाली कंपनी के फायदे के मुताबिक स्कीम, पॉलिसी या कानून ला सकती हैं।

SBI ने कोर्ट से कहा था कि हमें बॉन्ड के बारे में जानकारी देने में कोई दिक्कत नहीं है, इसके लिए कुछ समय चाहिए। इस बीच कोर्ट का आदेश न मानने का हवाला देकर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, यानी ADR ने SBI के खिलाफ कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट की शिकायत की थी। हालांकि, कोर्ट ने अवमानना का नोटिस नहीं दिया है।

इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए पॉलिटिकल पार्टियों को चंदे के तौर पर बड़ी रकम मिलती थी। इनकी वैधता पर सवाल उठाते हुए ADR ने याचिका लगाई थी। SBI ने 12 अप्रैल, 2019 से अब तक कुल 22,217 इलेक्टोरल बॉन्ड इश्यू किए हैं। सवाल है कि करीब 22,217 इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी देने के लिए SBI को साढ़े 4 महीने का समय क्यों चाहिए।

दैनिक भास्कर ने इस मसले पर पूर्व फाइनेंस सेक्रेटरी सुभाष चंद्र गर्ग, SBI के पूर्व चीफ जनरल मैनेजर सुनील पंत, पूर्व बैंकर अश्विनी राणा और इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ पिटिशन दायर करने वाले ADR के चेयरमैन त्रिलोचन शास्त्री, अर्थशास्त्री प्रसनजीत बोस से बात की।

पहले जानिए, SBI ने कोर्ट में क्या दलील दी

बॉन्ड खरीदने और इनकैश कराने वालों का सेंट्रल डेटाबेस नहीं
SBI के मुताबिक, बॉन्ड खरीदने वाले डोनर्स की जानकारियां सीलबंद कवर में SBI की ब्रांचेज में थीं, जहां से उन्हें मुंबई की मेन ब्रांच में डिपॉजिट किया गया। जब भी किसी पार्टी ने किसी ब्रांच से ये बॉन्ड इनकैश कराए, तो उनकी जानकारी मसलन बॉन्ड, पे-इन स्लिप भी सीलबंद लिफाफों में उन ब्रांच से मुंबई की मेन ब्रांच भेजी गईं।

हालांकि, मुंबई मेन ब्रांच में डोनर्स और पार्टियों की जानकारियां अलग-अलग रखी हुई हैं, ताकि डोनर्स की गोपनीयता बनी रहे। SBI ने कहा है कि डोनर्स की डिटेल्स देने के लिए उन्हें हर बॉन्ड के जारी होने की तारीख को किसी खास डोनर की तरफ से खरीदे गए बॉन्ड की तारीख से मैच करना होगा। फिर इसको पार्टियों की तरफ से कैश कराए गए बॉन्ड्स की डिटेल से मैच करना होगा।

SBI के मुताबिक, 12 अप्रैल, 2019 से अब तक 22,217 इलेक्टोरल बॉन्ड इश्यू हुए और इतने ही इनकैश कराए गए, यानी कुल 44,434 सेट इन्फॉर्मेशन को डिकोड, कम्पाइल और कम्पेयर करना है।

​​पूर्व फाइनेंस सेक्रेटरी बोले- SBI की दलील गलत, समय मांगना सिर्फ बहाना
2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत हुई थी, तब सुभाष चंद्र गर्ग इकोनॉमिक अफेयर्स सेक्रेटरी थे, यानी इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने में उनकी बड़ी भूमिका थी।

वे कहते हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट ने SBI से इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले खरीदारों, बॉन्ड की रकम और तारीख के साथ जानकारी देने की लिए कहा है। कोर्ट ने जो जानकारी मांगी, उसके लिए SBI को समय की जरूरत नहीं है। मेरे ख्याल से इसे 24 घंटे में दिया जा सकता है।

‘सुप्रीम कोर्ट ने SBI से बॉन्ड खरीदने वाले लोगों की जानकारी और पॉलिटिकल पार्टीज के कैश कराए बॉन्ड की रकम तारीख के साथ बताने के लिए कहा था। इसके जवाब में SBI की दलील पूरी तरह गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने SBI से हर बॉन्ड को उसके खरीदार और पॉलिटिकल पार्टी से जोड़ने के लिए नहीं कहा है। मेरी राय में SBI ऐसा कभी नहीं कर पाएगा।’

‘इलेक्टोरल बॉन्ड में कोई यूनीक कोड या अलग पहचान नहीं होती। इसमें बॉन्ड के कागज में एक सीक्रेट नंबर होता है, जिसे अल्ट्रा वॉयलेट लाइट में ही देखा जा सकता है। हालांकि, ये सिर्फ सेफ्टी के लिए और ये पक्का करने के लिए था कि नकली इलेक्टोरल बॉन्ड चलन में न आएं।’

‘ये सीक्रेट नंबर कहीं दर्ज नहीं किया जाता। इसलिए इस नंबर को किसी भी खरीदार, राजनीतिक दल या बॉन्ड की खरीद और भुनाने की तारीख से भी नहीं जोड़ा जा सकता।’

पूर्व जस्टिस दीपक गुप्ता बोले- बॉन्ड की जानकारी देना कुछ दिन का काम
SBI की दलीलों और ज्यादा वक्त मांगे जाने को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश दीपक गुप्ता ने भी गलत बताया है। जस्टिस दीपक गुप्ता उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने अप्रैल, 2019 में सभी पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग में जमा कराने का आदेश दिया था।

एक इंटरव्यू में दीपक गुप्ता ने कहा कि 2019 में ही सुप्रीम कोर्ट ने SBI को इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी तैयार रखने के लिए कहा था, ताकि अगर कोर्ट उनसे बॉन्ड्स की जानकारी मांगे तो वो उसे जल्द से जल्द मुहैया करा सकें। SBI को ये जानकारी देने में कुछ घंटे न सही, लेकिन ज्यादा से ज्यादा कुछ दिन ही लगने चाहिए।

SBI के पूर्व CGM बोले- बैंक ने वक्त मांगा है तो उसके पीछे कोई लॉजिक होगा
SBI के पूर्व चीफ जनरल मैनेजर सुनील पंत एससी गर्ग और जस्टिस गुप्ता से अलग राय रखते हैं। वे कहते हैं, ‘SBI जो समय मांग रहा है, वो लॉजिकल है। अगर आपके पास एक बॉन्ड है और आप कह रहे हैं कि बताइए इसे किसने लिया था, तो एक तरह से आप उसकी बेसिक इन्फॉर्मेशन तो मांग ही रहे हैं न।’

‘अगर डेटा इस तरह मेंटेन हुआ है कि वो पैसा एक बॉक्स में है और उसकी आइडेंटिटी दूसरे बॉक्स में है, अब आप कह रहे हैं कि ये पैसा किसने लिया, तो आपको दोनों को लिंक करना ही पड़ेगा। वरना आप कैसे कहेंगे कि पैसा किसने लिए थे। मैं ये नहीं कह रहा कि ऐसा करना नामुमकिन है। लिंकिंग तो हो जाएगी।’

सुनील पंत कहते हैं, ‘मैं ये मान कर चल रहा हूं कि अगर SBI ने पिटिशन लगाई है, तो उसे सोच-विचार करके ही लगाई होगी। ऐसे ही कैजुअली नहीं कहा होगा कि हमें 4 महीने का टाइम दे दीजिए। नहीं तो कोर्ट कहेगा 4 महीने क्यों, 6 महीने क्यों नहीं, 1 महीना क्यों नहीं। मतलब ये आपको जस्टिफाई करना पड़ेगा।’

‘आप जो भी स्टेटमेंट देंगे, वो किसी बेसिस पर ही देंगे। वो बेसिस क्या है, ये कह पाना मेरे लिए पॉसिबल नहीं है। स्टेट बैंक नॉर्मली लॉजिकली ऑपरेट करता है। इसमें भी कोई लॉजिक है, जिसकी वजह से ये बात कही गई है। उन्होंने कुछ तो आइडिया लगाया होगा।’

‘सुप्रीम कोर्ट ने जो जानकारियां मांगी हैं, उन्हें वेरिफाई करना है। इसे आप कैजुअली भी नहीं कर सकते। आप मेरा नाम लेकर कहें कि सुनील पंत ने 10 हजार करोड़ रुपए इन्वेस्ट किए थे और मैंने ऐसा नहीं किया था। वो सुनील पंत नहीं, कोई सुनील पाल थे, इसलिए ये दोनों पक्षों के लिए बहुत शर्मिंदा करने वाला हो सकता है।’

‘बैंक के खिलाफ मुकदमेबाजी हो सकती है कि आपने मेरे बारे में गलत जानकारी कैसे दे दी। इसलिए बैंक जब ये जानकारी देगा तो वो उसे पूरी तरह वेरिफाई करके देगा।’

सुनील पंत SBI के बैंकिंग सिस्टम के बारे में भी समझाते हैं। वे कहते हैं, ‘SBI में डेटा एंट्री का प्रोसेस बहुत सिंपल है। हमारे यहां कोर बैंकिंग सॉफ्टवेयर है। अगर कोई स्पेशल प्रोविजन है और उसके लिए स्पेशल सॉफ्टवेयर है, तो वो उससे अटैच हो जाता है। कोर डेटा तो उसी में मेंटेन होता है। बाकी जो ऑग्जिलरी डेटा है, वो रिलेटेड सॉफ्टवेयर या एप्लिकेशन में मेंटेन होता है।

‘इसी तरह से इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा भी मेंटेन किया गया है। बैंकिंग ट्रांजैक्शन यूनिट इसे हैंडल कर रही थी। उसके जरिए ये कलेक्ट हुए और इनका डेटा मेंटेनेंस हो रहा था।’

‘KYC के साथ आने वाला डेटा रिकॉर्ड हो जाता है, पर इलेक्टोरल बॉन्ड में पहचान नहीं होने से कोई मार्कर नहीं होता कि डेटा किसी के साथ लिंक हो सके। इसलिए जिसने उसमें पैसा इनवेस्ट किया या जिसे ये बॉन्ड हैंडओवर हुआ, वो डेटा उपलब्ध नहीं होता।’

पूर्व बैंकर बोले- SBI डेटा दे तो मुश्किल, न दे तो कोर्ट की अवमानना
बैंकिंग में इस्तेमाल होने वाले सिस्टम पर पूर्व बैंकर और वॉयस ऑफ बैंकिंग के फाउंडर अश्विनी राणा कहते हैं, ‘अलग-अलग बैंक अलग-अलग तरह के सर्वर और सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करते हैं। जनरल बैंकिंग ट्रांजैक्शन के लिए नेशनल सर्वर रहता है, लेकिन अगर कुछ स्पेशल स्कीम्स हैं, तो उसकी डेजिग्नेटेड ब्रांच अलग सर्वर पर टाईअप रहती हैं।’

‘शॉर्ट टर्म के लिए कोई स्कीम आती है, तो उसके लिए अलग सर्वर रहता है। वो डेटा बैंक के बड़े सर्वर पर नहीं रहता। इलेक्टोरल बॉन्ड के लिए 29 ब्रांच स्पेसिफाई थीं, जिसके जरिए ट्रांजैक्शन होता था।’

‘स्टेट बैंक पसोपेश में है कि अगर वो डेटा देता है, तो उसका कस्टमर के साथ रिलेशन में ब्रीच ऑफ कॉन्ट्रैक्ट होगा। अगर सुप्रीम कोर्ट कहता कि कस्टमर की जानकारी क्लोज कवर में दे दीजिए, तो स्टेट बैंक की अलग सोच होती, लेकिन ये डेटा ऑफिशियल वेबसाइट पर देना है। स्टेट बैंक जो कह रहा है, वो कुछ हद तक ठीक है।’

ADR बोला- पार्टियां चंदा लें, लेकिन सब ट्रांसपेरेंट हो
इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ ADR ने 2018 में जनहित याचिका दायर की थी। 2024 में उस पर फैसला आया है। SBI की तरफ से अब तक जानकारी न देने पर ADR ने कंटेम्प्ट भी फाइल किया है।

ADR के चेयरमैन त्रिलोचन शास्त्री के मुताबिक, ‘6 तारीख तक SBI को जानकारी देनी थी। उन्होंने नहीं दी तो 7 तारीख को हमने पिटिशन फाइल की।’

‘राजनीतिक दलों को पैसों की जरूरत है और वो चंदा इकट्ठा करें, लेकिन वो ट्रांसपेंरेंट होना चाहिए कि किसने किसे कितना पैसा दिया। इसका महत्व ये है कि किसी कंपनी ने किसी पार्टी को 500-1000 करोड़ रुपए दे दिए। उसके बाद हमें पता चला कि सरकार ने कोई पॉलिसी, स्कीम, कानून, टैक्स सब्सिडी या ऐसा कुछ दिया है जिससे उस कंपनी को फायदा होता है, चाहे वो जनता के हित में हो या न हो।’

‘तब लोगों को समझने की जरूरत है कि पैसे से सत्ता चलती है और सत्ता से पैसा बनता है। अगर ये चल रहा है, तो लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। पब्लिक का पैसा सरकार कंपनी के लिए क्यों दे।’

‘इलेक्टोरल बॉन्ड में किसने किसे कितना पैसा दिया, ये सीक्रेट हो गया। इसीलिए हमने जनहित याचिका डाली थी। 2 जनवरी, 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड का नोटिफिकेशन जारी हुआ था, उसके 6-8 हफ्ते में ही हमने पिटिशन फाइल कर दी थी। फैसला आने में करीब 6 साल लगे।’

SBI के और वक्त मांगने पर त्रिलोचन शास्त्री कहते हैं, ‘हम कई बैंकर से बात कर चुके हैं। एक रिटायर्ड सीनियर SBI अधिकारी ने हमसे कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा तो 1-2 घंटे में ही निकाल सकते हैं। आप 55 रुपए की सब्जी लेकर ऑनलाइन पेमेंट कर दो, तो तुरंत SMS आ जाता है कि आपके SBI अकाउंट से 55 रुपए घट गए, तो उनका तो रिकॉर्ड रहता है।’

‘कोई इलेक्टोरल बॉन्ड लेता है, तो चेक दिया होगा, ऑनलाइन ट्रांसफर किया होगा कि मुझे एक करोड़ का इलेक्टोरल बॉन्ड चाहिए। बॉन्ड लिया है, तो उसकी सिस्टम में एंट्री होती ही है। वो तो इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम है। ये तो बाएं हाथ का खेल है। उन्होंने प्रोसिजर जानबूझकर सीक्रेट रखा है।’

‘ज्यादातर बॉन्ड एक करोड़ रुपए के हैं। अगर कोई लेना चाहता है तो वो बैंक में एक करोड़ रुपए जमा करेगा और कुछ इन्फॉर्मेंशन देगा। बैंक पैसा लेकर उसके बदले एक करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड दे देगा। उसमें खरीदने वाले का नाम नहीं होगा। वो उसे किसी भी पॉलिटिकल पार्टी को दे सकता है।’

‘पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड मिलता है तो उन्हें पता नहीं होता कि किसने दिया है। उसे देखने से पता नहीं चलेगा, लेकिन देने वाला फोन करके बता देगा कि मैंने कूरियर भेज दिया है, उसमें एक करोड़ का इलेक्टोरल बॉन्ड है, उसको स्वीकार कर लीजिए।’

‘ये तो पहले ही तय हो जाता है कि पैसा आने वाला है। ये कहना कि इलेक्टोरल बॉन्ड पर नहीं लिखा, इसीलिए पार्टी को भी नहीं मालूम कि किसने पैसा दिया है, ये सब ड्रामा है। बिल्कुल मालूम होता है कि कौन किसे पैसा दे रहा है।’

‘करोड़ों का ट्रांजैक्शन किसी बुक में नहीं लिखते, उसे कम्प्यूटर सिस्टम में डालना पड़ता है। SBI का पूरा IT सिस्टम होता है। उसमें हर दिन रिकॉन्सिलिएशन होती है कि आज कितना पैसा गया, कितना खर्च हुआ, कैसे हुआ। ये तो नामुमकिन है कि उन्हें मालूम नहीं है और वो उसे IT सिस्टम से नहीं निकाल सकते।’

‘हर पॉलिटिकल पार्टी को इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना पड़ता है और वो ADR की वजह से आजकल पब्लिक हो गया है। हम वो आंकड़े इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से निकालते हैं। उसमें लिखा होता है कि किस पार्टी को पिछले साल कितना पैसा मिला। उनमें से कितना इलेक्टोरल बॉन्ड का है। क्या नहीं मालूम है कि इलेक्टोरल बॉन्ड कहां से मिले।’

‘सुप्रीम कोर्ट ने एक-एक पॉइंट को उठाकर बहुत बारीकी से उसका एनालिसिस करके फैसला सुनाया है। इससे पहले भी उन्होंने सील्ड कवर में आंकड़े मंगवाए थे। उन्होंने सोच समझकर फैसला लिया है कि 3 हफ्ते में ये काम हो सकता है।’

SBI अधिकारी बोले- बैंक के पास हर ट्रांजैक्शन की रिपोर्ट
इस बारे में दैनिक भास्कर ने SBI के एक सीनियर अधिकारी से बात की। हम उनकी पहचान उजागर नहीं कर रहे हैं। अधिकारी बताते हैं, ‘बैंकिंग में हर चीज की रिपोर्ट जनरेट होती है। Banks Link सॉफ्टवेयर में कोई भी एक्टिविटी होती है, तो उसकी रिपोर्ट जनरेट होती है। ब्रांच में होने वाले हर काम की रिपोर्ट जनरेट होती है। ब्रांच लेवल की रिपोर्ट रीजनल बिजनेस ऑफिस में देखी जा सकती है।’

‘हमारे पास सारा डेटा सेव रहता है। रिपोर्ट में ही सब कुछ होता है। हम सॉफ्टवेयर में एक तारीख से दूसरी तारीख तक का ट्रांजैक्शन देख लेते हैं। उसमें सारी चीजें रहती हैं कि कहां से पैसा आया, कहां गया है। इसमें ज्यादा समय नहीं लगता।’

‘इलेक्टोरल बॉन्ड की रिपोर्ट ब्रांच लेवल पर जनरेट नहीं होती, ये सीधे मुंबई के कॉर्पोरेट सेंटर पर जनरेट होती है। ये रिपोर्ट सिर्फ चेयरमैन देख सकते हैं, कोई दूसरा देख ही नहीं सकता। ये सब चीजें टॉप सीक्रेट रहती हैं। जिस ब्रांच में ये होता होगा, वहां रिपोर्ट जनरेट होती होगी।’

इकोनॉमिस्ट बोले- SBI के लिए डेटा मेंटेन रखना मामूली बात
अर्थशास्त्री प्रसनजीत बोस ने दैनिक भास्कर से बात करते हुए कहा, ‘SBI के इतना समय मांगने का लॉजिक समझ नहीं आ रहा। आज ज्यादातर ट्रांजैक्शन डिजिटल हैं। इसका रिकॉर्ड ऑटोमेटेड है। SBI को 4-5 साल पहले से पता है कि ये रिकॉर्ड देना पड़ेगा।’

‘अगर SBI ने ये रिकॉर्ड नहीं रखा है, तो वो ऑलरेडी सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर की अवहेलना कर चुका है। हालांकि, मैं नहीं मानता कि SBI के पास ये डेटा नहीं है। SBI में हर दिन लाखों ट्रांजैक्शन होते हैं, जिसका रिकॉर्ड बैंक के पास होता है। ये कुछ हजार बॉन्ड के लिए 4-5 एनालिस्ट लगाकर डेटा कलेक्ट करना आसान है। 4 महीने क्या, ये 4 दिन में होने वाली बात है। SBI के लिए रिकॉर्ड कीपिंग मामूली बात है।’

इलेक्टोरल बॉन्ड की जिम्मेदारी SBI के जिस ट्रांजैक्शन बैंकिंग यूनिट के पास थी, हमने उसके पूर्व CGM केपीएस रावत से कॉन्टैक्ट किया, लेकिन उन्होंने बात नहीं की। हमने SBI के ग्रुप चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्य कांति घोष को भी कॉल और मैसेज किए, लेकिन उनकी ओर से जवाब नहीं आया। जवाब आते ही उसे स्टोरी में अपडेट किया जाएगा।

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