नई पीढ़ी सच में गैर-जिम्मेदार है?

क्या हमारी नई पीढ़ी सच में गैर-जिम्मेदार है?

शुक्रवार तड़के जब मैं अपने घर से मुम्बई हवाई अड्डे के लिए रिक्शे में बैठा, तो मैंने 27 वर्षीय ऑटो चालक से उसका मूल स्थान पूछा। उसने कहा, ‘बिहार’। जब मैंने पूछा कि क्या वह 18वें लोकसभा चुनाव के लिए वोट डालने अपने गृहनगर जाएगा, तो उसने कहा- ‘नहीं’, और तर्क दिया कि ‘मेरे राज्य के कई लोग मतदान करने से चूक जाएंगे क्योंकि हम अपना वोटर कार्ड नहीं बनवा पाए हैं।

कुछ साल पहले हम अपने परिवार के लिए पैसे कमाने मुम्बई आए थे। गर्मियों की भीड़, परिवहन के सस्ते साधनों की कमी और अपनी दैनिक मजदूरी नहीं छोड़ पाने की मजबूरी के कारण इस बार भी हम जा नहीं पाएंगे।’ दुनिया के आधे से ज्यादा लोग (4.2 अरब) उन देशों में रहते हैं, जहां इस साल चुनाव हो रहे हैं। भारत से लेकर इंडोनेशिया और ब्रिटेन से लेकर अमेरिका तक 70 से अधिक देशों में करीब 2 अरब लोग चुनावों में वोट डालने जाएंगे।

भारत में भी दुनिया की सबसे बड़ी चुनावी प्रक्रिया शुरू हो गई है, लेकिन आंकड़ों की मानें तो 18 और 19 साल के कई युवा इसका हिस्सा नहीं बन सकेंगे। चुनाव आयोग द्वारा एक पखवाड़े पहले जारी किए आंकड़ों के मुताबिक, मतदान के लिए पंजीकृत 18 और 19 आयु वर्ग के मतदाताओं की संख्या 1.8 करोड़ है (यह संख्या थोड़ी बढ़ गई होगी, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं)। यह उनकी 4.9 करोड़ की अनुमानित जनसंख्या का केवल एक-तिहाई है।

आंकड़े बताते हैं इनमें से बमुश्किल 38% पहली बार मतदान करने वाले हैं और उन्हें इस बात में कम ही दिलचस्पी मालूम होती है कि उनका भविष्य कैसा होगा। क्या यह उन्हें सचमुच गैर-जिम्मेदार बनाता है? मुझे ऐसा नहीं लगता। 1980 में हुए 7वें लोकसभा चुनाव में मतदान के लिए मैं भी पात्र था। मैं बम्बई (अब मुम्बई) में स्थानांतरित हो गया था और किसी स्थायी पते के बिना पेइंग गेस्ट के रूप में रहता था। मेरे पिता की रेलवे नौकरी- जिसमें बार-बार तबादले होते थे- के कारण भी हमारा राशन कार्ड हमेशा ट्रांजिट मोड में रहता था। इन कारणों से मैं अपना वोटर कार्ड नहीं बना सकता था।

इसलिए मैं 1984, 1989 और 1991 में हुए 8वें, 9वें और 10वें लोकसभा चुनावों में मतदान नहीं कर सका था, जबकि मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई थी। तब मेरी उम्र के युवा शिक्षा पूरी करने या परिवार को आर्थिक सहायता देने के लिए किसी अच्छी नौकरी की तलाश में रहते थे। अगर आप यूपी और बिहार जैसे राज्यों के इन छोटे कामगारों को देखें तो उनमें से कई लोग एक दिन का काम भी नहीं छोड़ सकते।

कोई आश्चर्य नहीं कि देश की सबसे युवा आबादी वाले बिहार में ऐसे संभावित 54 लाख (17%) मतदाताओं में से केवल 9.3 लाख ही नामांकन करा पाए हैं। एक अन्य युवा राज्य यूपी केवल 23% पंजीकरण ही करा पाया है। ऐसा नहीं है कि हमारे देश की राजधानी इससे बेहतर है, जहां राजनीति रोजमर्रा की खुराक हुआ करती है। दिल्ली में 7.2 लाख (21%) में से केवल 1.5 लाख पंजीकृत हैं और महाराष्ट्र जैसे समृद्ध राज्यों में भी यह आंकड़ा 27% ही है।

मैं समझता हूं कि गरीब दिहाड़ी मजदूर और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए दूरदराज के स्थानों पर पढ़ने वाले छात्र गैर-जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि ये कड़ी मेहनत करते हैं जो अपने परिवार की आर्थिक तंगहाली को दूर करने के लिए रोज 16 घंटे तक काम करते हैं। हालांकि ये और जिम्मेदार हो जाते, अगर ये खुद ही मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वा लेते।

 …हमारी आने वाली पीढ़ी परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाने के लिए पर्याप्त जवाबदेह नहीं है। यह उनका नहीं हमारा काम है- यानी पैरेंट्स या सरकार का- कि टेक्नोलॉजी की मदद से उन्हें मतदान के लिए पात्र बनाएं।

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