क्या वाक़ई लोकसभा चुनाव इस बार एकतरफ़ा होने जा रहा है?

क्या वाक़ई लोकसभा चुनाव इस बार एकतरफ़ा होने जा रहा है?

पहले यह केवल संभावना जताई जा रही थी कि लोकसभा चुनाव इस बार पहली बार एकतरफ़ा होने जा रहे हैं, लेकिन अब प्रचार के लिए हो रही दोनों पक्षों की सभाओं-रैलियों को देखकर वाक़ई लगने लगा है कि इस बार सब कुछ एकतरफ़ा ही होगा। दरअसल, विपक्ष की कमजोरी भी भाजपा की लगातार विजय का बड़ा कारण है।

पिछले दस साल से विपक्ष इस कड़वे सच को समझना ही नहीं चाह रहा है। उसे हर बार अपनी हार के बाद कभी मीडिया, कभी चुनाव आयोग और कभी वोटिंग मशीन जैसे कारण ही नज़र आते हैं। अपनी ख़ामियों की तरफ़ कोई देखना ही नहीं चाहता। न कांग्रेस और न विपक्षी क्षेत्रीय पार्टियाँ।

कांग्रेस ने लेकिन फिर भी कोई सबक़ नहीं लिया। वह किसी को आगे लाकर राहुल को कुछ साल विश्राम नहीं देना चाहती।
कांग्रेस ने लेकिन फिर भी कोई सबक़ नहीं लिया। वह किसी को आगे लाकर राहुल को कुछ साल विश्राम नहीं देना चाहती।

कांग्रेस के तो हाल ही अलग हैं। राहुल गांधी ने पिछले दस सालों में अपनी तमाम कोशिशें कर लीं, लेकिन ज़्यादातर चुनावों में असफलता ही हाथ लगी। यहाँ तक कि कई मुद्दे ऐसे सामने आए जिन्हें प्रमुख विपक्षी पार्टी के नाते वे बड़े ज़ोर-शोर से उठा सकते थे, लेकिन उन्हें यात्राओं का शौक़ लग गया। सारा दारोमदार उत्तर और मध्य भारत पर टिका हुआ है, लेकिन वे बार-बार मणिपुर की यात्रा करते रहे। अमेठी छोड़ वे वायनाड की ओर भाग खड़े हुए।

अगर आप को भारत पर राज करना है तो सबसे पहले हिंदी पट्टी में जूझना होगा। सब कुछ जानते हुए कांग्रेस इस सच को समझने को तैयार नहीं है। न पहले कभी थी, न आज और अब। गांधी परिवार ही जब राज्यसभा की राह पकड़ ले या हिंदी पट्टी में चुनाव लड़ने से बचता फिरे तो लोकसभा चुनाव में बहुमत का सपना कैसे देखा जा सकता है भला?

तक़रीबन एक साल पहले इंडी गठबंधन खड़ा किया गया तो लगा था कि कांग्रेस विपक्ष के साथ लगभग सभी लोकसभा सीटों पर भाजपा के मुक़ाबले एक साझा प्रत्याशी खड़ा करने में कामयाब हो जाएगी, लेकिन ऐसा हो न सका। एक के बाद एक ज़्यादातर राजनीतिक पार्टियाँ कांग्रेस के सामने बिखरती गईं।

इंडी गठबंधन में कोई बड़ा दल नहीं रह गया। भाजपा ने कांग्रेस का यह खेल भी बुरी तरह से बिगाड़ कर रख दिया। कांग्रेस ने लेकिन फिर भी कोई सबक़ नहीं लिया। वह किसी को आगे लाकर राहुल को कुछ साल विश्राम नहीं देना चाहती। चुनाव दर चुनाव आते जाते हैं और राहुल गांधी जीत की अपनी महत्वाकांक्षा को और भी पंख देते जाते हैं। आख़िर उनके ये पंख काम नहीं आते।

उनके कई नेताओं ने पार्टी से किनारा कर लिया। सब के सब भाजपा से जा मिले, लेकिन कार्यकर्ताओं के मनोबल को बनाए रखने के लिए भी इस पार्टी ने कोई प्रयास नहीं किए। अब लोकसभा चुनाव का प्रचार अपने चरम पर पहुँच गया है, लेकिन कांग्रेस की हवा बनने में अब भी देर है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *