कब-कब विवादों में फंसी नेस्ले ?

नेस्ले से जुड़े विवाद: बच्चों से गुलामी, प्लास्टिक पॉल्यूशन, पानी की चोरी और बर्बादी… कंपनी पर लग चुके हैं ऐसे आरोप
पाकिस्तान में पानी की कमी बड़ी समस्या है. वहीं नेस्ले पर जमीन के नीचे के पानी का गलत इस्तेमाल करने का आरोप है. कहा जाता है कि कंपनी के कारखानों की वजह से वहां जमीन के नीचे पानी का स्तर कम हो रहा है.

स्विट्जरलैंड की कंज्यूमर गुड्स कंपनी नेस्ले एक बार फिर से विवादों में है. जांच में पाया गया है कि नेस्ले भारत में बिकने वाले अपने बेबी प्रोडक्ट्स में जरुरत से ज्यादा चीनी का इस्तेमाल करती है. जबकि कंपनी अपने इन्हीं प्रोडक्ट्स को यूरोप, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे विकसित देशों में बिना चीनी के बेचती है.

भारत में कंपनी के भेदभाव वाले रवैये ने अब नेस्ले की मुश्किलें बढ़ा दी है. भारत की खाने की चीजों की जांच करने वाली संस्था (FSSAI) इस मामले की जांच कर रही है. FSSAI ने कहा है कि वो इस मामले की पूरी जांच करेगी. अगर नेस्ले कंपनी की गलती पाई गई तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

ये पहली बार नहीं है जब नेस्ले पर प्रोडक्ट्स पर सवाल उठे हैं. इससे पहले भी भारत और विदेशों में कंपनी के तमाम प्रोडक्ट्स पर विवाद हो चुका है. इस स्पेशल स्टोरी में इन विवादों के बारे में अच्छे से जानिए.

पहले जानिए क्या है नेस्ले के बेबी प्रोडक्ट के साथ विवाद
एक रिपोर्ट के अनुसार, नेस्ले गरीब देशों जैसे भारत में बेचे जाने वाले बच्चों के दूध में चीनी मिलाता है, जबकि यूरोप या ब्रिटेन जैसे अमीर देशों में नहीं मिलाता. ये खुलासा तब हुआ जब स्विट्जरलैंड के एक खोजी संगठन ‘पब्लिक आई’ और शिशु आहार पर नजर रखने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन आईबीएफएएन ने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में बिकने वाले नेस्ले के बच्चों के खाने के सैंपल इकट्ठा कर बेल्जियम की एक लैब में जांच के लिए भेजे.

भारत में 2022 में नेस्ले की बिक्री 25 करोड़ डॉलर से भी ज्यादा रही. दावा किया जा रहा है कि नेस्ले के सेरेलैक (Cerelac) और निडो बेबी प्रोडक्ट (Nido Baby Product) में प्रति सर्विंग लगभग 3 ग्राम चीनी है. ‘पब्लिक आई’ की जांच में ये पाया गया कि जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन में 6 महीने के बच्चों के लिए बेचे जाने वाले गेहूं से बने नेस्ले के सेरेलैक में कोई अतिरिक्त चीनी नहीं होती. वहीं इथियोपिया में इसी प्रोडक्ट के एक डिब्बे में 5 ग्राम और थाईलैंड में 6 ग्राम से ज्यादा चीनी होती है.  

गौर करने वाली बात ये है कि नेस्ले की वेबसाइट पर बच्चों के खाने के बारे में जानकारी दी गई है. वहां साफ लिखा है, ‘बच्चों का खाना बनाते समय चीनी या मीठे पेय न डालें. कुछ पोषण और स्वास्थ्य विशेषज्ञ पहले साल में फलों का जूस देने से भी बचने की सलाह देते हैं, क्योंकि उनमें भी प्राकृतिक रूप से काफी चीनी होती है. मिक्स जूस या अन्य मीठी चीजें बच्चों को न देने की सलाह की जाती है. हमेशा पैकेट पर लिखी जानकारी ध्यान से पढ़ें.’ लेकिन अफसोस की बात है कि ये सलाह नेस्ले खुद उन प्रोडक्ट्स पर लागू नहीं करता जो वो गरीब और मध्यम आय वाले देशों में बेचता है.

नेस्ले ने विवाद पर क्या कहा
हालांकि नेस्ले कंपनी ने इस पूरे विवाद पर अपनी सफाई दी है. कंपनी ने कहा, “हम बच्चों के खाने में सही मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, मिनरल्स और आयरन जैसी जरूरी चीजें डालते हैं. हम अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी के साथ कोई समझौता नहीं करते. हम अपने ग्राहकों को सबसे अच्छा और पौष्टिक प्रोडक्ट देने के लिए लगातार काम करते हैं.” 

नेस्ले इंडिया के प्रवक्ता ने कहा, “नियमों का पालन करना हमारे लिए अहम है. हम इस पर कभी समझौता नहीं करेंगे. नेस्ले इंडिया के लिए अतिरिक्त चीनी कम करना प्राथमिकता है. पिछले 5 सालों में हमने अलग-अलग प्रोडक्ट पर पहले ही 30% तक अतिरिक्त चीनी कम कर दी है. हम नियमित रूप से अपने उत्पादों की समीक्षा करते हैं. हम 100 से ज्यादा सालों से काम रहे हैं और हम हमेशा अपने उत्पादों में पोषण, गुणवत्ता, सुरक्षा के उच्चतम मानकों को बनाए रखेंगे.” 

नेस्ले मैगी नूडल्स का विवाद याद है आपको?
नेस्ले का भारत में सबसे बड़ा ब्रांड था मैगी नूडल्स. मगर साल 2015 में भारत में मैगी नूडल्स बेचना बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. देश की सभी दुकानों पर करीब 38,000 टन मैगी नूडल्स कंपनी ने वापस ले लिया था और बाद में नष्ट कर दिया था. इस वापसी का नेस्ले इंडिया पर बहुत बड़ा नुकसान हुआ था. मैगी का मार्केट शेयर 80% से गिरकर सीधे 0% पर आ गया था. मैगी की बिक्री से उस वक्त नेस्ले इंडिया की कमाई का 25% से ज्यादा हिस्सा आता था, इसलिए ये पाबंदी कंपनी के लिए भारत में उसके पूरे कारोबार के लिए खतरा बन गई थी.

ये सारा विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब मार्च 2014 में उत्तर प्रदेश सरकार में फूड सेफटी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के फूड इंस्पेक्टर संजय सिंह ने नियमित जांच के दौरान पाया कि मैगी नूडल्स में कुछ गड़बड़ है. उनको संदेह हुआ कि जिन मैगी नूडल्स के पैकेट पर लिखा था कि उनमें कोई अतिरिक्त MSG (मोनोसोडियम ग्लूटामेट) नहीं है, असल में उसमें MSG था. उन्होंने जांच के लिए एक पैकेट को गोरखपुर स्थित लैब में भेज दिया. जांच में MSG पाया गया. इसके बाद जून 2014 में कोलकाता की सेंट्रल फूड लेबोरेट्री में एक और टेस्ट कराए गए. लगभग एक साल बाद अप्रैल 2015 में नतीजे सामने आए. जांच में पता चला कि प्रोडक्ट में MSG और लेड दोनों है. साथ ही ये भी पता चला कि मैगी नूडल्स में जो लेड की मात्रा बताई जा रही थी, असल में उससे 1000 गुना ज्यादा लेड था.

इसके अगले महीने मई 2015 में नेस्ले ने पहली बार आधिकारिक बयान जारी कर ग्राहकों को आश्वस्त करने की कोशिश की. कंपनी ने कहा कि मैगी सुरक्षित है और वो कोई गलत चीज नहीं मिलाते हैं. मगर फिर भारत में खाने की सुरक्षा की जांच करने वाली संस्था (FSSAI) ने इस मामले को गंभीरता से लिया. 5 जून 2015 को FSSAI ने आदेश दिया कि सभी मैगी नूडल्स को तुरंत बाजार से हटाया जाए. मतलब FSSAI ने नेस्ले की मैगी पर पाबंदी लगा दी.

अमेरिका में माओं को स्तनपान से रोकने का आरोप
अमेरिका में नेस्ले पर आरोप लगा कि कंपनी माओं को बच्चों के लिए अपना दूध पिलाने से रोकती है ताकि उनका बेबी फॉर्मूला (दूध पाउडर) ज्यादा बिके. कंपनी ये दावा करती थी कि उसका बेबी फार्मूला प्रोडक्ट ज्यादा सेहतमंद है, जबकि इस बात के कोई ठोस सबूत नहीं थे.

ये बात है साल 1977 की. लोगों को कंपनी की ये बात बहुत बुरी लगी और अमेरिका में नेस्ले के सामान का बहिष्कार (बॉयकॉट) शुरू हो गया. बाद में, ये बहिष्कार यूरोप के देशों तक भी फैल गया था. ये बहिष्कार 1984 तक चलता रहा. आखिरकार नेस्ले कंपनी को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के कुछ नियम मानने पड़े और उसके बाद ही अमेरिका में ये बहिष्कार रुका. मतलब यह है कि नेस्ले ने कुछ गलत तरीके अपनाकर अपना सामान बेचने की कोशिश की जिसकी वजह से उसका बहुत विरोध हुआ.

बच्चों से गुलामी कराने का आरोप
नेस्ले को बच्चों से खेतों में जबरदस्ती मजदूरी कराने के आरोपों को लेकर भी कानूनी पचड़ों का सामना करना पड़ा है. यूटोपिया डॉट ओआरजी की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में नेस्ले पर आरोप लगा कि वो आइवरी कोस्ट के कोकोआ फार्मों में बच्चों से जबरदस्ती मजदूरी करवाती है. कुछ पूर्व बाल मजदूरों ने नेस्ले पर मुकदमा भी दायर किया था. उन्होंने कहा कि कंपनियों को मालूम था कि अवैध रूप से बच्चों को गुलाम बनाकर काम करवाया जा रहा है, मगर फिर भी उन्होंने कुछ नहीं किया.

हालांकि 2022 में एक अमेरिकी अदालत ने इस मामले को खारिज कर दिया क्योंकि ये साबित नहीं हो पाया कि नेस्ले का सीधा संबंध किन खास खेतों से था जहां ये बच्चे काम करते थे.

नेस्ले पर पानी चुराने का आरोप
साल 1988 में नेस्ले पर पानी चुराने का आरोप भी लग चुका है. अमेरिका के कैलिफोर्निया में अक्सर सूखा पड़ता है वहां पानी की बहुत कमी हो जाती है. इसके बावजूद 1988 से नेस्ले वहां एक जंगल से पानी निकाल रहा थी और उसके लिए बहुत ही कम पैसा देता था. उसका पानी निकालने का परमिट भी खत्म हो गया था. लोगों का कहना था कि जब राज्य को पानी की इतनी जरूरत है तो नेस्ले को इतने सस्ते में पानी निकालने की इजाजत नहीं देनी चाहिए. इस मामले में अमेरिका की अदालतों में कई याचिकाएं डाली गई.

साल 2023 में नेस्ले ने फ़्रेस्नो काउंटी की अदालत में एक याचिका दायर की. इसमें उसने कैलिफोर्निया के वॉटर बोर्ड के उस फैसले को चुनौती दी, जिसमें बोर्ड ने नेस्ले को पानी निकालने से रोका था. नेस्ले का दावा है कि बोर्ड ने ‘कैलिफोर्निया कानून की अनुमति से कहीं ज्यादा’ हस्तक्षेप किया है और वो ऐसा नहीं कर सकते. 

मतलब ये विवाद पानी को लेकर है. नेस्ले जहां पानी निकालतe है, वहां के लोग चाहते हैं कि सूखे के समय नेस्ले ये काम न करे या फिर इसके लिए उचित कीमत दे.

प्लास्टिक प्रदूषण में सबसे आगे!
नेस्ले पर एक आरोप ये भी है कि उसके सामान की पैकिंग के लिए बहुत सारा प्लास्टिक इस्तेमाल होता है. पर्यावरण की चिंता करने वाले लोग कहते हैं कि नेस्ले प्लास्टिक के कचरे को सही से नहीं हटाती, जिससे प्रदूषण फैसता है. 

यूटोपिया डॉट ओआरजी की रिपोर्ट के मुताबिक नेस्ले की पैकेजिंग से प्लास्टिक प्रदूषण होता है. हालांकि नेस्ले का दावा है कि वो 2025 तक 95% से ज्यादा प्लास्टिक पैकेजिंग को रिसाइकल करने लायक बना देगी. लेकिन आरोप हैं कि कंपनी प्लास्टिक का जलाकर निपटारा करती है जिससे और भी ज्यादा प्रदूषण फैलता है.

जमीन के नीचे के पानी का गलत इस्तेमाल?
वहीं पाकिस्तान में भी नेस्ले के खिलाफ शिकायतें हैं. वहां के लोग कहते हैं कि नेस्ले की वजह से जमीन के नीचे के पानी का स्तर घट रहा है और पानी भी गंदा हो रहा है. पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई फॉरेंसिक जांच रिपोर्ट में भी पानी की बर्बादी की बात सामने आई है. इन सबूतों के बाद नेस्ले के जल प्रबंधन पर सवाल खड़े हो गए हैं.

पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई फॉरेंसिक जांच रिपोर्ट में पाया गया कि नेस्ले बहुत ज्यादा पानी बर्बाद कर रही है. ये रिपोर्ट नेस्ले के मैनेजमेंट के दावों के उलट है. रिपोर्ट में बताया गया कि नेस्ले पाकिस्तान के मैनेजमेंट का कहना था कि पानी साफ करने की प्रक्रिया (रिवर्स ऑस्मोसिस) में सिर्फ 15% पानी बर्बाद होता है, लेकिन वो बाकी के 28% पानी की बर्बादी को जायज नहीं ठहरा सके. इसके अलावा आरोप ये भी है कि नेस्ले इस पानी के लिए कोई भुगतान नहीं करता है. 

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