मंगलसूत्र के बाद राजा-महाराजा की फ़िक्र !

मंगलसूत्र के बाद राजा-महाराजा की फ़िक्र

आप यकीन मानिये कि मै देश के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा भक्त हूँ,लेकिन अंधभक्त नहीं ,क्योंकि मेरी दोनों आँखें अभी काम कर रहीं है । मै जब तक प्रात;स्मरणीय मोदी जी वंदना न कर लूं मुझे चैन नहीं पड़ता । मोदी जी के अंधभक्त इसे मेरा मनोविकार मानते हैं, लेकिन मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सचमुच मोदी जी जैसा अद्भुत नेता न अतीत में कभी हुआ हुई और न शायद भविष्य में कभी हो। मोदी जी में दशावतारों के सभी लक्षण मौजूद हैं।

मोदी जी अठारहवीं लोकसभा के चुनाव प्रचार में अपनी गारंटियों के साथ उपस्थित हुए थे । उन्होंने अपनी उपलब्धियों का डंका पीटने के बजाय सीधे-सीधे मोदी जी की गारंटियां जनता के सामने रखीं थी । अपनी पार्टी के लिए 370 और अपने गठबंधन के लिए 400 पार का लक्ष्य भी रखा था। भाजपा के सभी लोकसभा प्रत्याशियों के नाम अलग थे किन्तु चेहरा एक था और वे चेहरा था मोदी जी का। मोदी जी ने अपना 56 इंच का सीना ठोंक कर पहले ही कहा था कि वे तीसरी बार भी प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। मोदी जी की राजहठ के सामने पूरे देश को झुकना चाहिए था। देश शायद झुकता भी किन्तु इन विपक्षी दलों ने सब कुछ मटियामेट कर दिया।

चुनाव के पहले चरण में ही मतदान के बाद मोदी जी अपनी गारंटियों और 400 पार के लक्ष्य को तिलांजलि दे दी। मोदी जी ने देश की महिलाओं के सामने उनके मंगलसूत्र के खतरे की बात पुख्तगी के साथ रखा । मोदी जी के राज में पहले हिन्दू ,बाद में सनातन खतरे में पड़ा और अब अचानक देश की महिलाओं के मंगलसूत्र पर खतरा मंडराने लगा। मोदी जी ने ईमानदारी से अपने अंधभक्तों के साथ ही दीगर प्रशंसकों को साफ़-साफ़ बता दिया कि यदि कांग्रेस सत्ता में आयी तो हिन्दू महिलाओं का मंगलसूत्र छीन लिया जाएगा मोदी जी का मंगलसूत्र प्रेम देखकर देश की महिलाओं के साथ-साथ श्रीमती मोदी भी खुश हो गयीं,क्योंकि वे तो मानकर चल रहीं थीं की मोदी जी को मंगलसूत्र के बारे में कुछ माहिती है ही नहीं । हकीकत भी है कि माननीय मोदी जी ने इससे पहले सार्वजनिक जीवन में रहते हुए न अपनी पत्नी के मंगल सूत्र की बात कभी की थी और न देश की महिलाओं के मंगलसूत्र की।

सवाल ये है कि पहले चरण के मतदान के बाद ही माननीय मोदी जी ने कैसे मान लिया की कांग्रेस सत्ता में आ रही है ? मेरे हिसाब से कांग्रेस का मोदी जी के रहते सत्ता में वापस लौटना मुमकिन नहीं है ,लेकिन मोदी जी इस बारे में मुझसे ज्यादा जानते हैं। देश की महिलाये अपने-अपने मनागलसूत्र को लॉकर्स में रखने के बारे में सोच ही रहीं थीं कि दूसरे चरण का मतदान भी हो गया। इसके बाद न जाने क्या हुआ की माननीय मोदी जी ने मंगलसूत्र की रक्षा को भी तिलांजलि दे दी और अचानक कहने लगे की देश की जनता पर विरासत कर लगा दिया जायेगा,बाशर्त की कांग्रेस सत्ता में आयी ।

मुझे हैरानी है कि माननीय मोदी जी खुद और अपनी पार्टी को किसी एक केंद्रीय मुद्दे पर क्यों नहीं ठहरने दे रहे। इससे पहले की विरासत कर के बारे में मतदाता जान पाता कि मोदी जी ने उसे भी तिलांजलि दे दी और तीसरे चरण के मतदान के ठीक पहले कांग्रेस द्वारा देश के राजाओं-महाराजाओं के अपमान का मुद्दा पेश कर दिया है माननीय मोदी जी ने कर्नाटक में आधा दर्जन आम चुनावी सभाओं में जोर देकर कहा कि कांग्रेस के शहजादे को हमारे राजा-महाराजाओं के योगदान याद नहीं आते। ये वोटबैंक की राजनीति के लिए राजा-महाराजाओं के खिलाफ बोलने की हिम्मत करते हैं और नवाबों, बादशाहों और सुल्तानों के खिलाफ एक शब्द बोलने की ताकत नहीं है। कांग्रेस को देश की उपलब्धियां अच्छी नहीं लगती। कोरोना वैक्सीन पर भी सवाल उठाए थे।

मोदी जी के राजा -महाराजा प्रेम से मै भी वाकिफ नहीं था । वो तो पिछले दिनों माननीय मोदी जी ने खुद ग्वालियर आकर इसका मुजाहिरा किया । उन्होंने हमारे ग्वालियर के तेजस्वी महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना दामाद बताया,क्योंकि सिंधिया की पत्नी गुजरात के बड़ोदरा महाराज की बेटी और अब ग्वालियर कि महारानी हैं। आपको बता दूँ कि मोदी जी की ही पार्टी ने उनके धर्म दामाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को 2019 के आम चुनाव में गुना सीट से हरा दिया था। लेकिन मोदी जी ने 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में शामिल करा कर अपने और अपनी पार्टी के पाप का प्रायश्चित कर लिया । मोदी जी ने सिंधिया को नजराने के तौर पर राज्य सभा का टिकिट और केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगहभी दी। अब 2024 के चुनाव में माननीय मोदी जी गुना से सिंधिया को जिताने का अल्टीमेटम अपनी पार्टी को दे चुके हैं । मोदी जी ने महाराजा के लिए रैंक केपी सिंह यादव का टिकिट बड़ी बेरहमी से काटा।

मोदी जी जानते हैं कि जब कांग्रेस राजा-महाराजाओं की सनातन विरोधी रही है । कांग्रेस ने राजा-महाराजाओं को अपना चक्र बना लिया था। कांग्रेस के आज के शाहजादे राहुल गांधी का जन्म भी नहीं हुआ था तब उनकी दादी और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी जी ने राजा -महाराजाओं के प्रीविपर्स बंद कर दिया था। आपको बता दूँ कि 1947 में जब भारत आजाद हुआ उस समय लगभग 565 रजवाड़े या देशी रियासतें थीं, जिन्हें ‘प्रिंसली स्टेट ‘ कहा जाता था। और सरदार पटेल के प्रयासों से रजवाड़ों का भारतीय संघ में विलय हुआ।भारत सरकार ने राजाओं-महाराजाओं को वचन दिया था कि उन्हें अपने परिवार, निजी स्टाफ और राजमहलों के रख-रखाव के लिए सरकारी कोष से कुछ धनराशि दी जायेगी। इस संबंध में यह भी व्यवस्था की गयी थी कि राजाओं के जीवन काल में यह धनराशि उन्हें मिलती रहेगी, पर उसके उत्तराधिकारियों के लिए यह राशि धीरे-धीरे कम कर दी जायेगी। इसी राशि को प्रिवी पर्स कहते हैं।

दरअसल राजा-महाराजाओं को ये रकम गरीब जनता कि गाढ़ी कमाई में से दी जाती थी इसलिए कांग्रेस के शहजादे राहुल गांधी की दादी श्रीमती इंदिरा गाँधी ने प्रिवी पर्स की समाप्ति सन 1971 मेंकर दी । सितंबर 1970 में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने प्रिवी प्रर्स को समाप्त करने के लिए लोकसभा में एक संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। लोकसभा में तो इसे दो-तिहाई बहुमत मिल गया, पर राज्यसभा में इसके पक्ष में आवश्यक विशेषाधिकार समाप्त कर दिये।लेकिन 15 दिसंबर, 1970 को उच्चतम न्यायालय ने इस अध्यादेश को अवैध करार दे दिया। परंतु इंदिरा गाँधी की सरकार इस प्रिवी पर्स को खत्म करने के लिए दृढ़ संकल्प थी। 1971 में इंदिरा सरकार को शानदार जीत हासिल हुई और फिर 25वें संशोधन अधिनियम द्वारा देशी रियासतों के शासकों के प्रिवी पर्स और विशेषाधिकार समाप्त कर दिये गये।

दिलचस्प बात ये है कि आज माननीय मोदी जी जिन राजा-महाराजाओं के मान-सम्मान की गुहार लगा रहे हैं उन राजा -महाराजाओं में सबसे ज्यादा प्रिसी पर्स मैसूर के राजपरिवार को मिला, जो 26 लाख रुपए सालाना था। हैदराबाद के निजाम को 20 लाख रुपए मिलते थे वैसे प्रिवी पर्स की रेंज भी काफी दिलचस्प थी। काटोदिया के शासक को प्रिवी पर्स के रूप में महज 192 रुपए सालाना की रकम ही मिली। 555 शासकों में 398 के हिस्से 50 हrजार रुपए सालाना से कम की रकम आई.। 1947 में भारत के खाते से सात करोड़ रुपए प्रिसी पर्स के रूप में निकले। 1970 में ये रकम घटकर चार करोड़ रुपए सालाना रह गई। बहरहाल आप आज यदि तीसरे चरण के मतदाता हैं तो सोचकर वोट डालिये कि आपको राजाओं के मान की फ़िक्र है या उस रैंक के मान-सम्मान कि जो पांच किलो अनाज के लिए मोहताज है। मर्जी है आपकी ,क्योंकि वोट है आपका।

 

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