भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण … परिवहन …पहिए सांसों को रौंद रहे हैं

परिवहन: पहिए सांसों को रौंद रहे हैं, सड़क पर बोझ के और भी हैं संकट
Carbon dioxide is increasing in atmosphere due to motor vehicles

भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण के चलते मोटर वाहनों की संख्या में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। केंद्र सरकार के परिवहन मंत्रालय के वाहन पोर्टल के अनुसार, आज देश में लगभग 37 करोड़ वाहन पंजीकृत हैं। वाहनों की संख्या में दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है, जो वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है। मोटर वाहन वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के अलावा कई विषाक्त पदार्थ उत्सर्जित करते हैं, जो स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी, दोनों पर ही गंभीर प्रभाव डालते हैं।

दिन-प्रतिदिन वाहनों की संख्या में बढ़ोतरी के दो कारण हैं-आवश्यकता एवं महत्वाकांक्षा। ज्यादातर दोपहिया वाहन ‘आवश्यकता’, तो कई चौपहिया वाहन ‘महत्वाकांक्षा’ पूरी करने के लिए खरीदे जाते हैं। चौपहिया वाहन अधिकतर सिर्फ इसलिए खरीदे जाते हैं, ताकि सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़े। जिन लोगों के पास पहले से चौपहिया वाहन मौजूद हैं, वे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा और बढ़ाने के लिए महंगी गाड़ियां खरीदते हैं। इस तरह परिवार के हरेक सदस्य के पास अपना चौपहिया वाहन होता है, जिन्हें वे बिना पुल किए सड़क पर चलाते हैं। सड़क पर वाहनों की सघनता और भीड़ बढ़ाने में ऐसे लोगों का प्रमुख योगदान होता है। 

हालांकि आज चौपहिया वाहन की खरीद पूरी तरह से महत्वाकांक्षा न होकर जरूरत भी बन गई है, खासकर ऐसे शहरों में, जहां सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था ठीक नहीं है। लोग भीड़ से बचने के साथ-साथ अपना समय भी बचाना चाहते हैं। बहरहाल, सड़कों पर आज हर जगह जाम है और इस समस्या ने छोटे शहरों को भी अपनी चपेट में ले लिया है। हर तरफ वाहनों का धुआं एवं शोर है।

सभी सरकारें चाहती हैं कि वाहनों की बिक्री साल दर साल बढ़ती रहे। इसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन मानव स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी को जरूर प्राथमिकता मिलनी चाहिए। बढ़ते वाहनों से न सिर्फ हमारी सड़कें संकरी प्रतीत होती हैं, बल्कि सड़कों को चौड़ा करने तथा वैकल्पिक मार्ग व फ्लाईओवर इत्यादि बनाने का आर्थिक बोझ भी बढ़ने लगता है और फिर एक दिन बढ़ते ट्रैफिक के कारण ये वैकल्पिक मार्ग एवं फ्लाईओवर भी नाकाफी हो जाते हैं। 

सड़कों पर वाहनों की बेलगाम भीड़ और एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ के चलते सड़क हादसे भी होते रहते हैं। ये वाहन पैदल चलने वालों के लिए भी खतरा बनते हैं। वर्ष 2022 में ही कुल 4,61,312 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिसमें 1,68,491 लोगों की जानें गईं एवं 4,43,366 लोग घायल हुए। सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाले लगभग 67 फीसदी लोग 18-45 आयु वर्ग के थे, जबकि लगभग 84 फीसदी लोग 18 से 60 वर्ष की उम्र के कामकाजी लोग थे। 

हालांकि आजकल विद्युतीय वाहनों की चर्चा हो रही है। ऐसे वाहनों से वायु प्रदूषण से कुछ हद तक राहत तो जरूर मिल सकती है, परंतु सड़कों पर सघन यातायात से नहीं। ऐसा ही हाइड्रोजन आधारित वाहनों के लिए भी कहा जा सकता है। 
ऐसे में सड़कों पर वाहनों की भीड़ कम करने के क्या उपाय हैं? इसके लिए हम छोटी-छोटी दूरी पैदल या साइकिल से तय कर सकते हैं। अपना वाहन पूल कर सकते हैं तथा ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक यातायात प्रणाली का उपयोग कर सकते हैं। अपनी महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाने के साथ हमें प्रकृति एवं आगामी पीढ़ियों के उज्ज्वल भविष्य के बारे में भी सोचने की जरूरत है।बढ़ते वैश्विक तापमान को देखते हुए हमें स्वयं जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने के उपाय करने होंगे।  

सरकार एवं नीति निर्माताओं को भी वाहनों की अंधाधुंध बिक्री एवं खरीद को विनियमित करने की जरूरत है। प्रत्येक परिवार के लिए जरूरत के हिसाब से एक या दो वाहनों को खरीदने की सीमा तय की जा सकती है। हालांकि इस बारे में सभी हितधारकों से सुझाव मांगकर विस्तृत रूपरेखा तैयार करनी होगी। इसके अलावा, बड़े शहरों के साथ-साथ छोटे शहरों में भी ‘लास्ट माइल कनेक्टिविटी’ को सुदृढ़ करने पर जोर देना होगा। पिछले कुछ वर्षों में सड़कों के निर्माण पर अच्छा काम हुआ है, लेकिन सिर्फ सड़कें बिछाने से काम नहीं होगा। जरूरत है, उन सड़कों को सुरक्षित बनाने एवं नियमित परिवहन व्यवस्था चलाने की। अगर जल परिवहन के विकास पर जोर दिया जाए, तो कुछ हद तक राहत मिल सकती है।

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