AI और डीपफेक का इस्तेमाल?

 लोकसभा चुनाव में नेता किस तरह कर रहे हैं AI और डीपफेक का इस्तेमाल? एक्सपर्ट से समझिए
जब किसी का चेहरा किसी दूसरे व्यक्ति पर लगा दिया जाता है, किसी की अवाज क्लोन कर दी जाती है या उसकी लिप्सिंग करके उससे वो बुलवा दिया जाता है जो उसने बोला ही नहीं था… डीपफेक कहलाता है.

लोकसभा चुनाव 2024 में एक तरफ जहां पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर राहुल गांधी और बाकी नेताओं की बात हो रही है, वहीं दूसरी तरफ Ai जनरेटेड वीडियो और डीपफेक वीडियो भी काफी चर्चा में बने हुए हैं. दुनिया में इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि कैसे एआई और डीपफेक पॉलिटिक्स को बदल रहे हैं.

अनकट पर भूपिंदर सोनी ने दिव्येन्द्र सिंह जादौन से खास बातचीत की, जिन्हें लोग द इंडियन डीफेकर के नाम से जानते हैं. दिव्येन्द्र अपनी कंपनी चलाते हैं जो एआई से लेकर डीपफेक टैक्नोलॉजी पर काम करती है. बॉलीवुड से लेकर साइबर सिक्योरिटी और पॉलिटिक्स तक अपनी सर्विस देते हैं. 

दिव्येन्द्र सिंह जादौन से बातचीत में पता चला कि आखिर ये डीपफेक टैक्नोलॉजी काम कैसे करती है, चुनाव में नेता इसका किस तरह इस्तेमाल करते हैं और AI के ज़रिए वह कैसी कैसी सेवाएं नेताओं को दे रहे हैं.

पहले जानिए आखिर ये डीपफेक है क्या चीज?
द इंडियन डीफेकर दिव्येन्द्र सिंह जादौन ने बताया, डीपफेक दो चीजों से मिलकर बना है. डीप का मतलब डीप लर्निंग. फेक इसलिए जोड़ा गया क्योंकि इसका बनाया गया कंटेंट असली नहीं, बल्कि फेक होता है. इसलिए इसे डीपफेक बोला जाता है. 

वीडियो में किसी एक व्यक्ति का चेहरा दूसरे पर लगा देना, ये डीपफेक टेक्नोलॉजी की वजह से पॉसिबल हो पाता है. हालांकि ये काम ट्रेडिशनल VFX से भी किया जा सकता है. लेकिन एक चीज की कमी रहती है- इमोशनल. डीपफेक इमोशन भी कैप्चर कर लेता है. इमोशन ऐसी चीज है जो AI एलगोरिथ्म ही कैप्चर कर पाता है यही इसकी खासियत है. फिर बाद में इसमें वॉइस क्लोनिंग भी जुड़ गया और फिर एआई की अपनी आवाज भी इसमें शामिल हो गई. यानी कि हुबहु असली दिखने वाला वीडिया बन जाता है.

डीपफेक की शुरुआत कहां से हुई?
दिव्येन्द्र सिंह जादौन ने बताया, साल 2017-18 के बीच में IPEROV नाम के व्यक्ति ने काफी सारे एल्गोरिथ्म का इस्तेमाल करके एक टूल बनाया था, जिसका नाम था DeepFaceLab. उसकी एक वेबसाइट भी है. उसने तब ये प्रोनोग्राफी कंटेंट के लिए बनाया था. आजतक जिसने भी डीपफेक फोटो, ऑडिया या वीडियो बनाए उन्होंने कहीं न कहीं इस टूल का कोड इस्तेमाल किया ही है. उसकी बहुत बड़ी कम्युनिटी है जो एक दूसरे की मदद करती है. हमारे देश में व्हाट्सअप का केवल एक टेक्स्ट मैसेज लोगों को मेन्युप्लेट कर देता है. 

द इंडियन डीपफेकर दिव्येन्द्र ने बताया, ‘मॉज पर मैंने एक बार हैडराबादी कमेडियन के चहेरे पर सलमान खान का फेस लगा दिया था. मैंने कैप्शन में भी लिख दिया था कि ये एक डीपफेक है. फिर भी लोग असल में उसे सलमान खान मान रहे थे. तब मुझे अहसास हुआ कि भारत में अभी बहुत से लोगों को नहीं पता है कि ये डीफफेक वीडियो क्या होते हैं.’

मतलब, अगर किसी नेता की लिप्सिंग करते हुए उसकी आवाज और फेशियल एक्सप्रेशन के साथ एक वीडियो बना दिया जाए, तो वोटर उस वीडियो पर यकीन कर लेंगे. 

इंडियन डीपफेकर ने दूसरा उदाहरण देते हुए बताया, एक फोटो वायरल हुआ था जिसमें कुछ खिलाड़ी प्रोटेस्ट कर रहे थे, उस फोटो को डीपफेक तकनीक से एडिट करके उन खिलाड़ियों के उदास चहेरे को हंसते हुए दिखा दिया गया और वायरल कर दिया. तो इस तरह उस फोटो का पूरा कॉन्टेक्स्ट ही बदल गया था. यानी कि आज एक डीपफेक बनाने के लिए सिंगल इमेज ही काफी है. 

 

कभी किसी नेता ने डीपफेक बनाने के लिए कहा?
इस सवाल का जवाब देते हुए इंडियन डीपफेकर ने बताया, ‘ज्यादातर नेता ऐसा कंटेंट चाहते हैं कि पोस्ट करते ही वायरल हो जाए. हम कोशिश करते हैं कि कुछ नई टैक्नोलॉजी के जरिए उनका प्रमोशन करें. जैसे पहले दीवारों पर पोस्टर चिपकाए जाते थे अब हमने उसमें एक क्यूआर कोड भी जोड़ दिया. उस कोड को स्कैन करते ही नेता का अवतार बन जाएगा. फिर उस अवतार को किसी भी दीवार पर प्लेस किया जा सकता है. वो एकदम असली जैसा दिखेगा. लोग उस फोटो के साथ सैल्फी ले सकते हैं.’

“एक बार ऐसा हुआ था. हमसे कहा गया था कि ये हमारे लीडर का वीडियो है जो कंट्रोवर्शियल है और हमारे विरोधी के पास भी ये वीडियो है तो हमें लगता है कि ये वायरल होगा. इसलिए आपको एक डीपफेक वीडियो बनाना है. लेकिन आपको डीपफेक किसी और का नहीं बनाना है, बल्कि उस वीडियो पर वही फेस इस तरह लगा देना है कि ये एक डीपफेक वीडियो लगे. फिर जब विरोधी असली वाला वीडियो शेयर करेंगे तो हम डीपफेक उससे ज्यादा वायरल करेंगे. बाद में हम ये कह देंगे तो कि ये तो एक डीपफेक है.”

डीपफेकर ने आगे कहा, पॉलिटिक्स ऐसी कंपनी है जहां हर एम्प्लायी फ्री में काम करता है. पहले गाना लिखने रिकॉर्ड करने में बहुत  ज्यादा समय लगता था, आज की AI दस मिनट में पूरा गाना तैयार कर देता है. सच क्या है ये अब कोई नहीं बता सकता है. हर इंसान का खुद का सच खुद के पास है और उस सच को साबित करने के लिए उसके पास एक डीपफेक कंटेंट पड़ा है.

ChatGPT कितनी बड़ी ताकत है?
डीपफेकर दिव्येन्द्र ने बताया कि हर काम के लिए अलग-अलग एआई के सॉफ्टवेयर बनाए जाते हैं. मार्केट में नए नए टूल आते रहते हैं. चैटजीपीटी से सिर्फ चैटिंग ही नहीं, बल्कि बोलकर बात भी की जा सकती है. आप अपनी बात किसी दूसरे व्यक्ति को उसकी भाषा में चैटजीपीटी से समझा सकते हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा IQ आइंस्टीन का माना गया है. लेकिन अभी chatGPT 4.0 का आईक्यू उनसे ज्यादा है. 

ऐसे समझ लीजिए ये एक आदमी है. दुनिया के जितने भी लोग हैं, सभी इस चैटजीपीटी के अंदर है. आप इससे जिस सब्जेक्ट का एक्सपर्ट बनने के लिए कहेंगे ये वैसा एक्सपर्ट बन जाएगा. दुनिया की सभी जानकारी इसके पास है. सबसे खास बात ये है कि ये आपकी लोकल भाषा समझता है. अगर आप अंग्रेजी नहीं भी समझते हैं तो भी इंटरनेट पर कुछ भी कर सकते हैं. अगर कोडिंग नहीं भी आती है तो भी कोडिंग वाले सभी काम इससे माध्यम से सकते हैं.

लोग कहते हैं कि चैटजीपीटी इस्तेमाल करने के लिए पहले प्रोम्प्ट इंजीनियरिंग सीखनी होती है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है. आपको सिर्फ सवाल पूछना आना चाहिए. यहां तक कि सवाल क्या पूछना है ये भी आप उसी से पूछ सकते हैं चैटजीपीटी आपको सवाल भी लिखकर दे देगा.

किस तरह AI और डीपफेक का हो रहा इस्तेमाल?
फोटो वीडियो के अलावा भी नेता इन टूल्स का कई तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं. जैसे एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जिसकी मदद से राजनीतिक पार्टी सैकड़ों हजारों को एक साथ कॉल करके उनको अपने किए गए काम और आगे किए जाने वाले काम के बारे में बता सकती है. इतना ही नहीं, अगर लोग कुछ सवाल पूछते हैं तो ऑटोमैटिक मशीन लर्निंग के जरिए जवाब भी दिया जा सकता है ताकि ऐसा लगे कि आप किसी रियल व्यक्ति से बात कर रहे हैं.

डीपफेकर दिव्येन्द्र ने बताया कि ये सॉफ्टवेयर बहुत खतरनाक भी है. अगर ये किसी फ्रॉड व्यक्ति के हाथ में चला जाता है तो उसे सिर्फ एक प्रॉम्प्ट चेंज करना है और पूरी बातचीत बदल जाएगी. जैसे- किसी व्यक्ति को डराकर या धमकाकर उससे फिरौती मांगी जा सकती हैं. 10 हजार लोगों में एक व्यक्ति भी अगर उनकी बातों में आ गया तो उनका फायदा ही फायदा है. इसलिए ये एक बड़ी चुनौती भी है.

डीपफेकर दिव्येन्द्र ने खुलासा करते हुए बताया, कुछ लोग ऐसा भी करते हैं कि सोशल मीडिया से किसी की तस्वीर ली, फिर उसके चहेरे को किसी न्यूड फोटो पर लगा दिया. ऐसे फिर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है. केवल 50-100 रुपये के लिए ये तस्वीरें बेच दी जाती हैं. कुछ लोग अपने साथी से बदला लेने के लिए भी ऐसा करते हैं. अब गैरकानूनी काम करने के लिए किसी की जरूरत ही नहीं है. खुद ही कर लेते हैं. किसी भी एआई वेबसाइट पर 5 डॉलर खर्च करके 10 प्रीमियम वीडियो बना सकते हैं. इसलिए इसपर कानून बनना बहुत जरूरी है. अगर अभी कानून नहीं बनाया गया तो फिर बाद में यही हमें रेगुलेट करेगा

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