राजकोट गेम जोन बिना परमिट के चल रहा था .

राजकोट गेम जोन बिना परमिट के चल रहा था .
 दो साल पहले कई अफसर यहां गए थे, तत्कालीन कलेक्टर बोले-परमिशन देने का काम निगम का

राजकोट के गेम जोन में शनिवार 25 मई की शाम लगी आग में अब तक 28 लोगों की मौत हो चुकी है, 10 से ज्यादा लोग लापता बताए जा रहे हैं। भीषण हादसा होने के बाद राजकोट नगर निगम को यह पता चला है कि गेम जोन के पास परमिट ही नहीं था। एक प्लॉट जहां पार्टियां आयोजित होती थीं, वहां तीन मंजिला शेड बनाकर उसे गेमिंग जोन बना दिया गया था।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि गेमिंग जोन को लेकर राजकोट नगर निगम अंधेरे में था या फिर अधिकारियों की गेमिंग जोन मालिकों से मिलीभगत थी। दैनिक भास्कर के हाथ एक ऐसी तस्वीर लगी है, जिसमें राजकोट पुलिस, नगर निगम समेत पूरे सिस्टम की पोल खुलती नजर आ रही है।

दो साल पहले गेमिंग जोन में तत्कालीन कलेक्टर अरुण महेश बाबू समेत कई अफसर पहुंचे थे। दुर्घटना को लेकर महेश बाबू से दैनिक भास्कर ने सवाल किया तो उन्होंने कहा कि परमिशन देने का काम तो नगर निगम का होता है।

गेम जोन के मालिकों ने अधिकारियों का जमकर स्वागत किया था

दो साल पहले कई अफसर TRP गेमिंग जोन पहुंचे थे। यहां उन्होंने गो-कार्टिंग भी की थी। अफसर हाथ में हेलमेट लिए हुए दिख रहे हैं।
दो साल पहले कई अफसर TRP गेमिंग जोन पहुंचे थे। यहां उन्होंने गो-कार्टिंग भी की थी। अफसर हाथ में हेलमेट लिए हुए दिख रहे हैं।

दैनिक भास्कर को मिली यह तस्वीर करीब दो साल पुरानी है। इसमें राजकोट के तत्कालीन कलेक्टर अरुण महेश बाबू, एसपी बलराम मीणा, नगर निगम कमिश्नर अमित अरोड़ा, डीसीपी जोन-1 प्रवीण मीणा गेमिंग जोन पहुंचे थे। तस्वीर में दिखाई दे रहे ये सभी अधिकारी गेम जोन के गो-कार्टिंग का लुत्फ उठाते नजर आ रहे हैं। इस दौरान टीआरपी गेम जोन के मालिकों ने अफसरों का जोरदार स्वागत किया था।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि गेम जोन बिना परमिट के धड़ल्ले से कैसे चल रहा था। इतना ही नहीं, मालिकों ने कई विज्ञापन जारी कर यह भी दावा किया था कि यह शहर का सबसे बड़ा गेम जोन है। इस पर भी किसी अधिकारी की नजर नहीं गई कि ये कैसे बिना परमिट के चल रहा है। बड़ी बात तो ये कि जिस जोन में एक साथ सैकड़ों बच्चे पहुंचते हों, उस जगह की फायर एनओसी तक नहीं बनी।

शनिवार-रविवार की देर रात तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन का ड्रोन व्यू।
शनिवार-रविवार की देर रात तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन का ड्रोन व्यू।

तत्कालीन कलेक्टर अरुण महेश बाबू ने दी सफाई
इस मामले में दैनिक भास्कर ने तत्कालीन कलेक्टर अरुण महेश बाबू से बात की तो उन्होंने कहा- यह बात दो साल पहले की है। हो सकता है कि मैं उस वक्त बच्चों के साथ वहां गया होऊं। मुझे नहीं पता कि वहां फायर एनओसी थी या नहीं। मुझे नहीं पता कि ओनर्स ने गेम जोन की अनुमति ली थी या नहीं, क्योंकि परमिशन देने का अधिकार तो नगर निगम का था।

अरुण महेश बाबू ने ये भी कहा कि इसकी अनुमति में कलेक्टर का कोई रोल नहीं होता। अगर बच्चे वहां खेलने गए थे और हम माता-पिता उनके साथ थे तो इसका इस आग से क्या लेना-देना है? हम वहां मालिकों की कृपा के लिए नहीं गए थे। कई अन्य लोग भी अपने बच्चों के साथ वहां गए होंगे। बच्चों के पेरेंट्स के रूप में हम भी वहां गए थे। हमारा टीआरपी मालिकों से कोई लेना-देना नहीं है। डीसीपी ने भी बच्चों को वहां बुलाया था। इसलिए हम सभी वहां पर मौजूद थे।

TRP गेम जोन के लिए कालावाड रोड पर एक विशाल अस्थायी ढांचा खड़ा किया गया था।
TRP गेम जोन के लिए कालावाड रोड पर एक विशाल अस्थायी ढांचा खड़ा किया गया था।

किसी होटल में जाते हैं तो क्या सारी चीजें चेक करते हैं- तत्कालीन एसपी

किराए की 2 एकड़ जमीन पर तीन मंजिला गेम जोन 2020 में बनाया गया था।
किराए की 2 एकड़ जमीन पर तीन मंजिला गेम जोन 2020 में बनाया गया था।

दैनिक भास्कर ने राजकोट के तत्कालीन एसपी बलराम मीणा से भी बातचीत की। उन्होंने कहा- मैं वहां गया होऊंगा। वैसे भी मैं किसी न किसी से तो मिलता ही रहता था। इसलिए मुझे ठीक से याद नहीं। जब मीणा से पूछा गया कि क्या गेम जोन में फायर समेत अन्य कामों की अनुमति थी तो उन्होंने कहा- अगर आप किसी होटल में जाते हैं तो क्या सभी चीजें चेक करते हैं? अगर किसी को किसी समारोह में आमंत्रित किया गया हो और उसे वहां जाकर खाना, खाना हो तो ऐसी बातें कौन पूछेगा?

गेम जोन का डोम कपड़े और फाइबर से बना था। आग लगने से पूरा डोम लोगों पर आ गिरा।
गेम जोन का डोम कपड़े और फाइबर से बना था। आग लगने से पूरा डोम लोगों पर आ गिरा।

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