2019 से कितना अलग रहा 2024 का चुनाव प्रचार?

रैली किसी की भी हो, ये 4 मुद्दे ही रहे हावी
2019 से कितना अलग रहा 2024 का चुनाव प्रचार?
लोकसभा चुनाव में 4 मुद्दे काफी हावी रहे. इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द सभी पार्टियों की कैंपेनिंग सिमटी नजर आई. नेताओं की रैलियों में भी इन्हीं मुद्दों की गूंज सुनाई दी.

18वीं लोकसभा का चुनाव प्रचार थम गया है. 76 दिनों तक चलने वाले इस चुनावी कैंपेन में 8352 उम्मीदवारों ने जोर-अजमाइश की है. बड़े दलों की तरफ से स्टार प्रचारक भी मैदान में कूदे. 

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे चुनाव में 206 रैलियों को संबोधित किया. कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी ने 107 और प्रियंका गांधी ने 108 रैलियां की.

बड़ी-बड़ी रैलियों के अलावा इस बार उम्मीदवारों ने डोर-टू-डोर पर ज्यादा फोकस किया. 

पूरे चुनाव में 4 मुद्दे काफी हावी रहे. इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द सभी पार्टियों की कैंपेनिंग सिमटी नजर आई. नेताओं की रैलियों में भी इन्हीं मुद्दों की गूंज सुनाई दी और मीडिया में भी ये ही मुद्दे छाए रहे.

वो 4 मुद्दे जो लोकसभा चुनाव में रहे हावी

1. संविधान और आरक्षण का मुद्दा

पहले चरण से लेकर आखिरी चरण तक के चुनाव प्रचार में संविधान और आरक्षण का मुद्दा हावी रहा. विपक्षी पार्टियों ने बीजेपी के 400 पार के नारे को भी संविधान खत्म करने से जोड़ दिया, जिसके बाद सत्ताधारी पार्टी बैकफुट पर आ गई. 

दूसरे और तीसरे चरण में बीजेपी के बड़े नेता अपने हर मंच से संविधान और आरक्षण पर किसी भी तरह के आंच नहीं आने देने की बात कहते रहे. हालांकि, विपक्ष इस मुद्दे को आखिरी चरण तक खींचने में कामयाब दिखा.

चौथे चरण से बीजेपी ने भी स्ट्रैटजी बदली और ओबीसी कोटे से मुस्लिमों को मिल रहे आरक्षण को मुद्दा बनाया. बंगाल की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया कि जब तक वे जीवित हैं, तब तक ओबीसी की हकमारी नहीं होने देंगे.

सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने इस पूरे चुनाव को संविधान मंथन नाम दिया. अखिलेश के मुताबिक इस बार लोग संविधान बचाने के लिए वोट कर रहे हैं. 

अखिलेश की तरह ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इसे मुद्दा बनाया. वे अपने हर रैली में संविधान लेकर लोगों के बीच पहुंचे और इसे बचाने की अपील करते नजर आए. 

2. कैंपेन में फ्रीबीज का मुद्दा भी रहा हावी
लोकसभा चुनाव 2024 के कैंपेन में फ्रीबीज का मुद्दा भी हावी रहा. सभी पार्टियों ने कल्याणकारी योजना के नाम पर जमकर लोगों से वोट मांगे. भारतीय जनता पार्टी ने 80 करोड़ लोगों को 5 किलो राशन देने का मुद्दा बनाया. 

वहीं कांग्रेस महिलाओं को उसके अकाउंट में हर साल 1 लाख रुपए देने का वादा पूरे चुनाव में किया. राहुल गांधी हर रैली और कार्यक्रम में खटाखट नारे के साथ इस वादे का प्रचार करते नजर आए. 

लोकसभा ही नहीं, 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी फ्रीबीज का मुद्दा हावी रहा. आंध्र प्रदेश में तेलगु देशम पार्टी ने सरकार आने पर मुफ्त बस यात्रा, महिलाओं को 1500 रुपए मासिक पेंशन देने का वादा किया है. 

ओडिशा में नवीन पटनायक की पार्टी ने भी फिर से सरकार आने पर 100 यूनिट फ्री बिजली देने का वादा किया है. यूपी में समाजवादी पार्टी ने फ्री आटा और फ्री डेटा देने का वादा किया है. 

रैली किसी की भी हो, ये 4 मुद्दे ही रहे हावी: 2019 से कितना अलग रहा 2024 का चुनाव प्रचार?

3. चुनाव प्रचार में गारंटी शब्द की रही गूंज
18वीं लोकसभा चुनाव में पहली बार वादे से ज्यादा गारंटी शब्द की गूंज सुनाई दी. सभी पार्टियों ने अपने-अपने मेनिफेस्टो और चुनावी कैंपेन में गारंटी शब्द का जमकर प्रयोग किया. 

सत्ताधारी बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो का थीम ही मोदी की गारंटी रखा. पार्टी के बड़े नेताओं ने इस नारे को खूब भुनाया भी.

इसी तरह विपक्षी कांग्रेस भी 5 न्याय और 25 गारंटी के सहारे मतदाताओं के मूड बदलने की कोशिश करती दिखी. पार्टी के बड़े नेता हर मंच से युवा, किसान, श्रमिक, महिला और वंचित वर्ग को गारंटी के साथ न्याय दिलाने का वादा करते नजर आए. 

बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के नेता दीदी रे शोपथ (दीदी की शपथ) स्लोगन के सहारे लोगों को रिझाते नजर आए.

4. जोर-शोर से उठा अल्पसंख्यकों का मुद्दा
सीएसडीएस के एसोसिएट प्रोफेसर हिलाल अहमद के मुताबिक इस चुनाव में मुसलमान ही मुद्दा बन गए. बीजेपी ने अपने आधार वोटबैंक तक पहुंचने के लिए दूसरे चरण के मतदान से पहले अल्पसंख्यकों के खिलाफ प्रचार की रणनीति अपनाई, जो आखिर तक जारी रहा.

पीएम मोदी के भाषण भी मुसलमानों के इर्द-गिर्द ही घुमता रहा. मोदी अपनी हर रैली में विपक्ष पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाते नजर आए. 

मोदी के निशाने पर ईसाई भी रहे. रांची की रैली में प्रधानमंत्री ने रविवार की छुट्टी को ईसाई धर्म से जोड़ने की कोशिश की. 

विपक्ष भी अल्पसंख्यकों के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया. तृणमूल कांग्रेस ने सरकार में आने पर सीएए-एनआरसी को खारिज करने की घोषणा की. इसी तरह कांग्रेस ने भी अल्पसंख्यकों को अधिकार देने का वादा किया. 

आंध्र प्रदेश में बीजेपी की सहयोगी टीडीपी ने मुसमलानों को सरकार आने पर 4 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया. 

2019 और 2014 में कौन से मुद्दे हावी थे?
2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उग्र राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और सोशल वेलफेयर स्कीम को अपने कैंपेन में शामिल किया. नतीजा पार्टी के पक्ष में आया और पहली बार पार्टी 300 से ज्यादा लोकसभा की सीटों पर जीत दर्ज की.

राजनीतिक विश्लेषक प्रशांत किशोर के मुताबिक पार्टी उग्र राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के जरिए जहां अपने आधार वोटबैंक को साधती है, वहीं कल्याण के नाम पर साइलेंट वोटरों को अपने पक्ष में करती है. 

2019 के चुनाव में बीजेपी को 38 प्रतिशत मत मिले थे. पार्टी ने यही फॉर्मूला कई राज्यों में विधानसभा के चुनावों में भी अपनाया. 

2014 के लोकसभा चुनाव में भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी प्रमुख मुद्दा था. सीएसडीएस पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में 19 प्रतिशत लोगों ने महंगाई तो 17 प्रतिशत लोगों ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वोट किया था. 

7.5 प्रतिशत लोग बेरोजगारी और 10.9 प्रतिशत लोगों ने काम के नाम पर अपना मतदान किया था. 

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