इंदौर : बारूद के ढेर पर राजवाड़ा, सराफा, रानीपुरा और कपड़ा बाजार ?

बारूद के ढेर पर राजवाड़ा, सराफा, रानीपुरा और कपड़ा बाजार, एक चिंगारी हो सकती विकराल
इंदौर शहर के ज्यादातर बाजारों में दमकल वाहन निकलने तक की जगह नहीं है।
  1. पुराने बाजारों में खरीदारों की जबर्दस्त भीड़ रहती है।
  2. रात होते ही ये खाने-पीने के ठियों में बदल जाते हैं।
  3. सभी आंख मूंदकर किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं।

 इंदौर। राजवाड़ा, सराफा, जेल रोड, रानीपुरा, शकर बाजार, कपड़ा बाजार, सीतलामाता बाजार जैसे इंदौर के दर्जनों ऐसे क्षेत्र हैं, जो बारूद के ढेर पर खड़े हैं। इन बाजारों की तंग गलियों में चार पहिया वाहन तो दूर दोपहिया से गुजरना भी मुश्किल है। लापरवाही का आलम यह है कि दुकानदार पहले से तंग इन गलियों में दुकानों के आगे अतिक्रमण कर लेते हैं और निगम के जिम्मेदारों के कान पर जूं तक नहीं रेंगती।

दिन के वक्त इन सभी पुराने बाजारों में खरीदारों की जबर्दस्त भीड़ रहती है जबकि रात होते ही ये खाने-पीने के ठियों में बदल जाते हैं। आग लगने की स्थिति में इन बाजारों की तंग गलियों में इतनी जगह तक नहीं होती कि दमकलें निकल सकें। ऐसा भी नहीं कि शहर के जिम्मेदारों को इस बात की जानकारी नहीं है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे सभी आंख मूंदकर किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं।

सबसे बदतर स्थिति राजवाड़ा से सटे सराफा, पीपली बाजार, सीतलामाता बाजार, रानीपुरा जैसे सघन बाजारों के हैं। किसी समय ये बाजार मुख्य सड़क पर ही लगते थे, लेकिन समय की मांग के चलते इन बाजारों ने अपने आपको आसपास की गलियों को भी अपने कब्जे में ले लिया है। स्थिति यह है कि शहर के ज्यादातर बाजारों के आसपास की गलियों में पैर रखने तक की जगह नहीं मिलती।

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नईदुनिया की टीम ने शहर के बाजारों का अवलोकन किया तो चौंकाने वाली वास्तविकता सामने आई। शहर के किसी भी बड़े बाजार में आग लगने की स्थिति से निपटने की कोई व्यवस्था नहीं है। ये बाजार पूरी तरह से अग्निशमन विभाग के भरोसे हैं। इन बाजारों से फायर ब्रिगेड कार्यालय भले ही ज्यादा दूर न हो, लेकिन सघन बाजारों के चलते मौके पर पहुंचना दमकलों के लिए आसान नहीं। दमकल बाजारों की मुख्य सड़क तक पहुंच भी जाएं तो गलियों में पहुंचना इनके लिए आसान नहीं।

राजवाड़ा के आसपास हैं 13 बाजार, तंग गलियां हैं इनकी पहचान

राजवाड़ा से सटकर 13 बडे बाजार हैं। इनमें निहालपुरा, सराफा, पीपली बाजार, धान गली, बर्तन बाजार, मारोठिया, बोहरा बाजार, शकर बाजार, सीतलामाता बाजार, क्लाथ मार्केट, सांठा बाजार, खजूरी बाजार, मल्हारगंज शामिल हैं। इन सभी बाजारों की पहचान तंग गलियों से है। इन बाजारों में कहीं कपड़े का व्यापार होता है तो कहीं खाने-पीने की चीजों का। ज्यादातर बाजारों में तंग गलियां हैं। आग लगने की स्थिति में इनमें दमकलें पहुंच ही नहीं सकतीं।

रानीपुरा में कठिन है फायर ब्रिगेड का पहुंचना

रानीपुरा क्षेत्र में होजयरी, कास्मेटिक, घरेलू सफाई, खिलौने, चूड़ी जैसे कई उत्पादों की दुकानें हैं। यहां पर तंग छोटी-छोटी गलियों में दुकानें बनी हैं। ऐसे में आग लगने पर इन गलियों में फायर ब्रिगेड का पहुंचना भी मुश्किल होता है। यहां की अधिकांश दुकानों में अग्निशमन उपकरण तक नहीं हैं।

ऐसे में आग लगने पर उस पर तत्काल नियंत्रण पाना आसान नहीं है। गौरतलब है कि सात साल पहले रानीपुरा में पटाखा गोदाम में आग लगने के कारण आठ लोगों की मौत हो गई थी। उसके बाद इस क्षेत्र में पटाखों का संग्रहण जरूर प्रतिबंधित किया गया है। कई इमारतों में तलघर में गोदाम व दुकानें भी नियमों को ताक में रखकर बनाई गई हैं।

आग पर बैठा है सराफा

सराफा बाजार में देर रात तक खाने-पीने की दुकानें लगती हैं। गैस चूल्हे, तंदूर लगे रहते हैं। रात के वक्त सराफा बाजार में पैदल चलना भी मुश्किल होता है। आग लगने की स्थिति दमकल वाहन पहुंचना बहुत दूर की बात है। सराफा में ही बड़ी संख्या में जेवरात बनाने के कारखाने भी हैं। इन कारखानों में गैस सिलेंडरों से जेवरात गलाने का काम होता है।

कई बार हादसे हो चुके हैं, बावजूद इसके आग लगने की स्थिति से निपटने का इंतजाम सराफा बाजार में नहीं है। मल्हारगंज की तंग गलियां मल्हारगंज शहर के पुराने बाजारों में शामिल है, जहां थोक किराना व्यापार होता है। स्थिति यहां भी भयावह है। किसी भी दुकान के बाहर आग लगने की स्थिति में निपटने के कोई इंतजाम नहीं हैं।

जेल रोड और आसपास की गलियां

यह प्रदेश के सबसे बड़े मोबाइल मार्केट में से एक है। सैकड़ों की संख्या में दुकानें हैं। जेल रोड के आसपास की तंग गलियों से पैदल गुजरना भी मुश्किल है। ऐसे में कभी आग लग जाए तो स्थिति को संभालना मुश्किल हो जाएगा।

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