क्या है विशेष विवाह अधिनियम 1954 ?
मुस्लिम युवक और हिंदू युवती की शादी को हाईकोर्ट ने क्यों कहा अवैध, क्या है विशेष विवाह अधिनियम 1954
अगर एक मुस्लिम लड़का और हिंदू लड़की स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी कर भी लेते हैं, तो भी ये शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से सही नहीं मानी जाएगी. ये बात हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कही है.
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐसे कपल को पुलिस सुरक्षा देने से इनकार कर दिया है जो अलग-अलग धर्मों के हैं और स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत शादी करना चाहते थे. कोर्ट का कहना है कि मुस्लिम धर्म के कानून के मुताबिक, एक मुस्लिम लड़के की शादी एक हिंदू लड़की से नहीं हो सकती. ये शादी ‘नाजायज रिश्ता’ मानी जाएगी.
ये फैसला तब आया जब अलग-अलग धर्म के युवक-युवती ने कोर्ट से पुलिस सुरक्षा की मांग की थी ताकि वो स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत अपनी शादी रजिस्टर करवा सकें. कोर्ट ने कहा कि अगर ये शादी हो भी जाती है तो भी मुस्लिम कानून में ये शादी ‘फासिद’ मानी जाएगी, यानी सही मायनों में मान्य नहीं होगी.
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद एक बार फिर से ये सवाल खड़ा हो गया है कि क्या अलग-अलग धर्मों के लोगों को अपनी मर्जी से शादी करने का हक है या नहीं.
पहले जानिए क्या है पूरा मामला
मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में 23 साल के सारिका सेन और सफी खान नाम के एक प्रेमी जोड़े ने अप्रैल 2024 में कोर्ट का रुख किया था. दोनों का कहना है कि वो एक-दूसरे से प्यार करते हैं. उन्होंने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने के लिए मैरिज ऑफिसर के सामने पेश होने की कोशिश की थी, लेकिन लड़की के परिवार के विरोध की वजह से वो ऐसा नहीं कर पाए थे. उन्होंने अपनी याचिका में बताया कि इस वजह से उनकी शादी रजिस्टर नहीं हो पा रही है.
सारिका और सफी ने स्थानीय पुलिस से सुरक्षा मांगने के अलावा मैरिज ऑफिसर के सामने पेश होने की इजाजत भी मांगी थी. साथ ही उन्होंने कोर्ट से गुजारिश की कि लड़की के परिवार को लड़के के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज करने से रोका जाए.
इस मामले में कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा, याचिकाकर्ता स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करना चाहते हैं, इसलिए निकाह की जरूरत नहीं है. दोनों याचिकाकर्ता इस बात पर सहमत हैं कि याचिकाकर्ता नंबर 1 (सारिका सेन) अपने हिंदू धर्म का पालन करती रहेगी, जबकि याचिकाकर्ता नंबर 2 (सफी खान) अपने इस्लाम धर्म का पालन करता रहेगा और कोई भी एक-दूसरे की धार्मिक भावनाओं में दखल नहीं देगा. याचिकाकर्ता नंबर 1 की इस्लाम धर्म कबूल करने की कोई मंशा नहीं है.
कपल के वकील ने दलील दी कि स्पेशल मैरिज एक्ट, पर्सनल लॉ से ऊपर होता है. इसलिए एक मुस्लिम लड़के और हिंदू लड़की की शादी को गलत नहीं ठहराया जा सकता. लेकिन हाई कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया. जज ने ये भी कहा, ‘ये कपल ये नहीं कह रहा है कि अगर शादी नहीं हो पाती है तो वो लोग लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहते हैं. ये लड़की ये भी नहीं कह रही है कि वो मुस्लिम धर्म अपना लेगी.’
अदालत ने क्यों ठुकरा दी प्रेमी जोड़े की मांग?
27 मई को जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, “मुस्लिम कानून के मुताबिक, एक मुस्लिम लड़के की शादी किसी ऐसी लड़की से नहीं हो सकती जो मूर्तिपूजा करती हो या अग्नि की पूजा करती हो. अगर ऐसी शादी हो भी जाती है और उसे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर करा लिया जाता है तो भी ये शादी असल में मान्य नहीं मानी जाएगी बल्कि ये एक ‘फासिद’ शादी मानी जाएगी.”
जस्टिस अहलूवालिया ने आगे कहा, “हर धर्म के अपने अलग नियम होते हैं. अगर कोई शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होती है तो फिर ये नहीं कहा जा सकता कि ये शादी सिर्फ इसलिए गलत है क्योंकि उसमें वो खास रस्में नहीं हुईं, जो उस धर्म में जरूरी मानी जाती हैं. मगर स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करवा लेने से वो शादी मान्य नहीं हो जाती, जो उस व्यक्ति के धर्म के कानून के हिसाब से पहले से ही गलत मानी जाती है. स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 4 ये साफ कहती है कि अगर दोनों लोग ऐसे रिश्ते में नहीं हैं जिन्हें शादी के लिए मनाही है तभी शादी हो सकती है.”
भारत में कानूनी तौर पर शादी को कैसे दी जाती है मान्यता
भारत में सभी शादियों को संबंधित पर्सनल लॉ जैसे हिंदू मैरिज एक्ट 1955, मुस्लिम मैरिज एक्ट 1954 या फिर स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत रजिस्टर कराया जा सकता है. यह न्यायपालिका का कर्तव्य है कि पति और पत्नी दोनों के अधिकारों की रक्षा करे. स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 भारत की संसद का एक अधिनियम है, जो भारत के लोगों और विदेशों में रहने वाले सभी भारतीय नागरिकों के लिए उनकी धर्म या आस्था की परवाह किए बिना सिविल मैरिज (या रजिस्टर्ड मैरिज) का प्रावधान करता है.
स्पेशल मैरिज एक्ट क्या है?
स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 भारत का एक ऐसा कानून है जो किसी भी धर्म के लोगों को रजिस्टर्ड शादी करने की इजाजत देता है. ये धार्मिक शादी का एक विकल्प है. यानी अगर दो लोग शादी करना चाहते हैं लेकिन मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च में शादी नहीं करना चाहते, तो वो इस कानून के तहत रजिस्टर्ड शादी कर सकते हैं. ये कानून पूरे भारत में लागू होता है और विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिक भी इसका फायदा उठा सकते हैं. इसमें ये कोई मायने नहीं रखता कि दूल्हा-दुल्हन किस धर्म को मानते हैं.
ये कानून दरअसल 19वीं सदी के आखिर में बनाए गए एक और कानून की जगह बनाया गया था. उस पुराने कानून को हेनरी सुमनेर मेन नाम के एक शख्स ने लाने की कोशिश की थी. उनका ये कहना था कि लोग अपनी मर्जी से किसी से भी शादी कर सकें और इसके लिए उन्हें किसी धर्म के विशेष नियमों को मानने की जरूरत न हो. मगर बाद में इस कानून में बदलाव कर दिया गया. बदलाव के बाद ये कहा गया कि जो लोग इस कानून के तहत शादी करना चाहते हैं, उन्हें ये कहना होगा कि वो किसी भी धर्म को नहीं मानते. ये कानून उन शादियों पर भी लागू होता है, जहां दूल्हा-दुल्हन अलग-अलग धर्म या जाति के होते हैं.
स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 पुराने एक्ट III, 1872 की जगह लाया गया था. इस नए कानून के तीन मुख्य उद्देश्य थे:
- कुछ मामलों में शादी का एक खास तरीका देना: इसका मतलब ये था कि अलग-अलग धर्मों के लोग या फिर जिनकी शादी उनके पर्सनल लॉ के तहत नहीं हो सकती, उन्हें शादी करने का एक कानूनी रास्ता देना.
- कुछ शादियों के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान करना: इसका मतलब था कि सभी शादियों का एक सरकारी रिकॉर्ड हो, चाहे वो किसी भी धर्म या जाति के लोगों के बीच हुई हों.
- तलाक का प्रावधान करना: यानी अगर कोई शादी टूट जाए, तो उसके लिए कानूनी तरीका देना ताकि पति-पत्नी दोनों को इंसाफ मिल सके.
स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 किस पर लागू होता है?
इस एक्ट के तहत शादी करने के लिए किसी खास धर्म का होना जरूरी नहीं है. कोई भी दो व्यक्ति, जो कानूनी रूप से शादी के योग्य हों, इस एक्ट के तहत शादी कर सकते हैं. ये एक्ट सिर्फ अंतरधार्मिक शादियों के लिए ही नहीं है. अगर एक ही धर्म के लोग भी अपने पर्सनल लॉ के तहत शादी नहीं करना चाहते, तो वे भी इस एक्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं.
अगर दोनों शादी करने वाले भारतीय हैं और विदेश में रह रहे हैं, तो वे भी इस एक्ट के तहत शादी कर सकते हैं. वहीं अगर एक व्यक्ति भारतीय है और दूसरा विदेशी है, लेकिन शादी भारत में हो रही है तो भी ये एक्ट लागू होता है.
क्या मध्य प्रदेश के प्रेमी कपल के मामले में शादी वैध मानी जा सकती है?
मुस्लिम कानून के तहत, शादी को एक तरह का समझौता माना जाता है जिसमें तीन अलग-अलग श्रेणियां होती हैं – वैध विवाह (सहीह), अनियमित या अमान्य विवाह (फासिद), और शून्य विवाह (बातिल). किसी देवता या अग्नि पूजक के साथ विवाह शून्य या बातिल नहीं होता, बल्कि केवल अमान्य होता है. वह शादी जिसमें कुछ कतिपय नियमों का उल्लंघन होता है उसे ‘अनियमित’ या ‘फासिद विवाह’ कहते हैं.
हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार, “एक मुस्लिम पुरुष न केवल एक मुस्लिम महिला के साथ, बल्कि एक किताबिया (यहूदी या ईसाई) के साथ भी वैध विवाह कर सकता है, लेकिन किसी मूर्ति पूजक या अग्नि पूजक के साथ नहीं.”
मुस्लिम कानून में शादी को अनियमित या अमान्य मानने की एक वजह ये भी है कि जब धर्म के अंतर के कारण शादी को मना किया गया हो. ऐसी शादी को अनियमित या अमान्य इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका कारण ठीक किया जा सकता है. मतलब अगर दोनों में से कोई एक साथी दूसरे के धर्म को अपना लेता है, तो ऐसी शादी वैध हो सकती है.
लेकिन मध्य प्रदेश के प्रेमी कपल के मामले में हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू महिला का धर्म परिवर्तन करने का कोई इरादा नहीं था और इसलिए यह शादी अनियमित रहेगी. इसे स्पेशल मैरिज एक्ट (SMA) के तहत वैध नहीं किया जा सकता क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में ये रिश्ता प्रतिबंधित रहेगा.