सोने के लिए पागल दुनिया ?

सोने के लिए पागल दुनिया: तो क्या ये नए गोल्ड स्टैंडर्ड की आहट है? अतीत से सुनें वर्तमान की धड़कन
दुनिया भर के केंद्रीय बैंक दबाकर सोना खरीद रहे हैं। सोने की कीमतें अपनी रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं, मगर बैंक पगलाए हुए सोना जुटाने में लगे हैं। वह भी अब तक की सबसे ऊंची कीमत पर। दुनिया में अब तक जितना सोना निकाला गया है, उसका 20 फीसदी हिस्सा विश्व के केंद्रीय बैंकों की तिजोरियों में है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) लंदन की तिजोरियों से सोना निकालकर भारत ला रहा है। इन तिजोरियों के इस्तेमाल की अपनी लागत जो है। आरबीआई के पास करीब 822 टन सोने का भंडार है। आरबीआई ने 2019 से 2024 के बीच 209 टन सोना खरीदा है। इतना सोना है, तो इसे संभालने का भी झंझट है। भारत ही क्यों? दुनिया भर के केंद्रीय बैंक दबाकर सोना खरीद रहे हैं। चीन ने लगातार 17 महीने सोने की खरीद की। विश्व के केंद्रीय बैंकों के पास अब करीब 2,262 टन सोना जमा है।

सोने की कीमतें अपनी रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं, मगर केंद्रीय बैंक पगलाए हुए सोना जुटाने में लगे हैं। वह भी अब तक की सबसे ऊंची कीमत पर। दुनिया में अब तक जितना सोना निकाला गया है, उसका 20 फीसदी हिस्सा विश्व के केंद्रीय बैंकों की तिजोरियों में है। इस दीवानगी की वजह क्या है? गोल्ड स्टैंडर्ड तो कब का दफन हो गया, जिसमें किसी देश की करेंसी का मूल्यांकन सोने में किया जाता था। केंद्रीय बैंक तो संप्रभु करेंसी के मालिक हैं, जो सोने में नापे जाने की शर्त से मुक्त हंै। बाजार बता रहा है कि बैंकों को दुनिया भर की करेंसी, खासतौर पर डॉलर में गिरावट के डर से उनके विदेशी मुद्रा भंडार सोने की आमद से चमक रहे हैं। घाना 2023 से तेल का भुगतान गोल्ड में कर रहा है। रूस ने युद्ध के दौरान रुबल देकर सोना जुटाने का एलान किया था, तो क्या नए गोल्ड स्टैंडर्ड की आहट है?

आइए, टाइम मशीन का मोटर गुर्रा रहा है, अपनी सीट पकड़िए और उड़ चलते हैं गोल्ड स्टैंडर्ड की रोमांचक दुनिया में। अब हम अमेरिका के न्यू हैंपशायर के ऊपर से उड़ रहे हैं। पर्वतों से घिरा यह रिजॉर्ट टाउन, जो स्कीइंग के दीवानों का गढ़ है। हम बढ़ रहे हैं 18वीं सदी के आखिरी दशकों की तरफ। यहां कोयला और रेलवे का विकास हो रहा है। कोयला व रेलवे के कारोबार से अमीर बने जोसेफ स्टेकिनी माउंट वॉशिंगटन नाम का होटल बना रहे हैं। यह होटल 21वीं सदी में मौजूद रहेगा, मगर इससे पहले यह अनोखा इतिहास बनाएगा। टाइम मशीन ने गियर बदला है। अब हम 1944 में हैं। दूसरे विश्वयुद्ध का खून-खच्चर चरम पर है। हम उसी माउंट वॉशिंगटन होटल पर पहुंचे हैं, जो बड़ी जंग के बीच एक बड़े समझौते की तैयारी कर रहा है। यहां 44 देश जुटे हैं, जिनमें ब्रिटिश इंडिया भी है, तालियों की गूंज में नई आर्थिक व्यवस्था बन गई है। विश्व के प्रमुख देशों ने विश्व बैंक व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ जैसी संस्थाओं की बुनियाद रख दी है। यहीं से निकल रही है एक नई मौद्रिक व्यवस्था, यानी गोल्ड स्टैंडर्ड। कागजी मुद्रा का सोने में मूल्यांकन। एक औंस सोने के बदले 35 अमेरिकी डॉलर, दुनिया ने मिलकर अमेरिका को गोल्ड स्टैंडर्ड का संचालक बना दिया है। अमेरिका को इस पैमाने को कायम रखना है। मतलब, अगर सोने की विनिमय दर 35 डॉलर से नीचे जाती, तो अमेरिका को डॉलर छापकर इसे संतुलित करना होता था। गोल्ड स्टैंडर्ड के साथ ही उस वक्त की तीन बड़ी मुद्राओं-ब्रिटिश पाउंड, जर्मन मार्क, फ्रेंच फ्रैंक के विनिमय का आधार अमेरिकी डॉलर हो गया है। मौदि्रक स्टैंडर्ड का यह अनोखा प्रयोग है, जिसे युद्ध से उबरती दुनिया ने अपना लिया है। अब बढ़ते हैं 1960 के फ्रांस की तरफ, जहां दिखेगी एक अनोखी कूटनीतिक जंग। बताते चलें कि 1960 के बाद वक्त ने करवट ली। जापान और यूरोप का निर्यात तेजी से बढ़ा। विश्व व्यापार में अमेरिका का हिस्सा घटने लगा। अमेरिकी डॉलर की मांग कम हो गई, तो दुनिया के देश अमेरिका से डॉलर के बदले सोना मांगने लगे। इसी दौरान अमेरिका में रक्षा खर्च बढ़ाने के लिए और ज्यादा करेंसी छापी गई। आपके सामने अखबारों की सुर्खियां तैर रही हैं, जो बता रही हैं कि बाजार में अमेरिका के डॉलर ज्यादा हो गए व अमेरिका के पास सोना कम रह गया। इसके साथ ही दुनिया के मुद्रा बाजार में अमेरिका की ताकत कम होने लगी।

अब हम पेरिस में हैं। माइक पर गरज रहे फ्रांस के राष्ट्रपति चार्ल्स डे गॉल ने फ्रांस के नए राजनीतिक दौर की शुरुआत की है। पेरिस की राजनीतिक हवा में आपको यह पता चल जाएगा कि यूरोप के सबसे तेज-तर्रार नेताओं में से एक चार्ल्स डे गॉल अमेरिका विरोधी हैं। फ्रेडी रूजवेल्ट से लेकर रिचर्ड निक्सन तक छह अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ उनके रिश्ते ज्यादातर खट्टे रहे हैं। अब चार्ल्स डे गॉल ने अमेरिकी अगुआई वाले गोल्ड स्टैंडर्ड को निशाना बनाया है। गॉल ने फ्रांस में अमेरिका से डॉलर के बदले सोना लेना शुरू कर दिया है। इस कदम का रहस्य खुलने तक फ्रांस करीब 15.करोड़ डॉलर के बदले सोना दे चुका है।

अब खबरों पर नजर जमाइए। डे गॉल ने एलान कर दिया है कि फ्रांस के पास जितने भी अमेरिकी डॉलर हैं, उनके बदले वह अमेरिका से सोना वसूल करेगा। किसी मित्र देश की तरफ से यह अमेरिका पर सबसे बड़ा कूटनीतिक हमला है। फ्रांस के बाद स्पेन ने भी अमेरिका से सोना वसूल लिया। अब बाजार में सोने की कीमत खौलने लगी है। यह अक्तूबर,1960 है, जब सोने की कीमत रिकॉर्ड 40 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गई। अब हम लंदन चलते हैं, ब्रिटेन, पश्चिम जर्मनी, इटली, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड व अमेरिका ने मिलकर लंदन गोल्ड पूल बनाया है। इन देशों के पास उपलब्ध सोने के भंडारों के इस्तेमाल से गोल्ड स्टैंडर्ड को बचाने की कोशिश की गई है। इस भंडार के जरिये 35 डॉलर प्रति औंस की कीमत को बचाया जा रहा है। इस गठजोड़ में दरारों पर नजर रखते हुए हमारी टाइम मशीन 1968 में आ गई है। फ्रांस ने इससे नाता तोड़ लिया है और लंदन गोल्ड पूल ढह गया। दुनिया में गोल्ड स्टैंडर्ड की उल्टी गिनती शुरू हो गई है।

सोने की खबरों के बीच आपको पता चलेगा कि 1962 में अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने दुनिया के नौ केंद्रीय बैंकों के साथ एक स्वैप सुविधा शुरू की थी। इनमें ब्रिटेन, तब का पश्चिम जर्मनी, इटली, फ्रांस और कनाडा प्रमुख थे। कोशिश थी कि डॉलर के बदले सोने की मांग सीमित व संतुलित की जा सके, लेकिन अमेरिका के मौद्रिक सिस्टम की दरारें खुल चुकी थीं। सोना कम था व डॉलर की भरमार थी। अंतत: गोल्ड स्टैंडर्ड का अंत आ पहुंचा। टाइम मशीन लंदन से वॉशिंगटन आ गई है। यह 1971 का ऐतिहासिक वर्ष है। अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने डॉलर की सोने से परिवर्तनीयता खत्म कर दी। अमेरिका में गोल्ड के आयात पर दस फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगा दी गई। गोल्ड स्टैंडर्ड खत्म हो गया। सोना दुनिया की आधारभूत मुद्रा नहीं रहा है। नई मौद्रिक प्रणाली में डॉलर नई आधारभूत मुद्रा थी। अब संप्रभु करेंसी सोने पर आधारित नहीं थी। इसलिए इनमें तेज उतार-चढ़ाव होने लगा। इसका बड़ा लाभ यह है कि अर्थव्यवस्था की जरूरत के लिए मुद्रा छापी जा सकती थी, मगर छापाखानों से आगे महंगाई भी निकलने लगी थी। नजर आएगा कि नई मौद्रिक प्रणाली का उद्घाटन अमेरिका में ग्रेट इन्फ्लेशन यानी महा महंगाई के साथ हो रहा है। टाइम मशीन वापस 2024 में आ गई है। हम अब मुंबई में हैं, जहां रिजर्व बैंक लंदन से सोना लाने की तैयारी में लगा है। दुनिया के बैंक डॉलर बेचकर सोना जुटा रहे हैं। उनके विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का हिस्सा बढ़ रहा है। संप्रभु मुद्राएं टूट रही हैं। महंगाई जिद्दी हो चली है। सोने की कीमत रिकॉर्ड बना रही है। लोग पूछ रहे हैं, कि जब सोना सस्ता होगा, तब ये बैंक क्या करेंगे? इनके विदेशी मुद्रा भंडारों की कीमत टूटेगी, तो मुद्राओं का क्या होगा या फिर सारे बैंक मिलकर सोने की महंगाई को स्थायी बना देंगे? बड़ा ही दिलचस्प मौद्रिक दौर है यह। फिर मिलते हैं, अगले सफर पर…

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